पटना: बोचहां विधानसभा उपचुनाव (Bochaha Assembly By Election) को लेकर बिहार की सियासत में बड़ा खेल होने जा रहा है. जो वीआईपी चीफ मुकेश सहनी (VIP Chief Mukesh Sahani) कल तक बीजेपी को आंखें दिखा रहे थे और वहां अपना कैंडिडेट उतारने की बात कर रहे थे, आज उनका सबसे बड़ा 'तुरुप का इक्का' ने उनकी 'नाव' की सवारी छोड़ दी है. असल में दिवंगत विधायक मुसाफिर पासवान के बेटे अमर पासवान ने वीआईपी से इस्तीफा देकर आरजेडी की सदस्यता ग्रहण कर ली है. हालांकि इस सियासी खेल के सूत्रधार खुद मुकेश सहनी बताए जा रहे हैं, जिन्होंने नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव (Leader of Opposition Tejashwi Yadav) के साथ मिलकर बोचहां में बीजेपी को हराने के लिए 'अचूक' रणनीति बनाई है.
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अमर पासवान आरजेडी में शामिल: सोमवार को बोचहां से मुकेश सहनी के अघोषित उम्मीदवार अमर पासवान ने वीआईपी से इस्तीफा दे दिया (Amar Paswan Resigns From VIP) है. वहीं, आरजेडी की सदस्यता लेने के बाद उन्होंने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि चूंकि एनडीए ने अपने प्रत्याशी की घोषणा कर दी थी. ऐसे में वहां रहने का कोई मतलब नहीं था. उन्होंने कहा कि हमलोग शुरू से ही आरजेडी के लोग रहे हैं. एनडीए ने दलितों का अपमान किया है. ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी विधायक के निधन के बाद उनके परिवार को टिकट नहीं मिला है. आरजेडी से मुझे ही टिकट दिया जा रहा है. मैं वहां मजबूती से चुनाव लड़ूंगा.
'खेला' के पीछे खुद मुकेश सहनी: अब ये साफ हो गया है कि अमर पासवान बोचहां से आरजेडी उम्मीदवार होंगे. ऊपर से भले ही ऐसा लगता हो कि यह मुकेश सहनी की हार है लेकिन जानकार कहते हैं कि राजनीति में चीजें जैसी बाहर से दिखती हैं, अंदर से भी वैसी ही हो ये जरूरी नहीं. मुमकिन हो कि ये पूरी पटकथा मुकेश सहनी ने खुद लिखी हो या फिर उसमें उनकी भी सहमति हो. दरअसल, पिछले कुछ दिनों से सहनी जोर देकर कहते थे कि चाहे कुछ भी हो जाए लेकिन वह बोचहां में अपना उम्मीदवार जरूर उतारेंगे. उनको उम्मीद थी कि जेडीयू और हिंदु्स्तानी अवाम मोर्चा से उन्हें समर्थन मिलेगा लेकिन न तो नीतीश कुमार और न ही जीतनराम मांझी ने खुलकर उनका साथ दिया. उनके विधायक भी उनके साथ नहीं दिख रहे हैं. ऐसे में सहनी समझ गए कि खुली बगावत की तो मंत्रिमंडल से हाथ धोना पड़ जाएगा. लिहाजा उन्होंने बगावत की गाड़ी का गियर ही बदल दिया.
तेजस्वी की मदद से बीजेपी की देंगे पटखनी: मुकेश सहनी एनडीए में असहज हैं, ये बात हर कोई जानता है. यूपी में बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ना और फिर बिहार विधान परिषद चुनाव में एनडीए के खिलाफ उम्मीदवार उतारकर वह अपने इरादे साफ जाहिर कर चुके हैं. कभी लालू प्रेम तो कभी तेजस्वी के प्रति भातृ प्रेम भी जताते रहते हैं. अभी हाल में उन्होंने तेजस्वी यादव को ढाई-ढाई साल के लिए सीएम का फॉर्मूला भी दिया था. राजनीतिक जानकार कहते हैं कि सहनी दावे जितने भी करें लेकिन उनको पता है कि उनके तीनों विधायक पर उनका जोर नहीं है. फिर कुछ महीने में विधान परिषद की उनकी सदस्यता भी खत्म होने वाली है. ऐसे में अगर खुलकर बगावत की तो बीजेपी उनके साथ कुछ भी 'खेल' कर सकती है. मंत्री पद तो जाएगा ही, पार्टी भी टूट जाएगी. लिहाजा परदे के पीछे रहकर बीजेपी से बदला लिया जाए.
आरजेडी के सिंबल पर वीआईपी का उम्मीदवार: राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि अगर वास्तव में मुकेश सहनी और तेजस्वी यादव ने मिलकर बोचहां के लिए ऐसी कोई रणनीति तैयारी की है तो बोचहां में बीजेपी का खेल खराब हो सकता है. इस रणनीति के मुताबिक 'लालटेन' सिंबल से लड़ने पर अमर पासवान को आरजेडी के कोर वोटर्स का साथ तो मिलेगा ही, पिता मुसाफिर पासवान के निधन से उपजी सहानुभूति भी उनके पक्ष में जा सकती है. इसके अलावे मुकेश सहनी परदे के पीछे से अपने समाज के लोगों तक यह संदेश पहुंचाने की कोशिश करेंगे कि वोट अमर पासवान को ही देना है. इससे न तो सहनी को एनडीए छोड़ने की जरूरत पड़ेगी और न ही पार्टी में टूट का खतरा रहेगा. रणनीति के हिसाब से ही अगर रिजल्ट भी आया तो बीजेपी से बदला भी हो जाएगा और आरजेडी के साथ गठबंधन की गुंजाइश भी बनी रहेगी. वहीं अगर बीजेपी बोचहां में जीत भी जाएगी तो भी सहनी पर सीधे पर कोई सवाल नहीं उठा पाएगा, क्योंकि वो तो 'दिखावटी तौर पर' एनडीए के साथ ही थे.
पत्ते खोलने के मूड में नहीं सहनी: हालांकि मुकेश सहनी फिलहाल अपने पत्ते खोलने के मूड में नहीं हैं. रविवार को उन्होंने पटना से लेकर दिल्ली तक की दौड़ लगाई. चर्चा तो यहां तक हुई कि गृह मंत्री अमित शाह से भी उनकी मुलाकात हो सकती है. वेसे भी वो अक्सर कहते हैं कि मेरी बात बीजेपी में सीधे अमित शाह से होती है. अमित शाह से मुकेश सहनी की मुलाकात हुई या नहीं, इसको लेकर स्पष्ट तौर पर कोई भी बात सामने नहीं आ पाई है. हालांकि देर शाम दिल्ली निकलने से पहले पटना में पत्रकारों से बात करने के दौरान सहनी के तेवर में थोड़ी नरमी जरूर दिखी लेकिन उन्होंने ये बार फिर दोहरायी कि बोचहां में वीआईपी भी अपना कैंडिडेट उतारेगी. साथ ही कहा कि वे एनडीए में रहकर फ्रेंडली फाइट करेंगे. 2019 में महागठबंधन में रहते हुए भी तो सिमरी बख्तियारपुर सीट पर आरजेडी के खिलाफ हमने अपना उम्मीदवार उतारा था.
बीजेपी माफी को तैयार नहीं: माना जा रहा है कि यूपी चुनाव में अपना उम्मीदवार उतारने मुकेश सहनी को माफ करने को बीजेपी तैयार नहीं है. खुद अमित शाह उनसे काफी नाराज हैं. इसलिए पार्टी ने तय कर लिया है कि अगर सहनी बोचहां में बीजेपी का साथ देते हैं, तब तो ठीक है लेकिन अगर वे अपना उम्मीदवार उतारते हैं तो न केवल एनडीए से उनका पत्ता काटा जाएगा, बल्कि उनकी पार्टी में भी जबरदस्त तोड़फोड़ होगी. इस बात का एहसास मुकेश सहनी को भी है, इसलिए उन्होंने गुपचुप तरीके से तेजस्वी के साथ मिलकर बीजेपी उम्मीदवार बेबी कुमारी को बोचहां में मात देने की रणनीति बनाई है. हालांंकि बिहार बीजेपी के नेता कहते हैं कि सहनी को हमारा साथ देना चाहिए. एक सीट कोई बड़ा मुद्दा नहीं होना चाहिए.
यूपी चुनाव की तपिश में रिश्ते झुलसे: मुकेश सहनी और बीजेपी के रिश्तों में खटास की बड़ी वजह यूपी चुनाव में विकासशील इंसान पार्टी का मुखरता से चुनाव लड़ना है. न केवल उन्होंने उत्तर प्रदेश में अपने उम्मीदवार उतारे, बल्कि वहां की योगी सरकार की खुलेआम मुखालफत भी की. सार्वजनिक मंचों से तो उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार पर भी निशाना साधा. जिस वजह से बीजेपी नेताओं में उनको लेकर जबर्दस्त नाराजगी है. माना जाता है कि बिहार बीजेपी से लेकर केंद्रीय नेतृत्व भी उनसे काफी नाराज हैं. अब उसी का परिणाम सामने आने लगा है.
किंग मेकर बनने का ख्वाब टूटा: हालांकि यूपी में जिन सीटों पर मुकेश सहनी ने जीत का दावा किया था, वहां वीआईपी को जमानत बचाना भी मुश्किल हो गया. 165 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का दावा करने के बाद सहनी ने उत्तर प्रदेश में 53 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे. यहां तक कि सहनी ने बीजेपी के दो सिटिंग विधायकों को भी टिकट देकर चुनाव लड़ाया लेकिन दोनों सीटिंग विधायक कुछ कमाल नहीं कर पाए. बलिया के बैरिया से वीआईपी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले सुरेंद्र सिंह चौथे स्थान पर रहे.
नहीं मिला विधायकों का साथ: इस घटना के बाद मुकेश सहनी काफी नाराज हुए और बीजेपी के खिलाफ तेवर कड़े कर लिए. सरकार में अपनी ताकत का एहसास भी कराने की कोशिश लेकिन उनको अपने ही विधायकों का साथ नहीं मिला. साहेबगंज से वीआईपी विधायक राजू सिंह ने कहा कि उनका यूपी जाना सामूहिक निर्णय नहीं था. साथ ही एनडीए की बैठक का बहिष्कार करने के फैसले पर भी सवाल उठाते हुए कह दिया कि एनडीए विधायकों की बैठक में शामिल नहीं होने का फैसला समझ से परे है. यह उनका निजी फैसला है. इसके बाद धी-धीरे सहनी के तेवर नरम पड़ने लगे, क्योंकि ये साफ हो गया था कि उनके विधायक उनके साथ नहीं हैं. वैसे भी 4 में ज्यादातर विधायक बीजेपी बैकग्राउंड से आते हैं.
एमएलएसी चुनाव में वीआईपी को झटका: उत्तर प्रदेश में चुनाव चल ही रहा था कि बिहार में विधान परिषद की 24 सीटों को लेकर एनडीए ने सीटों का ऐलान किया. सीट शेयरिंग का जो फॉर्मूला सामने आया, उसमें सहनी के लिए कड़ा संदेश था. बीजेपी के हिस्से 12 सीटें आईं और जेडीयू के खाते में 11 सीटें गईं. बीजेपी ने अपने कोटे से केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस को एक सीट दी लेकिन वीआईपी को बिल्कुल भी भाव नहीं दिया. जिसके बाद नाराज होकर मुकेश सहनी ने ऐलान कर दिया कि वीआईपी विधान परिषद की सभी 24 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.
7 सीटों पर वीआईपी उम्मीदवार: हालांकि 24 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान करने वाले मुकेश सहनी ने मात्र सात सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. वीआईपी की सूची के मुताबिक समस्तीपुर से आदर्श कुमार, बेगूसराय से जयराम सहनी, सहरसा से चंदन कुमार, सारण से बालमुकुंद चौहान, रोहतास से गोबिंद बिंद, पूर्णिया से श्यामा नंद सिंह और दरभंगा से बैद्यनाथ सहनी को अपना उम्मीदवार बनाया गया है.
विधानसभा में दलगत स्थिति: अगर यह मान भी लिया जाए कि मुकेश सहनी एनडीए का छोड़ देंगे तो ऐसे में सवाल उठता है कि क्या नीतीश कुमार की सरकार गिर जाएगी? फिलहाल 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में एनडीए 127 विधायक हैं. जिनमें भारतीय जनता पार्टी (BJP) के 74, जनता दल यूनाइटेड (JDU) के 45, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) के 4 और विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के 3 और एक निर्दलीय विधायक हैं. वहीं, महागठबंधन का आंकड़ा 110 है. जिनमें आरजेडी के 75, कांग्रेस के 19 और वाम दलों के 16 विधायक हैं. इसके अलावे एआईएमआईएम (AIMIM) के 5 विधायक हैं. एक सीट (बोचहां) खाली है, जो वीआईपी विधायक मुसाफिर पासवान के निधन से खाली हुई है. इसी सीट पर उपचुनाव हो रहा है. अब ऐसे में अगर मुकेश सहनी समर्थन वापस ले लेते हैं तो भी नीतीश कुमार की सरकार की सेहत पर असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि वीआईपी के 3 विधायक हटने के बाद भी नीतीश कुमार की सरकार को 124 विधायकों का समर्थन हासिल होगा. जो कि बहुमत से अधिक है. हालांकि सहनी अगर एनडीए से अलग होते हैं तो उनके विधायक बगावत कर देंगे, ये तय माना जा रहा है.
बिहार चुनाव में 11 सीटों पर लड़ी वीआईपी: दरअसल, 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान नाटकीय घटनाक्रम के तहत महागठबंधन की प्रेस कॉन्फ्रेंस को बीच में छोड़कर मुकेश सहनी बीजेपी के साथ चले गए थे. तब बीजेपी ने अपने कोटे से उनको को 11 सीटें दी थी. जिनमें ब्रह्मपुर, बोचहां, गौरा बोराम, सिमरी बख्तियारपुर, सुगौली, मधुबनी, केवटी, साहेबगंज, बलरामपुर, अली नगर और बनियापुर में वीआईपी ने चुनाव लड़ा था. खुद मुकेश सहनी सहरसा जिले की सिमरी बख्तियारपुर से उम्मीदवार थे. 4 विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे. हालांकि वो अपनी सीट नहीं बचा पाए थे, इसके बावजूद बीजेपी ने विधान परिषद के रास्ते उनको नीतीश कैबिनेट में मंत्री बनवाया. उनके एमएलसी का कार्यकाल दो महीने में खत्म हो रहा. बीजेपी के रुख से लगता नहीं कि उन्हें दोबारा विधान परिषद भेजा जाएगा. यहां ये भी ध्यान रखना होगा कि वीआईपी तीनों विधायकों का झुकाव बीजेपी की तरफ है. ऐसे में इसकी संभावना कम ही है कि वे लोग सहनी के साथ जाएंगे.
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मुसाफिर पासवान के निधन से खाली हुई थी सीट: दरअसल, बोचहां विधानसभा क्षेत्र के विधायक मुसाफिर पासवान का निधन 24 नवंबर को हो गया था. वो वीआईपी से विधायक थे. पिछले विधानसभा चुनाव में यह सीट गठबंधन में वीआईपी को मिली थी. मुसाफिर पासवान विधायक बने थे. उनके निधन से यह सीट खाली हुई थी. मुसाफिर पासवान का सभी दलों के नेताओं से बेहतर संबंध था. उन्होंने आरजेडी के कद्दावर नेता रमई राम को 11,268 वोटों के मार्जिन से हराया था. इससे पहले मुसाफिर साल 2005 में आरजेडी के टिकट पर यहां से चुनाव जीते थे. इस विधानसभा क्षेत्र में 22 प्रखंड में 285 मतदान केंद्र हैं, उसमें 12 अप्रैल को मतदान होना है. 16 अप्रैल को चुनाव परिणाम घोषित होंगे.
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