छपरा: भारत और चीन के बीच इनदिनों तनाव चल रहा है. बीते दिनों गलवान घाटी में भारत-चीन सेना के बीच हुई हिंसक झड़प में देश के 20 जवान शहीद हुए. जिसको लेकर देशवासियों में काफी गुस्सा है. हर ओर से एक ही आवाज आ रही है कि अब 1962 के हालात नहीं हैं, भारत को मुहंतोड़ जवाब देना चाहिए.
कुछ ऐसी ही मांग छपरा के पूर्व सैनिक हरिहर सिंह की भी है. 1962 के चीन से हुए युद्ध मे अपने पराक्रम का जौहर दिखा चुके छपरा के 90 वर्षीय हरिहर सिंह अपने उम्र के अंतिम पड़ाव पर हैं. लेकिन, इस उम्र में भी देश और सेना के प्रति उनका प्रेम देखते ही बनता है. उनकी देशभक्ति, जोश और जज्बा अब भी जीवंत है.
बुलंद जज्बे के साथ लगाते हैं 'जय हिंद' के नारे
पूर्व सैनिक हरिहर सिंह मूल रूप से छपरा के माझी प्रखंड के दाउदपुर थाना क्षेत्र के चन्दउपुर गांव के रहने वाले हैं. पूर्व सैनिक हरिहर सिंह के शरीर पर बुढ़ापे का असर है. लेकिन, हौसला किसी नौजवान से कम नहीं है. वे आज भी 'जय हिंद' और 'भारत माता की जय' के नारे उसी बुलंदी से लगाते हैं जिस तरह सीमा पर देश की रक्षा के दौरान लगाते थे. उनका कहना है कि हमें अब चीन को जवाब देना ही होगा.
'मैं चीन को बर्बाद कर दूंगा'
हाल में गलवान घाटी में युद्ध की खबर सुनकर उनका मन गुस्से से भरा हुआ है. गुस्स वे कहते हैं कि जो भी हमारे देश की तरफ आंख उठाकर देखेगा, उसे बर्बाद कर दूंगा. उनकी बातों से ऐसा लगता है मानों उनकी आंखों के सामने 1962 का वह युद्ध आज भी जीवंत हो गया हो. गलवान में भारतीय सैनिकों पर हुए हमले की खबर सुनकर हरिहार सिंह चिल्ला कर कहते हैं कि हम चीन को मुंहतोड़ जवाब देंगे.
नाथूला बॉर्डर पर थे तैनात
छपरा के पूर्व सैनिक हरिहर सिंह ने 1962 की इंडो-चीन हिंसा का जिक्र करते हुए बताया कि 25 अक्टूबर 1962 को वे सिक्किम के नाथुला बॉर्डर के जेलेपला पोस्ट पर तैनात थे. उस दिन युद्ध शुरू होते ही बिहार रेजिमेंट को युद्ध के लिए भेजा गया. बिहार रेजिमेंट के जवानों में वे भी शामिल थे.
कर्नल बी एस बाजवा ने संभाला था मोर्चा
हरिहर सिंह बताते हैं कि चीन सैनिक ने अग्रिम चौकी पर मोर्चा बन्दी कर ली थी. 20 अक्टूबर 1962 को युद्ध शुरू हो गया था. बिहार रेजिमेंट के जवानों ने लेफ्टिनेंट कर्नल बी एस बाजवा के नेतृत्व में मोर्चा संभाला हुआ था. दोनों तरफ से जमकर गोलीबारी हो रही थी. लेकिन, बिहार रेजीमेंट के जवानों ने भी चीन के आक्रमणकारियों का अदम्य साहस से मुकाबला किया.
उस घड़ी को याद कर आज भी भर आती हैं आंखें
1962 के युद्ध को जीने वाले पूर्व सैनिक हरिहर सिंह आज भी उस पल को याद कर भावुक हो जाते हैं. उन्होंने बताया कि हाड़ कपकपाती ठंड में भी वे पोस्ट पर तैनात थे. चीन के सैनिकों को भारतीय सैनिकों ने एक इंच भी आगे बढ़ने नहीं दिया. सीओ बाजवा खुद मोर्चा सम्भाले हुए थे और लगातार सैनिकों का हौसला अफजाई करते रहे. सभी 22 से 25 दिनों तक अनावरत युद्ध लड़ते रहे. इस दौरान चीन के सैनिकों के आगे भारतीय सैनिकों की संख्या कम होती गई तो और सैनिकों को सीमा पर भेजा गया. इसके बाद 22 नवम्बर को युद्ध विराम लागू हो गया.
सेना में हैं दोनों बेटे, पोतों की भी यही तमन्ना
पूर्व सैनिक हरिहर सिंह के दोनों पुत्र शत्रुघ्न सिंह और उमा पति सिंह आज भारतीय सेना में बिहार रेजिमेंट में सूबेदार के पद पर उत्तराखंड और जम्मू कश्मीर में तैनात हैं. दोनों ही अपने पिता के साहस और अनुभव पर गर्व करते हैं. उनका भी मानना है कि 1962 में हालात अलग थे. अब भारत के पास उत्तम किस्म के हथियार हैं. हम चीन को जवाब देने में पूरी तरह से सक्षम हैं. अपने दादा और पिता की तरह ही हरिहर सिंह के दोनों पोते भी सेना में जाने की चाहत रखते हैं. बता दें कि छपरा के चन्दउपुर गांव के लोगों में देशभक्ति का जज्बा इस कदर है कि यहां के हर घर से कम से कम एक व्यक्ति फौज में जरूर है.