पूर्णिया: कहते हैं कि बड़ी से बड़ी लड़ाई भी आत्मबल और हौसले से जीती जा सकती है. ऐसी ही एक मिसाल पूर्णिया के एक परिवार ने पेश की है. गवर्नमेंट पॉलिटेक्निक कॉलेज पूर्णिया में बतौर लेक्चरर कार्यरत डॉ. नीतू कुमारी सहित परिवार के 3 सदस्य कोरोना संक्रमित हो गये थे. लेकिन हौसले और धैर्य से उन्होंने कोरोना को हरा दिया.
नीतू के आलावे 3 अन्य सदस्य भी निकले पॉजिटिव
डॉ. नीतू कुमारी बताती हैं कि उन्हें कुछ दिनों पहले कोरोना के लक्ष्ण दिखे. जिसके बाद उन्होंने कोरोन टेस्ट कराया. रिपोर्ट पॉजिटिव आने बाद उन्होंने खुद को आइसोलेट कर लिया. वहीं, परिवार के अन्य सदस्यों को भी जांच कराने को कहा. जांच में परिवार के अन्य 3 सदस्य (मां, पति और बेटा) भी कोरोना संक्रमित पाये गये.
डॉक्टरों ने दी थी अस्पताल में एडमिट होने की सलाह
इसके बाद उन्होंने फौरन डॉक्टर से संपर्क किया. डॉक्टर ने उन्हें और उनके परिवार के सभी सदस्यों को अस्पताल में भर्ती होने की सलाह दी. मगर अस्पतालों की हालत को देखकर उन्होंने होम आइसोलेशन में रहना ही बेहतर समझा. नीतू कुमारी ने कहा कि इस मुश्किल घड़ी में उन्हें डॉक्टर मयंक का भरपूर सहयोग मिला. उन्होंने मेडिसिन और दूसरी अन्य जरूरी सामान मुहैया कराया.
'कोरोना जैसे घातक संक्रमण से जूझते हुए मैं अपनी मां और बेटे दक्ष को लेकर काफी परेशान थी. संक्रमण के बढ़ने का खतरा इन दो एज ग्रुपों में ज्यादा है. इससे लड़ना मुश्किल होने लगा. डॉक्टरों ने कहा कि मां का लंग्स 40 फीसदी खराब हो चुका है. मां की तबीयत ज्यादा बिगड़ने लगी और ऑक्सीजन का स्तर लगातार घटने लगा था. जिससे मैं डर गयी. लेकिन तब भी मां को होम आइसोलेशन में रखना बेहतर समझा'.- डॉ नीतू कुमारी, लेक्चरर
घरेलू नुस्खे से बढ़ा ऑक्सीजन लेवल
उन्होंने कहा कि मां की तबियत को बिगड़ता देख घबराई नहीं. चिकित्सक मयंक व रिश्तेदारों की सलाह पर ऑक्सीजन के लिए अजवाइन, लौंग, कपूर का दाना व नीलगिरी तेल का प्रयोग करने लगीं. जिसके बाद 86 तक गिर चुका मां का ऑक्सीजन लेवल सुधरने लगा. एक चम्मच अजवाइन, 4-5 लौंग और कपूर का दाना व नीलगिरी का तेल एक सूती कपड़ा में बांधकर एक 1 घंटे पर 20 बार सूंघती रही. इससे मां और बेटे दोनों के ऑक्सीजन लेवल में जबरदस्त सुधार आया.
निजी अनुभवों के आधार पर उनका कहना है, 'कोरोना को हराने के लिए अस्पताल की बुरी हालत से कहीं ज्यादा बेहतर होम आइसोलेशन है. आधा संक्रमण तभी खत्म हो जाता है, जब अपनों का केयर मिलता है. जबकि अस्पताल में एडमिट होने के बावजूद केयर मरीज को नहीं मिल पाता'.
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