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Holi 2023: सहरसा के बनगांव में ब्रज वाली होली, यहां की हुड़दंगी घुमौर होली नहीं देखी तो फिर क्या देखा..

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Published : Mar 7, 2023, 8:48 PM IST

Updated : Mar 8, 2023, 11:31 AM IST

आपने ब्रज और बरसाने की मनोरंजक और यादगार होली तो जरूर देखी होगी. यहां की होली हमेशा ही अपनी छाप लोगों के जेहन में छोड़ती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि बिहार के सहरसा के एक गांव में मनाई जाने वाली होली कई मायनों में खास है. यहां की होली देख कोई भी कंफ्यूज हो जाए.

holi celebration like vrindavan in bihar
holi celebration like vrindavan in bihar
देखें यह रिपोर्ट.

सहरसा: होली के मौके पर ईटीवी भारत आपरको सहरसा जिले के बनगांव की खास होली के बारे में बताने जा रहा है. उन्नीसवीं शताब्दी से मनाई जाने वाली सामूहिक हुड़दंगी घुमौर होली का अदभुत नजारा लोगों को अपनी ओर बरबर ही आकृष्ट करता है. यहां हजारों की तादाद में विभिन्न गांवों के लोग एक जगह जमा होकर रंगों में डुबकियां लगाते हैं. इस दौरान आपसी भाईचारे और सौहार्द का अनोखा नजारा देखने को मिलता है.

पढ़ें- Holi 2023: कैमूर का होली मिलन समारोह देखिए, बार बालाओं के ठुमके पर युवाओं ने खूब उड़ाये अबीर और गुलाल

सहरसा में वृंदावन वाली होली: हिन्दू, मुस्लिम और विभिन्न वर्ण जातियों के लोगों का हुजूम यहां उमड़ पड़ता है. एक जगह जमा होकर आपसी भाईचारे और मैत्री का सभी परचम लहराते हैं जिसे देखकर पूरे भारतवर्ष को गर्व होगा. इस होली की एक खास बात यह है कि यह होली,से एक दिन पूर्व ही मनाई जाती है. मंगलवार को सहरसा के बनगांव में अनोखा और अद्भुत नजारा देखने को मिला. मिथिला पंचांग के अनुसार मंगलवार को फागुन का आखिरी दिन है इसलिए बनगांव की इस होली को फगुआ कहा जाता है. वहीं और जगहों पर बुधवार और गुरुवार को होने वाली होली, जो चैत मास में होगी इसलिए उसे चैतावर होली कहा जाता है.

सामूहिक हुड़दंगी घुमौर होली का अदभुत नजारा: बरसाने और नन्द गांव में लठमार होली संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है. बनगांव की घुमौर होली की परम्परा आज भी कायम है. इस विशिष्ट होली में लोग एक दुसरे के कांधे पर सवार होकर,लिपट-चिपट और उठा--पटक कर के रंग खेलते और होली मनाते हैं. बनगांव के विभिन्न टोलों से होली खेलने वालों की टोली सुबह नौ बजे तक मां भगवती के मंदिर में जमा होने लगती है और फिर यहां पर होली का हुड़दंग शुरू होता है. यह हुड़दंग शाम करीब चार बजे तक चलता है.

आपसी सौहार्द की मिसाल बना बनगांव: इस गांव में उन्नीसवीं शताब्दी 1810 ईसवी से ही अभूतपूर्व होली खेली जाती है.गांव के भगवती स्थान पर बच्चे, बूढ़े,जवान सभी एक जगह जमा होकर हुड़दंगी घुमौर होली खेलते हैं. बनगांव भारत का इकलौता ऐसा गांव हैं जहां चालीस हजार से ज्यादा ब्राह्मण जाति के लोग रहते हैं. इस गांव में तीन पंचायत है. यही नहीं खास बात यह भी है की ब्राह्मणों के साथ--साथ यहां विभिन्न जातियों के अलावे मुस्लिमों की भी अच्छी तादाद है. गांव के लोगों के अतिरिक्त आसपास के कई गांवों के लोग भी यहां आते हैं और होली का आनंद उठाते हैं.

हर धर्म के लोग यहां खेलते हैं रंग: सभी उम्र के लोग इस हुड़दंगी होली में जान जोखिम में डालकर होली का मजा उठाते हैं. गांव के लोगों का कहना है कि संत लक्ष्मीनाथ गोंसाईं ने होली की परम्परा की शुरुआत की थी जिसे आजतक लोग बखूबी निभा रहे हैं. इस होली में भारी तादाद में मुसलमान भाई भी शामिल होते हैं जिससे होली का मजा कई गुना बढ़ जाता है.

"ऐसी होली पूरे भारतवर्ष में नहीं खेली जाती है. इस हुड़दंग में खुद को बचाना मुश्किल हो जाता है. रंगों का यह ऐसा त्यौहार है कि इसमें मना करने की कोई गुंजाइश नहीं है. यहां की होली पूरे देश को प्रेम और भाईचारे का सन्देश देती है."- सुमन कुमार खान, ग्रामीण

"देश के स्वाभिमान और समरसता का ऐसा नजारा कहीं भी देखने को नहीं मिल सकता है. हमारे गांव में हिन्दू, मुस्लिम और सभी जाति के लोग इस तरह मिलकर पर्व का आनंद एक साथ उठाते हैं."- धनंजय झा, पूर्व मुखिया

"आपसी द्वेष को खत्म कर प्रेम,भाईचारे से जिन्दगी की नयी शुरुआत करने के सन्देश देने वाले इस महान पर्व होली को सार्थक और आदर्श रूप में हम सभी मनाते हैं. सहरसा के बनगांव में आज भी होली पूरी शिद्दत से मनाई जाती है. हम इसे काफी इंजॉय करते हैं."-लीला कांत झा, ग्रामीण

देखें यह रिपोर्ट.

सहरसा: होली के मौके पर ईटीवी भारत आपरको सहरसा जिले के बनगांव की खास होली के बारे में बताने जा रहा है. उन्नीसवीं शताब्दी से मनाई जाने वाली सामूहिक हुड़दंगी घुमौर होली का अदभुत नजारा लोगों को अपनी ओर बरबर ही आकृष्ट करता है. यहां हजारों की तादाद में विभिन्न गांवों के लोग एक जगह जमा होकर रंगों में डुबकियां लगाते हैं. इस दौरान आपसी भाईचारे और सौहार्द का अनोखा नजारा देखने को मिलता है.

पढ़ें- Holi 2023: कैमूर का होली मिलन समारोह देखिए, बार बालाओं के ठुमके पर युवाओं ने खूब उड़ाये अबीर और गुलाल

सहरसा में वृंदावन वाली होली: हिन्दू, मुस्लिम और विभिन्न वर्ण जातियों के लोगों का हुजूम यहां उमड़ पड़ता है. एक जगह जमा होकर आपसी भाईचारे और मैत्री का सभी परचम लहराते हैं जिसे देखकर पूरे भारतवर्ष को गर्व होगा. इस होली की एक खास बात यह है कि यह होली,से एक दिन पूर्व ही मनाई जाती है. मंगलवार को सहरसा के बनगांव में अनोखा और अद्भुत नजारा देखने को मिला. मिथिला पंचांग के अनुसार मंगलवार को फागुन का आखिरी दिन है इसलिए बनगांव की इस होली को फगुआ कहा जाता है. वहीं और जगहों पर बुधवार और गुरुवार को होने वाली होली, जो चैत मास में होगी इसलिए उसे चैतावर होली कहा जाता है.

सामूहिक हुड़दंगी घुमौर होली का अदभुत नजारा: बरसाने और नन्द गांव में लठमार होली संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है. बनगांव की घुमौर होली की परम्परा आज भी कायम है. इस विशिष्ट होली में लोग एक दुसरे के कांधे पर सवार होकर,लिपट-चिपट और उठा--पटक कर के रंग खेलते और होली मनाते हैं. बनगांव के विभिन्न टोलों से होली खेलने वालों की टोली सुबह नौ बजे तक मां भगवती के मंदिर में जमा होने लगती है और फिर यहां पर होली का हुड़दंग शुरू होता है. यह हुड़दंग शाम करीब चार बजे तक चलता है.

आपसी सौहार्द की मिसाल बना बनगांव: इस गांव में उन्नीसवीं शताब्दी 1810 ईसवी से ही अभूतपूर्व होली खेली जाती है.गांव के भगवती स्थान पर बच्चे, बूढ़े,जवान सभी एक जगह जमा होकर हुड़दंगी घुमौर होली खेलते हैं. बनगांव भारत का इकलौता ऐसा गांव हैं जहां चालीस हजार से ज्यादा ब्राह्मण जाति के लोग रहते हैं. इस गांव में तीन पंचायत है. यही नहीं खास बात यह भी है की ब्राह्मणों के साथ--साथ यहां विभिन्न जातियों के अलावे मुस्लिमों की भी अच्छी तादाद है. गांव के लोगों के अतिरिक्त आसपास के कई गांवों के लोग भी यहां आते हैं और होली का आनंद उठाते हैं.

हर धर्म के लोग यहां खेलते हैं रंग: सभी उम्र के लोग इस हुड़दंगी होली में जान जोखिम में डालकर होली का मजा उठाते हैं. गांव के लोगों का कहना है कि संत लक्ष्मीनाथ गोंसाईं ने होली की परम्परा की शुरुआत की थी जिसे आजतक लोग बखूबी निभा रहे हैं. इस होली में भारी तादाद में मुसलमान भाई भी शामिल होते हैं जिससे होली का मजा कई गुना बढ़ जाता है.

"ऐसी होली पूरे भारतवर्ष में नहीं खेली जाती है. इस हुड़दंग में खुद को बचाना मुश्किल हो जाता है. रंगों का यह ऐसा त्यौहार है कि इसमें मना करने की कोई गुंजाइश नहीं है. यहां की होली पूरे देश को प्रेम और भाईचारे का सन्देश देती है."- सुमन कुमार खान, ग्रामीण

"देश के स्वाभिमान और समरसता का ऐसा नजारा कहीं भी देखने को नहीं मिल सकता है. हमारे गांव में हिन्दू, मुस्लिम और सभी जाति के लोग इस तरह मिलकर पर्व का आनंद एक साथ उठाते हैं."- धनंजय झा, पूर्व मुखिया

"आपसी द्वेष को खत्म कर प्रेम,भाईचारे से जिन्दगी की नयी शुरुआत करने के सन्देश देने वाले इस महान पर्व होली को सार्थक और आदर्श रूप में हम सभी मनाते हैं. सहरसा के बनगांव में आज भी होली पूरी शिद्दत से मनाई जाती है. हम इसे काफी इंजॉय करते हैं."-लीला कांत झा, ग्रामीण

Last Updated : Mar 8, 2023, 11:31 AM IST
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