नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी20 बैठक के दौरान बड़ी पहल करते हुए जी20 में अफ्रीकी संघ को शामिल करने की औपचारिक घोषणा कर दी. यह अपने आप में संगठन के लिहाज से बड़ी उपलब्धि है. अफ्रीकी संघ में कुल 55 देश हैं. इन अफ्रीकी देशों पर चीन की लंबे समय से नजर बनी हुई है. वह अफ्रीकी संघ के कई देशों के प्राकृतिक संसाधनों का न सिर्फ दोहन कर रहा है, बल्कि उन्हें कर्ज के जाल में भी फंसा रहा है. ऐसे में भारत की यह पहल अफ्रीकी देशों के लिए बड़ा मैसेज है.
अफ्रीकी देशों में चीन को लेकर बहुत अच्छा मैसेज नहीं जा रहा है. और भारत के लिए यही एक बड़ा मौका है. भारत की यह बड़ी राजनयिक पहल है. यह किसी राजनयिक जीत से कम नहीं है. और सबसे बड़ी बात ये है कि यह सबकुछ हुआ, चीन की अनुपस्थिति में या कहें कि चीन के राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में. चीनी राष्ट्रपति इस ऐतिहासिक पल में उपस्थित नहीं थे. वैसे, चीन ने कई मौकों पर अफ्रीकी संघ को शामिल किए जाने का समर्थन किया था, लेकिन बात जब लागू करने की हुई, तो चीनी राष्ट्रपति नदारद दिखे. जी 20 की बैठक में चीन का प्रतिनिधित्व उसके प्रधानमंत्री कर रहे हैं.
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Honoured to welcome the African Union as a permanent member of the G20 Family. This will strengthen the G20 and also strengthen the voice of the Global South. pic.twitter.com/fQQvNEA17o
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— Narendra Modi (@narendramodi) September 9, 2023
भारत की इस कोशिश की पूरी दुनिया तारीफ कर रही है. भारत ने साबित कर दिया है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी पहल न सिर्फ रंग लाती है, बल्कि एक प्रभाव भी रखता है. एक तरह से आप कह सकते हैं कि यह भारत के नेतृत्व पर मुहर लगाने जैसा है. उसे एक नई पहचान मिली है. अफ्रीकी यूनियन में 55 देश हैं, और दुनिया की 66 फीसदी आबादी यहां पर रहती है.
भारत का अफ्रीकी देशों से पुराना संबंध रहा है. इसके बावजूद भारत ने कभी भी चीन की तरह उनके प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने की कोशिश नहीं की. बल्कि भारत वहां पर आधारभूत ढांचा का निर्माण करने में भूमिका निभाता है, ताकि आने वाले समय में वे अपने पैरों पर खड़ा हो सकें और अपने लिए विकास की राह निर्धारित कर सकें. भारत उन्हें आईटी और सॉफ्ट पावर से सहयोग करता है.
ब्रिक्स की बैठक में ही भारत ने अफ्रीकी देशों को लेकर अपना नजरिया साफ कर दिया था. विशेषज्ञ मानते हैं कि प्रायः जब भी ऐसे फैसले होते हैं, तो सहमति बनाने के बाद मीडिया के सामने इसकी घोषणा की जाती है. लेकिन पीएम मोदी ने समिट डॉक्युमेंट जारी होने से पहले सबकी सहमति बनाकर सबके सामने की. जाहिर है, इसके पीछे विदेश मंत्री और हमारे राजनयिकों की अथक कोशिश छिपी है.
अब ऐसी चर्चा चल पड़ी है कि अफ्रीकी देशों के बीच भारत को चीन से अधिक वरीयता मिल सकती है. भारत कभी भी किसी देश को कर्ज के जाल में नहीं फंसाता है. भारत व्यापार करता है. चीन दोहन करता है. भारत उनके यहां ढांचा का विकास करता है, चीन उनके खान पर नजरें गड़ाए रहता है.
क्यों महत्वपूर्ण है - अफ्रीकी देशों के पास रेन्यूएवल एनर्जी का 60 फीसदी स्रोत है. कांगो जैसे देश के पास पूरी दुनिया का 50 फीसदी कोबाल्ट है. इसका प्रयोग लिथियम बैटरी बनाने में होता है. अफ्रीकी देश चाहते हैं कि उनके यहां भी उद्योग-धंधे लगे और उनके संसाधनों का फायदा उनके नागरिकों को मिले. भारत इस सोच का समर्थक है, न कि चीन. कोविड के समय मे भी भारत ने ही अफ्रीकी देशों की मदद की थी, न कि उन देशों की तरह 'ब्लैक मेल' किया, जो वैक्सीन की कीमतों से फायदा उठाना चाहते थे.
यहां पर यह भी जानना जरूरी है कि भारत ने इसके जरिए ग्लोबल साउथ की ओर से बड़ी पहल की है. ग्लोबल साउथ का मतलब विकासशील देशों से है. ग्लोबल नॉर्थ का मतलब विकिसत देशों को माना जाता है. आम तौर पर ग्लोबल नॉर्थ यानी जीडीपी पर कैपिटा 15 हजार डॉलर से ज्यादा है. अगर ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को छोड़ दें, तो ग्लोबल नॉर्थ के सारे देश उत्तर में पड़ते हैं. ग्लोबल साउथ में अभी 134 देश हैं. अफ्रीकी देश ग्लोबल साउथ में ही आते हैं.
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