पटना: राजधानी पटना स्थित बिहार आर्ट थियेटर कोरोना काल में लंबे समय तक बंद रहा. लेकिन अब फिर से बिहार आर्ट थियेटर में रौनक लौट आई है और नाटकों का मंचन भी शुरू हो गया है. करीब 8 से 9 महीने के बाद कालिदास रंगालय में फिर से चहल-पहल शुरू हो गई है.
थोड़ा है थोड़े की जरूरत है
हाल ही में बिहार आर्ट थियेटर में हुए एजीएम की मीटिंग के बाद कलाकार अभिषेक रंजन को बिहार आर्ट थियेटर का महासचिव बनाया गया है. संस्था के संयुक्त सचिव प्रदीप गांगुली ने बताया कि कालिदास में कुछ व्यवस्था है जिन्हें दुरुस्त करने की जरूरत है. जैसे लाइटिंग सिस्टम, साउंड सिस्टम जल्द ही इन पर कार्य शुरू किया जाएगा और इन सभी चीजों को दुरुस्त किया जाएगा ताकि यहां अधिक से अधिक नाटकों का मंचन हो सके और छात्र अपना रिहरसल भी बेहतर तरीके से कर सकें. वहीं महासचिव अभिषेक रंजन ने बताया कि संस्था ने नई जिम्मेदारी सौंपी है. जिम्मेदारी को बखूबी निभाएंगे.
युवा और कलाकारों के लिए होगा हर संभव प्रयास
युवा और कलाकारों के लिए हर संभव प्रयास किया जाएगा ताकि उन्हें बेहतर से बेहतर सुविधा मिल सके. जिससे कि वह बेहतर तरीके से अपनी प्रस्तुति दें और बिहार का नाम रोशन करें. बिहार आर्ट थियेटर में अभी कुछ चीजें हैं जिनको दुरुस्त करने की जरूरत है. जो भी कमियां है, उनको दूर किया जाएगा और सभी चीजों को पूरी तरीके से दुरुस्त किया जाएगा.
जनवरी महीने में बिहार आर्ट थियेटर के स्थापना करने वाले हमारे मार्गदर्शक अनिल मुखर्जी के याद में एक बड़े नाट्योत्सव का आयोजन किया जाएगा. इसके लिए कई नाटकों के आवेदन भी आ चुके हैं सभी का चयन कर बेहतर कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा. वहीं उन्होंने बताया कि राजधानी पटना और बिहार का थियेटर बिहार आर्ट थियेटर इंफ्रास्ट्रक्चर को भी और बेहतर किया जाएगा.
पटना: नाटक लहरों के राजहंस का हुआ मंचन, लहरों के राजहंस में सांसारिकता और वैराग्य का द्वंद्व
पटना: पटना के गांधी मैदान स्थित कालिदास रंगालय में संगीत नाटक अकादमी के सहयोग से मोहन राकेश द्वारा लिखित और मणिकांत चौधरी द्वारा निर्देशित नाटक 'लहरों के राजहंस' का मंचन किया गया. लहरों के राजहंस नाटक में दिखाया गया है कि सांसारिक सुखों और आध्यात्मिक शांति के पारस्परिक विरोध तथा उसके बीच खड़े हुए व्यक्ति के द्वारा निर्णय लेने का अनिवार्य द्वंद निहित है.
धर्म भावना से प्रेरित है नाटक
द्वंद का एक दूसरा पक्ष स्त्री और पुरुष के पारस्परिक संबंधों का अंतर्विरोध है. ऐसी हालात में किसी के लिए चुनाव काफी कठिन हो जाता है और उसे चुनाव करने की स्वतंत्रता भी नहीं रह जाती. धर्म भावना से प्रेरित इस नाटक में उलझे हुए ऐसे ही अनेक प्रश्नों की स्थिति में नए भाव बोध के परिवेश में प्रशिक्षण किया गया है.
1963 में किया गया नाटक का प्रकाशन
इस नाटक का प्रकाशन 1963 में किया गया था और अब भी यह नाटक उसी आनंद के साथ देखा जा रहा है. नंद और सुंदरी के माध्यम से सांसारिक सुखों और आध्यात्मिक शांति के द्वंद्व को इस नाटक में पेश किया गया. नाटक के अंत में वैरागी हो जाने के बाद भी नंद का मन सुंदरी की ओर आकर्षित रहता है.