वैशाली: बिहार के वैशाली में शिक्षा व्यवस्था एकदम से चौपट (Bad Condition of Schools in Vaishali ) और नौनिहालों का भविष्य अंधकारमय नजर आता है. कहा जाता है कि शिक्षित समाज एक मजबूत देश का निर्माण करता है. जब लोग शिक्षित होंगे तो व्यवस्थाएं अच्छी होंगी. शिक्षा का मानव जीवन पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है. यही कारण है कि सरकार भी शिक्षा को प्रथम प्राथमिकता पर रखने का दावा करती है, लेकिन सरकार का यह दावा सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह रहा है. वैशाली के अधिकतर स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं. यहां के सैकड़ों स्कूलों में पीने का पानी, बैठने के लिए बेंच-डेस्क, स्कूल भवन, चारदीवारी और यहां तक की कई स्कूलों के पास अपनी जमीन तक नहीं है. अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो जिले के 783 विद्यालयों में चारदीवारी नहीं, 199 विद्यालयों को भवन नहीं, 187 विद्यालयों भूमिविहीन हैं. जिले की बदहाल शिक्षा व्यवस्था पर पेश है ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.
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वैशाली में शिक्षा व्यवस्था बदहालः बिहार के वैशाली जिले में सरकारी शिक्षा व्यवस्था बेहद बीमार है. इतना बीमार कि इसकी पूरी कमियां बताना भी शायद संभव नहीं है. बात करते है वैशाली जिले के मुख्यालय हाजीपुर की, जो बिहार की राजधानी पटना से महज 20 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां पासवान चौक के नजदीक धनौती प्राथमिक विद्यालय स्थित है. यह विद्यालय मुख्य सड़क के बिल्कुल किनारे पर है. विद्यालय में 124 बच्चे कक्षा प्रथम से पांचवी तक की पढ़ाई करते हैं. इनमें ज्यादातर बच्चों को जमीन पर बैठकर पढ़ाई करना पड़ता है. जबकि इस स्कूल में पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चे दलित समुदाय से आते हैं. यहां न तो बच्चों के बैठने के लिए बेंच डेस्क है न ही उनकी सुरक्षा के लिए स्कूल में चारदीवारी. कमरे में न तो लाइट जलता है और न ही पंखा चलता है.
स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं का अभावः इस स्कूल में कुल चार शिक्षक हैं. इनमें से एक शिक्षक को कुर्सी लगाकर बाहर बैठना पड़ता है. ताकि कोई बच्चा सड़क पर जाकर दुर्घटना का शिकार ना हो जाए. यही नहीं एक ही कमरे में प्रथम से लेकर पांचवी क्लास तक के बच्चों की पढ़ाई होती है. चंद बेंच जो टूटे फूटे हुए हालत में बचे हुए हैं उस एक बेंच पर आधे दर्जन के करीब बच्चे बैठे हुए नजर आते हैं.इस स्कूल में बच्चों को मिलने वाली मूलभूत सुविधा में से एक पानी तक उपलब्ध नहीं है. एक चापाकल जरूर है, लेकिन वह भी खराब रहता है. स्कूल के प्रिंसिपल सविता कुमारी का कहना है कि वह विभाग को कई बार लिख चुकी हैं. लेकिन यहां न तो चार दिवारी बन पा रहा है. ना ही बिजली पानी की व्यवस्था अच्छी हो पा रही है. क्लास दो का छात्र सूर्या कुमार कहता है कि उसे पढ़ लिख कर पुलिस बनना है लेकिन उसके बैठने के लिए भी बेंच-डेस्क रही है. उसे दरी पर बैठकर पढ़ना पड़ता है. सूर्या का कहना है कि शिक्षक अच्छा पढ़ाते हैं.
"हम लोग विभाग को कितना बार लिख कर दिए हैं. वह कहते हैं कि यहां सरकारी सड़क है इसलिए यहां नहीं बाउंड्री बनेगा. यहां अपना बिल्डिंग नहीं था समुदायिक भवन में विद्यालय चला रहे हैं. हम लोग बराबर लिख कर देते हैं. एक ही रूम में पांच 1 से 5 तक क्लास चलता है. हम लोग एक आदमी कुर्सी लेकर बाहर बैठते हैं टीचर. बच्चो की सुरक्षा के लिए कुछ भी घटना कभी भी घट सकता है, डर बना रहता है" - सविता कुमारी, प्रभारी, धनौती प्राथमिक विद्यालय, हाजीपुर.
"यहां समस्या है कि बिजली नहीं है. बेंच टूटा फूटा है. बच्चा से गिर भी सकता है चोट भी लग सकती है. अपना भर हम सब को सुरक्षित रखते हैं. जो पढ़ाई लिखाई होता है वह पढ़ाते हैं. 124 बच्चे यहां हैं पहला क्लास से पांचवा क्लास तक की पढ़ाई होती है. 4 शिक्षक यहां है. यहां कल खड़ाब रहता है तनी मनी पानी देता भी है तो पीने लायक नहीं है. बाउंड्री नही है" - उमा कुमारी, शिक्षिका धनौती प्राथमिक विद्यालय हाजीपुर
स्कूल में बाउंड्रीवाॅल नहींः क्लास में बच्चों को पढ़ा रही शिक्षिका उमा कुमारी का कहना है कि यहां न तो बिजली है, बेंच टूटा हुआ है. बच्चे गिर भी सकते हैं चोट भी लग सकती है. हम लोग अपना बच्चो को सुरक्षित रखकर पढ़ाई लिखाई करवाते रहते है. पानी पीने तक की व्यवस्था नहीं है कल भी खराब ही रहता है. स्थानीय दीपक कुमार बताते हैं कि स्कूल में बाउंड्री होनी चाहिए. बच्चों को सड़क पार करने में परेशानी होती है. टंकी में भी पानी नहीं है. नल लगना चाहिए, बाथरूम की व्यवस्था होनी चाहिए. छह बच्चों को लेकर स्कूल आने वाली स्थानीय फूला देवी का कहना है कि प्रिंसिपल मैडम खुद बच्चों को लेने जाते हैं. बच्चे लेट होते हैं तो फोन करके बुलाती है. खाना-पीना स्कूल ड्रेस सब मिलता है. अब बाउंड्री नहीं है बेंच टूटा हुआ है तो यह सरकार को ठीक करना चाहिए.
" पूरे जिले में 2286 विद्यालय हैं. इस जिले में 199 नवसृजित प्राथमिक विद्यालय ऐसे हैं जिसको भवन नहीं है. इसमें 12 विद्यालय को भवन जमीन उपलब्ध है. राशि आवंटन के लिए लिखा गया. 187 स्कूल ऐसे हैं जिनको भूमि उपलब्ध नहीं हो पा रहा है. बगल के स्कूल में संचालित करवा रहे हैं. जमीन मिलते ही वहां भवन बनाया जाएगा. खासकर जो पुराना प्राथमिक विद्यालय हैं, मध्य विद्यालय है. वहां कुछ विद्यालय में कमरों की स्थिति जर्जर है. उस ओर विभाग का ध्यान आकर्षित कराया गया है. जैसे ही आवंटन होगा भवन का निर्माण कराया जाएगा" - वीरेंद्र नारायण, जिला शिक्षा पदाधिकारी.
कमियों को दूर करने का विभाग कर रही प्रयासः जिले में स्कूली की बदहाल हालात पर जिला के शिक्षा पदाधिकारी वीरेंद्र नारायण का कहना है कि अभी विद्यालयों की मुख्य समस्या बेंच-डेस्क की कमी है. इसके लिए भी हम लोग प्रयासरत हैं. विभाग के समक्ष भी हम लोगों ने आवेदन भेजा है. विभाग के द्वारा विद्यालय में बेंच डेस्क भेजा जाए ताकि बच्चे जमीन पर और दरी पर बैठकर शिक्षा ग्रहण न करें. अभी भी 783 विद्यालय ऐसे हैं जहां चारदीवारी नहीं है. कई वर्षों से चारदीवारी के लिए राशि आवंटित नहीं हो रही है. दूसरी योजनाओं से हम लोग प्रयासरत हैं कि चारदीवारी बने. विभाग भी कार्य कर रही है. इसके लिए सूची उपलब्ध कराया गया है. 200 के करीब विद्यालय ऐसे हैं जिनके पास अपना भवन और जमीन नहीं है. इन सब के लिए विभाग को लिखा गया है. इन सभी कमियों के बावजूद सरकार का यह दावा की शिक्षा व्यवस्था सरकार की प्रथम प्राथमिकता है रियल्टी चेक में बिल्कुल खोखला साबित हो रहा है.
"यहां बच्चा सबको प्रिंसिपल मैडम खुद बुलाने जाती हैं देर होने पर फोन से कहते हैं. ड्रेस मिलता है, खाना-पीना सब भी मिलता है, किसी चीज का दिक्कत नहीं है. बच्चा सबके लिए टेबल कुर्सी होना चाहिए. बाउंड्री होना चाहिए. हमारे घर से 6 बच्चे पढ़ने आते हैं" - फूला देवी स्थानीय
"परेशानी यह है कि स्कूल में बाउंड्री होना चाहिए बच्चों को सड़क पार करने में परेशानी हो रही है. कल है तो इसमें पानी नहीं दे रहा है बार-बार खराब हो जा रहा है. टंकी में पानी नहीं है नल लगना चाहिए. बाथरूम की व्यवस्था अच्छी होनी चाहिए. बच्चा सब यहां नीचे बैठ कर पढ़ रहा है बेंच डेस्क नहीं है. पंखा भी नहीं चल रहा है" - दीपक कुमार, स्थानीय.