जर्मनी/पटना: कहने को तो हम सात समंदर पार हैं. विदेशी सरजमीं पर हैं. लेकिन, अपनी मिट्टी की खुशबू को भूले नहीं हैं. गांव का सवेरा और देर शाम तक खुले आसमान के नीचे लुकाछिपी का खेल अब भी जहन में हैं. ये हम नहीं, जर्मनी में रह रहे बिहारियों ने अपने दिल की बात ईटीवी भारत से शेयर की है.
इधर, चुनाव चल रहा है. उधर, उनका भी दिल धड़क रहा है. वो ईटीवी भारत से दिल की बात कह रहे हैं. उनके सपनों का बिहार कैसा हो. इसके लिए सही सियासी रहनुमा चुनने की बात कह रहे हैं. जर्मनी में रह रहे प्रवासी बिहारी जो अपने आप को 'बिहार फ्रेटर्निटी' फोरम का हिस्सा मानते हैं, कोई अलग नहीं है. उनकी भी भारत और बिहार की राजनीति को लेकर अपनी पकड़ और समझ है.
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- अर्सलान इकबाल
- व्यवसाय- सिविल इंजिनियर
- ड्रेज्डेन, जर्मनी
- मूल निवासी- सिवान, बिहार
'लोकतंत्र में चुनाव हमें ताकत देता है ,नई सरकार चुनने की. एक प्रवासी के रूप में हम तकलीफ में होते हैं. बिहार के विकास के लिए बिहार में भी इंटरनेशनल एयरपोर्ट होना चाहिए. आने वाली नई सरकार स्टार्टअप में काम करे, ताकि मैं बिहार अपने वतन वापस आ सकूं.'
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- अनामिका झा, सॉफ्टवेयर इंजिनियर
- व्यवसाय- होममेकर
- म्यूनिक, जर्मनी
- मूल निवासी- पटना, बिहार
'चुनाव को लेकर नई सरकार को लेकर बिहार में शिक्षा के क्षेत्र और रोजगार के क्षेत्र में विकास होना चाहिए. ताकि हमारे बिहार से पलायन रुके और बिहार आइडियल स्टेट बन सके.'
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- स्वाति कश्यप
- व्यवसाय- यूजी स्टूडेंट
- हैनोवर, जर्मनी-
- मूल निवासी- भागलपुर, बिहार
'जो भी पार्टी जीतती है. जो भी सरकार आती है. उनका टारगेट होता है कि वो गरीबों का विकास करें. ये अच्छा है. उन्होंने कहा कि नई सरकार मध्यम वर्गीय लोगों के लिए भी कुछ सोंचे ये उनकी कामना है. आशा करती हूं देश की तरक्की में चार चांद लगे. धन्यवाद'
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- जुल्फेकार अरफी
- व्यवसाय- शोध वैज्ञानिक
- आकन,जर्मनी
- मूल निवासी- खगड़िया, बिहार
'भीड़ में कहीं खो गए हैं हम. उसी तरह से इन चुनावों को देखा जाए, तो लगता है कि हम चुनाव के महत्व को खो चुके हैं. बिहार में कई लोग व्यक्ति विशेष, किसी दल के चयन के बारे में ही सोंचते हैं. लोगों को इन बातों का ध्यान रखना चाहिए कि वो किस तरह के इंसान को वोट कर रहे हैं. मैं स्थिर सरकार की कामना करता हूं. जो भेदभाव ना कर सभी का कल्याण करें. कंधे से कंधा मिलाकर चले. लोगों को भी धर्म, जाति और मजहब से ऊपर उठकर चुनाव करना चाहिए.'
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- सुधांशु झा
- व्यवसाय- सॉफ्टवेयर इंजिनियर
- निरोबग, जर्मनी
- मूल निवासी- वैशाली, बिहार
'आम चुनाव आम की तरह ही दिखता है. युवा प्रतिनिधित्व का अभाव इस चुनाव के लिए कोई उत्साह नहीं दिखाता. पार्टियों ने जिस तरह से जिस तरह से उम्मीदवारों का चयन किया है वो निराशाजनक है. आज बिहार को एक कुशल प्रशासक और दूरदर्शिता वाले प्रतिनिधित्व की आवश्यकता है. जो लोकसभा में बिहार की आवाज बने.'
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- दीपिका सिन्हा
- व्यवसाय- इंजिनियर
- टूटलिंगन, जर्मनी
- मूल निवासी- पटना, बिहार
'इस लोकसभा चुनावों में पिछली बार की तरह ही मजबूत सरकार बने. जो भारत को विश्व में आगे लेकर जाए. आने वाली सरकार से उम्मीद करती हूं कि बिहार के विकास पर ध्यान दें. बिहार विकास के मामले में बाकी राज्यों से पीछे है. बिहार में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है. यहां राज्य में आईटी के क्षेत्र में विकास हो ताकि बिहार का टेलेंट बिहार में ही रहे. शिक्षा के क्षेत्र में विकास हो.'
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- सत्येश शिवम
- व्यवसाय- मैकेनिकल इंजीनियर
- हाइलब्रॉन, जर्मनी
- मूल निवासी- सीतामढ़ी, बिहार
'भारत में जिसकी सरकार बने वो एक मजबूत सरकार होनी चाहिए. भारत अभी कमजोर सरकार का बोझ नहीं उठा सकता. बिहार के संदर्भ में गन्ना किसानों का मुद्दा अहम है. उनको सही मूल्य नहीं मिल पा रहा है. केंद्र में बनने वाली नई सरकार से आशा करता हूं कि वो इस दिशा में ध्यान देगी.'
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- समृद्धि
- व्यवसाय- लॉ एंड इकोनॉमिक्स स्टूडेंट
- हैम्बर्ग, जर्मनी
- मूल निवासी- सिवान, बिहार
'मुझे लगता है कि देश में जो भी पार्टी आए, वो देश के हर नागरिक को एक नजर से देखे. धर्म, जाति, लिंग और वर्ग के आधार पर किए जाने वाले भेदभाव को खत्म करना सरकार की जिम्मेदारी है. सामाजिक क्षेत्रों में धन की कमी हुई है. कोई भी देश तरक्की नहीं कर सकता अगर वो शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश ना करे. अभी के समय में दोनों की हालत दुखद है.'
'बिहार जो एक समय में शिक्षा का केंद्र हुआ करता था, आज उसी बिहार की हालत दयनीय है. शिक्षा संस्थानों के हालत जर्जर है. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की हालत बुरी है. प्रतिभा पलायन बिहार की तरक्की में सबसे बड़ी बाधा है. सरकार को रोजगार के नए अवसर लाने चाहिए, ताकि युवा अपना राज्य छोड़कर कहीं ना जाएं.'