पटनाः बिहार में कुढनी उपचुनाव का परिणाम आगामी चुनाव में काफी असरदार रहेगा. परिणाम आने के बाद बिहार की राजनीति (Politics Of Bihar) में खिचड़ी पकनी शुरू हो गई है. सुशील मोदी सीएम को इस्तीफा देने के लिए कह रहे हैं. वहीं जगदानंद सिंह का कहना है कि भाजपा सिर्फ एक जीत पर इतरा रही है. ऐसा माना जा रहा है कि इस चुनाव में सीएम नीतीश कुमार की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी. लेकिन परिणाम के बाद तब कुछ साफ है. अब सवाल है कि क्या महागबंधन इस हार को पचा पाएगी.
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जनता की अदालत में गच्चा खा गएः कुढनी चुनाव में सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के पास अपने फैसले को सही साबित करने का एक मौका था. लेकिन जनता की अदालत में गच्चा खा गए. भाजपा ने महागठबंधन के साथ घटक दलों को दूसरी बार उपचुनाव में अपनी ताकत का एहसास करा दिया. बिहार में महागठबंधन की सरकार बड़े बहुमत के साथ काबिज़ हैं. बावजूद उपचुनाव को प्रतिष्ठा का विषय बना लिया था. कुढ़नी उफचुनाव को फतह करने के लिए नीतीश तेजस्वी भी मैदान में थे. हर पंचायत में दोनों दलो के एक विधायक को जिम्मेदारी दी गई थी.
चुनाव के नतीजे कई मायने में मह्वपूर्णः माना जाता है कि उपचुनाव को सत्ताधारी दल इतनी गंभीरता से नहीं लेते हैं. लेकिन लोकसभा चुनाव के पहले संभवतः यह अंतिम चुनाव था. लिहाजा चुनाव के नतीजों के मायने भी अलग थे. उपचुनाव को जीतने के लिए सीएम व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने पूरी ताकत झोंक रखी थी. लेकिन नतीजा उनके उम्मीदों के प्रतिकूल आया. दलों के गठबंधन को भाजपा ने अकेले ही परास्त कर दिया. यह दूसरा मौका था जब महागठबंधन को उपचुनाव में शिकस्त मिली. इसके पहले गोपालगंज सीट पर भी भाजपा ने राजद को शिकस्त दी थी.
"एक जीत से भाजपा को इतराने की जरूरत नहीं है. भाजपा समाज में विभेद पैदा कर चुनाव जीती है. राष्ट्रीय स्तर पर 2 राज्यों में भाजपा को झटका भी लगा है. कार्यकर्ताओं को हतोत्साहित होने की जरूर नहीं है." -जगदानंद सिंह, प्रदेश अध्यक्ष, राजद
जनता का समर्थन नहीं मिलाः चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण था कि एनडीए से अलग होने के बाद पहली बार नीतीश कुमार जनता की अदालत में थे. अपने राजनीतिक वजूद को मजबूत साबित करने के लिए सीएम ने राजद से सीट छीनी थी. लेकिन कुढ़नी में नीतीश कुमार को जनता का समर्थन नहीं मिला. चुनाव के नतीजों से संकेत यह भी मिला कि नीतीश कुमार के फैसले पर जनता ने मुहर नहीं लगाई. अब ऐसी चर्चा है कि आगामी लोकसभा और विधानसभा में इसका असर देखने को मिलेगा.
करो या मरो जैसी स्थितिः कुढ़नी उपचुनाव भाजपा के लिए करो या मरो जैसी स्थिति थी. उपचुनाव में हार भाजपा के लिए मिशन 2024 का माहौल बिगाड़ सकती थी. लिहाजा भाजपा किसी भी सूरत में कुढ़नी को गंवाना नहीं चाहती थी. बिहार भाजपा के तमाम कद्दावर नेताओं ने उपचुनाव को फतह करने के लिए पूरी ताकत झोंक रखी थी. चुनाव के नतीजों के बाद से भाजपा नेता आत्मविश्वास से लबरेज हैं. 2024 और 2025 को फतह करने के दावे भी किए जा रहे हैं.
"अति पिछड़ा वोट बैंक अब नीतीश कुमार के साथ नहीं है. उपचुनाव को जीतने के लिए तेजस्वी यादव ने इमोशनल कार्ड भी खेला लेकिन उसका असर जनता पर नहीं हुआ. नीतीश कुमार को तत्काल पद से इस्तीफा दे देना चाहिए." -सुशील मोदी, राज्यसभा सांसद
प्रधानमंत्री पद को लेकर सवालः चुनाव के नतीजे कई मायनों में महत्वपूर्ण है. एक ओर नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री पद को लेकर उम्मीदवारी को झटका लगा है. वहीं दूसरी ओर महागठबंधन के तथाकथित वोट शेयर के दावों की हवा निकल गई. भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकता की जो मुहिम शुरू हुई थी उस पर भी ग्रहण लगता दिख रहा है. चुनाव के नतीजों के बाद भाजपा नेता अब यह कहने लगे हैं कि भाजपा ही एनडीए है. छोटे दलों पर भाजपा की निर्भरता कम हुई है.
"महागठबंधन में अल्पसंख्यकों की अपेक्षा मरहूम हो रही है. शहाबुद्दीन की पत्नी हिना साहब को तवज्जो नहीं देना महागठबंधन के लिए नुकसानदेह साबित हुआ है. अभी भी वक्त है महागठबंधन के बड़े नेताओं को चेतना चाहिए." -दानिश रिजवान, प्रधान महासचिव, हम
"चुनाव के नतीजे बिहार की राजनीति की दिशा और दशा तय करने वाले हैं. भाजपा की सियासत को बिहार में जहां धार मिली है, वहीं नीतीश कुमार के लिए खतरे की घंटी है. 2024 के चुनाव में जहां भाजपा को बढ़त मिलने के आसार हैं. वहीं महागठबंधन के लिए राहें आसान नहीं है." -कौशलेंद्र प्रियदर्शी, राजनीतिक विशेषज्ञ