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अंधविश्वास का खेल : यहां गंगा दशहरा में लगता है 'भूतों का मेला' - blind faith

हर साल कोनहारा घाट पर इस नजारे को देखकर ऐसा लगता है कि आज के आधुनिक युग में भी बड़ी संख्या में लोग अंधविश्वास और कुरीतियों को मान रहे हैं.

कोनहारा घाट
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Published : Jun 12, 2019, 4:55 PM IST

Updated : Jun 12, 2019, 6:40 PM IST

वैशाली: जिले के ऐतिहासिक कोनहारा घाट पर ज्येष्ठ गंगा दशहरा के दौरान अजीबोगरीब भूत-प्रेत का खेल देखने को मिला. एक ओर श्रद्धालु गंगा गंडक के संगम स्थल कोनहारा घाट पर स्नान कर पूजा-ध्यान और दान करने में लगे हुए थे, तो वहीं, दूसरी ओर अंधविश्वास का मंच सजा था. कई महिलाएं और पुरुष तंत्र-मंत्र कर भूत-प्रेत भगाने में लगे थे.

कोनहारा घाट पर पहुंचे लोग

क्या है मान्यता?
दरअसल, लोगों में ऐसी मान्यता है कि वैशाली जिले के ऐतिहासिक कोनहारा घाट पर ज्येष्ठ गंगा दशहरा और कार्तिक पूर्णिमा को बुरी आत्माओं से छुटकारा मिलता है. इसी प्रचलित मान्यता के कारण इस वर्ष भी ज्येष्ठ गंगा दशहरा के दिन लोग दूर दराज से भारी संख्या में पहुंचे थे. इनमें सैकड़ों की संख्या में महिलाएं और पुरुष शामिल थे. हर साल की तरह इस साल भी कोनहारा घाट पर तंत्र-मंत्र का खेल देखने को मिला.

vaishali
झाड़-फूंक करते बाबा

अंधविश्वास की दुनिया
प्रत्येक वर्ष कोनहारा घाट पर इस नजारे को देखकर ऐसा लगता है कि आज के आधुनिक युग में भी बड़ी संख्या में लोग अंधविश्वास और कुरीतियों को मान रहे हैं. ढोल-नगाड़ों के साथ झाड़-फूंक करने वाले ओझा भूत-प्रेत उतारने के लिए महिलाओं के बाल पकड़कर उन्हें गंगा में डुबकी लगवाते हैं. तो कहीं भूत से छुटकारे का नाम पर व्यक्ति से तरह-तरह के मंत्रोच्चारण कराते हैं. ज्येष्ठ गंगा दशहरा और कार्तिक पूर्णिमा के समय यह खेल कोनहारा घाट पर घंटों चलता है.

नोट: "ईटीवी भारत अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देता है और इस खबर के पीछे किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना हमारा उद्देश्य नहीं है."

वैशाली: जिले के ऐतिहासिक कोनहारा घाट पर ज्येष्ठ गंगा दशहरा के दौरान अजीबोगरीब भूत-प्रेत का खेल देखने को मिला. एक ओर श्रद्धालु गंगा गंडक के संगम स्थल कोनहारा घाट पर स्नान कर पूजा-ध्यान और दान करने में लगे हुए थे, तो वहीं, दूसरी ओर अंधविश्वास का मंच सजा था. कई महिलाएं और पुरुष तंत्र-मंत्र कर भूत-प्रेत भगाने में लगे थे.

कोनहारा घाट पर पहुंचे लोग

क्या है मान्यता?
दरअसल, लोगों में ऐसी मान्यता है कि वैशाली जिले के ऐतिहासिक कोनहारा घाट पर ज्येष्ठ गंगा दशहरा और कार्तिक पूर्णिमा को बुरी आत्माओं से छुटकारा मिलता है. इसी प्रचलित मान्यता के कारण इस वर्ष भी ज्येष्ठ गंगा दशहरा के दिन लोग दूर दराज से भारी संख्या में पहुंचे थे. इनमें सैकड़ों की संख्या में महिलाएं और पुरुष शामिल थे. हर साल की तरह इस साल भी कोनहारा घाट पर तंत्र-मंत्र का खेल देखने को मिला.

vaishali
झाड़-फूंक करते बाबा

अंधविश्वास की दुनिया
प्रत्येक वर्ष कोनहारा घाट पर इस नजारे को देखकर ऐसा लगता है कि आज के आधुनिक युग में भी बड़ी संख्या में लोग अंधविश्वास और कुरीतियों को मान रहे हैं. ढोल-नगाड़ों के साथ झाड़-फूंक करने वाले ओझा भूत-प्रेत उतारने के लिए महिलाओं के बाल पकड़कर उन्हें गंगा में डुबकी लगवाते हैं. तो कहीं भूत से छुटकारे का नाम पर व्यक्ति से तरह-तरह के मंत्रोच्चारण कराते हैं. ज्येष्ठ गंगा दशहरा और कार्तिक पूर्णिमा के समय यह खेल कोनहारा घाट पर घंटों चलता है.

नोट: "ईटीवी भारत अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देता है और इस खबर के पीछे किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना हमारा उद्देश्य नहीं है."

Intro:वैशाली जिला के ऐतिहासिक कोनहारा घाट पर ज्येष्ठ गंगा दशहरा के दौरान अजीबो गरीब भूत प्रेत के खेल देखने को मिला।एक ओर श्रद्धालु गंगा गंडक के संगम स्थल कोनहारा घाट पर पवित्र स्नान, ध्यान तथा दान करने में लगे हुए है तो दूसरी ओर अंधविश्वास के खेल में महिला पुरुष भूत प्रेत भागने में लगे हुए है।


Body:दरअसल ऐसी मान्यताएं है कि वैशाली जिला के ऐतिहासिक कोनहारा घाट पर ज्येष्ठ गंगा दशहरा और कार्तिक पूर्णिमा को बुरी आत्माओं से छुटकारा पाने के लिए दूर दराज से बड़ी संख्या में महिलाएं पुरुष पहुचते है। जिस कारण इस घाट पर अजीबो गरीब भूत प्रेत के खेल देखने को मिलता है। कोनहारा घाट की नजारा देखने से ऐसा लगता है कि आज भी इस आधुनिक युग मे बड़ी संख्या अंधविश्वास पर टिकी हुई है। ढोल नगरों के साथ झार फूक करने वाले ओझा भूत प्रेत उतारने के लिए महिलाओं का बाल पकर कर गंगा में डुबकी लगा रहे है तो कही उस व्यक्ति से अपने मंत्रो के सहारे भूत के रूप में बोलवा रहे है। ये सब खेल घंटो कोनहारा घाट पर चल रहा है और घाट पर पहुचे श्रद्धालु इन भूत प्रेत के खेल देखने मे मग्न है तो दूसरी ओर पुलिस पदाधिकारी भी मुख्य दर्शक बन भूत प्रेत की खेल देखते रहे।


Conclusion:बहरहाल आज भी हमारे देश मे बड़ी आबादी शिक्षा से वंचित है जिस कारण ओझा गुणी वालो की दुकान चल रही है। जरूरत है समाज के उस वर्ग को जागरूक करने की जो बीमारी होने पर झार फूक के चक्कर मे पर जाते है और इलाज के अभाव में उन की मौत हो जाती है।


Last Updated : Jun 12, 2019, 6:40 PM IST
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