पटना: बिहार में गांव की सरकार (Bihar Panchayat Election) बन रही है. हर दिन कुछ नया देखने और सुनने को मिलता है. इस बार के चुनाव को प्रत्याशी काफी दिलचस्प बना रहे हैं. बड़े बड़े ओहदों को छोड़कर गांव की ओर रुख करने वाले कई उम्मीदवार आपको देखने को मिलेंगे. तो वहीं बहू भी सास के सामने ताल ठोंक रही है. इतना ही नहीं 20 लाख का पैकेज तक छोड़कर लोग पंचायत चुनाव (Panchayat Chunav) की बिसात पर अपने पासे फेंक रहे हैं.
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बिहार का पंचायत चुनाव हाई प्रोफाइल होता जा रहा है. पंचायत चुनाव में वैसे लोग भी हिस्सेदारी ले रहे हैं जो लोग शहरों में अच्छे संस्थानों में बड़ी सैलरी पर नौकरी करते थे. पंचायत चुनाव में नेता बनने का शौक कुछ इस कदर आया है कि लोग पंचायत की सेवा करने को ही अपना सब कुछ मान बैठे हैं. चुनाव में एक प्रत्याशी ऐसी भी हैं जो फर्राटेदार अंग्रेजी बोलती हैं और गांव तक विकास लाने का दावा करती हैं.
पंचायत चुनाव में नेता बनने का शौक कुछ इस कदर है कि कहीं चाचा के सामने भतीजा ताल ठोंक रहा है. रिश्तेदार का खड़ा होना आम बात है. पंचायत चुनाव में नेता बनने का जुनून ऐसा कि सास के सामने बहू चुनावी मैदान में कूद पड़ी है.
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धनरूआ पंचायत में भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है. जिसे लेकर हम अपने पंचायत से भ्रष्टाचार जड़ से खत्म करना चाहते हैं. मेरे विपक्ष में मेरी वर्तमान मुखिया जो कि रिश्ते में मेरी सास लगती हैं, चुनाव लड़ रही हैं.' -लवली, मुखिया प्रत्याशी
इतना ही नहीं मंत्री के पूर्व मंत्री के परिवार के लोग बेटे बेटी भी चुनावी मैदान में उतर गए हैं. बिहार सरकार की 2 बार मंत्री रही बीमा भारती की बेटी चुनावी मैदान में हैं, और लोगों से वोट मांग कर जिताने की बात भी कर रही हैं. हालांकि बीमा भारती के पति क्षेत्र के बाहुबली है ऐसे में लोग यह मानकर चल रहे हैं कि पंचायत चुनाव दिलचस्प होगा.
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वहीं प्रत्याशियों की सूची में एक और नाम है रूपम झा का, जो मुंबई की चकाचौंध को छोड़कर सुदूर गांव चैनपुर में विकास का अलख जगाने पहुंची हैं. 20 लाख के पैकेज की नौकरी को छोड़कर पंचायत चुनाव में अपना भाग्य आजमा रहीं प्रत्याशी रूपम झा तूफानी दौरा कर गांव वालों को विकास का असल मकसद समझा रही हैं.
11 चरणों में हो रहे बिहार पंचायत चुनाव जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है सियासी चेहरे के नए रंग सामने आ रहे हैं निश्चित तौर पर पढ़े-लिखे लोग पंचायत को पढ़ा लिखा और बड़ा बनाएंगे और जरूरत भी इसी बात की है कि शिक्षित लोग अपने ग्राम सभा को मजबूत बनाएं लेकिन देखना यह भी है कि एक ही चुनावी शक्ल और नेतागिरी का चोला पहने का शौक तो नहीं.