सारण: बिहार में प्रशासनिक उदासीनता के चलते कई महान हस्तियों और उनके परिवार को मुसीबतों का सामना करना पड़ा है. चाहे वो महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह हो या पूर्व सीएम भोला पासवान का परिवार. जब तक हुक्मरानों के कानों तक बात ना पहुंची, किसी ने इन पर ध्यान नहीं दिया. ऐसे में एक और महान व्यक्तित्व आज बदहाली की जिंदगी जीने को विवश है, जिसके ज्ञान पर ईरान और जर्मन एंबेसी ने प्रोत्साहित किया और शुभकामनाएं दी. लेकिन बिहार सरकार ने इन पर ध्यान नहीं दिया.
हम बात कर रहे हैं सारण के छपरा शहर के हरदन बासु लेन में रहने वाले बद्री नारायण पांडे की. वही बद्री नारायण पांडे, जिन्होंने पांच भाषाओं में डिक्शनरी लिखी है. लेकिन आज भी गुमानी के साये में जी रहे हैं. ऐसी गुमनामी कि ना तो राज्य सरकार की नजर उन पर पड़ी और ना ही केंद्र सरकार की. 88 वर्ष की उम्र में बीमार बद्री नारायण पांडे आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं. शब्दों के सागर बद्री नारायण पांडे के बारे में जानने से पता चलता है कि वो बिहार की एक अनमोल धरोहर हैं.
ईटीवी भारत से साझा किया अपना दर्द
ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान बद्री नारायण पांडे ने बताया कि उनकी पांच भाषाओं वाली डिक्शनरी में 3 हजार 781 शब्द हैं. रिसर्च में आर्थिक हालात आड़े आते रहे. परिवार उतना सम्पन्न नहीं है, जो पैसा मिलता है उससे घर चलता है. बाकी बचा पैसा उनकी बीमारी में खर्च हो जाता है. अगर सरकार संसाधन उपलब्ध कराए, तो इस शब्दकोश में 11 भाषाओं के शब्दों को शामिल किया जा सकता है.
- हिंदी, अंग्रेजी, जर्मन, फारसी और संस्कृत में तैयार किया है शब्दकोश.
- आज से लगभग 10 वर्ष पहले बद्री नायारण पांडे ने अपनी रिसर्च और इससे संबंधित पुस्तक बिहार सरकार के राजभाषा परिषद को भी भेजी थी.
- आज तक इस उपलब्धि को संचित करने का ना कोई आश्वासन ना मिला और ना ही उन्हें इस कार्य के लिए कोई साधुवाद दिया गया.
प्रकाशन के लिए भी नहीं मिला कोई बड़ा बैनर
बद्री नारायण पांडे मिश्री लाल साह आर्य कन्या मध्य विद्यालय के सेवानिवृत्त शिक्षक हैं. 1998 में रिटायर होने के बाद, उन्होंने भाषाओं और शब्दों को लेकर रिसर्च शुरू की. उन्हें संस्कृत से लगाव था. इसलिए इसके इर्द-गिर्द शब्दों की समानता ढूंढने लगे और 10 वर्षों की कठिन तपस्या के बाद 2010 में भाषाओं का एक शब्दकोश लिख डाला. हालांकि, तमाम प्रयासों के बाद भी उन्हें कोई बड़ा प्रकाशन ना मिला.
बद्री नारायण पांडे ने डिक्शनरी को राष्ट्रीय पटल पर प्रकाशित कराने के कई प्रयास किए. पहले उन्होंने इसे जर्मन और ईरान दूतावास को भेजा. वहां से उनके इस सार्थक प्रयास का फीडबैक मिला. दोनों देशों के दूतावास ने बद्री नारायण को साधुवाद देते हुए रिसर्च को आगे बढ़ाने की शुभकामनाएं भेजी. इससे उत्साहित होकर उन्होंने बिहार सरकार और राजभाषा परिषद को भी डिक्शनरी की एक कॉपी और रिसर्च से संबंधित कुछ कंटेंट भेजा. बद्री नारायण ने केंद्र सरकार को भी पत्र लिखा. लेकिन 10 साल बीत जाने के बाद भी उन्हें कोई जवाब नहीं मिला.
जेंडर सिमिलरिटी ऑफ संस्कृत एंड जर्मन
बद्री नारायण ने जेंडर सिमिलरिटी ऑफ संस्कृत एंड जर्मन नामक शब्द कोष तैयार किया है. इसमें 5 हजार 759 शब्दों का जिक्र है. बद्री नारायण का मानना है कि इससे छात्रों को एक साथ पांच भाषाओं की जानकारी और उनके शब्दों को पहचानना आसान होगा. शोध छात्रों के लिए शब्दकोश काफी उपयोगी साबित होगा.
अभी भी जारी है रिसर्च
बद्री नारायण पांडे की रिसर्च 88 साल की उम्र में भी जारी है. संसाधनों के अभाव में अकेले ही दिन-रात अपने अगले प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं. अभी संस्कृत और जर्मन की एक डिक्शनरी तैयार कर रहे हैं, जो अंतिम चरण में है. इसके लिए प्रकाशक तलाश में हैं. अपने रिसर्च में व्यस्त रहने के कारण उन्हें सामाजिक गतिविधियों में शामिल होने का ज्यादा अवसर नहीं मिलता है. उसके बाद स्थानीय स्तर पर भी इनका हाल लेने की कोई नहीं आया. सरकार के स्तर से इस डिक्शनरी को प्रकाशन किया जाए, ऐसी उनकी इच्छा है.