पूर्णिया: कोरोना काल से बंद पड़े सूबे के सभी प्राथमिक विद्यालयों को 11 महीने बाद 1 मार्च से खोल दिया गया है. मगर इन सब के बीच मासूमों की सुरक्षा से जुड़े सरकारी इंतजामों के सारे दावे महज कागजी ही साबित हो रहे हैं. सोमवार को क्लास बेल बजने के साथ ही कक्षा 1-5वीं के होनहार तय समय से विद्यालय पहुंचे. जहां शिक्षा महकमे की आधी-अधूरी तैयारी के बीच बगैर मास्क और बगैर सोशल डिस्टेंसिंग के बैठे बच्चे कोरोना के खतरे से सहमे नजर आए.
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कागजी साबित हो रहे शिक्षा महकमे के दावे
दरअसल, सोमवार को प्राथमिक विद्यालयों के खोले जाने के बाद ईटीवी भारत की टीम शहर के आधा दर्जन स्कूलों में शिक्षा महकमें के दावों की पड़ताल करने पहुंची. जहां बच्चे बगैर मास्क और बगैर सोशल डिस्टेंसिंग के कोरोना के खतरे से जूझते नजर आए. शिक्षा महकमें के एसओपी कागजी साबित हुई. जीविका की ओर से बच्चों को दी जाने वाली मास्क से जुड़े दावे पूरी तरह फर्जी साबित हुए.
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मास्क के इंतेजार में बैठे रह गए छात्र
टीचर कॉलोनी स्थित प्राथमिक विद्यालय में जहां बच्चों से लेकर प्रधानाचार्य तक को खुद ही अपने मास्क का बंदोबस्त करना पड़ा. स्कूल की घंटी लगने के बाद पहली क्लास जहां मास्क के इंतजाम में ही बीत गयी. तो वहीं, कुछ ऐसी ही तस्वीर रामबाग स्थित प्राथमिक विद्यालय से सामने आई. जहां जीविका दीदियों के मास्क के इंतेजार में क्लास के पूरे पीरियड निकले गए और जगह की कमी की वजह से छोटे से कमरे में ठूंस-ठूंस कर बच्चों को बैठना पड़ा. वहीं, मैट्रिक की परीक्षा तो खत्म हो गई मगर अब तक प्राथमिक विद्यालयों को उनकी बेंच न लौटाए जाने से बच्चों को जमीन पर बैठकर ही पहले दिन का क्लास करना पड़ा.
बच्चों को सता रहा कोरोना का डर
इस बाबत कक्षा 1-5वीं में पढ़ने वाले होनहारों ने कहा कि करीब एक साल बाद विद्यालय खोले जाने से वे बेहद खुश थे. मगर अब उन्हें कोरोना का डर सताने लगा है. विद्यालय आने से पहले घरवालों की ओर से कहा गया था कि सरकार की ओर से उन्हें मास्क उपलब्ध कराया जाएगा.
मास्क बिना कैसे होगी होनहारों की सुरक्षा
इस बाबत शिक्षकों ने कहा कि सरकार के एसओपी के मुताबिक जीविका की ओर से 2 मास्क दिए जाने की बात थी. लिहाजा उन्होंने जीविका समूह के मास्क लेकर आने का इंतेजार था. मगर जीविका की ओर से अब तक उन्हें कोई मास्क उपलब्ध नहीं कराया गया है. हालांकि उन्होंने अपने रुपयों से मास्क खरीदा है और जहां तक संभव हुआ उन्होंने खरीदकर मास्क बच्चों के बीच बंटवाए हैं. मगर जीविका के सहयोग के बगैर मास्क उपलब्ध कराना उनके लिए बेहद मुश्किलों भरा है.