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सेनारी नरसंहार पर HC के फैसले को SC में दी जा सकती है चुनौती, त्रुटियों को बनाया जायेगा आधार

सेनारी नरसंहार का फैसला आ चुका है. पटना हाईकोर्ट के मुताबिक कोई भी नरसंहार में शामिल नहीं था. लेकिन अब एडवोकेट जनरल ललित किशोर ने कहा है कि इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है. उन्होंने बताया कि कोर्ट ने इन्हें संदेह का लाभ देते हुए बरी किया है. पढ़ें रिपोर्ट.

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Published : May 22, 2021, 2:18 PM IST

सेनारी नरसंहार को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
सेनारी नरसंहार को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

पटनाः सेनारी नरसंहार में सभी 14 आरोपियों को पटना हाईकोर्ट ने बरी करने का आदेश शुक्रवार को ही दे दिया है. इसको लेकर एडवोकेट जनरल ललित किशोर ने राज्य सरकार को सलाह दी है कि इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है. 14 दोषियों में से निचली अदालत ने 11 को फांसी और 3 आरोपियों को उम्र कैद की सजा दी थी.

यह भी पढ़ें- कहानी सेनारी हत्याकांड की, जब 6 लोग कतार बना गर्दनें रेत रहे थे

महाधिवक्ता ने निकाला फाइट करने का आधार
आज राज्य सरकार के महाधिवक्ता ललित किशोर ने बताया कि दोषी को बरी किए जाने का आदेश है. उसमें कई त्रुटियां हैं. उन्होंने बताया कि कोर्ट ने इन्हें संदेह का लाभ देते हुए बरी किया है. गवाहों और सबूतों में संदेह इसका आधार रहा है. गवाहों द्वारा अभियुक्तों की पहचान को संदेह के दायरे में रखा गया. सभी लोग एक दूसरे को पहचानते थे. इसलिए गवाहों द्वारा इनकी पहचान को महत्त्व दिया जाना चाहिए था. उन्होंने बताया कि उन्हें पहचानने में पर्याप्त रोशनी नहीं होने की बात कही गई. जबकि टॉर्च की रोशनी में जाने-पहचाने लोगों को पहचानना मुश्किल नहीं होता है. साथ ही तीन चार लोगों द्वारा इन लोगों की पहचान को संदेह का आधार नहीं माना जा सकता है.

21 मई को हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला
बता दें कि पटना हाईकोर्ट ने शुक्रवार को जहानाबाद जिले के बहुचर्चित सेनारी नरसंहार के सभी 13 दोषियों को बरी कर दिया. जस्टिस अश्वनी कुमार सिंह और जस्टिस अरविंद श्रीवास्तव की खंडपीठ ने लम्बी सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था. जिसे शुक्रवार को सुनाया गया.

इस मामले में बचाव पक्ष के वकील अंशुल राज ने कहा, "इस मामले में कोई चश्मदीद गवाह नहीं है, जो सेनारी गांव में हुए नरसंहार के मामले में मेरे मुवक्किलों के शामिल होने की पुष्टि कर सके. अभियोजन पक्ष के वकील ने उन्हें दोषी ठहराने के लिए कोई गवाह या वैध सबूत पेश नहीं किया इसलिए उच्च न्यायालय ने उन्हें तत्काल प्रभाव से बरी कर दिया."

यह भी पढ़ें- वैशाली में ब्लैक फंगस से मरने वाली महिला की अंतिम यात्रा में लगे 'नीतीश सरकार मुर्दाबाद' के नारे

74 लोगों के खिलाफ चार्जशीट
इस मामले में पहली चार्जशीट साल 2002 में 74 लोगों के खिलाफ दायर की गई थी. हालांकि, इनमें से 18 लोगों के फरार होने के साथ बाकी 56 व्यक्तियों के खिलाफ ही मुकदमा चलाया गया था.

क्या था निचली अदालत का फैसला
इस नरसंहार के 17 साल बाद जहानाबाद की कोर्ट ने 2016 में इस पर अपना फैसला सुनाया था. जिसमे उन्होंने 10 दोषियों को मौत की सजा सुनाई थी. इसके अलावा तीन लोगों को उन्होंने उम्रकैद की सजा सुनाई थी. इसके अलावा उन पर एक-एक लाख का जुर्माना भी लगाया था.उस दौरान इस केस के दो दोषी फरार चल रहे थे. इसके अलावा निचली अदालत ने पीड़ितों के परिजनों को 5-5 लाख रुपये का मुआवजा देने का भी आदेश दिया था. बता दें कि 2016 में निचली अदालत ने 20 आरोपियों को पहले ही बरी कर दिया था.

जहानाबाद के लिए काली थी रात
18 मार्च 1999 की रात प्रतिबंधित नक्सली संगठन के उग्रवादियों ने सेनारी गांव को चारों तरफ से घेर लिया था. इसके बाद एक जाति विशेष के 34 लोगों को उनके घरों से जबरन निकालकर ठाकुरवाड़ी के पास ले जाया गया. जहां बेरहमी से गला रेत कर उनकी हत्या कर दी गई थी.

यह भी पढ़ें- लाशों की हेराफेरी में फंसे बिहार सरकार के अधिकारी, हिसाब-किताब में जुटे

वकीलों ने पेश की थी दलीलें
निचली अदालत के फैसले की पुष्टि के लिए पटना हाईकोर्ट में राज्य सरकार की ओर से डेथ रेफरेंस दायर किया गया. जबकि दोषियों- द्वारिका पासवान, बचेश कुमार सिंह, मुंगेश्वर यादव तथा अन्य की ओर से क्रिमिनल अपील दायर कर निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता सुरिंदर सिंह, पटना हाईकोर्ट के वरीय अधिवक्ता कृष्णा प्रसाद सिंह, अधिवक्ता राकेश सिंह, भास्कर शंकर सहित अनेक वकीलों ने पक्ष-विपक्ष की ओर से अपनी दलीलें पेश कीं. सभी पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया था.

जहानाबाद सेनारी नरसंहार: अब तक

  • 18 मार्च 1999 में यह नरसंहार हुआ था, जिसमें 34 लोगों की हत्या हुई थी.
  • साल 2002 : अनुसंधान के उपरांत पुलिस द्वारा 88 लोगों के विरुद्ध आरोप पत्र दाखिल, 32 फरार.
  • 15 मई 2002 को 45 अभियुक्तों पर न्यायालय में आरोप गठित. दो की मौत, पांच फरार.
  • 27 अक्टूबर 2016 को 15 अभियुक्तों को दोषी करार दिया गया, जबकि साक्ष्य के अभाव में 23 को रिहा कर दिया गया.
  • 15 नवंबर 2016 : निचली अदालत द्वारा सजा की बिंदु पर सुनवाई पूरी. जहानाबाद जिला अदालत ने फैसला सुनाया. 10 लोगों को फांसी और 3 लोगों को उम्रकैद की सजा.
  • 18 नवंबर 2016 : इस घटना के एक अन्य अभियुक्त दुखन राम की अलग से सुनवाई चल रही थी. उसे मृत्युदंड की सजा सुनाई गई. जबकि इस घटना के प्रमुख अभियुक्त दुल्ली राम भी सुनवाई के दौरान न्यायालय में उपस्थित नहीं हो सका.
  • इसके बाद निचली अदालत के फैसले की पुष्टि के लिए पटना हाईकोर्ट में राज्य सरकार की ओर से डेथ रेफरेंस दायर किया गया.
  • दोषी द्वारिका पासवान, मुंगेश्वर यादव, बचेश कुमार सिंह व अन्य की ओर से क्रिमिनल अपील दायर कर निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी गई थी.
  • शुक्रवार को कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए सभी 13 दोषियों को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया.

यह भी पढ़ें- पटना हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, 1999 सेनारी नरसंहार के सभी 13 दोषी बरी

पटनाः सेनारी नरसंहार में सभी 14 आरोपियों को पटना हाईकोर्ट ने बरी करने का आदेश शुक्रवार को ही दे दिया है. इसको लेकर एडवोकेट जनरल ललित किशोर ने राज्य सरकार को सलाह दी है कि इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है. 14 दोषियों में से निचली अदालत ने 11 को फांसी और 3 आरोपियों को उम्र कैद की सजा दी थी.

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महाधिवक्ता ने निकाला फाइट करने का आधार
आज राज्य सरकार के महाधिवक्ता ललित किशोर ने बताया कि दोषी को बरी किए जाने का आदेश है. उसमें कई त्रुटियां हैं. उन्होंने बताया कि कोर्ट ने इन्हें संदेह का लाभ देते हुए बरी किया है. गवाहों और सबूतों में संदेह इसका आधार रहा है. गवाहों द्वारा अभियुक्तों की पहचान को संदेह के दायरे में रखा गया. सभी लोग एक दूसरे को पहचानते थे. इसलिए गवाहों द्वारा इनकी पहचान को महत्त्व दिया जाना चाहिए था. उन्होंने बताया कि उन्हें पहचानने में पर्याप्त रोशनी नहीं होने की बात कही गई. जबकि टॉर्च की रोशनी में जाने-पहचाने लोगों को पहचानना मुश्किल नहीं होता है. साथ ही तीन चार लोगों द्वारा इन लोगों की पहचान को संदेह का आधार नहीं माना जा सकता है.

21 मई को हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला
बता दें कि पटना हाईकोर्ट ने शुक्रवार को जहानाबाद जिले के बहुचर्चित सेनारी नरसंहार के सभी 13 दोषियों को बरी कर दिया. जस्टिस अश्वनी कुमार सिंह और जस्टिस अरविंद श्रीवास्तव की खंडपीठ ने लम्बी सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था. जिसे शुक्रवार को सुनाया गया.

इस मामले में बचाव पक्ष के वकील अंशुल राज ने कहा, "इस मामले में कोई चश्मदीद गवाह नहीं है, जो सेनारी गांव में हुए नरसंहार के मामले में मेरे मुवक्किलों के शामिल होने की पुष्टि कर सके. अभियोजन पक्ष के वकील ने उन्हें दोषी ठहराने के लिए कोई गवाह या वैध सबूत पेश नहीं किया इसलिए उच्च न्यायालय ने उन्हें तत्काल प्रभाव से बरी कर दिया."

यह भी पढ़ें- वैशाली में ब्लैक फंगस से मरने वाली महिला की अंतिम यात्रा में लगे 'नीतीश सरकार मुर्दाबाद' के नारे

74 लोगों के खिलाफ चार्जशीट
इस मामले में पहली चार्जशीट साल 2002 में 74 लोगों के खिलाफ दायर की गई थी. हालांकि, इनमें से 18 लोगों के फरार होने के साथ बाकी 56 व्यक्तियों के खिलाफ ही मुकदमा चलाया गया था.

क्या था निचली अदालत का फैसला
इस नरसंहार के 17 साल बाद जहानाबाद की कोर्ट ने 2016 में इस पर अपना फैसला सुनाया था. जिसमे उन्होंने 10 दोषियों को मौत की सजा सुनाई थी. इसके अलावा तीन लोगों को उन्होंने उम्रकैद की सजा सुनाई थी. इसके अलावा उन पर एक-एक लाख का जुर्माना भी लगाया था.उस दौरान इस केस के दो दोषी फरार चल रहे थे. इसके अलावा निचली अदालत ने पीड़ितों के परिजनों को 5-5 लाख रुपये का मुआवजा देने का भी आदेश दिया था. बता दें कि 2016 में निचली अदालत ने 20 आरोपियों को पहले ही बरी कर दिया था.

जहानाबाद के लिए काली थी रात
18 मार्च 1999 की रात प्रतिबंधित नक्सली संगठन के उग्रवादियों ने सेनारी गांव को चारों तरफ से घेर लिया था. इसके बाद एक जाति विशेष के 34 लोगों को उनके घरों से जबरन निकालकर ठाकुरवाड़ी के पास ले जाया गया. जहां बेरहमी से गला रेत कर उनकी हत्या कर दी गई थी.

यह भी पढ़ें- लाशों की हेराफेरी में फंसे बिहार सरकार के अधिकारी, हिसाब-किताब में जुटे

वकीलों ने पेश की थी दलीलें
निचली अदालत के फैसले की पुष्टि के लिए पटना हाईकोर्ट में राज्य सरकार की ओर से डेथ रेफरेंस दायर किया गया. जबकि दोषियों- द्वारिका पासवान, बचेश कुमार सिंह, मुंगेश्वर यादव तथा अन्य की ओर से क्रिमिनल अपील दायर कर निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता सुरिंदर सिंह, पटना हाईकोर्ट के वरीय अधिवक्ता कृष्णा प्रसाद सिंह, अधिवक्ता राकेश सिंह, भास्कर शंकर सहित अनेक वकीलों ने पक्ष-विपक्ष की ओर से अपनी दलीलें पेश कीं. सभी पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया था.

जहानाबाद सेनारी नरसंहार: अब तक

  • 18 मार्च 1999 में यह नरसंहार हुआ था, जिसमें 34 लोगों की हत्या हुई थी.
  • साल 2002 : अनुसंधान के उपरांत पुलिस द्वारा 88 लोगों के विरुद्ध आरोप पत्र दाखिल, 32 फरार.
  • 15 मई 2002 को 45 अभियुक्तों पर न्यायालय में आरोप गठित. दो की मौत, पांच फरार.
  • 27 अक्टूबर 2016 को 15 अभियुक्तों को दोषी करार दिया गया, जबकि साक्ष्य के अभाव में 23 को रिहा कर दिया गया.
  • 15 नवंबर 2016 : निचली अदालत द्वारा सजा की बिंदु पर सुनवाई पूरी. जहानाबाद जिला अदालत ने फैसला सुनाया. 10 लोगों को फांसी और 3 लोगों को उम्रकैद की सजा.
  • 18 नवंबर 2016 : इस घटना के एक अन्य अभियुक्त दुखन राम की अलग से सुनवाई चल रही थी. उसे मृत्युदंड की सजा सुनाई गई. जबकि इस घटना के प्रमुख अभियुक्त दुल्ली राम भी सुनवाई के दौरान न्यायालय में उपस्थित नहीं हो सका.
  • इसके बाद निचली अदालत के फैसले की पुष्टि के लिए पटना हाईकोर्ट में राज्य सरकार की ओर से डेथ रेफरेंस दायर किया गया.
  • दोषी द्वारिका पासवान, मुंगेश्वर यादव, बचेश कुमार सिंह व अन्य की ओर से क्रिमिनल अपील दायर कर निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी गई थी.
  • शुक्रवार को कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए सभी 13 दोषियों को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया.

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