पटनाः बिहार में जातीय जनगणना (Caste Census) पर सियासत जारी है. बिहार सरकार में शामिल महत्वपूर्ण दल जदयू (JDU) के साथ कई विपक्षी पार्टियों के सुर आपस में मिल रहे है. इस बीच केन्द्र में मंत्री बनने के बाद पटना मंगलवार को पटना लौटे जदयू के पूर्व अध्यक्ष आरसीपी सिंह (RCP) के बयान से सियासी पारा हाई हो गया है.
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जातीय जनगणना पर मचे सियासी बवाल पर पहले तो आरसीपी सिंह ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सात निश्चय को याद दिलाया और मॉडल को समझाया. इसके बाद उन्होंने जनगणना पर अपना व्याख्यान दिया. उन्होंने कहा कि 'सेंसस का काम गृह मंत्रालय करता है. केंद्र सरकार में 1948 में एक्ट बना और ये उनका ही काम है.'
आरसीपी सिंह ने कहा, 2011 में कांग्रेस की सरकार थी तो मनमोहन सिंह की सरकार ने सोशल इकोनॉमी सर्वे कराया था और ये उनके गृह मंत्रालय ने नहीं, उनके ग्राम विकास मंत्रालय ने कराया जो सफल नहीं था. वहीं उन्होंने यूपी का उदाहरण देते हुए कहा कि 1994 में वहां भी पिछड़ी जातियों का सर्वे हुआ था. फिर कर्नाटक में भी हुआ. बहुत सारे राज्यों ने खुद सर्वे कराया है. लेकिन हमारे नेता न्याय के साथ विकास कर रहे हैं.
केन्द्रीय मंत्री ने आग कहा कि एक समय में जातीय जनगणना की मांग इसलिए ज्यादा होती थी, क्योंकि देश में आरक्षण एक अहम मुद्दा था. संविधान में आबादी के हिसाब से आरक्षण देने का जिक्र है. इसलिए एसी-एसटी जातियों की काउंटिंग होती थी. बाद में जब पिछड़ी जाति में आरक्षण आया तो उसमें क्रीमी लेयर आया और जो ऊपर थे, उन्हें आरक्षण नहीं मिला.
"हमारे नेता (नीतीश कुमार) का सात निश्चय देशभर का पहला ऐसा प्रोग्राम है जो देश भर में सभी जाति और सभी धर्म को शामिल करता है. अब स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड को देखें तो किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया गया. हमारे नेता ने जो मॉडल बनाया उसमें समावेशी विकास की बात होती है."- आरसीपी सिंह, केन्द्रीय मंत्री
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आरसीपी सिंह का यह बयान न तो जातीय जनगणना की मांग को खारिज करता है और न हीं पूरा समर्थन. क्योंकि वे एक तरफ पार्टी की जातीय जनगणना की मांग का समर्थन करते हैं, वहीं दूसरी तरफ सात निश्चय जैसी योजनाओं का जिक्र. फिर हवाला देते हैं कि इस मॉडल के तहत किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जाता है. आरसीपी सिंह के इस स्टैंड पर अब सवाल उठने लगे हैं कि क्या वे बिहार में जातीय जनगणना का समर्थन नहीं करते हैं?