पश्चिम चंपारण: माथे पर गठरी और आंखों में गांव पहुंचने का सपना संजोए यह मजदूर पैदल ही दिल्ली से बेतिया के लिए निकल पड़े थे. यह अपने हालात से मजबूर हैं. सात दिनों में यह सभी मजदूर जैसे-तैसे दिल्ली से बेतिया पहुंच गए. प्रवासी मजदूरों ने बताया कि रास्ते में तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ा. कभी पैदल चले तो कभी ट्रक से यात्रा की. भूखे प्यासे सफर किया. हाईवे पर चल-चलकर पांव में छाले पड़ गए.
रास्ते में रुक-रुककर किसी तरह अपने घर पहुंचने की कोशिश में भूखे प्यासे चल रहे यह मजदूर जब अपने सफर की आपबीती सुना रहे हैं तो पूरी व्यवस्था ही मानो उनकी गुनाहगार हो. मकान मालिक घर में रखना नहीं चाहता, खाने के लिए राशन नहीं मिल रहा, लॉकडाउन में कोई काम नहीं दे रहा. ऐसे में जो पैसे इनके पास थे वो भी खत्म हो गए. तो पैदल ही दिल्ली से बेतिया अपने घर निकल पड़े. पेट की खातिर बेतिया से दिल्ली गए थे. अब पांव में छाले लेकर अपने घर लौट रहे हैं.
नहीं मिल रहा था काम, लौटना ही था आखिरी कदम
दिल्ली से प्रवासी श्रमिकों का पलायन जारी है. वैश्विक महामारी कोरोना को लेकर पूरा देश लॉकडाउन हैं. जो प्रवासी श्रमिक लॉकडाउन में दूसरे प्रदेशों में फंसे थे वह लॉकडाउन खुलने का इंतजार कर रहे थे. लेकिन लगातार बढ़ते लॉकडाउन के कारण इनके सामने भुखमरी की स्थिति पैदा कर दी है. लॉकडाउन में सब कुछ बंद होने के कारण इन्हें कोई दिहाड़ी मजदूरी वाला भी काम नहीं दे रहा था.
रास्ते में जो खाना देता, वही खाकर चल देते
ऐसे में यह प्रवासी अपने घर निकल जाना ही मुनासिब समझा और दिल्ली से बेतिया पैदल ही चल दिए. प्रवासियों ने बताया कि तापमान अधिक होने के कारण सड़क पर चलना मुश्किल था. न भोजन था न ही पानी. रास्ते में कोई खिला देता तो पेट भरता. बिहार में तो वह भी नहीं मिला.
पांव में पड़े छाले, फिर भी नहीं रुके मजदूरों के कदम
हाईवे से प्रतिदिन सैकड़ों वाहनों में बैठकर मजदूर अपने घर जा रहे हैं. कई लोग पैदल ही चल रहे हैं. चिलचिलाती गर्मी में उनकी चप्पलें तक घिस गई हैं. फिर भी यह गरीब अपनों के बीच पहुंचने के लिए सफर कर रहे हैं. अपना सामान कंधो पर लटकाए तो कोई सिर पर रखे हुए चल रहे हैं. हर कोई क्या बच्चे, क्या बूढ़े, युवा, महिलाएं सभी इस तरह पलायन करने को मजबूर हैं.