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उच्च शिक्षा के मामले में फिसड्डी है बिहार, GER बढ़ाने के लिए करने होंगे ये उपाय - ग्रॉस एनरोलमेंट रेश्यो

ग्रॉस एनरोलमेंट रेश्यो का राष्ट्रीय औसत 27.1% है. बिहार का औसत 14.5 फीसदी है. जानकार बताते हैं कि जीईआर बढ़ाने के लिए बिहार सरकार को शिक्षकों और नॉन टीचिंग स्टाफ की कमी दूर करने जैसे उपाय करने होंगे.

Patliputra University
पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय
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Published : Aug 17, 2021, 9:40 PM IST

Updated : Aug 17, 2021, 10:36 PM IST

पटना: बिहार में उच्च शिक्षा की स्थिति बेहद खराब है. यह हम नहीं कह रहे. यह केंद्र सरकार (Central Government) के आंकड़े कहते हैं. यही वजह है कि बिहार सरकार ने ग्रॉस एनरोलमेंट रेश्यो (Gross Enrolment Ratio) बढ़ाने के लिए तमाम तरह की तैयारी की है, लेकिन ग्रॉस एनरोलमेंट रेश्यो (GER) का लक्ष्य हासिल करना इतना आसान नहीं है. आखिर यह लक्ष्य मुश्किल क्यों है और जीईआर बढ़ाने के लिए क्या करने की जरूरत है?

यह भी पढ़ें- बिहार के सरकारी कर्मचारियों की बल्ले-बल्ले, 28% महंगाई भत्ते को कैबिनेट से मिली मंजूरी

जीईआर यानी सकल नामांकन अनुपात के मामले में बिहार सबसे फिसड्डी राज्यों में से एक है. ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन की वर्ष 2019-20 की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रॉस एनरोलमेंट रेश्यो का राष्ट्रीय औसत 27.1% है. वहीं, बिहार का औसत महज 14.5 फीसदी है. ग्रॉस एनरोलमेंट रेश्यो का मतलब 18 से 23 साल की उम्र के छात्र-छात्राओं की संख्या प्रति एक सौ आबादी पर जो इंटर के बाद आगे की पढ़ाई जारी रखती है. बिहार इस मामले में फिसड्डी इसलिए है कि यहां बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं इंटर पास करने के बाद या तो पढ़ाई छोड़ देते हैं या उच्च शिक्षा के लिए बिहार से बाहर चले जाते हैं. इसके पीछे बड़ी वजह बिहार के शिक्षण संस्थानों में सीट और शिक्षकों की कमी है.

देखें रिपोर्ट

इस बारे में उच्च शिक्षा मामलों के जानकार डॉ. अंकुर ओझा कहते हैं कि हायर एजुकेशन में सुधार और विकास बिहार सरकार के मूल एजेंडे में है ही नहीं. क्योंकि पिछले 15 साल में सरकार केवल 9 डिग्री कॉलेज खोल पाई है. आश्चर्य की बात यह है कि इन कॉलेजों में अब तक एक भी टीचिंग या नॉन टीचिंग स्टाफ की भर्ती नहीं हुई. ये सरकारी कॉलेज केवल कागज पर चल रहे हैं. यही हालत वर्ष 2018 में बने पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय, मुंगेर विश्वविद्यालय और पूर्णिया विश्वविद्यालय की है. वर्तमान समय में तीनों विश्वविद्यालय प्रभारी कुलपति के भरोसे चल रहे हैं.

"ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन 2019-20 के आंकड़े बिहार सरकार के हायर एजुकेशन में किए गए कामों की पोल खोलते हैं. ग्रॉस एनरोलमेंट रेश्यो में बिहार सबसे निचले पायदान पर है. यहां तक कि पड़ोसी राज्य झारखंड भी हमसे काफी अच्छी स्थिति में है. यह सब शिक्षकों की भारी कमी की वजह से है."- डॉ. अंकुर ओझा, उच्च शिक्षा मामलों के जानकार

"राज्य सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद बिहार के तमाम कॉलेज और विश्वविद्यालय टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ की कमी से जूझ रहे हैं. इसका सीधा असर छात्र-छात्राओं की पढ़ाई पर पड़ता है. अगर किसी भी कॉलेज में पर्याप्त संख्या में शिक्षक और नॉन टीचिंग स्टाफ नहीं हैं तो विश्वविद्यालयों में पढ़ाई बाधित होती है. सेशन लेट होता है. परीक्षा देर से होती है. इसकी वजह से मेधावी छात्र यहां के कॉलेज में एडमिशन लेने की बजाय बाहर के राज्यों का रुख कर लेते हैं."- प्रोफेसर मनोज कुमार, प्रॉक्टर, पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय

पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर रास बिहारी सिंह ने कहा, 'हमारे यहां हर साल बड़ी संख्या में शिक्षक रिटायर होते हैं, लेकिन बहाली की प्रक्रिया इतनी धीमी है कि इसमें वर्षों लग जाते हैं, जिससे पढ़ाई प्रभावित होती है. ग्रॉस एनरोलमेंट रेश्यो बढ़ाने के लिए जरूरी है कि बिहार में पहले से उपलब्ध कॉलेज और यूनिवर्सिटी के संसाधन का पूरा उपयोग किया जाए. यहां आसानी से दो शिफ्ट में पढ़ाई हो सकती है.'

"ऐसी व्यवस्था दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों में है. इससे बड़ी संख्या में छात्रों का एडमिशन हो सकेगा. बिहार से छात्रों का पलायन रुकेगा. इस तरह बिहार का ग्रॉस एनरोलमेंट रेश्यो बढ़ेगा. सरकार को इसके लिए पर्याप्त संख्या में शिक्षक और गैर शैक्षणिक स्टाफ नियमित तौर पर भर्ती करने होंगे. इसके साथ ही गेस्ट टीचर को पर्याप्त सैलरी देनी होगी, ताकि वे मन लगाकर बच्चों को पढ़ा सकें."- प्रोफेसर रास बिहारी सिंह, पूर्व कुलपति पटना विश्वविद्यालय

यह भी पढ़ें- Afghan-Taliban Crisis : पीएम ने बुलाई CCS की बैठक, शाह-राजनाथ और डोभाल मौजूद

पटना: बिहार में उच्च शिक्षा की स्थिति बेहद खराब है. यह हम नहीं कह रहे. यह केंद्र सरकार (Central Government) के आंकड़े कहते हैं. यही वजह है कि बिहार सरकार ने ग्रॉस एनरोलमेंट रेश्यो (Gross Enrolment Ratio) बढ़ाने के लिए तमाम तरह की तैयारी की है, लेकिन ग्रॉस एनरोलमेंट रेश्यो (GER) का लक्ष्य हासिल करना इतना आसान नहीं है. आखिर यह लक्ष्य मुश्किल क्यों है और जीईआर बढ़ाने के लिए क्या करने की जरूरत है?

यह भी पढ़ें- बिहार के सरकारी कर्मचारियों की बल्ले-बल्ले, 28% महंगाई भत्ते को कैबिनेट से मिली मंजूरी

जीईआर यानी सकल नामांकन अनुपात के मामले में बिहार सबसे फिसड्डी राज्यों में से एक है. ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन की वर्ष 2019-20 की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रॉस एनरोलमेंट रेश्यो का राष्ट्रीय औसत 27.1% है. वहीं, बिहार का औसत महज 14.5 फीसदी है. ग्रॉस एनरोलमेंट रेश्यो का मतलब 18 से 23 साल की उम्र के छात्र-छात्राओं की संख्या प्रति एक सौ आबादी पर जो इंटर के बाद आगे की पढ़ाई जारी रखती है. बिहार इस मामले में फिसड्डी इसलिए है कि यहां बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं इंटर पास करने के बाद या तो पढ़ाई छोड़ देते हैं या उच्च शिक्षा के लिए बिहार से बाहर चले जाते हैं. इसके पीछे बड़ी वजह बिहार के शिक्षण संस्थानों में सीट और शिक्षकों की कमी है.

देखें रिपोर्ट

इस बारे में उच्च शिक्षा मामलों के जानकार डॉ. अंकुर ओझा कहते हैं कि हायर एजुकेशन में सुधार और विकास बिहार सरकार के मूल एजेंडे में है ही नहीं. क्योंकि पिछले 15 साल में सरकार केवल 9 डिग्री कॉलेज खोल पाई है. आश्चर्य की बात यह है कि इन कॉलेजों में अब तक एक भी टीचिंग या नॉन टीचिंग स्टाफ की भर्ती नहीं हुई. ये सरकारी कॉलेज केवल कागज पर चल रहे हैं. यही हालत वर्ष 2018 में बने पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय, मुंगेर विश्वविद्यालय और पूर्णिया विश्वविद्यालय की है. वर्तमान समय में तीनों विश्वविद्यालय प्रभारी कुलपति के भरोसे चल रहे हैं.

"ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन 2019-20 के आंकड़े बिहार सरकार के हायर एजुकेशन में किए गए कामों की पोल खोलते हैं. ग्रॉस एनरोलमेंट रेश्यो में बिहार सबसे निचले पायदान पर है. यहां तक कि पड़ोसी राज्य झारखंड भी हमसे काफी अच्छी स्थिति में है. यह सब शिक्षकों की भारी कमी की वजह से है."- डॉ. अंकुर ओझा, उच्च शिक्षा मामलों के जानकार

"राज्य सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद बिहार के तमाम कॉलेज और विश्वविद्यालय टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ की कमी से जूझ रहे हैं. इसका सीधा असर छात्र-छात्राओं की पढ़ाई पर पड़ता है. अगर किसी भी कॉलेज में पर्याप्त संख्या में शिक्षक और नॉन टीचिंग स्टाफ नहीं हैं तो विश्वविद्यालयों में पढ़ाई बाधित होती है. सेशन लेट होता है. परीक्षा देर से होती है. इसकी वजह से मेधावी छात्र यहां के कॉलेज में एडमिशन लेने की बजाय बाहर के राज्यों का रुख कर लेते हैं."- प्रोफेसर मनोज कुमार, प्रॉक्टर, पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय

पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर रास बिहारी सिंह ने कहा, 'हमारे यहां हर साल बड़ी संख्या में शिक्षक रिटायर होते हैं, लेकिन बहाली की प्रक्रिया इतनी धीमी है कि इसमें वर्षों लग जाते हैं, जिससे पढ़ाई प्रभावित होती है. ग्रॉस एनरोलमेंट रेश्यो बढ़ाने के लिए जरूरी है कि बिहार में पहले से उपलब्ध कॉलेज और यूनिवर्सिटी के संसाधन का पूरा उपयोग किया जाए. यहां आसानी से दो शिफ्ट में पढ़ाई हो सकती है.'

"ऐसी व्यवस्था दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों में है. इससे बड़ी संख्या में छात्रों का एडमिशन हो सकेगा. बिहार से छात्रों का पलायन रुकेगा. इस तरह बिहार का ग्रॉस एनरोलमेंट रेश्यो बढ़ेगा. सरकार को इसके लिए पर्याप्त संख्या में शिक्षक और गैर शैक्षणिक स्टाफ नियमित तौर पर भर्ती करने होंगे. इसके साथ ही गेस्ट टीचर को पर्याप्त सैलरी देनी होगी, ताकि वे मन लगाकर बच्चों को पढ़ा सकें."- प्रोफेसर रास बिहारी सिंह, पूर्व कुलपति पटना विश्वविद्यालय

यह भी पढ़ें- Afghan-Taliban Crisis : पीएम ने बुलाई CCS की बैठक, शाह-राजनाथ और डोभाल मौजूद

Last Updated : Aug 17, 2021, 10:36 PM IST
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