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पश्चिम चंपारण: बदहाली पर आसूं बहा रहा पशु अस्पताल, चपरासी कर रहे हैं मवेशियों का इलाज

इस अस्पताल में मवेशियों के लिए एक भी डॉक्टर नहीं है. यहां का चपरासी ही बीमार मवेशियों का इलाज करता है. अस्पताल की स्थिति ऐसी है कि यहां न तो दवाईयां रखने की जगह है और न ही डॉक्टरों के बैठने की कोई जगह है.

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Published : Jul 26, 2019, 5:48 AM IST

चपरासी

पश्चिमी चंपारण: जिले के बगहा 2 प्रखंड स्थित वाल्मीकिनगर का मवेशी अस्पताल का हाल खस्ता हो चुका है. यह अस्पताल अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. दशकों से इस अस्पताल के जर्जर स्थिति को ठीक नहीं किया गया है. जिससे भवन का अब नामोनिशान मिटता जा रहा है. सरकार की उदासीनता से यहां नया मवेशी अस्पताल नहीं बन सका है.

पेश है रिपोर्ट

नहीं हैं मवेशी के डॉक्टर
इस अस्पताल में मवेशियों के लिए एक भी डॉक्टर नहीं है. यहां का चपरासी ही बीमार मवेशियों का इलाज करता है. अस्पताल की स्थिति ऐसी है कि यहां न तो दवाईयां रखने की जगह है और न ही डॉक्टरों के बैठने की कोई जगह है. चपरासी के भरोसे यह अस्पताल चल रहा है.

चपरासी करते हैं देख-रेख
वेटनरी अस्पताल में पदस्थापित चपरासी प्रयाग कुमार ने बताया कि यहां की सभी दवाईयां वे अपने पास रखते हैं. जिनको जरुरत होता है, वो खुद आकर ले जाते हैं. उन्होंने कहा कि पशुपालक अस्पताल नहीं होने के वजह से परेशानी होती है. सरकार की उदासीनता की वजह से मवेशी पालक निजी डिस्पेंसरियों के भरोसे हैं.

पश्चिमी चंपारण: जिले के बगहा 2 प्रखंड स्थित वाल्मीकिनगर का मवेशी अस्पताल का हाल खस्ता हो चुका है. यह अस्पताल अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. दशकों से इस अस्पताल के जर्जर स्थिति को ठीक नहीं किया गया है. जिससे भवन का अब नामोनिशान मिटता जा रहा है. सरकार की उदासीनता से यहां नया मवेशी अस्पताल नहीं बन सका है.

पेश है रिपोर्ट

नहीं हैं मवेशी के डॉक्टर
इस अस्पताल में मवेशियों के लिए एक भी डॉक्टर नहीं है. यहां का चपरासी ही बीमार मवेशियों का इलाज करता है. अस्पताल की स्थिति ऐसी है कि यहां न तो दवाईयां रखने की जगह है और न ही डॉक्टरों के बैठने की कोई जगह है. चपरासी के भरोसे यह अस्पताल चल रहा है.

चपरासी करते हैं देख-रेख
वेटनरी अस्पताल में पदस्थापित चपरासी प्रयाग कुमार ने बताया कि यहां की सभी दवाईयां वे अपने पास रखते हैं. जिनको जरुरत होता है, वो खुद आकर ले जाते हैं. उन्होंने कहा कि पशुपालक अस्पताल नहीं होने के वजह से परेशानी होती है. सरकार की उदासीनता की वजह से मवेशी पालक निजी डिस्पेंसरियों के भरोसे हैं.

Intro:बगहा 2 प्रखंड स्थित वाल्मीकिनगर का मवेशी अस्पताल खुद बीमारियों से जूझ रहा है। दशकों से इसके जर्जर भवन का अब नामोनिशान भी तकरीबन मिट चुका है। लम्बे समय से पशुपालक निजी वेटनरी डिस्पेंसरी के सहारे मवेशियों का इलाज कराते आ रहे हैं। सरकार को बार बार सूचना देने के बावजूद अभी तक नया मवेशी अस्पताल नही बन सका। यहां चपरासी ही मवेशियों का डॉक्टर है।


Body:वाल्मीकिनगर स्थित रेशम विभाग के कंपाउंड में निर्मित मवेशी अस्पताल दशकों पहले जर्जर हो चुका है। वर्तमान समय मे हालात ये हैं कि मवेशी अस्पताल का अब नामोनिशान ही नही रहा। न तो चिकित्सक के बैठने की जगह है और ना ही मवेशियों के लिए आवंटित होने वाले दवाईयों को रखने की जगह ही है। ऐसे में विभाग के चपरासी के भरोसे ही यह अस्पताल सिर्फ कागजों पर चल रहा। भैसालोटन के वेटनरी अस्पताल में पदस्थापित पिऊन प्रयाग कुमार सिंचाई विभाग के क्वार्टर में रहते हैं और उनके आवास पर ही दवाइयां रखी जाती हैं। चपरासी प्रयाग का कहना है कि भवन नही होने की वजह से दवाइयां अपने पास रखते हैं और जरूरत के हिसाब से लोग आकर ले जाते हैं। इनका यह भी कहना है कि पशुपालक अस्पताल नही होने के वजह से परेशान रहते हैं। सरकार की उदासीनता की वजह से मवेशी पालक निजी डिस्पेंसरियों के भरोसे हैं। क्षेत्र में एक दर्जन प्राइवेट वेटनरी डिस्पेंसरी संचालित हो रही है। बाइट- प्रयाग कुमार, चपरासी, मवेशी अस्पताल


Conclusion:भैसालोटन के मवेशी अस्पताल पर चार पंचायतों के मवेशियों के इलाज की जिम्मेवारी है। भवन नही होने की वजह से चिकित्सक यदा कदा ही आते हैं ऐसे में इस इलाके के मवेशियों के इलाज चपरासी के भरोसे ही है। कहने में कोई अतिशयोक्ति नही की सरकारी उदासीनता ने चपरासी को डॉक्टर बना दिया।
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