सीतामढ़ी: उत्तर प्रदेश के अयोध्या में आज रामलला के भव्य मंदिर की नींव रखी जा रही है. इसको लेकर विशेष तैयारियां की गई हैं. देशभर में उत्साह का माहौल है. ऐसे में, बिहार के सीतामढ़ी भी पीछे नहीं है. माता सीता के लिए जाना जाने वाला जिला उत्साहित है और भव्य आयोजन की तैयारी में जुटा है. मानें, यहां आज दीपावली मनायी जाएगी.
ईटीवी भारत से जिला वासियों ने मन की बात करते हुए कहा कि सैकड़ों वर्षों की चिर प्रतिक्षित अभिलाषा पूरी होने जा रही है. इस मौके पर जिले में दीपोत्सव होगा. साथ ही मां जगत जननी जानकी और भगवान श्री राम की पूजा अर्चना की जाएगी.
त्रेता काल से अयोध्या और सीतामढ़ी का अटूट संबंध
त्रेता काल से मां जगत जननी जानकी जन्मस्थली सीतामढ़ी और श्री राम जन्मभूमि अयोध्या का अटूट संबंध है. इसके चलते भूमि पूजन के पावन अवसर पर जिले के सभी घरों में दीप जलाए जाएंगे और इस दिन को उत्सव के रूप में मनाने की तैयारी है.
जानकी जन्मस्थली का इतिहास
जानकी जन्मस्थली स्थली का इतिहास त्रेता काल से है और इस स्थल का वर्णन सभी वेद, पुराण और ग्रंथों में अंकित है. जानकी मंदिर के महंत विनोद दास ने बताया कि त्रेता काल में मिथिला राज्य में भीषण अकाल पड़ा, तो ऋषि-मुनियों ने अकाल से निजात पाने के लिए राजा जनक को यज्ञ कर हल चलाने की सलाह दी. जिसके बाद राजा जनक ने हलेश्वर स्थान में हलेष्ठी यज्ञ कर महादेव शिव की पूजा अर्चना करने के बाद हल चलाना शुरू किया.
राजा जनक हल चलाते हुए वर्तमान जानकी जन्मस्थली पहुंचे, जहां भूमि के अंदर से मां सीता एक घर से प्रकट हुई. जिसके बाद संपूर्ण मिथिला राज्य में बारिश होने लगी और राज्य को अकाल से मुक्ति मिल गई. इसके बाद मां जगत जननी जानकी की छठी पूजन के बाद उन्हें लालन-पालन के लिए राजा जनक अपने महल में लेकर चले गए. जब मां सीता पल बढ़कर बड़ी हुईं, तो राजा जनक ने उनके विवाह के लिए धनुष यज्ञ का आयोजन किया. जिसमें भगवान श्रीराम ने पहुंचकर धनुष को तोड़ा और मां सीता के साथ विवाह सूत्र में बंध गए, तब से सीतामढ़ी और अयोध्या का एक अटूट संबंध बन गया, जो आज तक कायम है.
- शहर से 8 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में एक पुराना पाकड़ का पेड़ है. मान्यता है कि यहां स्वयंवर के बाद श्रीराम जब माता सीता को अयोध्या ले जा रहे थे, उसी दौरान पालकी से उतरकर उन्होंने यहां थोड़ा समय बिताया था. ये स्थान पंथ पाकड़ के रूप में प्रसिद्ध है.
- सीतामढ़ी और संपूर्ण मिथिला भगवान श्रीराम का ससुराल क्षेत्र है इसलिए मिथिला की महिलाएं सभी शादी समारोह में भगवान श्री राम के ऊपर गाली का गायन करती हैं और यह परंपरा निरंतर चलती आ रही है, जो आज भी कायम है.
1599 में जन्मस्थली की खोज
जानकारों ने बताया कि मां जानकी जन्मस्थली की खोज 1599 में वैशाली जिला के मिश्रौलिया गांव निवासी श्री श्री 108 श्री हीराराम दास ने की. उन्होंने मां सीता, भगवान श्री राम और लक्ष्मण की मूर्ति खोजी. जो वर्तमान जानकी स्थान मंदिर में स्थापित की गई है. महंत हीरा राम दास के 12 में वंशज विनोद दास ने बताया कि 1599 से पूर्व वर्तमान जानकी स्थान मंदिर क्षेत्र सुलक्षणा जंगल के नाम से प्रसिद्ध था.
दिव्य स्वप्न के बाद मिली जानकी जन्मभूमि
महंत हीरा राम दास को स्वप्न आया की सुलक्षणा जंगल के बीच मां जगत जननी जानकी की जन्म स्थली मौजूद है. इसके बाद मिथिला नरेश नरपत सिंह देव के अनुमति पर हीरा राम दास ने खोज शुरू की, तब जाकर जानकी जन्म स्थली के संबंध में जानकारी मिली. उसके बाद सुलक्षणा जंगल का नाम बदलकर सीतामही कर दिया गया. दरभंगा महाराज ने इस पूरे सुलक्षणा वन क्षेत्र को मां सीता स्थली के विकास के लिए करीब 17 एकड़ भूमि दान कर दी, जहां आज वर्तमान जानकी स्थान मंदिर और शहर अवस्थित है. धीरे-धीरे ये नाम बदलकर सीतामढ़ी हो गया.
कोरोना के चलते नहीं होगा भव्य आयोजन
बहरहाल, जिला वासियों का कहना है कि अगर, स्थिति सामान्य होती तो इस पावन अवसर पर भव्य आयोजन किया जाता. लेकिन बढ़ते कोरोना संक्रमण और लॉक डाउन के कारण भव्य कार्यक्रम समारोह का आयोजन नहीं किया जा सकेगा. सिर्फ दीपोत्सव और पूजा अर्चना का आयोजन होगा.
लॉकडाउन है जानकी मंदिर
भूमि पूजन के अवसर पर मां जगत जननी जानकी जन्मस्थली जानकी मंदिर में भी भव्य कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया जा सकेगा क्योंकि लॉकडाउन के कारण विगत कई माह से मंदिर का दरवाजा बंद है और पूजा-अर्चना पर पूरी तरह रोक लगा दी गई है.
जानकी जन्मस्थली जानकी मंदिर के अलावा जिले के पुनौरा धाम और हलेश्वर स्थान मंदिर में 5 अगस्त के अवसर पर दीपोत्सव और पूजा अर्चना का आयोजन किया जाएगा. पुनौरा धाम के महंत कौशल किशोर दास ने बताया कि लॉकडाउन के कारण इस वर्ष होने वाले सभी आयोजनों को रद्द कर दिया गया है.