पटना: पुलिसिंग के कार्य को उत्कृष्ट ढंग से अंजाम देने के लिए प्रशिक्षण बहुत ही अनिवार्य है. पुलिसकर्मी प्रशिक्षण (Police Training In Bihar) के दौरान जितना पसीना बहाएंगे, उतना ही कर्तव्य निर्वहन के समय खून बहने की संभावना कम होगी. बिहार पुलिस ट्रेनिंग (Bihar Police Training) पर पहले की तुलना में ज्यादा फोकस कर रही है.
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जवान से लेकर दारोगा, डीएसपी की ट्रेनिंग हो इसके लिए न सिर्फ योजना तैयार की गई है बल्कि उसे जमीन पर उतारा जा रहा है. पहले जहां बिहार में पुलिस कर्मियों को ट्रेनिंग के दौरान ही विधि व्यवस्था के कामों में लगाया जाता था. अब उसमें परिवर्तन किया गया है. जब तक पुलिसकर्मियों की बेसिक ट्रेनिंग पूरी नहीं हो जाती, तब तक उन्हें किसी भी प्रकार की ड्यूटी में नहीं लगाया जाएगा. जिस वजह से पंचायत चुनाव के दौरान भी ट्रेनिंग ले रहे 11000 पुलिस कर्मियों को चुनाव में नहीं लगाया गया है.
इसके अलावा बिहार पुलिस के चुनिंदा कर्मियों को स्पेशल टास्क फोर्स की ट्रेनिंग के लिए अर्धसैनिक बल के सीआरपीएफ कैंप में भी ट्रेनिंग दिलवाई जा रही है. बिहार देश का पहला ऐसा राज्य बना है जहां बिहार पुलिस महिला कमांडो ने सीआरपीएफ कैंप में ट्रेनिंग लिया है.
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डीजी ट्रेनिंग आलोक राज की माने तो बिहार पुलिस अपने पुलिस कर्मियों की ट्रेनिंग में लगातार उन्नयन कर रही है. ट्रेनिंग के दौरान पुलिस कर्मियों की क्षमता बढ़ाने एवं उन्हें अच्छा पुलिसकर्मी बनाने के लिए हर तरह की ट्रेनिंग दी जा रही है. यहां तक कि कई पदों पर पुलिसकर्मियों के प्रमोशन के लिए भी ट्रेनिंग अनिवार्य कर दिया गया है.
दरअसल बिहार पुलिस में हाल में ही 11000 से ज्यादा सिपाही की नियुक्ति हुई है और इनकी अगस्त में ही ट्रेनिंग शुरू हुई है. पुलिस मुख्यालय द्वारा बनाई गई नीति के अनुसार ट्रेनिंग के दौरान विधि व्यवस्था की ड्यूटी में इन्हें तैनात नहीं किया जा रहा है. इसका मकसद ट्रेनिंग पर फोकस करना और बेहतर फोर्स तैयार करना है.
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जिस वजह से इन पुलिसकर्मियों को पंचायत चुनाव में प्रशिक्षु के तौर पर ड्यूटी में नहीं लगाया गया है, जबकि पंचायत चुनाव में बड़े पैमाने पर पुलिस फोर्स की आवश्यकता है. पहले बड़े मौकों पर खासकर पर्व त्योहार के अवसर पर विधि व्यवस्था की ड्यूटी में प्रशिक्षु जवानों को भी लगाया जाता था, जिससे प्रशिक्षण की अवधि बढ़ जाती थी. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा.
पुलिस मुख्यालय के डीजी ट्रेनिंग आलोक राज ने ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान बताया कि पुलिस कर्मियों की ट्रेनिंग में पहले की तुलना में काफी बदलाव किया गया है. अब इनडोर और आउटडोर ट्रेनिंग कराई जा रही है. फिजिकल के साथ-साथ ज्ञानवर्धन जानकारी भी इन्हें दी जा रही है. ताकि पुलिसकर्मी जब फील्ड में जाएं तो उन्हें हर तरह का नॉलेज हो.
आउटडोर में पुलिस कर्मियों की क्षमता बढ़ाने के लिए उन्हें योग्य पीटी बैटल ऑप्टिकल कोर्स इसके साथ-साथ फील्ड क्राफ्ट की नॉलेज बढ़ाने के लिए जीपीएस रीडिंग मैप रीडिंग और अत्याधुनिक हथियार के द्वारा प्रशिक्षण दिलवाया जा रहा है. इसके अलावे इंडोर ट्रेनिंग में साइबर क्राइम मानवाधिकार से संबंधित क्राइम से जुडी नॉलेज उन्हें दी जा रही है.
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बिहार में बेहतर पुलिसिंग की जा सके इसको लेकर नए प्रशिक्षु सिपाही चाहे वह पुरुष हो या महिला, उन्हें लॉ की जानकारी के साथ-साथ हथियार की सही जानकारी जब तक नहीं होगी तब तक उन्हें फील्ड में नहीं उतारा जाएगा. क्योंकि इसमें असफल होने की संभावना ज्यादा होती है.
"पहले कहीं ना कहीं पुलिसकर्मियों की कमी के वजह से उन्हें विधि व्यवस्था के ड्यूटी में लगाया जाता था. परंतु अब बिहार पुलिस में पुलिस कर्मियों की कमी नहीं है. प्रत्येक वर्ष लगभग 10000 पुलिसकर्मी बहाल हो रहे हैं. ऐसे में उन्हें प्रशिक्षित करने के बाद ही बेहतर पुलिसिंग के लिए उन्हें फील्ड उतारा जाएगा."- आलोक राज, डीजी ट्रेनिंग
आपको बता दें कि बिहार पुलिस में सिपाही का प्रशिक्षण 270 दिनों का होता है. इस दौरान इनडोर और आउटडोर ट्रेनिंग होती है. जिसमें पीटी परेड और फायरिंग के अलावा विभिन्न विषयों पर प्रशिक्षण दिया जाता है. जिस वजह से पुलिस मुख्यालय ने नीतिगत निर्णय लिया है कि प्रशिक्षु को ट्रेनिंग के दौरान किसी अन्य ड्यूटी में नहीं लगाया जाएगा. इस पर सख्ती से अमल भी किया जा रहा है.