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समस्तीपुरः लॉकडाउन ने तोड़ी शिल्पकारों की कमर, दिनभर घूमने के बाद नहीं बिक रहा सामान - लॉकडाउन से परेशानी

शिवाजीनगर प्रखंड में घूम-घूमकर पारंपरिक सिलबट्टा और जाता-चक्की बेचने वाले शिल्पकारों ने बताया कि लॉकडाउन में बिक्री बिल्कुल नहीं हो रही है. पैसों की कमी की वजह से भूखमरी की स्थिति पैदा हो गई है.

समस्तीपुर
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Published : May 10, 2020, 1:25 PM IST

समस्तीपुरः लॉकडाउन ने हर किसी की जिंदगी को प्रभावित कर रखा है. काम-धंधा ठप होने के कारण कमाई शून्य होती जा रही है. जिससे कामगारों के सामने पेट भरने और परिवार चलाने की चुनौती खड़ी हो गई है. ऐसी ही एक तस्वीर जिले के शिवाजीनगर प्रखंड क्षेत्र में देखने को मिली.

नहीं हो रही कमाई
यहां पत्थर तराशकर पारंपरिक सिलबट्टा और जाता-चक्की बनाकर बेचने वाले शिल्पकारों के लिए कोरोना काल बनकर आया है. कोरोना से बचाव के लिए जारी लॉकडाउन इनके धंधे पर ग्रहण लगा दिया. सिलबट्टा और जाता-चक्की बेचकर परिवार चलाने वाले शिल्पकार की कमाई ना बराबर रह गई है.

समस्तीपुर
पत्थल तराश रही महिला शिल्पकार

सरकार से मदद की गुहार
शिल्पकार ने बताया कि आधुकनिकता के इस दौर में सिलबट्टा और जाता-चक्की जैसे पारंपरिक चीजों की बिक्री तो पहले से कम हो गई है. लेकिन इस लॉकडाउन ने हमें भूखमरी के कगार पर खड़ा कर दिया है. उन्होंने बताया सिलबट्टा और जाता-चक्की बेचने के लिए निकलते हैं तो कई मोहल्लों और गांवों में घुसने ही नहीं दिया जाता. कहीं प्रवेश मिल भी जाता हैं तो कोई खरीद नहीं रहा है. दिनभर भटकने के बाद एक भी माल नहीं बिकता है. उन्होंने सरकार से गुहार लगाकर मदद की मांग की है.

समस्तीपुरः लॉकडाउन ने हर किसी की जिंदगी को प्रभावित कर रखा है. काम-धंधा ठप होने के कारण कमाई शून्य होती जा रही है. जिससे कामगारों के सामने पेट भरने और परिवार चलाने की चुनौती खड़ी हो गई है. ऐसी ही एक तस्वीर जिले के शिवाजीनगर प्रखंड क्षेत्र में देखने को मिली.

नहीं हो रही कमाई
यहां पत्थर तराशकर पारंपरिक सिलबट्टा और जाता-चक्की बनाकर बेचने वाले शिल्पकारों के लिए कोरोना काल बनकर आया है. कोरोना से बचाव के लिए जारी लॉकडाउन इनके धंधे पर ग्रहण लगा दिया. सिलबट्टा और जाता-चक्की बेचकर परिवार चलाने वाले शिल्पकार की कमाई ना बराबर रह गई है.

समस्तीपुर
पत्थल तराश रही महिला शिल्पकार

सरकार से मदद की गुहार
शिल्पकार ने बताया कि आधुकनिकता के इस दौर में सिलबट्टा और जाता-चक्की जैसे पारंपरिक चीजों की बिक्री तो पहले से कम हो गई है. लेकिन इस लॉकडाउन ने हमें भूखमरी के कगार पर खड़ा कर दिया है. उन्होंने बताया सिलबट्टा और जाता-चक्की बेचने के लिए निकलते हैं तो कई मोहल्लों और गांवों में घुसने ही नहीं दिया जाता. कहीं प्रवेश मिल भी जाता हैं तो कोई खरीद नहीं रहा है. दिनभर भटकने के बाद एक भी माल नहीं बिकता है. उन्होंने सरकार से गुहार लगाकर मदद की मांग की है.

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