पटना: बिहार के प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने पूरे देश में अपनी चुनावी रणनीति का लोहा मनवाया है. अभी बंगाल चुनाव में जिस प्रकार से उन्होंने ममता बनर्जी को सफलता दिलाई, उसके बाद फिर से वे चर्चा में हैं. उससे पहले भी उन्होंने कई राज्यों में अलग-अलग दलों के लिए काम किया और कामयाबी भी दिलाई. वहीं बिहार में भी 2015 के चुनाव में नीतीश कुमार के लिए सफल रणनीति बनाई. रणनीतिकार के तौर पर अक्सर कामयाब रहने वाले पीके राजनीति में असफल रहे हैं. 2 साल में ही जेडीयू और पॉलिटिक्स से रुखसत हो गए.
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मोदी का साथ और विरोध
चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कभी नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के लिए भी काम किया था. हालांकि पिछले कई सालों से वे मोदी के खिलाफ भी काम कर रहे हैं. कई राज्यों में अपनी राजनीतिक कौशल का जलवा भी दिखाया है. 2017 के यूपी चुनाव को छोड़ दिया जाए तो बिहार, पंजाब, दिल्ली, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में उन्होंने जिसके लिए भी काम किया, जीत उसी की हुई.
जेडीयू में छोटी सियासी पारी
बाद के दिनों में नीतीश कुमार से करीबी होने के कारण उन्होंने उनकी ही पार्टी जेडीयू से अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की. नीतीश ने उन्हें पार्टी में दो नंबर की कुर्सी दी. वे पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए गए. उनकी सफल रणनीति का ही नतीजा रहा कि जेडीयू को पहली बार पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में अध्यक्ष की कुर्सी हासिल हुई.
जहां मुनाफा वहां प्रशांत
कुछ समय के बाद पीके ने बिहार में 10 साल रहने का वादा भी किया और 'बात बिहार' कार्यक्रम की शुरुआत की. लेकिन वे जेडीयू में जो चाहते थे, नहीं कर पाए और इसी कारण बिहार में उनका सियासी अभियान फ्लॉप हो गया. बीजेपी प्रवक्ता विनोद शर्मा का कहना है प्रशांत किशोर मूलतः व्यवसाई हैं और उन्हें जहां मुनाफा दिखता है, वे वहीं जाते हैं. बिहार को विकसित राज्य बनाने की बात जरूर कही थी, लेकिन बीच में ही भाग गए. सच तो ये है कि उन्हें सामाजिक कार्यों से भी कोई लेना-देना नहीं है.
आरसीपी का पीके पर तंज
दरअसल, प्रशांत किशोर का विरोध जेडीयू का एक खेमा शुरू से करता रहा था. आरसीपी सिंह जो पार्टी के अभी राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, उनसे प्रशांत किशोर की कभी नहीं बनी. जिन प्रशांत किशोर को पार्टी में पहले कोई नेता मानने को तैयार नहीं था, उनके आने के बाद आरसीपी सिंह नेता बन गए. प्रशांत किशोर पर तंज कसते हुए आरसीपी सिंह कहते हैं कि वे जिस राज्य में जाते हैं, वहां के मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री बनाने का सपना दिखाने लगते हैं.
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दरबार संस्कृति में फिट नहीं पीके
वहीं, राजनीतिक जानकार प्रो. अजय झा का कहना है कि प्रशांत किशोर कुशल रणनीतिकार तो हैं, लेकिन कुशल राजनेता नहीं है. इसका सबसे बड़ा कारण है कि जो दरबार संस्कृति है, उसमें वह सफल नहीं हो पाते हैं. इसलिए पहले बीजेपी में भी सफल नहीं हुए और बाद में जेडीयू में भी सफल नहीं हुए.
शरद पवार से मिले पीके
प्रशांत किशोर इन दिनों चर्चा में इसलिए भी है, क्योंकि हाल में ही उन्होंने एनसीपी चीफ शरद यादव से मुलाकात की है. 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर एक नया समीकरण बनाने की तैयारी हो रही है. शिवसेना से भी उनकी लगातार नजदीकी रही है. देश भर में राजनेताओं से भेंट और रणनीति बनाने वाले पीके हाल के दिनों में खुद को बिहार की राजनीति से पूरी तरह से दूर कर लिया है. बिहार की समस्याओं को खत्म कर विकसित राज्य बनाने का वादा करने वाले प्रशांत बिहार की समस्याओं से भी अपने आपको हमेशा के लिए मानों दूर रखने का ही मन बना लिया है.
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आई-पैक मतलब सफलता
प्रशांत किशोर की इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी यानी आई-पैक ने पहले वर्ष 2014 में बीजेपी में नरेंद्र मोदी के लिए पूरा पालिटिकल कैंपेन संभाला, जिसमें राजनीतिक रणनीति, तकनीक और सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल देश में पहली बार देखा गया. इसी समय प्रशांत किशोर का नाम एक बड़े राजनीतिक रणनीतिकार के तौर पर उभरा. फिर वो मोदी और बीजेपी से अलग हुए
कौन हैं प्रशांत किशोर?
चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का जन्म 1977 में हुआ था. वे मुलत: रोहतास जिले के कोनार गांव के रहने वाले हैं. उनके पिता श्रीकांत पांडे एक डॉक्टर थे, जो बक्सर में स्थानांतरित हो गए. वहां, पीके ने अपनी माध्यमिक शिक्षा पूरी की. उन्होंने आठ वर्षों तक संयुक्त राष्ट्र के लिए भी काम किया है. जनता दल (यूनाइटेड) में उपाध्यक्ष रह चुके हैं.