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पश्चिम चंपारण: कम बारिश ने छीना रोजगार, नेपाल पलायन को मजबूर बेरोजगार

जिले में हल्की बारिश के कारण मजदूरों का रोजगार छिन गया है. जिसकी वजह से इलाके के लोग 300 रुपये की दिहाड़ी मजदूरी पर नेपाल धान रोपनी के लिए जा रहे है. ताकि वह अपने परिवार की भूख मिटा सकें.

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Published : Jul 11, 2019, 2:49 PM IST

पलायन कर रहे लोग

पश्चिम चंपारण: इलाके में कम बारिश के कारण लोगों का जीना मुहाल हो रहा है. बारिश कम होने की वजह से धान की रोपनी पर इसका असर पड़ा है. ऐसे में रोजगार नहीं मिलने के कारण मजदूर पलायन को मजबूर हैं. लोग रोजगार की तलाश में पड़ोसी देश नेपाल का रुख कर रहे हैं. राज्य और केन्द्र सरकार की रोजगार के लिए चलाई गई सभी योजना आज विफल साबित हो रही हैं.

धान रोपनी के लिए हो रहा पलायन
दरअसल, बारिश कम होने की वजह से इलाके में धान रोपनी नहीं हो रही है. लोग गन्ना की खेती करने में लगे हैं. जिस वजह से लोगों का रोजगार खत्म गया है. ये मजदूर धान रोपनी के लिए नेपाल का रुख कर रहे हैं, ताकि इस मंदी के समय में वे कुछ पैसे जोड़ सकें.

west champaran
बेरोजगार मजदूर

300 रुपये की मजदूरी पर करेंगे काम
मजदूरों का कहना है कि बारिश नहीं होने की वजह से कोई काम नहीं मिल रहा है. कम से कम नेपाल जाकर दिहाड़ी मजदूरी कर अपना घर चला लेंगे. इस वर्ष बारिश कम हुई है. जिससे किसानों ने गन्ने की खेती ज्यादा की है. हालांकि, अभी धान की खेती का समय चल रहा है. इसीलिए नेपाल जाकर 300 रुपया प्रतिदिन की मजदूरी कर धान रोपनी का काम करेंगे.


सरकारी योजनाएं विफल
बता दें कि भारत में ग्रामीण विकास मंत्रालय की पहली प्राथमिकता ग्रामीण क्षेत्र का विकास और गरीबों का भूख मिटाना है. साथ ही गांव से शहर की ओर हो रहे पलायन को रोकने के लिए स्थानीय स्तर पर रोजगार की गारंटी भी मुहैया कराना है. जिसके लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना सहित अन्य योजनाएं सरकार चला रही है. बावजूद इसके लोगों का पलायन रुकने का नाम नहीं ले रहा है.

पेश है रिपोर्ट

नेपाल में लोग ढ़ूंढ़ रहे मजदूर
हैरत की बात है कि हमेशा ही नेपाल से लोग मजदूरी के लिए भारत का रुख करते रहे हैं. लेकिन आज गंगा उलटी बह रही है. आज लोग बिहार से नेपाल मजदूरी के लिए जा रहे हैं. जो अपने आप में अचंभित करने वाली बात है. हुक्मरानों को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है.

पश्चिम चंपारण: इलाके में कम बारिश के कारण लोगों का जीना मुहाल हो रहा है. बारिश कम होने की वजह से धान की रोपनी पर इसका असर पड़ा है. ऐसे में रोजगार नहीं मिलने के कारण मजदूर पलायन को मजबूर हैं. लोग रोजगार की तलाश में पड़ोसी देश नेपाल का रुख कर रहे हैं. राज्य और केन्द्र सरकार की रोजगार के लिए चलाई गई सभी योजना आज विफल साबित हो रही हैं.

धान रोपनी के लिए हो रहा पलायन
दरअसल, बारिश कम होने की वजह से इलाके में धान रोपनी नहीं हो रही है. लोग गन्ना की खेती करने में लगे हैं. जिस वजह से लोगों का रोजगार खत्म गया है. ये मजदूर धान रोपनी के लिए नेपाल का रुख कर रहे हैं, ताकि इस मंदी के समय में वे कुछ पैसे जोड़ सकें.

west champaran
बेरोजगार मजदूर

300 रुपये की मजदूरी पर करेंगे काम
मजदूरों का कहना है कि बारिश नहीं होने की वजह से कोई काम नहीं मिल रहा है. कम से कम नेपाल जाकर दिहाड़ी मजदूरी कर अपना घर चला लेंगे. इस वर्ष बारिश कम हुई है. जिससे किसानों ने गन्ने की खेती ज्यादा की है. हालांकि, अभी धान की खेती का समय चल रहा है. इसीलिए नेपाल जाकर 300 रुपया प्रतिदिन की मजदूरी कर धान रोपनी का काम करेंगे.


सरकारी योजनाएं विफल
बता दें कि भारत में ग्रामीण विकास मंत्रालय की पहली प्राथमिकता ग्रामीण क्षेत्र का विकास और गरीबों का भूख मिटाना है. साथ ही गांव से शहर की ओर हो रहे पलायन को रोकने के लिए स्थानीय स्तर पर रोजगार की गारंटी भी मुहैया कराना है. जिसके लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना सहित अन्य योजनाएं सरकार चला रही है. बावजूद इसके लोगों का पलायन रुकने का नाम नहीं ले रहा है.

पेश है रिपोर्ट

नेपाल में लोग ढ़ूंढ़ रहे मजदूर
हैरत की बात है कि हमेशा ही नेपाल से लोग मजदूरी के लिए भारत का रुख करते रहे हैं. लेकिन आज गंगा उलटी बह रही है. आज लोग बिहार से नेपाल मजदूरी के लिए जा रहे हैं. जो अपने आप में अचंभित करने वाली बात है. हुक्मरानों को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है.

Intro:मौसम की मार से हलकान ग्रामीण बड़े तादाद में रोजगार के लिए पड़ोसी देश नेपाल में पलायन करने को विवश हैं। ताज्जुब की बात यह है कि ग्रामीण क्षेत्र के लोगों का पलायन रोकने व गांव में ही रोजगार मुहैया कराने के लिए राज्य व केंद्र सरकार द्वारा अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं। फिर भी सरकार मजदूर वर्ग का पलायन रोकने में नाकाम साबित हो रही है।


Body:भारत मे ग्रामीण विकास मंत्रालय की प्रथम प्राथमिकता ग्रामीण क्षेत्र का विकास और ग्रामीण भारत से भुखमरी व गरीबी मिटाना है। साथ हीं गांव से शहर की ओर हो रहे पलायन को रोकने के लिए गांव के लोगों को स्थानीय स्तर पर ही रोजगार की गारंटी भी मुहैया कराना है। जिसके लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना सहित अन्य योजनाएं भी सरकार चला रही है। बावजूद इसके लोगों का पलायन रोकने में सरकार को मुंह की खानी पड़ रही। हालात ये हैं कि पश्चिम चंपारण के अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों के मजदूर अपना घर बार छोड़ नेपाल परदेस में पलायन करने को विवश हैं। मजदूरों का कहना है कि उनके क्षेत्र में अब काम नही मिल रहा जिस वजह से वो नेपाल का रुख कर रहे हैं। मजदूरों के मुताबिक इस वर्ष बारिश कम हुई जिस वजह से अधिकांश किसानों ने गन्ना की खेती कर ली है और इस समय धान के फसल की रोपनी चल रही तो ऐसे में इस बार धान की कम रोपनी हो रही है जिस वजह से काम नही मिल रहा। कुछ जगहों पर ज्यादा बरसात के वजह से भी काम नहीं मिल पा रहा ऐसे में 300 रुपया दिहाड़ी पर नेपाल काम करने जा रहे हैं।
आश्चर्य की बात तो यह है कि नेपाल के किसान भी मजदूरों को ले जाने के लिए बॉर्डर पार चले आ रहे और यहीं से मजदूरों को साथ लेकर जा रहे हैं।


Conclusion:प्रतिदिन हजारों की संख्या में मजदूर वाल्मीकिनगर के गण्डक बराज की सीमा पार कर नेपाल जा रहे हैं। नेपाल के लुम्बिनी, बुटवल, भैरहवा, नारायणगढ़ जैसे शहरों के किसान बॉर्डर पर आकर मजदूरों को नेपाल ले जा रहे। ऐसे में लोगों का बड़ी संख्या में पलायन सरकारी दावों को मुंह चिढ़ाने से कम कुछ भी नही।
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