पटना: शेल्टर होम कांड मामले में सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में दोषी नौकरशाहों के खिलाफ कार्रवाई करने की सिफारिश की है. अधिकारियों पर कार्रवाई की कवायद शुरू होने के बाद प्रदेश में सियासी बयानबाजी भी शुरू हो चुकी है. इसको लेकर राजद के प्रदेश प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा, 'बालिका गृह कांड नीतीश सरकार के दामन पर काला धब्बा है.'
'कई सफेदपोशों को बचाया जा रहा'
राजद नेता मृत्युंजय तिवारी ने नीतीश सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि शेल्टर होम मामला बिहार सरकार पर एक काला धब्बा है. इस मामले में सरकार अभी भी कई सफेदपोशों को बचाने में जुटी हुई है. उन्होने कहा कि न्यायालय का जो भी आदेश है, उसका राजद स्वागत करता है. लेकिन इस कांड के जो भी मुख्य दोषी हैं, उनपर कठोर कार्रवाई होनी चाहिए.
'तेजस्वी लगातार कर रहे कार्रवाई की मांग'
मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि हमारे नेता तेजस्वी यादव इस कांड को लेकर काफी गंभीर हैं. वे हमेशा से ही इस मुद्दे को उठाते रहे हैं और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते रहे हैं. साक्ष्य के आधार पर सफेदपोशों पर भी कार्रवाई होनी. बिहार सरकार अपने दामन को साफ रखने के लिए सफेदपोशों को बचाने का काम कर रही है, जो कि गलत है.
क्या है मामला?
बता दें कि शेल्टर होम कांड मामले में सीबीआई ने उच्चतम न्यायालय को बताया है कि केवल दो मामलों को छोड़कर बिहार के 17 आश्रयगृहों पर लगे आरोपों की जांच पूरी हो गई है. इन शेल्टर होम पर यौन और शारीरिक उत्पीड़न के आरोपों के मामले में सीबीआई ने जांच पूरी कर ली है. कुछ मामले में डीएम समेत दोषी लोकसेवकों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई करने की सिफारिश की गई है.
ये भी पढ़ें- PM मोदी ने जाना रघुवंश प्रसाद सिंह का स्वास्थ्य, परिजनों से की फोन पर बात
'बिहार सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट'
सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से सिफारिश करते हुए कहा है कि कई मामलों में आश्रयगृह संचालित कर रहे एनजीओ और लोकसेवकों की घोर लापरवाही का पता चला है. दोषी सरकारी अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई किए जाने, एनजीओ का पंजीकरण रद्द करने और अधिकारियों को ब्लैक लिस्टेट करने की सिफारिश संबंधी रिपोर्ट बिहार सरकार को सौंपी गई है.
2018 से चल रही जांच
सीबीआई ने दायर याचिका में कहा है कि मुजफ्फरपुर और मोतिहारी में आश्रय गृहों के मामले में जांच अभी जारी है. 13 मामलों में सक्षम अदालतों में अंतिम रिपोर्ट जमा की जा चुकी हैं. 'टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस' (टीआईएसएस) की रिपोर्ट में बिहार के इन आश्रयगृहों में शारीरिक और यौन उत्पीड़न किए जाने के आरोप लगाए गए थे. जिसके बाद शीर्ष अदालत ने नवंबर 2018 में सीबीआई से इन आरोपों की जांच करने को कहा था.