पूर्णिया: कोरोनाकाल में बड़ी संख्या में राज्य वापसी करने वाले मजदूर आज दाने-दाने को मोहताज नजर आ रहे हैं. लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में सुशासन की सरकार ने मजदूरों को रोजगार मुहैया कराने का वादा किया था लेकिन मौजूदा समय में ये वादे खोखले साबित हो रहे हैं. जमीन पर सरकार के उन दावों की हकीकत सच से कोसों दूर दिखाई दे रही है.
दरअसल, दूसरे प्रदेशों से गांव वापस लौटे श्रमिकों को स्किल्ड मैपिंग कराए करीबन 4 महीने बीतने को हैं. लेकिन ना तो अब तक किसी प्रवासी श्रमिक के हाथ रोजगार हाथ लग सका है और न ही इनके घरों में खुशहाली लौट सकी है. सिस्टम के मारों में कई ऐसे भी हैं जिन्हें जॉब कार्ड मिले महीनों गुजर गए. बावजूद वे बेरोजगार बैठे हैं.
मनरेगा की राह पर मजदूर
सरकारी दावों की पोल खोलती और हैरत में डालने वाला मामला जिला मुख्यालय से कुछ किलोमीटर दूर जलालगढ़ प्रखंड के एकंबा पंचायत का है. प्रवासी श्रमिकों के सर्वे पर निकले ग्रामीण कार्य विभाग की मानें तो यह वस्तुस्थिति सिर्फ इसी पंचायत की नहीं बल्कि अधिकांश पंचायतों की है. जहां अब तक प्रदेशों से लौटे श्रमिक मनरेगा के 6527 योजनाओं में से किसी एक में रोजगार मिलने की राह देख रहे हैं.
33,966 श्रमिकों की हुई थी स्किल्ड मैपिंग
कोविडकाल में प्रदेशों से वापसी कर रहे प्रवासी श्रमिकों से सरकार ने बिहार में ही रोजगार के अवसर मुहैया कराने का वादा किया. जिले की बात करें तो सरकारी आंकड़ों के मुताबिक स्पेशल ट्रेनें और बसों से कुल 1,06,898 लोग वापस लौटे. जिनमें 35.792 प्रवासी श्रमिक शामिल थे. वहीं इसके बाद विभिन्न क्वारेंटाइन कैंपों में 33,966 इच्छुक प्रवासी श्रमिकों की स्किल्ड मैपिंग कराई गई. मगर महज 5,286 को ही जॉब कार्ड हासिल हो सका. हालांकि कितनों को जॉब मिला, यह अभी तक किसी को पता नहीं.
श्रम विभाग दे रहा तारीख पर तारीख
आलम ये है प्रदेशों से लौटे प्रवासी श्रमिकों के घर वापसी के महीनों बीतने को हैं. लेकिन ये लोग रोजगार की राह में आज भी पशोपेश में हैं. प्रदेशों से लौटे श्रमिकों की मानें तो मनरेगा से मिलने वाले रोजगार की राह में ही वे अब तक वापस परदेस नहीं लौट सके. जब भी वे प्रखंड और जिला मुख्यालय रोजगार से जुड़ी रिपोर्ट या फिर अपनी बारी का पता लगाने श्रम विभाग के दफ्तरों में जाते हैं तो उन्हें कोई नई तारीख या देरी की कोई नई दलील मिल जाती है.
वापस परदेस लौट रहे मजदूर
एकंबा के प्रवासी मजदूर बताते हैं कि रोजी-रोटी कि संकट के चलते प्रवासी मजदूर एक बार फिर वापस लौटने लगे हैं. सरकार ने रोजगार देने के बड़े-बड़े दावे जरूर किए. साथ ही कई श्रमिकों को जॉब कार्ड भी दिए. मगर जिस मनरेगा से सरकार के आसरे की जरूरत थी, सरकार की वे बातें पूरी तरह खोखली नजर आई. कुछ यही वजह है कि एकंबा की महिलाएं और पुरुषों ने निराशा भरे मन के साथ सरकार से रोजगार की दोबारा गुहार लगाई है.