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दो जुनूनी व्यक्तियों ने बदल दी गांव की तस्वीर, मुफ्त शिक्षा से संवार रहे आदिवासी बच्चों का भविष्य

इस बच्चों का इतना ख्याल रखा जाता है कि छुट्टी होने पर घर के लिए भी लंच स्कूल की तरफ से मिलता है. चेस और कैरम जैसे गेम सीखते हैं आदिवासी बच्चे.

स्कूल में खेलते बच्चे
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Published : Apr 4, 2019, 2:07 PM IST

रोहतासःकहा जाता है किजिसका कोई नहीं होता उसका भगवानहोता है.कुछ ऐसा ही हुआ इंद्रपुरीगांव के लोगों के साथ. हुआ यूं कि एक दिन साउथ इंडियाकेदो व्यक्ति इस गांव में पहुंचे,जो चेन्नई के रहने वाले थे.जब वो गांव पहुंचे तो उन्हें गांव में ऐसे लोगों को देखा जिनके पास पहनने के लिए जिस्म पर कपड़े तक नहीं थे. वहीं, से उस गांव की तस्वीर बदलने का जिम्मा जेम्स प्रोजेक्ट ने उठाया लिया.

दरअसल, जिला मुख्यालय से तकरीबन तीस किलोमीटर दूर इंद्रपुरी गांव में शिक्षा काघोर अभाव था.सरकार के तमाम वादों की पोल इस गांव में खुल रही थी.क्योंकि इस गांव में एक भी स्कूल नहीं था. दस साल पहले इस गांवकी तस्वीर ऐसी थी जिसे देखने के बाद किसी का भी दिल दहल जाता था. यह आदिवासी गांव काफी पिछड़ा हुआ था.जेम्स प्रोजेक्ट के दो शख्सने इस गांव की तस्वीर बदलने की ठान ली.

children in school
सकूल में बैठे बच्चे

बदल गई गांव की तस्वीर
दोनों व्यक्तियों ने उसीसमय गांव मेंएक स्कूल की बुनियाद डाल दी.देखते ही देखतेगांव की तस्वीरबदलने लगी. बच्चे जो रोड पर गुमनामी की जिंदगी जीने को मजूबर थे अब वो इस स्कूल में पढ़ाई करने लगे. स्कूल में पढ़ने वाले तकरीबन एक सौ से अधिक दलित परिवार के बच्चे हैं.जिन्हें जेम्स प्रोजेक्ट कीतरफ से हर बुनियादी जरूरतों को पूरा कराया जाता है.इस स्कूल में बच्चों के लिएड्रेस के साथ-साथ खाने का भी पूरा इंताजाम किया गया है.

बयान देती छात्रा और डायरेक्टर

छुट्टी के बाद घर के लिए भी खाना
इतना ही नहीं इन्हेंऐसीशिक्षा दी जा रही है जो शायद किसी सरकारी स्कूलों के बच्चों को भी नसीबहो.जब स्कूल से छुट्टी होती है तो भी उन बच्चों को घर के लिए लंच दिया जाता है, ताकि वहघर जा कर खाना खा सकें.बहरहाल स्कूल के डायरेक्टर ने बताया कि इस गांव की तस्वीर पहले से बिल्कुल अलग है.क्यों अब यहां के बच्चें शिक्षाग्रहण कर रहें हैं.

डायरेक्टर का क्या कहना
वहीं, उन्होंने बताया कि कई ऐसी बच्चियां है जिन्हें मैट्रिक और इंटर की परीक्षा पास कर गांव का नाम रौशन किया है.डायरेक्टर ने बताया कि उन्हें सरकार की तरफ से कोई सुविधा नहीं चाहिए, क्योंकि वो खुद एक प्रोजेक्ट के तहत इन बच्चों के भाविष्य को सवारना चाहते हैं. बहरहाल जो काम सरकार को करना चाहिए था वो काम एक निजी संस्था कर रही है.फिलहाल, गांव के बच्चे इस स्कूल से काफी खुश नजर आ रहे हैं.

रोहतासःकहा जाता है किजिसका कोई नहीं होता उसका भगवानहोता है.कुछ ऐसा ही हुआ इंद्रपुरीगांव के लोगों के साथ. हुआ यूं कि एक दिन साउथ इंडियाकेदो व्यक्ति इस गांव में पहुंचे,जो चेन्नई के रहने वाले थे.जब वो गांव पहुंचे तो उन्हें गांव में ऐसे लोगों को देखा जिनके पास पहनने के लिए जिस्म पर कपड़े तक नहीं थे. वहीं, से उस गांव की तस्वीर बदलने का जिम्मा जेम्स प्रोजेक्ट ने उठाया लिया.

दरअसल, जिला मुख्यालय से तकरीबन तीस किलोमीटर दूर इंद्रपुरी गांव में शिक्षा काघोर अभाव था.सरकार के तमाम वादों की पोल इस गांव में खुल रही थी.क्योंकि इस गांव में एक भी स्कूल नहीं था. दस साल पहले इस गांवकी तस्वीर ऐसी थी जिसे देखने के बाद किसी का भी दिल दहल जाता था. यह आदिवासी गांव काफी पिछड़ा हुआ था.जेम्स प्रोजेक्ट के दो शख्सने इस गांव की तस्वीर बदलने की ठान ली.

children in school
सकूल में बैठे बच्चे

बदल गई गांव की तस्वीर
दोनों व्यक्तियों ने उसीसमय गांव मेंएक स्कूल की बुनियाद डाल दी.देखते ही देखतेगांव की तस्वीरबदलने लगी. बच्चे जो रोड पर गुमनामी की जिंदगी जीने को मजूबर थे अब वो इस स्कूल में पढ़ाई करने लगे. स्कूल में पढ़ने वाले तकरीबन एक सौ से अधिक दलित परिवार के बच्चे हैं.जिन्हें जेम्स प्रोजेक्ट कीतरफ से हर बुनियादी जरूरतों को पूरा कराया जाता है.इस स्कूल में बच्चों के लिएड्रेस के साथ-साथ खाने का भी पूरा इंताजाम किया गया है.

बयान देती छात्रा और डायरेक्टर

छुट्टी के बाद घर के लिए भी खाना
इतना ही नहीं इन्हेंऐसीशिक्षा दी जा रही है जो शायद किसी सरकारी स्कूलों के बच्चों को भी नसीबहो.जब स्कूल से छुट्टी होती है तो भी उन बच्चों को घर के लिए लंच दिया जाता है, ताकि वहघर जा कर खाना खा सकें.बहरहाल स्कूल के डायरेक्टर ने बताया कि इस गांव की तस्वीर पहले से बिल्कुल अलग है.क्यों अब यहां के बच्चें शिक्षाग्रहण कर रहें हैं.

डायरेक्टर का क्या कहना
वहीं, उन्होंने बताया कि कई ऐसी बच्चियां है जिन्हें मैट्रिक और इंटर की परीक्षा पास कर गांव का नाम रौशन किया है.डायरेक्टर ने बताया कि उन्हें सरकार की तरफ से कोई सुविधा नहीं चाहिए, क्योंकि वो खुद एक प्रोजेक्ट के तहत इन बच्चों के भाविष्य को सवारना चाहते हैं. बहरहाल जो काम सरकार को करना चाहिए था वो काम एक निजी संस्था कर रही है.फिलहाल, गांव के बच्चे इस स्कूल से काफी खुश नजर आ रहे हैं.

Intro:रोहतास। जिला मुख्यालय से तक़रीबन तीस किलोमीटर दूर इंद्रपुरी गांव में तालीम घोर अभाव था। सरकार के तमाम वादों की पोल इस गांव में खुल रही थी। क्यों कि इस गांव एक भी स्कूल नहीं था।


Body:लिहाज़ा दस साल पहले वहां की ऐसी तस्वीर थी जिसे देखने के बाद किसी का भी दिल दहल जाता था। क्यों दस वर्ष पहले इस आदिवासी गांव में लोगों के तन पर एक कपड़ा तक नसीब नहीं हुआ करता था। लिहाज़ा ये आदिवासी गांव काफी पिछड़ा हुआ था। यानी जब इस गांव के लोगों के पास पहनने के लिए कपड़े नहीं थे तो ज़हीर सी बात है पढ़ने के लिए स्कूल होना असंभव था। लेकिन कहा जाता है ना जिसका कोई नहीं होता उसका खोदा होता है। कुछ ऐसा ही हुआ इस गांव के लोगों के साथ भी। साउथ इंडियन के रहने वाले दो शक्श इस गांव में एक दिन पहुच गए जो चेन्नई के रहने वाले थे। लिहाज़ा जब वो गांव पहुचे तो उन्हें गांव में ऐसे लोगों को देखा जिनके पास पहनने के लिए जिस्म पर कपड़े तक नहीं थे। लिहाज़ा वहीं से उस गांव की तस्वीर बदलने का जिम्मा जेम्स प्रोजेक्ट ने उठाया और एक स्कूल की बुनियाद डाल दी। देखते ही देलहते गांव की तस्वीर बिल्कुल बदलने लगी बच्चे जो रोड पर गुमनामी की ज़िंदगी जीने को मजूबर थे अब वो इस स्कूल में पढ़ाई करने लगे। स्कूल में पढ़ने वाले तक़रीबन एकसौ से अधिक दलित परिवार के बच्चे है। जिन्हें जेम्स प्रोजेक्ट के तरफ से हर बुनियादी जरूरतों को पूरा कराया जाता है। इस स्कूल में बच्चों को ड्रेस के साथ साथ खाने का पूरा इंताज़ाम किया गया है। इतना ही नही उन्हें वैसे शिक्षा दी जा रही है जो शायद सरकारी स्कूलों के बच्चों को नसीब न हो। इतना ही नहीं जब स्कूल से छुट्टी होती है तो भी उन बच्चों को लंच दिया जाता है ताकि वक घर जा कर खाना खा सके। बहरहाल स्कूल के डायरेक्टर ने बताया कि इस गांव की तस्वीर पहले से बिल्कुल अलग है। क्यों अब यहां के बच्चें तालीम हासिल कर रहें है। वही उन्होंने बताया कि कई ऐसी बच्चियां है जिन्हें मैट्रिक और इंटर की परीक्षा पास कर गांव का नाम रौशन किया है। वहीं डायरेक्टर ने बताया कि उन्हें सरकार की तरफ से कोई सुविधा नहीं चाहिए क्यों कि वो खुद एक प्रोजेक्ट के तहत इन बच्चों के भाविष्य को सवारना चाहते है।


Conclusion:बहरहाल जो काम सरकार को करना चाहिए था वो काम एक निजी संस्था कर रही है। फिलहाल गांव के बच्चे इस स्कूल से काफी खुश नजर आरहे है।

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