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Gujarat Election : आप, कांग्रेस और एआईएमआईएम ने की भाजपा की राह 'आसान' - कांग्रेस और एआईएमआईएम

आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और एआईएमआईएम (AAP, Congress, AIMIM) ने गुजरात में भाजपा की राह आसान कर दी है. कम-से-कम अभी तो ऐसे ही संकेत मिल रहे हैं. एआईएमआईएम ने उन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं, जहां पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या ठीक-ठाक है. यानी वह सीधे तौर पर गैर भाजपाई वोटों को स्पलिट कर रही है. पेश है ईटीवी भारत के न्यूज एडिटर बिलाल भट का एक विश्लेषण.

Gujarat Election
गुजरात विधानसभा चुनाव
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Published : Nov 25, 2022, 9:06 PM IST

Updated : Nov 26, 2022, 8:51 AM IST

हैदराबाद : जैसे-जैसे गुजरात विधानसभा चुनाव (gujarat assembly election) की तारीखें नजदीक आती जा रही हैं, यह चुनाव उतना ही अधिक दिलचस्प होता जा रहा है, खासकर मुस्लिम इलाकों में. वजह है मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या में इजाफा. चुनावी मैदान में अब ऑल इंडिया मजलिस ए एत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) भी पहुंच चुकी है. पार्टी का दावा है कि वह मुसलमानों की भावनाओं का प्रभावी ढंग से प्रतिनिधित्व करती है. पार्टी ने 14 उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. उनमें से 12 उम्मीदवार मुस्लिम हैं, जिन्हें उन इलाकों में खड़ा किया गया है, जहां की अधिकांश आबादी मुस्लिम है. पर, ऐसा लगता है कि असदुद्दीन ओवैसी (एआईएमआईएम प्रमुख) की यह रणनीति कहीं न कहीं भाजपा को फायदा पहुंचा रही है. ओवैसी ने जहां-जहां पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं, वहां पर जितनी भी गैर भाजपा पार्टियां हैं, उनकी भी सोच ऐसी ही है.

अब जरा देखिए, भाजपा के अपने परंपरागत मतदाता हैं. वे लंबे समय से उनके साथ बने हुए हैं. उनमें सेंधमारी करना मुश्किल है. दूसरी ओर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी है. इनके मतदाताओं तक पहुंच बहुत आसान है. ऐसा माना जाता है कि राज्य के मुस्लिम मतदाता आम तौर पर कांग्रेस को वोट करते हैं. लेकिन इस चुनाव ने उनके सामने और भी कई विकल्प रख दिए हैं. उनके सामने आप और एआईएमआईएम भी आ गईं हैं. निश्चित तौर पर वे उन्हीं वोटों में सेंधमारी करेंगी, जो अब तक किसी एक पार्टी को मिला करते थे. यानी मुस्लिम वोटरों का बंटवारा तय है.

अगर आप हाल ही में हुए बिहार उप-चुनाव को याद करें, तो पूरी तस्वीर आपके सामने स्पष्ट हो जाएगी. बिहार की गोपालगंज सीट पर उपचुनाव हुआ था. यहां पर एआईएमआईएम ने भाजपा को जिताने में बड़ी भूमिका निभाई. इस सीट पर एआईएमआईएम को 12,214 वोट मिले. जबकि भाजपा और राजद के बीच मतों का अंतर मात्र 1794 था. अगर ओवैसी अब्दुल सलाम नाम के अपने उम्मीदवार को खड़ा नहीं करते, तो इस सीट से भाजपा की हार तय थी. राजद उम्मीदवार 10 हजार वोटों के अंतर से जीत सकते थे. इसी तरह से अहमदाबाद की जमालपुर खड़िया सीट है. यहां का भी समीकरण बिहार के गोपालगंज की तरह है. एआईएमआईएम कांग्रेस और आप, दोनों का खेल बिगाड़ सकती है.

जमालपुर-खड़िया में 'छीपा' आबादी ठीक-ठाक है. छीपा मुसलमानों का ही एक समुदाय है. कांग्रेस और एआईएमआईएम, दोनों ने एक ही समुदाय से अपने-अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं. ये हैं इमरान खेडावाला और साबिर काबलिवाला. इमरान अभी सिटिंग विधायक हैं. साबिर एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष हैं. इस समुदाय के लोग अब तक एकतरफा वोट करते आए हैं. लेकिन इस बार भी ऐसा होगा, कहना मुश्किल है. क्योंकि दोनों उम्मीदवार एक ही समुदाय से हैं. एक बार फिर से फायदा किसे मिलेगा, जाहिर है भाजपा को.

पिछले कुछ समय से इस बात की भी गाहे-बगाहे चर्चा हो ही जाती है कि ओवैसी, भाजपा की 'बी' टीम की तरह काम कर रहे हैं. बिहार उपचुनाव के परिणाम आने के बाद से तो ओवैसी की विश्वसनीयता को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं. विश्लेषकों का मानना है कि वे मतों का विभाजन करते हैं. गुजरात में चुनाव प्रचार के दौरान ओवैसी के खिलाफ प्रदर्शन भी हुए थे. उन्होंने ओवैसी विरोधी नारे भी लगाए, यह सब उस समय हुआ, जब ओवैसी अपने उम्मीदवार का प्रचार कर रहे थे. उन्हें भाजपा और आरएसएस का 'एजेंट' तक कहा गया.

ओवैसी ने बापूनगर से अपने उम्मीदवार का नाम वापस ले लिया है. यह देखना बाकी है कि उन्होंने इसे डैमेज कंट्रोल करने के लिए किया है, या फिर किसी रणनीति के तहत इसका निर्णय लिया गया है. बापूनगर में 16 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. यहां से कांग्रेस ने हिम्मत सिंह को मैदान में उतारा है. एआईएमआईएम ने यहां से शाहनवाज पठान को उम्मीदवार बनाया था. बापूनगर, अहमदाबाद में पड़ता है.

अब आप देखिए, ओवैसी ने कहां से हिंदू कैंडिडेट को खड़ा किया है. उन्होंने अहमदाबाद की दानिलिमडा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार शैलेश परमार के खिलाफ अनुसूचित जाति के एक व्यक्ति को उम्मीदवार बना दिया. यहां से शैलेश परमार सिटिंग विधायक हैं. यह अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीट है. ओवैसी मुस्लिमों के साथ-साथ दलितों पर भी फोकस किए हुए हैं. दानिलिमडा सीट पर मुस्लिम आबादी भी मायने रखती है. 65,760 मुस्लिम मतदाता हैं. अगर इन्होंने एससी और एसटी समुदाय के साथ किसी एक पार्टी को वोट कर दिया, तो मानिए उनकी स्थिति अच्छी जरूर हो जाएगी. 27 फीसदी वोट उनके ही पक्ष में हो जाएगा.

पूरे गुजरात में 11 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. करीब 25 विधानसभा की सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या बहुतायत है. एआईएमआईएम ने इन्हीं सीटों पर अपना ध्यान केंद्रित किया हुआ है. साथ ही साथ उन्होंने दलितों को भी प्रभावित करना शुरू कर दिया है. ओवैसी की पार्टी ने वेडगाम से भी एससी समुदाय के ही व्यक्ति को अपना उम्मीदवार बनाया है. इस सीट से भी कांग्रेस के ही कैंडिडेट जीते हुए हैं. जिग्नेश मेवाणी यहीं से विधायक हैं. मेवाणी ने 2017 में यहां से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल की थी. वेडगाम भी रिजर्व सीट है. यहां पर 25 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं.

भाजपा ने जहां सभी 182 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं, वहीं कांग्रेस ने 179 सीटों पर अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. 2017 में भाजपा को सौराष्ट्र के कुल 11 जिलों में मात्र 18 सीटों पर जीत मिली थी. परंपरागत रूप से यहां पर कांग्रेस मजबूत रही है. पिछले पांच सालों में यहां से कांग्रेस के नौ विधायक भाजपा में शामिल हो चुके हैं. पिछले चुनाव में भाजपा को 49 फीसदी मत मिला था. कांग्रेस को 41 फीसदी और अन्य को 10 फीसदी वोट मिले थे. लेकिन इस बार कयास लगाए जा रहे हैं कि भाजपा के खिलाफ मतों का बंटवारा हो सकता है. कांग्रेस, आप और एआईएमआईएम के बीच मतों का बंटवारा हो सकता है, और भाजपा के विश्वास की यह एक बड़ी वजह भी है.

एक तरफ जहां भाजपा ने आक्रामक अंदाज में प्रचार अभियान चला रखा है, वहीं कांग्रेस के प्रचार अभियान से सबों को निराशा हुई है. पीएम खुद सौराष्ट्र में भी लोगों से मत करने की अपील कर रहे हैं.

लिंबायत निर्वाचन क्षेत्र में 27 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. जानकारी के मुताबिक यहां 44 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं और उनमें से 36 मुस्लिम हैं. अंदाजा लगाइये कि मुस्लिम मतदाता क्यों नहीं भ्रमित और दुविधा में होंगे.

पढ़ें- Gujarat Elections: पहले चरण में 167 उम्मीदवारों पर आपराधिक केस, AAP के सबसे अधिक

पढ़ें- Gujarat Election 2022: कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे की 26 और 28 नवंबर को रैली

हैदराबाद : जैसे-जैसे गुजरात विधानसभा चुनाव (gujarat assembly election) की तारीखें नजदीक आती जा रही हैं, यह चुनाव उतना ही अधिक दिलचस्प होता जा रहा है, खासकर मुस्लिम इलाकों में. वजह है मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या में इजाफा. चुनावी मैदान में अब ऑल इंडिया मजलिस ए एत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) भी पहुंच चुकी है. पार्टी का दावा है कि वह मुसलमानों की भावनाओं का प्रभावी ढंग से प्रतिनिधित्व करती है. पार्टी ने 14 उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. उनमें से 12 उम्मीदवार मुस्लिम हैं, जिन्हें उन इलाकों में खड़ा किया गया है, जहां की अधिकांश आबादी मुस्लिम है. पर, ऐसा लगता है कि असदुद्दीन ओवैसी (एआईएमआईएम प्रमुख) की यह रणनीति कहीं न कहीं भाजपा को फायदा पहुंचा रही है. ओवैसी ने जहां-जहां पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं, वहां पर जितनी भी गैर भाजपा पार्टियां हैं, उनकी भी सोच ऐसी ही है.

अब जरा देखिए, भाजपा के अपने परंपरागत मतदाता हैं. वे लंबे समय से उनके साथ बने हुए हैं. उनमें सेंधमारी करना मुश्किल है. दूसरी ओर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी है. इनके मतदाताओं तक पहुंच बहुत आसान है. ऐसा माना जाता है कि राज्य के मुस्लिम मतदाता आम तौर पर कांग्रेस को वोट करते हैं. लेकिन इस चुनाव ने उनके सामने और भी कई विकल्प रख दिए हैं. उनके सामने आप और एआईएमआईएम भी आ गईं हैं. निश्चित तौर पर वे उन्हीं वोटों में सेंधमारी करेंगी, जो अब तक किसी एक पार्टी को मिला करते थे. यानी मुस्लिम वोटरों का बंटवारा तय है.

अगर आप हाल ही में हुए बिहार उप-चुनाव को याद करें, तो पूरी तस्वीर आपके सामने स्पष्ट हो जाएगी. बिहार की गोपालगंज सीट पर उपचुनाव हुआ था. यहां पर एआईएमआईएम ने भाजपा को जिताने में बड़ी भूमिका निभाई. इस सीट पर एआईएमआईएम को 12,214 वोट मिले. जबकि भाजपा और राजद के बीच मतों का अंतर मात्र 1794 था. अगर ओवैसी अब्दुल सलाम नाम के अपने उम्मीदवार को खड़ा नहीं करते, तो इस सीट से भाजपा की हार तय थी. राजद उम्मीदवार 10 हजार वोटों के अंतर से जीत सकते थे. इसी तरह से अहमदाबाद की जमालपुर खड़िया सीट है. यहां का भी समीकरण बिहार के गोपालगंज की तरह है. एआईएमआईएम कांग्रेस और आप, दोनों का खेल बिगाड़ सकती है.

जमालपुर-खड़िया में 'छीपा' आबादी ठीक-ठाक है. छीपा मुसलमानों का ही एक समुदाय है. कांग्रेस और एआईएमआईएम, दोनों ने एक ही समुदाय से अपने-अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं. ये हैं इमरान खेडावाला और साबिर काबलिवाला. इमरान अभी सिटिंग विधायक हैं. साबिर एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष हैं. इस समुदाय के लोग अब तक एकतरफा वोट करते आए हैं. लेकिन इस बार भी ऐसा होगा, कहना मुश्किल है. क्योंकि दोनों उम्मीदवार एक ही समुदाय से हैं. एक बार फिर से फायदा किसे मिलेगा, जाहिर है भाजपा को.

पिछले कुछ समय से इस बात की भी गाहे-बगाहे चर्चा हो ही जाती है कि ओवैसी, भाजपा की 'बी' टीम की तरह काम कर रहे हैं. बिहार उपचुनाव के परिणाम आने के बाद से तो ओवैसी की विश्वसनीयता को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं. विश्लेषकों का मानना है कि वे मतों का विभाजन करते हैं. गुजरात में चुनाव प्रचार के दौरान ओवैसी के खिलाफ प्रदर्शन भी हुए थे. उन्होंने ओवैसी विरोधी नारे भी लगाए, यह सब उस समय हुआ, जब ओवैसी अपने उम्मीदवार का प्रचार कर रहे थे. उन्हें भाजपा और आरएसएस का 'एजेंट' तक कहा गया.

ओवैसी ने बापूनगर से अपने उम्मीदवार का नाम वापस ले लिया है. यह देखना बाकी है कि उन्होंने इसे डैमेज कंट्रोल करने के लिए किया है, या फिर किसी रणनीति के तहत इसका निर्णय लिया गया है. बापूनगर में 16 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. यहां से कांग्रेस ने हिम्मत सिंह को मैदान में उतारा है. एआईएमआईएम ने यहां से शाहनवाज पठान को उम्मीदवार बनाया था. बापूनगर, अहमदाबाद में पड़ता है.

अब आप देखिए, ओवैसी ने कहां से हिंदू कैंडिडेट को खड़ा किया है. उन्होंने अहमदाबाद की दानिलिमडा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार शैलेश परमार के खिलाफ अनुसूचित जाति के एक व्यक्ति को उम्मीदवार बना दिया. यहां से शैलेश परमार सिटिंग विधायक हैं. यह अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीट है. ओवैसी मुस्लिमों के साथ-साथ दलितों पर भी फोकस किए हुए हैं. दानिलिमडा सीट पर मुस्लिम आबादी भी मायने रखती है. 65,760 मुस्लिम मतदाता हैं. अगर इन्होंने एससी और एसटी समुदाय के साथ किसी एक पार्टी को वोट कर दिया, तो मानिए उनकी स्थिति अच्छी जरूर हो जाएगी. 27 फीसदी वोट उनके ही पक्ष में हो जाएगा.

पूरे गुजरात में 11 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. करीब 25 विधानसभा की सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या बहुतायत है. एआईएमआईएम ने इन्हीं सीटों पर अपना ध्यान केंद्रित किया हुआ है. साथ ही साथ उन्होंने दलितों को भी प्रभावित करना शुरू कर दिया है. ओवैसी की पार्टी ने वेडगाम से भी एससी समुदाय के ही व्यक्ति को अपना उम्मीदवार बनाया है. इस सीट से भी कांग्रेस के ही कैंडिडेट जीते हुए हैं. जिग्नेश मेवाणी यहीं से विधायक हैं. मेवाणी ने 2017 में यहां से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल की थी. वेडगाम भी रिजर्व सीट है. यहां पर 25 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं.

भाजपा ने जहां सभी 182 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं, वहीं कांग्रेस ने 179 सीटों पर अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. 2017 में भाजपा को सौराष्ट्र के कुल 11 जिलों में मात्र 18 सीटों पर जीत मिली थी. परंपरागत रूप से यहां पर कांग्रेस मजबूत रही है. पिछले पांच सालों में यहां से कांग्रेस के नौ विधायक भाजपा में शामिल हो चुके हैं. पिछले चुनाव में भाजपा को 49 फीसदी मत मिला था. कांग्रेस को 41 फीसदी और अन्य को 10 फीसदी वोट मिले थे. लेकिन इस बार कयास लगाए जा रहे हैं कि भाजपा के खिलाफ मतों का बंटवारा हो सकता है. कांग्रेस, आप और एआईएमआईएम के बीच मतों का बंटवारा हो सकता है, और भाजपा के विश्वास की यह एक बड़ी वजह भी है.

एक तरफ जहां भाजपा ने आक्रामक अंदाज में प्रचार अभियान चला रखा है, वहीं कांग्रेस के प्रचार अभियान से सबों को निराशा हुई है. पीएम खुद सौराष्ट्र में भी लोगों से मत करने की अपील कर रहे हैं.

लिंबायत निर्वाचन क्षेत्र में 27 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. जानकारी के मुताबिक यहां 44 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं और उनमें से 36 मुस्लिम हैं. अंदाजा लगाइये कि मुस्लिम मतदाता क्यों नहीं भ्रमित और दुविधा में होंगे.

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Last Updated : Nov 26, 2022, 8:51 AM IST
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