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वरदान साबित हो रही 'मोती की खेती', कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमा रहे बगहा के नितिन भारद्वाज - etv live

पश्चिमी चंपारण जिले के बगहा में नितिन भारद्वाज इंटीग्रेटेड फार्मिंग (Integrated Farming) में जुटे हुए हैं. मुंबई, भोपाल और चेन्नई में बतौर मोती पालक के रूप में काम कर चुके नितिन अब मोती की खेती (Pearl Farming) के जरिए खुद की किस्मत चमका रहे हैं. इसके साथ ही प्रवासी मजदूरों को भी रोजगार दे रहे हैं. पढ़ें ये रिपोर्ट..

बगहा में मोती की खेती
बगहा में मोती की खेती
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Published : Nov 22, 2021, 4:38 PM IST

पश्चिमी चंपारण: बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के बगहा में रामनगर का एक युवक इंटीग्रेटेड खेती (Integrated Farming) कर अपनी किस्मत चमका रहा है. युवक का मानना है कि मोती की खेती (Pearl Farming) से किसानों के दिन बहुरेंगे और महज 8 लाख की लागत में सालाना 30 से 35 लाख की कमाई हो सकती है. युवक के इस प्रयोग से कई किसानों ने प्रेरणा ली है और अब उसके पास ट्रेनिंग के लिए भी पहुंच रहे हैं.

ये भी पढ़ें- सरकारी नौकरी छोड़ बना किसान, मोती की खेती कर देश की आत्मनिर्भरता में दे रहे योगदान

रामनगर के मुंडेरा अंतर्गत पिपरा गांव का एक युवक दो सालों से इंटीग्रेटेड फार्मिंग के जरिये लाखों की आमदनी कर रहा है. दरअसल, नितिन भारद्वाज नामक युवक ने सीप से पर्ल फार्मिंग की ट्रेनिंग हैदराबाद और मुंबई से ली और फिर गांव में आकर पर्ल फार्मिंग की शुरूआत की. साथ ही दर्जनों लोगों को प्रशिक्षण भी देने लगा. अब प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले लोग उसके इस इंटीग्रेटेड फार्मिंग में मददगार साबित हो रहे हैं और उन्हें रोजगार भी मिला है.

देखें रिपोर्ट

दरअसल, नितिन भारद्वाज ने मशान नदी से लगे बाढ़ प्रभावित इलाके में ही तालाब खुदवाया और तालाब किनारे चारों तरफ प्लान्टेशन किया. इसके अलावा उसने तालाब में मछली पालन के साथ ही बतख पालन भी शुरू किया. जिससे उसे चारों तरफ से फायदा मिल रहा है.

ये भी पढ़ें- सरकारी नौकरी छोड़ शुरू की मोती की खेती, PM मोदी ने 'मन की बात' में किया जिक्र

''आज के जमाने में इंटीग्रेटेड फार्मिंग से किसान मालामाल हो सकते हैं. पोखरा किनारे ज्यादातर फलदार पेड़ लगाए गए हैं, जिनका फल पानी मे गिरेगा और मछलियां खाएंगी तो बहुत अच्छी मछली का उत्पादन होगा.''- नितिन भारद्वाज, पर्ल फार्मर

बता दें कि सीप के जरिए अलग-अलग प्रकार और विभिन्न डिजाइन के मोती यहां तैयार किये जा रहे हैं. इसको तैयार होने में 14 माह का समय लगता है और बाजार में एक सामान्य मोती का दाम 300 से 1500 रुपये तक मिलता है. इसकी खेती के लिए अक्टूबर से दिसम्बर तक का समय काफी अनुकूल होता है. नितिन भारद्वाज का कहना है कि फिलहाल उन्होंने ये खेती प्रयोग के तौर पर की है. पर्ल फार्मिंग से किसान 7 से 8 लाख लगाकर सालाना 30 से 35 लाख तक कमा सकते हैं.

ये भी पढ़ें- कड़कनाथ से लीची की हो रही 'कड़क' खेती, ओपन फार्मिंग से बदल रही तस्वीर

इलाके में यह इंटीग्रेटेड खेती चर्चा का विषय है. इससे दर्जनों प्रवासी मजदूरों को रोजगार भी मिला है. प्रभु यादव बताते हैं कि पहले वह दूसरे राज्य में मजदूरी करते थे, लेकिन जब लॉकडाउन के बाद घर आये तो उन्होंने नितिन भारद्वाज से दो दिनों का प्रशिक्षण लिया और फिर उन्हीं के यहां अच्छी तनख्वाह पर नौकरी भी मिल गई. उनको देख दर्जनों लोगों ने प्रशिक्षण लिया और वे लोग भी यहां जुड़े हुए हैं. कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि इससे अन्य किसान भी प्रेरित होंगे और इंटीग्रेटेड फार्मिंग की तरफ उनका रुझान बढ़ेगा, जिससे उनके भी दिन बहुर सकते हैं.

नोट- ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत एप

पश्चिमी चंपारण: बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के बगहा में रामनगर का एक युवक इंटीग्रेटेड खेती (Integrated Farming) कर अपनी किस्मत चमका रहा है. युवक का मानना है कि मोती की खेती (Pearl Farming) से किसानों के दिन बहुरेंगे और महज 8 लाख की लागत में सालाना 30 से 35 लाख की कमाई हो सकती है. युवक के इस प्रयोग से कई किसानों ने प्रेरणा ली है और अब उसके पास ट्रेनिंग के लिए भी पहुंच रहे हैं.

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रामनगर के मुंडेरा अंतर्गत पिपरा गांव का एक युवक दो सालों से इंटीग्रेटेड फार्मिंग के जरिये लाखों की आमदनी कर रहा है. दरअसल, नितिन भारद्वाज नामक युवक ने सीप से पर्ल फार्मिंग की ट्रेनिंग हैदराबाद और मुंबई से ली और फिर गांव में आकर पर्ल फार्मिंग की शुरूआत की. साथ ही दर्जनों लोगों को प्रशिक्षण भी देने लगा. अब प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले लोग उसके इस इंटीग्रेटेड फार्मिंग में मददगार साबित हो रहे हैं और उन्हें रोजगार भी मिला है.

देखें रिपोर्ट

दरअसल, नितिन भारद्वाज ने मशान नदी से लगे बाढ़ प्रभावित इलाके में ही तालाब खुदवाया और तालाब किनारे चारों तरफ प्लान्टेशन किया. इसके अलावा उसने तालाब में मछली पालन के साथ ही बतख पालन भी शुरू किया. जिससे उसे चारों तरफ से फायदा मिल रहा है.

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''आज के जमाने में इंटीग्रेटेड फार्मिंग से किसान मालामाल हो सकते हैं. पोखरा किनारे ज्यादातर फलदार पेड़ लगाए गए हैं, जिनका फल पानी मे गिरेगा और मछलियां खाएंगी तो बहुत अच्छी मछली का उत्पादन होगा.''- नितिन भारद्वाज, पर्ल फार्मर

बता दें कि सीप के जरिए अलग-अलग प्रकार और विभिन्न डिजाइन के मोती यहां तैयार किये जा रहे हैं. इसको तैयार होने में 14 माह का समय लगता है और बाजार में एक सामान्य मोती का दाम 300 से 1500 रुपये तक मिलता है. इसकी खेती के लिए अक्टूबर से दिसम्बर तक का समय काफी अनुकूल होता है. नितिन भारद्वाज का कहना है कि फिलहाल उन्होंने ये खेती प्रयोग के तौर पर की है. पर्ल फार्मिंग से किसान 7 से 8 लाख लगाकर सालाना 30 से 35 लाख तक कमा सकते हैं.

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इलाके में यह इंटीग्रेटेड खेती चर्चा का विषय है. इससे दर्जनों प्रवासी मजदूरों को रोजगार भी मिला है. प्रभु यादव बताते हैं कि पहले वह दूसरे राज्य में मजदूरी करते थे, लेकिन जब लॉकडाउन के बाद घर आये तो उन्होंने नितिन भारद्वाज से दो दिनों का प्रशिक्षण लिया और फिर उन्हीं के यहां अच्छी तनख्वाह पर नौकरी भी मिल गई. उनको देख दर्जनों लोगों ने प्रशिक्षण लिया और वे लोग भी यहां जुड़े हुए हैं. कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि इससे अन्य किसान भी प्रेरित होंगे और इंटीग्रेटेड फार्मिंग की तरफ उनका रुझान बढ़ेगा, जिससे उनके भी दिन बहुर सकते हैं.

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