ETV Bharat / state

'जब मोतिलाल नेहरू ने कहा- घर पर ही पड़े रहते हैं जवाहर, बापू आप इसे ले जाइए'

author img

By

Published : Aug 11, 2019, 8:21 PM IST

Updated : Aug 11, 2019, 8:37 PM IST

'महात्मा गांधी जब लखनऊ के कांग्रेस अधिवेशन में गए थे, तो वहां मोतीलाल नेहरू से मुलाकात हुई और महात्मा गांधी को मोतीलाल नेहरू ने जवाहरलाल नेहरू की तरफ इशारा करते हुए कहा कि इनके लिए कुछ कीजिए. वैसे भी दिन भर घर में पड़ा रहता है. तब बापू जी ने जवाहरलाल नेहरू को हर वो चीज सिखाई जो देश हित के लिए थी'

story-of-freedom-struggle-by-siddheshwar-prasad

पटना: 15 अगस्त 2019 को देश आजाद हुए 77 साल पूरे हो जाएंगे. आजादी के लिए हुए संग्राम को हमने कई दफा पढ़ा होगा. लेकिन जब कोई ऐसा इंसान जो देश के लिए लड़ी गई लड़ाई का गवाह हो, पूरी दास्तां सुनाता है, तो दिल में देशभक्ति के साथ-साथ एक दृश्य बन जाता है. चलिए आपको ऐसे ही दृश्य की ओर ले चलते हैं, जिसे त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सिद्धेश्वर प्रसाद सुना रहे हैं.

ईटीवी भारत ने स्वतंत्रता आंदोलन के गवाह रहे त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल प्रोफेसर सिद्धेश्वर प्रसाद से आजादी के लिए किए गए संघर्षों के बारे में जाना. 95 साल के हो चुके सिद्धेश्वर ने अपनी यादों के पन्ने सामने रखे हैं.

ऐसे होता था क्रांतिकारियों का डिनर...
स्वतंत्रता सेनानी प्रोफेसर सिद्धेश्वर प्रसाद बताते हैं कि जिस समय अंग्रेजों से लड़ाई चल रही थी, उस वक्त एक गांव से दूसरे गांव में क्रांतिकारी रात में आते थे और जैसे ही क्रांतिकारियों की टोली किसी एक गांव में आती थी, तो पूरे गांव के लोग मिलकर उनके लिए खाना इकट्ठा करते थे. उस वक्त दाल-चावल और आलू का भुजिया ही खाने में परोसा जाता था. गांव के सभी घरों से खाने को इकट्ठा किया जाता था. उन क्रांतिकारियों को किसी घर में खिलाया जाता था. उसके बाद मीटिंग कर वहां से वो सभी चल देते थे.

आजादी की अनसुनी दास्तां सुनाते प्रोफेसर सिद्धेश्वर प्रसाद

गांधी जी आंदोलन के सूत्राधार थे- प्रोफेसर सिद्धेश्वर
प्रोफेसर सिद्धेश्वर प्रसाद ने बताया कि स्वतंत्रता आंदोलन के सूत्रपात महात्मा गांधी थे. महात्मा गांधी अगर नहीं होते, तो शायद यह आंदोलन शुरू नहीं होता. महात्मा गांधी जब लखनऊ के कांग्रेस अधिवेशन में गए थे, तो वहां मोतीलाल नेहरू से मुलाकात हुई और महात्मा गांधी को मोतीलाल नेहरू ने जवाहरलाल नेहरू की तरफ इशारा करते हुए कहा कि इनके लिए कुछ कीजिए. वैसे भी दिन भर घर में पड़ा रहता है. तब से कहा जाता है कि महात्मा गांधी ने जवाहरलाल नेहरू को अंगुली पकड़ उस लायक बना दिया, जिससे उनकी पहचान विश्व भर में हुई. उन्होंने कहा कि नेहरू, जो एक शब्द नहीं बोल पाते थे. गांधी जी की सीख ने उन्हें ऐसा बना दिया कि वो पेरिस में एक घंटे तक बोले.

25 साल का था मैं- पूर्व राज्यपाल, त्रिपुरा
सिद्धेश्वर प्रसाद ने अपने अतीत के पन्नों को पलटते हुए बताया कि आजादी की लड़ाई के समय वो 25 साल के थे. वो कहते हैं, 'मैं मैसेंजर का काम करता था. आंदोलनकारियों के बीच मैसेज पहुंचाया करता था. मैं और हमारे घर में आंदोलनकारियों की मीटिंग हुआ करती थी और बगल में कांग्रेस का दफ्तर बना दिया गया था. जब भी पुलिस वाले आते थे, वो सभी पोस्टर-बैनर कबाड़ कर चले जाते थे.

story-of-freedom-struggle-by-siddheshwar-prasad
जब राज्यपाल थे सिद्धेश्वर प्रसाद (फाइल फोटो)

'गांधी जी के आश्रम में रहा, फिर...'
प्रोफेसर साहब बताते हैं कि आंदोलन के दौरान गांधी जी के आश्रम में उन्हें रहने का मौका मिला. गांधी जी के साथ कई बार, कई जगहों पर आयोजित सभाओं में वो गए. उनसे काफी प्रभावित हुए. गांधी जी सिर्फ राजनीतिक ही नहीं सामाजिक-आर्थिक तरीकों से लोगों का उत्थान करना चाहते थे. गांधीजी के सबसे प्रिय विनोबा भावे थे. विनोबा भावे की खासियत यह थी कि वे कई भाषाओं के जानकार थे. इसके चलते गांधी जी ने उन्हें आंदोलन का पहला सारथी बनाया. महात्मा गांधी अपने दौर में शराबबंदी चाहते थे. इसके लिए उन्होंने मुहिम भी चलाई. इस मुहिम में उनकी पत्नी कस्तूरबा ने भी साथ दिया. कस्तूरबा गांधी ने सबसे पहले महिलाओं को एकजुट किया.

'पटना में बहा खून-शहीद हुए सात लोग'
सिद्धेश्वर प्रसाद बताते हैं कि पटना सचिवालय में झंडा फहराने के दौरान हिंसा हुई. अंग्रेजों की तरफ से गोलियां चलाई गईं. इस हिंसा में सात लोग शहीद हो गए. कई के पीठ से गोली छू कर निकल गई. उन्होंने बताया कि आजादी के लिए संघर्ष लगातार जारी रहा. और अंत में देश आजाद हुआ, विजयी पताका फहरायी गई.

  • कांप गया था अंग्रेज कमिश्नर, जब बोले थे पीर अली- हम जान बचाने नहीं, जान देने आए हैं https://t.co/N2FN5kVURx

    — ETV Bharat Bihar (@etvbharatbihar) August 11, 2019 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

सिद्धेश्वर प्रसाद के बारे में...

  • प्रोफेसर सिद्धेश्वर प्रसाद बिहार के नालंदा के रहने वाले हैं.
  • आजादी के लिए आपने बहुत बड़ी भूमिका निभाई.
  • आजादी के बाद सिद्धेश्वर को कई विभागों की जिम्मेदारी सौंपी गई.
  • इसके बाद उन्हें त्रिपुरा का राज्यपाल बनाया गया.
  • अपने पद से रिटायर्ड सिद्धेश्वर प्रसाद इस समय सामाजिक सेवा कर रहे हैं.

'आज भ्रष्टाचार हावी हो गया है'
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ने बताया कि आज राजनीतिक जीवन में जितने भी नेता हैं. सभी भ्रष्टाचार में डूबते नजर आ रहे हैं. हर कोई पैसों के पीछे भाग रहा है. एक समय था कि हर राजनेता भारत को आजाद कराने के लिए अपने देश के लिए जान देकर काम करते थे. समाज में कुछ करने की भावना होती थी. लेकिन आज महज एक दिखावा हो गया है. यह बहुत ही दुख की बात है. आजाद भारत में आज भी कई सपने अधूरे रह गए हैं, जो हम लोगों ने सपने देखे थे.

युवाओं को संदेश...
सिद्धेश्वर प्रसाद ने युवाओं को संदेश दिया कि जब तक आपके अंदर शिक्षा का ज्योति नहीं जलेगी, तब तक आप अपनी जिंदगी में खुशी नहीं ला सकते हैं. शिक्षा के बल बल पर ही आप आंदोलन और क्रांति का बीज पैदा कर सकते हैं. महात्मा गांधी अगर शिक्षित न होते, तो शायद इतना बड़ा आंदोलन न हो पाता. उन्होंने कहा कि आज के समय लोग पैसों के लिए खून फैला रहे हैं. पैसों को पहली प्राथमिकता देते हैं.

पटना: 15 अगस्त 2019 को देश आजाद हुए 77 साल पूरे हो जाएंगे. आजादी के लिए हुए संग्राम को हमने कई दफा पढ़ा होगा. लेकिन जब कोई ऐसा इंसान जो देश के लिए लड़ी गई लड़ाई का गवाह हो, पूरी दास्तां सुनाता है, तो दिल में देशभक्ति के साथ-साथ एक दृश्य बन जाता है. चलिए आपको ऐसे ही दृश्य की ओर ले चलते हैं, जिसे त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सिद्धेश्वर प्रसाद सुना रहे हैं.

ईटीवी भारत ने स्वतंत्रता आंदोलन के गवाह रहे त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल प्रोफेसर सिद्धेश्वर प्रसाद से आजादी के लिए किए गए संघर्षों के बारे में जाना. 95 साल के हो चुके सिद्धेश्वर ने अपनी यादों के पन्ने सामने रखे हैं.

ऐसे होता था क्रांतिकारियों का डिनर...
स्वतंत्रता सेनानी प्रोफेसर सिद्धेश्वर प्रसाद बताते हैं कि जिस समय अंग्रेजों से लड़ाई चल रही थी, उस वक्त एक गांव से दूसरे गांव में क्रांतिकारी रात में आते थे और जैसे ही क्रांतिकारियों की टोली किसी एक गांव में आती थी, तो पूरे गांव के लोग मिलकर उनके लिए खाना इकट्ठा करते थे. उस वक्त दाल-चावल और आलू का भुजिया ही खाने में परोसा जाता था. गांव के सभी घरों से खाने को इकट्ठा किया जाता था. उन क्रांतिकारियों को किसी घर में खिलाया जाता था. उसके बाद मीटिंग कर वहां से वो सभी चल देते थे.

आजादी की अनसुनी दास्तां सुनाते प्रोफेसर सिद्धेश्वर प्रसाद

गांधी जी आंदोलन के सूत्राधार थे- प्रोफेसर सिद्धेश्वर
प्रोफेसर सिद्धेश्वर प्रसाद ने बताया कि स्वतंत्रता आंदोलन के सूत्रपात महात्मा गांधी थे. महात्मा गांधी अगर नहीं होते, तो शायद यह आंदोलन शुरू नहीं होता. महात्मा गांधी जब लखनऊ के कांग्रेस अधिवेशन में गए थे, तो वहां मोतीलाल नेहरू से मुलाकात हुई और महात्मा गांधी को मोतीलाल नेहरू ने जवाहरलाल नेहरू की तरफ इशारा करते हुए कहा कि इनके लिए कुछ कीजिए. वैसे भी दिन भर घर में पड़ा रहता है. तब से कहा जाता है कि महात्मा गांधी ने जवाहरलाल नेहरू को अंगुली पकड़ उस लायक बना दिया, जिससे उनकी पहचान विश्व भर में हुई. उन्होंने कहा कि नेहरू, जो एक शब्द नहीं बोल पाते थे. गांधी जी की सीख ने उन्हें ऐसा बना दिया कि वो पेरिस में एक घंटे तक बोले.

25 साल का था मैं- पूर्व राज्यपाल, त्रिपुरा
सिद्धेश्वर प्रसाद ने अपने अतीत के पन्नों को पलटते हुए बताया कि आजादी की लड़ाई के समय वो 25 साल के थे. वो कहते हैं, 'मैं मैसेंजर का काम करता था. आंदोलनकारियों के बीच मैसेज पहुंचाया करता था. मैं और हमारे घर में आंदोलनकारियों की मीटिंग हुआ करती थी और बगल में कांग्रेस का दफ्तर बना दिया गया था. जब भी पुलिस वाले आते थे, वो सभी पोस्टर-बैनर कबाड़ कर चले जाते थे.

story-of-freedom-struggle-by-siddheshwar-prasad
जब राज्यपाल थे सिद्धेश्वर प्रसाद (फाइल फोटो)

'गांधी जी के आश्रम में रहा, फिर...'
प्रोफेसर साहब बताते हैं कि आंदोलन के दौरान गांधी जी के आश्रम में उन्हें रहने का मौका मिला. गांधी जी के साथ कई बार, कई जगहों पर आयोजित सभाओं में वो गए. उनसे काफी प्रभावित हुए. गांधी जी सिर्फ राजनीतिक ही नहीं सामाजिक-आर्थिक तरीकों से लोगों का उत्थान करना चाहते थे. गांधीजी के सबसे प्रिय विनोबा भावे थे. विनोबा भावे की खासियत यह थी कि वे कई भाषाओं के जानकार थे. इसके चलते गांधी जी ने उन्हें आंदोलन का पहला सारथी बनाया. महात्मा गांधी अपने दौर में शराबबंदी चाहते थे. इसके लिए उन्होंने मुहिम भी चलाई. इस मुहिम में उनकी पत्नी कस्तूरबा ने भी साथ दिया. कस्तूरबा गांधी ने सबसे पहले महिलाओं को एकजुट किया.

'पटना में बहा खून-शहीद हुए सात लोग'
सिद्धेश्वर प्रसाद बताते हैं कि पटना सचिवालय में झंडा फहराने के दौरान हिंसा हुई. अंग्रेजों की तरफ से गोलियां चलाई गईं. इस हिंसा में सात लोग शहीद हो गए. कई के पीठ से गोली छू कर निकल गई. उन्होंने बताया कि आजादी के लिए संघर्ष लगातार जारी रहा. और अंत में देश आजाद हुआ, विजयी पताका फहरायी गई.

  • कांप गया था अंग्रेज कमिश्नर, जब बोले थे पीर अली- हम जान बचाने नहीं, जान देने आए हैं https://t.co/N2FN5kVURx

    — ETV Bharat Bihar (@etvbharatbihar) August 11, 2019 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

सिद्धेश्वर प्रसाद के बारे में...

  • प्रोफेसर सिद्धेश्वर प्रसाद बिहार के नालंदा के रहने वाले हैं.
  • आजादी के लिए आपने बहुत बड़ी भूमिका निभाई.
  • आजादी के बाद सिद्धेश्वर को कई विभागों की जिम्मेदारी सौंपी गई.
  • इसके बाद उन्हें त्रिपुरा का राज्यपाल बनाया गया.
  • अपने पद से रिटायर्ड सिद्धेश्वर प्रसाद इस समय सामाजिक सेवा कर रहे हैं.

'आज भ्रष्टाचार हावी हो गया है'
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ने बताया कि आज राजनीतिक जीवन में जितने भी नेता हैं. सभी भ्रष्टाचार में डूबते नजर आ रहे हैं. हर कोई पैसों के पीछे भाग रहा है. एक समय था कि हर राजनेता भारत को आजाद कराने के लिए अपने देश के लिए जान देकर काम करते थे. समाज में कुछ करने की भावना होती थी. लेकिन आज महज एक दिखावा हो गया है. यह बहुत ही दुख की बात है. आजाद भारत में आज भी कई सपने अधूरे रह गए हैं, जो हम लोगों ने सपने देखे थे.

युवाओं को संदेश...
सिद्धेश्वर प्रसाद ने युवाओं को संदेश दिया कि जब तक आपके अंदर शिक्षा का ज्योति नहीं जलेगी, तब तक आप अपनी जिंदगी में खुशी नहीं ला सकते हैं. शिक्षा के बल बल पर ही आप आंदोलन और क्रांति का बीज पैदा कर सकते हैं. महात्मा गांधी अगर शिक्षित न होते, तो शायद इतना बड़ा आंदोलन न हो पाता. उन्होंने कहा कि आज के समय लोग पैसों के लिए खून फैला रहे हैं. पैसों को पहली प्राथमिकता देते हैं.

Intro:spl story

15 अगस्त यानी आजादी का दिन एक तरफ जहां पूरा देश आजादी के 77 वी वर्षगांठ मना रहा है ऐसे में आजाद मुल्क की आज की तस्वीर और पहले की तस्वीरों पर खास चर्चा कर रहे हैं स्वतंत्रता आंदोलन के गवाह रहे और त्रिपुरा के राज्यपाल रहे प्रोफेसर सिद्धेश्वर प्रसाद से खास बातचीत


Body:सिद्धेश्वर प्रसाद बताते हैं कि जिस समय अंग्रेजों से लड़ाई चल रही थी उस वक्त एक गांव से दूसरे गांव में क्रांतिकारी रात में आते थे और जैसे ही क्रांतिकारियों की टोली किसी एक गांव में आती थी तो पूरे गांव के लोग मिलकर उनके लिए खाना इकट्ठा करते थे, और उस वक्त चावल दाल और आलू का भुजिया खाना ही चलता था गांव के सभी घरों से खाना को इकट्ठा किया जाता था और उन क्रांतिकारियों को किसी घर में खिलाया जाता था उसके बाद मीटिंग कर वहां से वह चल देते थे।
प्रोफेसर सिद्धेश्वर प्रसाद ने बताया कि स्वतंत्रता आंदोलन के सूत्रपात महात्मा गांधी थे महात्मा गांधी अगर नहीं होते तो शायद यह आंदोलन नहीं शुरू होता, महात्मा गांधी जब लखनऊ में कांग्रेश अधिवेशन में गए थे तो वहां मोतीलाल नेहरू से मुलाकात हुई और महात्मा गांधी को मोतीलाल नेहरू ने जवाहरलाल नेहरू के तरफ इशारा करते हुए कहा की इनके लिए कुछ कीजिए ऐसे ही दिन भर घर में पड़ा रहता है, तब से कहा जाता है कि महात्मा गांधी ने जवाहरलाल नेहरू को अंगुली पकड हर वो चिज सिखलाई,
आंदोलन की लड़ाई के दौरान सिद्धेश्वर प्रसाद बताते हैं कि उस वक्त हमारी उम्र तकरीबन 25 साल की थी और मैं मैसेंजर का काम करता था आंदोलनकारियों के बीच मैसेज पहुंचाया करता था मैं और हमारे घर में आंदोलनकारियों की मीटिंग हुआ करती थी और बगल में कांग्रेसी का दफ्तर बना दिया गया था और जब भी पुलिस वाले आते थे सभी पोस्टर बैनर कबाड़ कर ले जाते थे अपने साथ में
प्रोफेसर साहब बताते हैं कि आंदोलन के दौरान गांधी जी के आश्रम में उन्हें रहने का मौका मिला गांधी जी के साथ कई बार कई जगहों पर सभाओं में गए उनसे काफी प्रभावित हुए गांधीजी सिर्फ राजनीतिक ही नहीं सामाजिक-आर्थिक तरीकों से लोगों का उत्थान करना चाहते थे, गांधीजी के सबसे प्रिय विनोवा भावे थे विनोद भाव में खासियत यह थी वे कई भाषाओं के जानकार थे, और विनोबा भावे गांधीजी के सबसे प्रिय थे इसलिए आंदोलन के पहला सत्यार्थी बिनोवा भावे को ही बनाया गया उसके बाद जवाहरलाल नेहरू को बनाया गया था, महात्मा गांधी अपने दौर में शराबबंदी के खिलाफ थे, और शराबबंदी के लिए उन्होंने मुहिम चलाया था उधर कस्तूरबा ने भी शराब बंदी और नशा बंदी के खिलाफ मुहिम चलाई थी और कस्तूरबा ने सबसे पहले महिलाओं को एकजुट करने का निर्णय किया, हर घर से महिलाओं को आंदोलन में निकालने वाली पहले कस्तूरबा गांधी थी और बड़े बड़े घर से महिला निकल कर आंदोलन में एकजुट हुई
सिद्धेश्वर प्रसाद बताते हैं कि पटना सचिवालय के झंडा फहराने मे और भी कई लोग लगे थे जिसमे सात शहीद हुए, हमे भी उस दौरान गोली लगी,गोली पीठ से छूकर निकल गई थी


Conclusion: बिहार के नालंदा के रहने वाले प्रोफेसर सिद्धेश्वर प्रसाद आज 95 वर्ष की दहलीज पर पहुंच चुके हैं, आंदोलन के दिनों के कई घटनाओं के गवाह रहे प्रोफेसर साहब आजादी के दिनों में काफी लड़ाइयां लड़ी जब भारत आजाद हुआ तब यह कई विभागों में कई पदों पर मंत्री रहे हैं उसके बाद त्रिपुरा से राज्यपाल बने और वहीं से रिटायर्ड कर अपनी जिंदगी सामाजिक सेवा में बिता रहे हैं,
सिद्धेश्वर प्रसाद ने युवाओं को संदेश दिया कि जब तक आपके अंदर शिक्षा का ज्योत नहीं चलेगा तब तक आप अपनी जिंदगी में खुश नहीं कर सकते हैं इसलिए शिक्षा पर बल पर ही आप आंदोलन और क्रांति का बीज पैदा कर सकते हैं महात्मा गांधी अगर पढ़े लिखे हुए नहीं रहते तो वे दूसरों को शिक्षा का जीवन नहीं जला पाते हैं इसे आज के युवाओं को अपने पढ़ाई के बलबूते ही सब कुछ करने की जरूरत है श्री कृष्ण प्रसाद ने बताया कि आज के आजाद मुल्क में लोग पैसों के लिए खून मचा रखे हैं पैसों को पहली प्राथमिकता देते हैं आज राजनीतिक जीवन में जितने भी नेता है भ्रष्टाचार के आकंठ में डूबते नजर आ रहे हैं हर कोई पैसो के पीछे भागते नजर आ रहा है एक समय था कि हर राजनेता भारत को आजाद कराने के लिए अपने देश के लिए जान देकर काम करते थे समाज में कुछ करने की भावना होती थी लेकिन आज महज एक दिखावा हो गया है यह बहुत ही दुख की बात है आजाद भारत में आज भी कई लोगों के सपने अधूरे रह गए हैं जो हम लोगों ने सपने देखे थे आजाद भारत के आज भी कुछ अधूरे हैं


इंटरव्यू:-प्रोफेसर सिद्धेश्वर प्रसाद, पुर्व राज्यपाल त्रिपुरा


नोट-दस मिन्ट का इंटरव्यू है,आवश्यकता अनुसार उसे छोटा भी किया जा सकता है,डेक्स से अनुरोध होगा की इंटरव्यू सुन कर कुछ अपने से भी स्कृप्ट तैयार कर लेंगे
Last Updated : Aug 11, 2019, 8:37 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.