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बिहार : 101 साल के हरिनारायण अदालती जिरह में देते हैं प्रतिद्वंद्वियों को मात

सासाराम व्यवहार न्यायालय के अन्य अधिवक्ता भी हरिनारायण सिंह के कायल हैं. 101 साल के वृद्ध अधिवक्ता हरिनारायण सिंह खुद अपने मुवक्किलों के लिए जवाब, बहस व अन्य कागजात तैयार करते हैं और न्यायाधीशों के समक्ष न्यायिक प्रक्रिया में भाग लेते हैं.

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Published : Nov 25, 2019, 10:09 AM IST

सासाराम

सासाराम : आमतौर पर जहां लोग 60 वर्ष की उम्र में सेवानिवृत्त होकर आराम करते हैं. वहीं, बिहार के रोहतास जिले की एक अदालत में ऐसे भी एक वकील हैं, जो आयु का सैकड़ा पार करने के बाद भी लोगों को न्याय दिलाने के लिए न्यायाधीश के सामने जिरह करते नजर आते हैं.

बिहार के रोहतास जिला मुख्यालय के सासाराम व्यवहार न्यायालय में वरिष्ठ वकील हरिनारायण सिंह अपने स्थान पर कुर्सी पर बैठे या अदालत की सीढ़ियां चढ़ते नजर आएंगे, या फिर न्यायाधीश के सामने दूसरे वकील से तर्क करते मिल जाएंगे. हरिनारायण सिंह अपनी वाक्पटुता और कानून की जानकारी के तर्क पर प्रतिद्वंद्वी वकीलों को खामोश कर देते हैं.

1918 में हुआ था जन्म
तत्कालीन शाहाबाद जिले के तिलई गांव में 21 सितंबर, 1918 को जन्मे हरिनारायण सिंह ने साल 1948 में कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से बैचलर ऑफ लॉ की डिग्री हासिल की थी. सिंह कहते हैं कि उनके पिता चाहते थे कि वह वकील बनें, क्योंकि उस समय ज्यादातर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और नेता वकालत के पेशे से जुड़े हुए थे.

ये भी पढ़ें: बिहार विधानमंडल शीतकालीन सत्र का दूसरा दिन, सरकार को सदन में घेरेगी कांग्रेस

1952 से कर रहे प्रैक्टिस
हरिनारायण सिंह ने बताया कि "कोलकाता में अध्ययन कार्य पूरा करने के बाद मैं सासाराम लौट आया और साल 1952 में अनमुंडलीय न्यायालय में वकालत की प्रैक्टिस शुरू कर दी. मैंने मुवक्किल से सबसे पहले पांच रुपये फीस ली थी."

ये भी पढ़ें: महाराष्ट्र में भाजपा ने सही समय पर उचित निर्णय लिया : महाचंद्र प्रसाद

1941 में हुई थी शादी
चार पुत्र, एक पुत्री व 16 पोते-पोतियों से भरे-पूरे परिवार के 60 से अधिक सदस्यों के मुखिया हरिनारायण सिंह ने कुछ दिनों कोलकाता में शिक्षक की नौकरी भी की थी, बाद में सासाराम आ गए. गौरतलब है कि उनकी पत्नी बबुनी देवी की भी उम्र सौ साल हो गई है. दोनों ने साल 1941 में शादी की थी और अब उनकी शादी को करीब 78 वर्ष हो गए हैं.

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इस उम्र में भी बिना चश्मा के पढ़ते हैं
उन्होंने अपनी नियमित दिनचर्या को संयमित बताते हुए कहा कि वह आज भी सुबह चार बजे उठते हैं और दैनिक नित्यक्रिया से निवृत्त होकर साढ़े चार बजे टहलने निकल जाते हैं. लगभग एक घंटा नियमित टहलते हैं. सुबह सात बजे से अपने कार्यालय में बैठ मुवक्किलों का कार्य शुरू कर देते हैं. 10 बजे कचहरी के लिए निकल जाते हैं. शाम चार बजे वह घर लौटते हैं. इस उम्र में भी वह बिना चश्मा के भी पढ़ लेते हैं. उनकी श्रवण-शक्ति भी पूरी तरह ठीक है.

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'अनुशासन को लेकर हैं सख्त'
सिंह के पुत्र कृष्ण कुमार सिंह बिहार विधान परिषद के सदस्य रह चुके हैं. वकील सिंह के पौत्र अभिषेक कुमार सिंह उर्फ सोनू सिंह ने बताया कि "बाबा की सीख से ही हम सभी परिवार आगे बढ़े हैं. परिवार में किसी के बीच किसी तरह का भेदभाव नहीं रहता, जिससे संबंधों की डोर और मजबूत होती है." बाबा के अनुशासन के विषय में पूछने पर इतना कहते हैं कि आज भी हममें से किसी की भी इतनी हिम्मत नहीं की कि कोई उनके सामने कुछ ज्यादा बोल सके.

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दूसरे वकील भी हैं इनके कायल
सासाराम व्यवहार न्यायालय के अन्य अधिवक्ता भी सिंह के कायल हैं. सासाराम की अदालत में अधिवक्ता सिंह की पहचान भूमि विवाद, जायदाद विवाद के मामले में अच्छे वकील के रूप में होती है. सासाराम शहर के गौरक्षणी मुहल्ले में रहने वाले देश के वयोवृद्ध अधिवक्ताओं में से एक सिंह खुद अपने मुवक्किलों के लिए जवाब, बहस व अन्य कागजात तैयार करते हैं और न्यायाधीशों के समक्ष न्यायिक प्रक्रिया में भाग लेते हैं.

ये भी पढ़ें: EXCLUSIVE : भारतीय हॉकी टीम के दिग्गज खिलाड़ी धनराज पिल्ले के साथ खास बातचीत

'जीवन से निराश नहीं होना चाहिए'
स्वस्थ रहने के मामले में अधिवक्ताओं और न्यायाधीशों सहित आमलोगों के लिए नजीर बने सिंह का कहना है कि किसी को कभी भी अपने जीवन से निराश नहीं होना चाहिए. वहीं, इस बुजुर्ग दंपति के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में पैतृक गांव तिलई में 13 नवंबर को एक सम्मान समारोह का आयोजन भी किया गया था, जिसमें पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता सहित कई न्यायाधीश भी पहुंचे थे और इस दंपति की लंबी उम्र की कामना की थी.

सासाराम : आमतौर पर जहां लोग 60 वर्ष की उम्र में सेवानिवृत्त होकर आराम करते हैं. वहीं, बिहार के रोहतास जिले की एक अदालत में ऐसे भी एक वकील हैं, जो आयु का सैकड़ा पार करने के बाद भी लोगों को न्याय दिलाने के लिए न्यायाधीश के सामने जिरह करते नजर आते हैं.

बिहार के रोहतास जिला मुख्यालय के सासाराम व्यवहार न्यायालय में वरिष्ठ वकील हरिनारायण सिंह अपने स्थान पर कुर्सी पर बैठे या अदालत की सीढ़ियां चढ़ते नजर आएंगे, या फिर न्यायाधीश के सामने दूसरे वकील से तर्क करते मिल जाएंगे. हरिनारायण सिंह अपनी वाक्पटुता और कानून की जानकारी के तर्क पर प्रतिद्वंद्वी वकीलों को खामोश कर देते हैं.

1918 में हुआ था जन्म
तत्कालीन शाहाबाद जिले के तिलई गांव में 21 सितंबर, 1918 को जन्मे हरिनारायण सिंह ने साल 1948 में कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से बैचलर ऑफ लॉ की डिग्री हासिल की थी. सिंह कहते हैं कि उनके पिता चाहते थे कि वह वकील बनें, क्योंकि उस समय ज्यादातर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और नेता वकालत के पेशे से जुड़े हुए थे.

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1952 से कर रहे प्रैक्टिस
हरिनारायण सिंह ने बताया कि "कोलकाता में अध्ययन कार्य पूरा करने के बाद मैं सासाराम लौट आया और साल 1952 में अनमुंडलीय न्यायालय में वकालत की प्रैक्टिस शुरू कर दी. मैंने मुवक्किल से सबसे पहले पांच रुपये फीस ली थी."

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1941 में हुई थी शादी
चार पुत्र, एक पुत्री व 16 पोते-पोतियों से भरे-पूरे परिवार के 60 से अधिक सदस्यों के मुखिया हरिनारायण सिंह ने कुछ दिनों कोलकाता में शिक्षक की नौकरी भी की थी, बाद में सासाराम आ गए. गौरतलब है कि उनकी पत्नी बबुनी देवी की भी उम्र सौ साल हो गई है. दोनों ने साल 1941 में शादी की थी और अब उनकी शादी को करीब 78 वर्ष हो गए हैं.

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इस उम्र में भी बिना चश्मा के पढ़ते हैं
उन्होंने अपनी नियमित दिनचर्या को संयमित बताते हुए कहा कि वह आज भी सुबह चार बजे उठते हैं और दैनिक नित्यक्रिया से निवृत्त होकर साढ़े चार बजे टहलने निकल जाते हैं. लगभग एक घंटा नियमित टहलते हैं. सुबह सात बजे से अपने कार्यालय में बैठ मुवक्किलों का कार्य शुरू कर देते हैं. 10 बजे कचहरी के लिए निकल जाते हैं. शाम चार बजे वह घर लौटते हैं. इस उम्र में भी वह बिना चश्मा के भी पढ़ लेते हैं. उनकी श्रवण-शक्ति भी पूरी तरह ठीक है.

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'अनुशासन को लेकर हैं सख्त'
सिंह के पुत्र कृष्ण कुमार सिंह बिहार विधान परिषद के सदस्य रह चुके हैं. वकील सिंह के पौत्र अभिषेक कुमार सिंह उर्फ सोनू सिंह ने बताया कि "बाबा की सीख से ही हम सभी परिवार आगे बढ़े हैं. परिवार में किसी के बीच किसी तरह का भेदभाव नहीं रहता, जिससे संबंधों की डोर और मजबूत होती है." बाबा के अनुशासन के विषय में पूछने पर इतना कहते हैं कि आज भी हममें से किसी की भी इतनी हिम्मत नहीं की कि कोई उनके सामने कुछ ज्यादा बोल सके.

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सासाराम व्यवहार न्यायालय के अन्य अधिवक्ता भी सिंह के कायल हैं. सासाराम की अदालत में अधिवक्ता सिंह की पहचान भूमि विवाद, जायदाद विवाद के मामले में अच्छे वकील के रूप में होती है. सासाराम शहर के गौरक्षणी मुहल्ले में रहने वाले देश के वयोवृद्ध अधिवक्ताओं में से एक सिंह खुद अपने मुवक्किलों के लिए जवाब, बहस व अन्य कागजात तैयार करते हैं और न्यायाधीशों के समक्ष न्यायिक प्रक्रिया में भाग लेते हैं.

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'जीवन से निराश नहीं होना चाहिए'
स्वस्थ रहने के मामले में अधिवक्ताओं और न्यायाधीशों सहित आमलोगों के लिए नजीर बने सिंह का कहना है कि किसी को कभी भी अपने जीवन से निराश नहीं होना चाहिए. वहीं, इस बुजुर्ग दंपति के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में पैतृक गांव तिलई में 13 नवंबर को एक सम्मान समारोह का आयोजन भी किया गया था, जिसमें पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता सहित कई न्यायाधीश भी पहुंचे थे और इस दंपति की लंबी उम्र की कामना की थी.

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