पश्चिमी चंपारण: पश्चिमी चंपारण जिले के दियारा (West Champaran district Diara area) इलाके में भी अब विकास की किरणें पहुंचने लगी हैं. एक बेहद खूबसूरत तस्वीर गंडक दियारा पार के पिपरासी प्रखंड अंतर्गत बलुआ ठोरी पंचायत से आई है. यहां कभी मदरहवा रेता व अन्य दियारा के इलाकों में अपराध की पाठशाला चलती थी.
यह पूरा इलाका गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंजता था. दस्यु सरगनाओं द्वारा अकारण लोगों का नरसंहार किया जाता था. आज वहां के बच्चे स्मार्ट क्लास (Children getting education from smart class in West Champaran) से अपना भविष्य संवार रहे हैं. यह देखकर उनके परिजनों का सीना चौड़ा हो जाता है.
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दरअसल, 90 के दशक में दियारावर्ती इलाकों की पहचान यहां के दस्यु सरगनाओं से हुआ करती थी. मिनी चम्बल के नाम से मशहूर इन इलाकों में डकैत लोगों का अपहरण कर शरण लेते थे लेकिन अब तस्वीर बदल गई है. खून की जगह स्याही ने ले ली है. ऐसा इसलिए क्योंकि पहले गोलियों की तड़तड़ाहट से इलाका गूंजता था. अब बच्चों के ककहरा की गूंज इलाके में सुनाई पड़ती है. बच्चे पढ़-लिखकर भविष्य में आगे बढ़ना चाहते हैं. अपना भविष्य उज्ज्वल बनाना चाहते हैं.
बता दें कि बलुआ ठोरी पंचायत में वर्तमान समय में चार सरकारी विद्यालय हैं. इसमें से एक को हाल ही में 10+2 का दर्जा मिला है. यहां उन्नयन बिहार के तहत स्मार्ट क्लास से पढ़ाई होती है जबकि तीन विद्यालय अब भी झोपड़ी में संचालित होते हैं. रा. उ. मध्य विद्यालय के प्रधानाचार्य मो. इस्माइल बताते हैं कि दशकों पूर्व विद्यालय के पास ही गोलियां चलने लगती थीं. इस भय से शिक्षक नहीं आते थे लेकिन आज के समय मे नाव से पार कर शिक्षक प्रतिदिन स्कूल आते हैं. अब यहां इंटर तक की पढ़ाई होने लगी है.
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ग्रामीणों का कहना है कि अब क्राइम खत्म होने से उनके बच्चों पर सकारात्मक असर पड़ा है. बच्चे अब स्कूलों में पढ़ने जाते हैं और डिजिटल तरीके से शिक्षित हो रहे हैं. पंचायत के पूर्व मुखिया बनारसी यादव बताते हैं कि एक समय था जब यहां नरसंहार आम बात थी. 90 के दशक में छः लोगों को डकैतों ने अकारण मार दिया था. तब लोग दहशत के साए में जीते थे लेकिन अब काफी बदलाव आया है. मिनी चम्बल के बच्चे अब पढ़ाई कर होनहार बन रहे हैं.
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