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विधानसभा हंगामा: पुलिस ने पार की थी 'लक्ष्मण रेखा', मुख्यमंत्री ने स्पीकर के पाले में डाली गेंद

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Published : Mar 28, 2021, 9:53 PM IST

23 मार्च का दिन बिहार विधानसभा के इतिहास के लिए काला दिन माना जाएगा. जिस तरीके की घटना बिहार विधानसभा में हुई उसने बिहार की छवि को पूरे देश में प्रभावित किया. विधानसभा परिषद को पुलिस ने अपने सुरक्षा घेरे में लिया. लेकिन किसकी इजाजत से पुलिस सदन के अंदर दाखिल हुई? इसे लेकर सियासी संग्राम छिड़ गया है. देखिए ये रिपोर्ट.

पटना
पटना

पटना: बिहार विधानसभा के इतिहास में 23 मार्च का दिन काले दिन की तरह दर्ज हो गया. विधायकों ने जिस तरीके का आचरण किया और उसके बाद जो कार्रवाई हुई उससे बिहार की छवि राष्ट्रीय स्तर पर खराब हुई. अति तो तब हो गई जब बिहार पुलिस के जवानों को सदन में जाने की इजाजत दे दी गई.

ये भी पढ़ें- 100 साल के इतिहास में ना भूलने वाला दर्द दे गया है बिहार विधानसभा का बजट सत्र

पुलिसकर्मियों ने लांघी सीमा
विधानसभा के नियम के मुताबिक सफेद रेखा के पार पुलिसकर्मी नहीं जा सकते हैं और जो लोग जाते हैं उनके लिए सदन से पहले नोटिफिकेशन जारी किया जाता है और उन्हें मार्शल का दर्जा दिया जाता है. विपक्षी सदस्यों के हंगामे के बाद बिहार पुलिस को विधानसभा परिसर में बुलाया गया. बड़ी संख्या में महिला पुलिस भी शामिल थी और सदन की कार्यवाही शुरू होने के लिए पुलिसकर्मियों को सदन में जाना पड़ा और जबरन विधायकों को बाहर निकाला गया.

किसने दी इजाजत ?
किसने दी इजाजत ?

हंगामे पर छिड़ा सियासी संग्राम
अब सवाल ये उठ रहा है कि पुलिसकर्मी किसकी इजाजत से सदन के अंदर दाखिल हुए थे. सीएम नीतीश कुमार ने गेंद बिहार विधानसभा अध्यक्ष के पाले में डाल दी है. बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय सिन्हा ने भी दोषी अधिकारियों को चिन्हित करने की कार्रवाई शुरू कर दी है.

बिहार विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने कहा कि अध्यक्ष की कुर्सी सर्वोपरि होती है. लेकिन, सरकार में बैठे लोग अध्यक्ष की कुर्सी को चुनौती दे रहे हैं और उंगली दिखा कर बात की जा रही है.

ये भी पढ़ें- क्या है बिहार सशस्त्र पुलिस बल विधेयक 2021, जिस पर मचा है बवाल

''23 मार्च का दिन बिहार के लोकतांत्रिक इतिहास के लिए काला दिन माना जाएगा. जब सशस्त्र पुलिस बल से संबंधित विधेयक का विरोध विपक्ष कर रही थी, तब सरकार को उनके साथ जबरदस्ती करने की कोई जरूरत नहीं थी. सरकार को ये भी स्पष्ट करना चाहिए कि सदन के अंदर पुलिसकर्मी किसकी इजाजत से दाखिल हुए थे और जिस किसी ने पुलिसकर्मियों को इजाजत दी थी उसे सामने आना चाहिए''- उदय नारायण चौधरी, पूर्व अध्यक्ष, बिहार विधानसभा

विनोद शर्मा, भाजपा प्रवक्ता
विनोद शर्मा, भाजपा प्रवक्ता

''23 मार्च को विधानसभा में पुलिस को इसलिए सख्ती दिखानी पड़ी थी कि राजद और माले के लोगों ने लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन किया था और लगातार वो गुंडागर्दी पर उतर आए थे. विधानसभा अध्यक्ष ने दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दे दिए हैं, लेकिन विपक्ष को भी मर्यादा का ख्याल रखना चाहिए''- विनोद शर्मा, भाजपा प्रवक्ता

ये भी पढ़ें- पुलिस विधेयक से किसी को डरने की जरूरत नहीं, सिर्फ मिलिट्री की जगह नाम हुआ 'विशेष सशस्त्र': पूर्व DGP

''सरकार और विपक्ष दोनों को लोकतांत्रिक मर्यादा का ख्याल रखना चाहिए. अगर विपक्ष हंगामा कर रही थी, तो सरकार दूसरे तरीके से भी निपट सकती थी और विपक्ष विरोध पर आमदा थी तो सरकार भी मामले को प्रवर समिति या स्टैंडिंग कमिटी में भेज सकती थी. लेकिन, ऐसा नहीं हुआ दोनों ओर से टकराव की स्थिति पैदा की गई. जिस तरीके से पुलिसकर्मी अंदर दाखिल हुए वह भी लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है''- डॉ.संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

देखिए ये रिपोर्ट

बता दें कि मंगलवार को बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस विधेयक 2021 सदन में पेश किया गया. काफी हंगामे के बीच उसी दिन सदन से विधेयक को पास करा लिया गया. विपक्ष की ओर से लगातार इस बिल का विरोध किया जा रहा है. बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस बिल को लेकर सदन में 2 दिनों से जबरदस्त हंगामा देखने को मिला. विधानसभा में तो ऐतिहासिक हंगामा हुआ और पुलिस बल को विधानसभा के अंदर तक बुलाना पड़ा. शुक्रवार को विधान परिषद में भी विपक्ष ने जबरदस्त हंगामा किया. इस दौरान विपक्ष के सदस्यों की गैर मौजूदगी में ही इस बिल को पारित करा लिया गया.

ये भी पढ़ें- 'केवल ऐतिहासिक स्थलों, एयरपोर्ट और मेट्रो स्टेशन पर लागू होगा पुलिस विधेयक'

ये भी पढ़ें- CM नीतीश ने सदन में यूं समझाया क्या है 'बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस विधेयक 2021'

ये भी पढ़ें- सशस्त्र पुलिस बिल को लेकर विपक्ष को क्यों है आपत्ति!

पटना: बिहार विधानसभा के इतिहास में 23 मार्च का दिन काले दिन की तरह दर्ज हो गया. विधायकों ने जिस तरीके का आचरण किया और उसके बाद जो कार्रवाई हुई उससे बिहार की छवि राष्ट्रीय स्तर पर खराब हुई. अति तो तब हो गई जब बिहार पुलिस के जवानों को सदन में जाने की इजाजत दे दी गई.

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पुलिसकर्मियों ने लांघी सीमा
विधानसभा के नियम के मुताबिक सफेद रेखा के पार पुलिसकर्मी नहीं जा सकते हैं और जो लोग जाते हैं उनके लिए सदन से पहले नोटिफिकेशन जारी किया जाता है और उन्हें मार्शल का दर्जा दिया जाता है. विपक्षी सदस्यों के हंगामे के बाद बिहार पुलिस को विधानसभा परिसर में बुलाया गया. बड़ी संख्या में महिला पुलिस भी शामिल थी और सदन की कार्यवाही शुरू होने के लिए पुलिसकर्मियों को सदन में जाना पड़ा और जबरन विधायकों को बाहर निकाला गया.

किसने दी इजाजत ?
किसने दी इजाजत ?

हंगामे पर छिड़ा सियासी संग्राम
अब सवाल ये उठ रहा है कि पुलिसकर्मी किसकी इजाजत से सदन के अंदर दाखिल हुए थे. सीएम नीतीश कुमार ने गेंद बिहार विधानसभा अध्यक्ष के पाले में डाल दी है. बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय सिन्हा ने भी दोषी अधिकारियों को चिन्हित करने की कार्रवाई शुरू कर दी है.

बिहार विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने कहा कि अध्यक्ष की कुर्सी सर्वोपरि होती है. लेकिन, सरकार में बैठे लोग अध्यक्ष की कुर्सी को चुनौती दे रहे हैं और उंगली दिखा कर बात की जा रही है.

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''23 मार्च का दिन बिहार के लोकतांत्रिक इतिहास के लिए काला दिन माना जाएगा. जब सशस्त्र पुलिस बल से संबंधित विधेयक का विरोध विपक्ष कर रही थी, तब सरकार को उनके साथ जबरदस्ती करने की कोई जरूरत नहीं थी. सरकार को ये भी स्पष्ट करना चाहिए कि सदन के अंदर पुलिसकर्मी किसकी इजाजत से दाखिल हुए थे और जिस किसी ने पुलिसकर्मियों को इजाजत दी थी उसे सामने आना चाहिए''- उदय नारायण चौधरी, पूर्व अध्यक्ष, बिहार विधानसभा

विनोद शर्मा, भाजपा प्रवक्ता
विनोद शर्मा, भाजपा प्रवक्ता

''23 मार्च को विधानसभा में पुलिस को इसलिए सख्ती दिखानी पड़ी थी कि राजद और माले के लोगों ने लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन किया था और लगातार वो गुंडागर्दी पर उतर आए थे. विधानसभा अध्यक्ष ने दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दे दिए हैं, लेकिन विपक्ष को भी मर्यादा का ख्याल रखना चाहिए''- विनोद शर्मा, भाजपा प्रवक्ता

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''सरकार और विपक्ष दोनों को लोकतांत्रिक मर्यादा का ख्याल रखना चाहिए. अगर विपक्ष हंगामा कर रही थी, तो सरकार दूसरे तरीके से भी निपट सकती थी और विपक्ष विरोध पर आमदा थी तो सरकार भी मामले को प्रवर समिति या स्टैंडिंग कमिटी में भेज सकती थी. लेकिन, ऐसा नहीं हुआ दोनों ओर से टकराव की स्थिति पैदा की गई. जिस तरीके से पुलिसकर्मी अंदर दाखिल हुए वह भी लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है''- डॉ.संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

देखिए ये रिपोर्ट

बता दें कि मंगलवार को बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस विधेयक 2021 सदन में पेश किया गया. काफी हंगामे के बीच उसी दिन सदन से विधेयक को पास करा लिया गया. विपक्ष की ओर से लगातार इस बिल का विरोध किया जा रहा है. बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस बिल को लेकर सदन में 2 दिनों से जबरदस्त हंगामा देखने को मिला. विधानसभा में तो ऐतिहासिक हंगामा हुआ और पुलिस बल को विधानसभा के अंदर तक बुलाना पड़ा. शुक्रवार को विधान परिषद में भी विपक्ष ने जबरदस्त हंगामा किया. इस दौरान विपक्ष के सदस्यों की गैर मौजूदगी में ही इस बिल को पारित करा लिया गया.

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