छपरा : छठ (Chhath Puja 2021) की तैयारी शुरू हो गई है. लोक आस्था के इस महापर्व में पूजन के लिए कई तरह की सामग्री का उपयोग किया जाता है. इन में से कई सामग्रियां देश के अलग-अलग हिस्सों में तैयारी की जाती हैं तो कुछ का उत्पादन या पैदावार होता है. छठ पर्व में सूप और विभिन्न फलों में लगाये जाने वाले 'आरता पत्ता' के उत्पादन के लिए छपरा जिले की अलग पहचान है. अकवन के रुई से छपरा जिले में यह तैयार होता है.
इन्हें भी पढ़ें- आज भगवान गोवर्धन की पूजा, यहां जानिए पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
'आरता पत्ता' का उत्पादन मुख्य रुप से छपरा जिले के अवतार नगर थानान्तर्गत झौंवा पंचायत में होता है. यहां सैकड़ों गांवों में इसका निर्माण किया जाता है. गांव में 'आरता पत्ता सालों भर तैयार किया जाता है. लेकिन दुर्गा पूजा से एक माह पहले इसके निर्माण कार्य में मांग को देखते हुए तेजी आ जाती है. अक्टूबर में ही जिले के बाहर से आये व्यापारी यहां के आरता पत्ता का आर्डर दे चुके होते हैं. इस पंचायत के लोग दिन रात मेहनत कर आर्डर को पूरा करते हैं.
हालांकि इसे बनाने वाले ज्यादातर लोग कमजोर वर्ग से ही आते हैं. लेकिन छठ पूजा में आरता पत्ता के महत्त्व और डिमांड को देखते हुए अब पंचायत के लगभग सभी वर्ग के लोग घर में आरता पत्ता बनाने का काम करते हैं. यहां से बने आरता के पत्ते बिहार के लगभग सभी जिलों के साथ-साथ विभिन्न राज्यों में भी जाता है.
इन्हें भी पढ़ें- गोपालगंज: जहरीली शराब पीने से 17 की मौत, थानाध्यक्ष और चौकीदार पर गिरी गाज
दिघवारा प्रखंड का झौंवा गांव में लगभग सभी घरों में आरता पत्ता के निर्माण का काम होता है. झौंवा पंचायत के बुजुर्गों की मानें तो पीढ़ी दर पीढ़ी से ही यह काम होते चला आ रहा है. गांव के प्रायः सभी घरों में आरता पत्ता बनाया जाता है, घर की महिलायें, नौजवान या बुजुर्ग सभी इस काम में एक-दूसरे की मदद किया करते हैं.
घर के छोटे बच्चे भी खेल-खेल में ही 'आरता पत्ता' बना लेते हैं. पंचायत में रहने वाले सभी जाति और धर्म के लोग आपसी भेद-भाव मिटाकर सालों भर आरता पत्ता बनाने में जुटे रहते हैं. लगभग 40 वर्षों से 'आरता पत्ता' बना रही महिला कारीगर बताती हैं कि 'आरता पत्ता' बनाना बहुत मुश्किल है, मिट्टी के ढक्कन से बने सांचे में अकवन के रुई को पत्ते का आकर दिया जाता है.
उसके बाद आरता पत्ते का थाक लगाकर उबलते रंगीन पानी में डाला जाता है. रंगे हुए पत्तों को पहले सुखाया जाता है, फिर उसे एक-एक कर अलग अलग किया जाता है. इसी के साथ 'आरता पत्ता' तैयार हो जाता है. इसके बाद इसे पैकिंग कर थोक व्यापारियों के हाथों बेच दिया जाता है.
वहीं उचित फायदा नहीं मिलने के कारण 'आरता पत्ता' बनाने वाले लोग आज भी तंगहाल जीवन व्यतीत करने को विवश हैं. गांव के लोग भले ही पूरे समर्पण के साथ आरता पत्ता का निर्माण करते है पर इसके बदले में इन्हें बाजार से सही मुनाफा नहीं मिल पाता है. थोक व्यवसायी बहुत ही कम फायदे पर इन लोगों से आरता पत्ता खरीदते हैं. गांव के लोगों का कहना है कि इस काम से जैसे-तैसे उनका गुजरा चलता है, पर छठ पूजा के प्रति इनलोगों की आस्था ही है जो आज भी इन्हें यह काम करने का साहस प्रदान करती है.