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मन की आंखों से दुनिया देखने वाली बेटियों से मिलिए, इनके जुनून को सलाम - बिहार नेत्रहीन परिषद

दृष्टिहीन छात्राओं का हुनर ऐसा कि जो देखे वो दंग रह जाए. कंप्यूटर चलाने से लेकर घरेलू मसाला बनाने तक का काम करने वाली ये बच्चियां अपने भविष्य को संवारने में लगी हैं. दरअसल बिहार नेत्रहीन परिषद द्वारा पटना के अंतर्ज्योति बालिका विद्यालय में इन बच्चियों को हर वो हुनर सिखाया जा रहा है जिससे वो समाज के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकें. पढ़ें पूरी खबर..

Antarjyoti Balika Vidyalya Ptana bihar
Antarjyoti Balika Vidyalya Ptana bihar
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Published : Jun 10, 2022, 8:47 PM IST

पटना: ईश्वर ने हर किसी को कोई न कोई खासियत से नवाजा है. जिससे इंसान अपने मुकाम तक पहुंचता है. राजधानी के कुम्हरार स्थित अंतर्ज्योति बालिका विद्यालय (Antarjyoti Balika Vidyalya Ptana) की छात्राएं भी कुछ ऐसी हैं. छात्राएं शारीरिक कमी से तो जूझ रही हैं लेकिन उनका आत्मविश्वास इतना जबरदस्त है कि उनकी कमी भी उनके कदमों को रोक नहीं पा रही है. ये दिव्यांग छात्राएं कंप्यूटर, संगीत से लेकर कई क्षेत्रों में अच्छे अच्छे लोगों को मात दे दें.

पढ़ें- पटना में एक और 'आत्मनिर्भर चायवाली', मोना पटेल ने खोला Tea Stall

दिव्यांग छात्राएं बन रहीं आत्मनिर्भर: दरअसल यह बालिकाएं इतनी निपुण है कि वह धड़ल्ले से ना केवल कंप्यूटर ऑपरेट करती हैं बल्कि शानदार तरीके से गायन भी करती हैं. उनकी उंगलियां वाद्य यंत्रों पर शानदार तरीके से चलती है. वहीं दूसरी तरफ वह आत्मनिर्भर बनने की भी पहल कर रही हैं. जिसका उदाहरण है कि छात्राएं मोमबत्ती, घरेलू उपयोग में आने वाले मसाले, वाशिंग पाउडर और चॉकलेट मेकिंग भी कर रही हैं.

बिहार झारखंड की 110 लड़कियां बन रहीं स्वावलंबी: इस विद्यालय में लड़कियों को न केवल पढ़ाया जाता है बल्कि उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से इस तरीके से मजबूत किया जाता है कि वह अपने आने वाले जीवन में किसी भी प्रकार के झंझावात को आसानी से झेल सके. इस विद्यालय में पहली से लेकर 10वीं तक की पढ़ाई होती है. इसकी स्थापना 1993 में की गई थी और यह विद्यालय बिहार नेत्रहीन परिषद (Bihar Netraheen Parishad) के बैनर तले चलता है. यहां बिहार और झारखंड की करीब 110 लड़कियां हैं जिन्हें पढ़ाया जाता है. विद्यालय में स्टडी ब्रेल लिपि के माध्यम से कराई जाती है.

कंप्यूटर चलाती नेत्रहीन छात्रा.
कंप्यूटर चलाती नेत्रहीन छात्रा.

'सीखने का हुनर है लाजवाब': इस विद्यालय की वार्डन रेणु देवी कहती हैं कि मैं यहां करीब 13 साल से हूं. इन सभी बच्चियों को भगवान की देन है इनका दिमाग बहुत तेज है. चीजों को देख न सके लेकिन यह बच्चियां आसानी से हर चीज को सीख जाती हैं. यह बच्चियां तबला भी बजाती हैं और संगीत भी बखूबी गाती हैं.

"इनके गले में साक्षात मां सरस्वती का वास है. मुझे कभी ऐसा फील ही नहीं हुआ कि मैं नेत्रहीन बच्चियों के साथ हूं. अभी 3 महीने तक उन लोगों को इन सारे चीजों की ट्रेनिंग के बारे में बताया जाएगा. उसके बाद इनकी ट्रेनिंग पूरी हो जाएगी फिर दूसरे ग्रुप को यह सारी चीजें बताई जाएंगी. अगर बाहर की कोई छात्रा इन सब चीजों के बारे में सीखना चाहती हैं तो वह भी सीख सकती हैं. उनको यहां पर रजिस्ट्रेशन व अन्य जरूरी प्रक्रिया करानी होगी."- रेणु देवी, वार्डन, अंतर्ज्योति बालिका विद्यालय

पिआनो की धुन पर गाना गाती छात्राएं.
पिआनो की धुन पर गाना गाती छात्राएं.

"पहले हम लोगों को ट्रेनिंग दी गई. इसके बाद हम सभी ने इन बच्चों को हाथों में देकर मोम, मसाले व अन्य चीजों की जानकारी दी. इन सभी बच्चियों को मोमबत्ती बनाने के बारे में केवल एक बार बताया गया और यह सभी 2 दिन में ही सारी चीजों को सीख गई. इनको दोबारा फिर बताने की जरूरत नहीं पड़ी. अभी ये बच्चियां मोमबत्ती मसाला फिनाइल वाशिंग पाउडर जैसी चीजों को बना रही हैं. इसके अलावा यह सभी बच्चियां पर्स बनाना और एंब्रॉयडरी जैसे बारीक कार्य भी बखूबी कर लेती हैं."- रजनी, शिक्षिका, अंतर्ज्योति बालिका विद्यालय

"हम लोग यहां मोमबत्ती, फिनाइल और मसाला बनाने का काम करते हैं. हमें यह काम करने में बहुत मजा आता है. पढ़ाई भी करते हैं."- रिया, नेत्रहीन छात्रा

"मैडम ने हमें बताया और हम केवल 2 दिन में ही इसे बनाना सीख गए. हमें सारे काम का अंदाजा है. पढ़ने के साथ साथ ये सब काम करने में बहुत अच्चा लग रहा है."- ईशा, नेत्रहीन छात्रा

ब्रेल लिपि के माध्यम से दी जाती है जानकारी: दरअसल इस विद्यालय में बच्चियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए तकरीबन सारी अत्याधुनिक व्यवस्थाएं की गई हैं. यह सारी बच्चियां न केवल सिस्टम पर धड़ल्ले से अपनी उंगलियां चलाती हैं बल्कि सुरों के साथ गीत भी आराम से गाती हैं. बच्चियां ढोलक, हारमोनियम और बैंजो पर शानदार तरीके से जुगलबंदी करते हुए गीत भी गाती हैं. गायन और वादन का प्रशिक्षण भी इन बच्चियों को स्कूल प्रबंधन की तरफ से ही दिया जाता है. साथ ही इनकी पढ़ाई के लिए एक उन्नत लाइब्रेरी भी है जिसमें ब्रेल लिपि के माध्यम से जानकारी दी जाती है.

हर तरह से निपुण हो रही हैं छात्राएं: इस विद्यालय के सचिव रमेश प्रसाद सिंह कहते हैं 1993 में इसकी स्थापना की गई थी और इसका उद्देश्य था कि बिहार और झारखंड की जो दृष्टि दिव्यांग छात्राएं हैं उनको आत्मनिर्भर बनाया जा सके. रमेश बताते हैं कि नवंबर 2021 में व्यवसायिक प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की गई. इस केंद्र में इस विद्यालय की छात्राओं को कैंडल, वाशिंग पाउडर, चॉकलेट, मसाले व अगरबत्ती बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है.बता दें कि इस विद्यालय में हॉस्टल भी है जिसमें 110 बच्चियां हैं. यहां पढ़ाई के साथ उच्च गुणवत्तायुक्त भोजन भी इन बच्चियों को दिया जाता है.

"प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य यह है कि शिक्षा की प्राप्ति के बाद यदि छात्राएं सरकारी सेवा या किसी कंपनी में रोजगार प्राप्त नहीं कर सकती तो कम से कम ऐसी छात्राएं घर पर बैठकर इन वस्तुओं का निर्माण कर धन उपार्जन कर सके. अपनी जीविका चला सके. इसके लिए बिहार नेत्रहीन परिषद ने इस प्रशिक्षण केंद्र को शुरू किया है. इसका मुख्य उद्देश्य बिहार व झारखंड की दृष्टि दिव्यांग छात्राओं को सफल बनाना है."-रमेश प्रसाद सिंह, सचिव, अंतर्ज्योति बालिका विद्यालय

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पटना: ईश्वर ने हर किसी को कोई न कोई खासियत से नवाजा है. जिससे इंसान अपने मुकाम तक पहुंचता है. राजधानी के कुम्हरार स्थित अंतर्ज्योति बालिका विद्यालय (Antarjyoti Balika Vidyalya Ptana) की छात्राएं भी कुछ ऐसी हैं. छात्राएं शारीरिक कमी से तो जूझ रही हैं लेकिन उनका आत्मविश्वास इतना जबरदस्त है कि उनकी कमी भी उनके कदमों को रोक नहीं पा रही है. ये दिव्यांग छात्राएं कंप्यूटर, संगीत से लेकर कई क्षेत्रों में अच्छे अच्छे लोगों को मात दे दें.

पढ़ें- पटना में एक और 'आत्मनिर्भर चायवाली', मोना पटेल ने खोला Tea Stall

दिव्यांग छात्राएं बन रहीं आत्मनिर्भर: दरअसल यह बालिकाएं इतनी निपुण है कि वह धड़ल्ले से ना केवल कंप्यूटर ऑपरेट करती हैं बल्कि शानदार तरीके से गायन भी करती हैं. उनकी उंगलियां वाद्य यंत्रों पर शानदार तरीके से चलती है. वहीं दूसरी तरफ वह आत्मनिर्भर बनने की भी पहल कर रही हैं. जिसका उदाहरण है कि छात्राएं मोमबत्ती, घरेलू उपयोग में आने वाले मसाले, वाशिंग पाउडर और चॉकलेट मेकिंग भी कर रही हैं.

बिहार झारखंड की 110 लड़कियां बन रहीं स्वावलंबी: इस विद्यालय में लड़कियों को न केवल पढ़ाया जाता है बल्कि उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से इस तरीके से मजबूत किया जाता है कि वह अपने आने वाले जीवन में किसी भी प्रकार के झंझावात को आसानी से झेल सके. इस विद्यालय में पहली से लेकर 10वीं तक की पढ़ाई होती है. इसकी स्थापना 1993 में की गई थी और यह विद्यालय बिहार नेत्रहीन परिषद (Bihar Netraheen Parishad) के बैनर तले चलता है. यहां बिहार और झारखंड की करीब 110 लड़कियां हैं जिन्हें पढ़ाया जाता है. विद्यालय में स्टडी ब्रेल लिपि के माध्यम से कराई जाती है.

कंप्यूटर चलाती नेत्रहीन छात्रा.
कंप्यूटर चलाती नेत्रहीन छात्रा.

'सीखने का हुनर है लाजवाब': इस विद्यालय की वार्डन रेणु देवी कहती हैं कि मैं यहां करीब 13 साल से हूं. इन सभी बच्चियों को भगवान की देन है इनका दिमाग बहुत तेज है. चीजों को देख न सके लेकिन यह बच्चियां आसानी से हर चीज को सीख जाती हैं. यह बच्चियां तबला भी बजाती हैं और संगीत भी बखूबी गाती हैं.

"इनके गले में साक्षात मां सरस्वती का वास है. मुझे कभी ऐसा फील ही नहीं हुआ कि मैं नेत्रहीन बच्चियों के साथ हूं. अभी 3 महीने तक उन लोगों को इन सारे चीजों की ट्रेनिंग के बारे में बताया जाएगा. उसके बाद इनकी ट्रेनिंग पूरी हो जाएगी फिर दूसरे ग्रुप को यह सारी चीजें बताई जाएंगी. अगर बाहर की कोई छात्रा इन सब चीजों के बारे में सीखना चाहती हैं तो वह भी सीख सकती हैं. उनको यहां पर रजिस्ट्रेशन व अन्य जरूरी प्रक्रिया करानी होगी."- रेणु देवी, वार्डन, अंतर्ज्योति बालिका विद्यालय

पिआनो की धुन पर गाना गाती छात्राएं.
पिआनो की धुन पर गाना गाती छात्राएं.

"पहले हम लोगों को ट्रेनिंग दी गई. इसके बाद हम सभी ने इन बच्चों को हाथों में देकर मोम, मसाले व अन्य चीजों की जानकारी दी. इन सभी बच्चियों को मोमबत्ती बनाने के बारे में केवल एक बार बताया गया और यह सभी 2 दिन में ही सारी चीजों को सीख गई. इनको दोबारा फिर बताने की जरूरत नहीं पड़ी. अभी ये बच्चियां मोमबत्ती मसाला फिनाइल वाशिंग पाउडर जैसी चीजों को बना रही हैं. इसके अलावा यह सभी बच्चियां पर्स बनाना और एंब्रॉयडरी जैसे बारीक कार्य भी बखूबी कर लेती हैं."- रजनी, शिक्षिका, अंतर्ज्योति बालिका विद्यालय

"हम लोग यहां मोमबत्ती, फिनाइल और मसाला बनाने का काम करते हैं. हमें यह काम करने में बहुत मजा आता है. पढ़ाई भी करते हैं."- रिया, नेत्रहीन छात्रा

"मैडम ने हमें बताया और हम केवल 2 दिन में ही इसे बनाना सीख गए. हमें सारे काम का अंदाजा है. पढ़ने के साथ साथ ये सब काम करने में बहुत अच्चा लग रहा है."- ईशा, नेत्रहीन छात्रा

ब्रेल लिपि के माध्यम से दी जाती है जानकारी: दरअसल इस विद्यालय में बच्चियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए तकरीबन सारी अत्याधुनिक व्यवस्थाएं की गई हैं. यह सारी बच्चियां न केवल सिस्टम पर धड़ल्ले से अपनी उंगलियां चलाती हैं बल्कि सुरों के साथ गीत भी आराम से गाती हैं. बच्चियां ढोलक, हारमोनियम और बैंजो पर शानदार तरीके से जुगलबंदी करते हुए गीत भी गाती हैं. गायन और वादन का प्रशिक्षण भी इन बच्चियों को स्कूल प्रबंधन की तरफ से ही दिया जाता है. साथ ही इनकी पढ़ाई के लिए एक उन्नत लाइब्रेरी भी है जिसमें ब्रेल लिपि के माध्यम से जानकारी दी जाती है.

हर तरह से निपुण हो रही हैं छात्राएं: इस विद्यालय के सचिव रमेश प्रसाद सिंह कहते हैं 1993 में इसकी स्थापना की गई थी और इसका उद्देश्य था कि बिहार और झारखंड की जो दृष्टि दिव्यांग छात्राएं हैं उनको आत्मनिर्भर बनाया जा सके. रमेश बताते हैं कि नवंबर 2021 में व्यवसायिक प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की गई. इस केंद्र में इस विद्यालय की छात्राओं को कैंडल, वाशिंग पाउडर, चॉकलेट, मसाले व अगरबत्ती बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है.बता दें कि इस विद्यालय में हॉस्टल भी है जिसमें 110 बच्चियां हैं. यहां पढ़ाई के साथ उच्च गुणवत्तायुक्त भोजन भी इन बच्चियों को दिया जाता है.

"प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य यह है कि शिक्षा की प्राप्ति के बाद यदि छात्राएं सरकारी सेवा या किसी कंपनी में रोजगार प्राप्त नहीं कर सकती तो कम से कम ऐसी छात्राएं घर पर बैठकर इन वस्तुओं का निर्माण कर धन उपार्जन कर सके. अपनी जीविका चला सके. इसके लिए बिहार नेत्रहीन परिषद ने इस प्रशिक्षण केंद्र को शुरू किया है. इसका मुख्य उद्देश्य बिहार व झारखंड की दृष्टि दिव्यांग छात्राओं को सफल बनाना है."-रमेश प्रसाद सिंह, सचिव, अंतर्ज्योति बालिका विद्यालय

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