पटना: बिहार में लोकतंत्र के महापर्व का सियासत रंग जनहित विकास और लोगों के हित के साथ पहले चरण के मतदान की अंगड़ाई ले रहा है. लोग बिहार में अपने विकास वाली सरकार को चुनेंगे. इन सबके बीच भाजपा जिस नीति पर चलती है, उसकी सबसे मजबूत संस्था आरएएस है. बात करें तो, बिहार चुनाव के पहले नीतिगत तौर पर यही आरएसएस कई ऐसे सवाल खड़ा कर जाती है, जो बिहार के जनमानस के साथ ही देश के लोगों को सोचने के लिए विवश कर देती है.
बिहार में 2015 के विधानसभा चुनाव के दौरान मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा की बात कही थी. बिहार वैसे गरीब राज्यों में आता है, जहां के लोगों के लिए गरीबी सबसे बड़ा अभिशाप है. विकास के लिए छटपटाते बिहार आरक्षण के उस आस को अपने विकास लिए सबसे बड़ा तुरूप का पत्ता समझता है, जिससे उम्मीदें परवान चढ़ती हैं और राजनीति की खेती भी खूब होती है. आरक्षण की समीक्षा को कह कर पिछले चुनाव में मोहन भागवत ने बिहार को एक बार इस बात को सोचने के लिए विवश कर दिया था कि क्या विकास की कोई नई अवधारणा बीजेपी अपने खाते में रखना चाहती है और दूसरे सियासतदानों ने बिहार में इस बात को अलग रंग देकर अपनी राजनीतिक खेती में अपने मनमाफिक पैदावार की फसल काट ली.
अब, जब 2020 में लोकतंत्र का महापर्व पहले चरण के मतदान के साथ शुरू होगा. इसी बीच मोहन भागवत का यह बयान कि चीन से लड़ाई करने से पहले भारत को अपनी सैन्य शक्ति मजबूत कर लेनी चाहिए. इस बयान ने बिहार के माथे पर बल डाल दिया है.
मोहन भागवत का बयान
'भारत को शक्ति एवं व्याप्ति के क्षेत्र में चीन से बड़ा होना चाहिए. इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि चीन की विस्तारवादी प्रकृति से पूरी दुनिया अवगत है. भारत को चीन के खिलाफ बेहतर सैन्य तैयारियां करने की जरूरत है. अब कई देश चीन के सामने खड़े हैं. चीनी घुसपैठ पर भारत की प्रतिक्रिया से चीन सकते में है. चीन की अपेक्षा भारत को अपनी शक्ति एवं दायरा बढ़ाने की आवश्यकता है.'-मोहन भागवत, आरएसएस प्रमुख
कटिहार के रहने वाले कुंदन ओझा ने बिहार रेजिमेंट में भर्ती होकर देश सेवा का संकल्प लिया था. उनके पिता रविशंकर ओझा एक किसान हैं. 2020 में राजनीति की खेती करने वाले लोगों अब हर रंग को चुनाव में ला रहे हैं. कुंदन शहीद होने के 17 दिन पहले एक बेटी के बाप बने थे, जिसका चेहरा भी उन्होंने नहीं देखा था और अब उनकी बेटी अपने बाप को भी कभी नहीं देख पाएगी. उनके पिता अपने बेटे की शहादत के बाद सियासत के जिस चेहरे को देख रहे हैं, उससे उनका कलेजा ही जरूर हाथ में आ गया होगा. क्या बिना तैयारी के ही भारत की सरकार ने हमारे बेटे को जंग के लिए भेज दिया, जो मोहन भागवत के बयान से सामने आ रहा है.
शहीदों में ये सिर्फ कुंदन की ही नहीं, गलवान में शहीद हुए 20 सैनिकों के परिवार का हर एक सदस्य सोचेगा. बिहार के सबसे ज्यादा 13 शहीदों का परिवार सोचेगा और सवाल करेगा. शहीदों में प्रदेश के 16 बिहार रेजीमेंट बटालियन के 12 जवान और जबकि 12 बिहार रेजिमेंट बटालियन के 1 जवान शहीद हुए. इन लोगों ने अपनी शहादत को अपने अभिमान के उस भाव के साथ पूरे देश को समर्पित कर दिया, जिसमें इन की तैयारी इतनी मजबूत थी कि चीन का कांप गया.
अब दीपावली में उन लोगों के घरों में दीप जलेंगे, रंगोली बनेगी, हाथों पर मेहंदी सजेगी, नई साड़ियां आएंगी, मिठाई बांटी जाएंगी. लेकिन गलवान के शहीद इन सिपाहियों को जिन लोगों ने अपने जीवन का साथी बनाया था, इन तमाम चीजों से अलग एक अंतहीन दर्द की कथा लेकर पूरे जीवन अपने हांथ की लकीरोंं में उम्मीदों और यादों के चिराग के भरोसे ही अंधेरे को मिटाऐंगे. जिन हाथों में मेहंदी लगनी थी, अब वह कभी नहीं सजेगी, पिता का साया बेटी को कभी नहीं मिलेगा, बहन की राखी हमेशा अपने भाई की कलाई के लिए तरसती ही रहेगी. इस शहादत पर समीक्षा की बात मोहन भागवत ने कर दी है, सवाल यह उठ रहा है कि सियासत में इस तरह के मुद्दों को जगह मिलती क्यों है और लोग, ऐसे मुद्दों को जगह दे कैसे देते हैं?
मोहन भागवत ने चीन पर आक्रमण से पहले समीक्षा की बात कह दी है. भागवत ने अपने बयान में यह तो जरूर कहा है कि जिस तरीके से भारत ने अपनी प्रतिक्रिया दी है उसे चीन सहमा जरूर है. उसकी गलतफहमी भी दूर हुई है. लेकिन 'भारत को अपने सेना की तैयारी की समीक्षा करनी चाहिए, इसे मजबूत करने की जरूरत है.' सवाल यह उठ रहा है कि मोहन भागवत ने सैन्य तैयारी की व्यवस्था पर जो सवाल उठाया है आखिर ये उन्हें पता कैसे चला? मोहन भागवत यह जान कैसे भूल गए कि राफेल जैसा महान लडाकू विमान भारतीय सैन्य शक्ति का हिस्सा है, दूसरे लड़ाकू विमानों की कोई कमी भारत के पास नहीं है. हमारे सैन्य शक्ति का लोहा पूरा विश्व मानता है. ऐसे में मोहन भागवत को यह पता कैसे चला कि भारत को अपनी सैन्य शक्ति को मजबूत करने की जरूरत है?
आरएसएस के पास ऐसी कौन सी एजेंसी है, जो भारतीय सेना की उस तैयारी को भी माप लेती है कि देश से लड़ने के लिए क्या-क्या तैयारी करनी चाहिए? मोहन भागवत के इस बयान के बाद सवाल उठने लगा है. बिहार इस सवाल को लेकर हतप्रभ है कि गलवान में शहीद बिहार के 13 जवान, जिन्होंने अपने देश की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति दे दी. उनके लिए नीतियां कहां कमजोर पड़ी, जो मोहन भागवत के कहने में इतनी देरी क्यों हुई और मोहन भागवत को नीतियों का पता चलने में इतनी देर क्यों हुई और भागवत की नीति पर चलने वाली भाजपा ने इसे जगह क्यों नहीं दी.
2020 के विधानसभा चुनाव के पहले बिहार वैसी सरकार के हाथ को मजबूत करने की तैयारी में है, जो नीतियां बनाएंगी लेकिन नीतियों पर कमजोर सरकार के लिए जो सवाल आ रहे हैं वह कैसे बनेंगे?
मोहन भागवत इस बयान के बाद बिहार सवाल पूछ रहा है कि शहीदों के परिजनों के पास जो दर्द की अंतहीन कथा है. सियासत उस पर मरहम लगाने के बजाय दर्द ही क्यों देती है. अगर सियासत को पता है कि चीन से लड़ाई के लिए हम तैयार नहीं हैं, तो उसपर ठोस कदम क्यों नहीं उठाया जा रहा है. भारत और चीन के सैन्य कमांडरों की चार बार और रणनीति को लेकर बैठक हुई है. आखिर फैसला क्यों नहीं हो रहा है. और उसमें मोहन भागवत की नीतियों को क्यों नहीं जोड़ा जा रहा है. संघ ने भारत सरकार से सवाल पूछ दिया है कि सेना की तैयारी को मजबूत करना है तो अब दूसरे राजनीतिक दल हिसाब मांगते सकते हैं. सबसे बड़ा सवाल यही है कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को यह कैसे पता चला कि सैन्य तैयारी कमजोर है. आरएसएस की नीति वाली भाजपा कमजोर है या नीतियों को तैयार करने के लिए भाजपा ही कमजोर है. मोहन भागवत के इस बयान की समीक्षा तो भाजपा को कर ही लेनी चाहिए.
2020 के बिहार चुनाव के पहले मोहन भागवत ने जो बयान दिया है उसका सवाल तो हर बिहारी इस सरकार से तो मांगेगा ही कि जिन 13 जवानों ने देश के नाम शहादत दे दी. जिनके पराक्रम का जिक्र खुद पीएम मोदी ने अपने बिहार दौरे के दौरान किया. उनकी शहादत पर अब इस तरह की बयानबाजी क्यों? बहरहाल, राजनीति अपने रंग को चुनावी फिजा में घोर रही है. सियासतदान वादों को जुबान दे रहे हैं. बस उनके दर्द को सुनने वाला कोई नहीं है, जो देश के नाम पर अपनों को शहीद कर अभिमान की थाती लिए बैठे हैं कि मेरे देश का मान हमेशा ऊपर है. मेरे अपनों का बलिदान भी, मेरे देश का सम्मान है.