पटना: राज्य सरकार ने बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू करके नशामुक्त समाज बनाने की ओर एक अच्छी पहल की है. लेकिन नशा के कारोबार से जुड़े लोगों ने सरकार के सपने को चकनाचूर करने की मानो कसम खा रखी है. शराबबंदी के बाद युवा अब गांजा और स्मैक की गिरफ्त में पड़ते जा रहे हैं. इसने सरकार के लिए चिंता बढ़ा दी है.
1 अप्रैल 2016 को शराबबंदी की घोषणा के बाद लोगो में उम्मीद जगी थी की नशामुक्ति को लेकर समाज मे बेहतर माहौल बनेगा. राज्य की नई तस्वीर बनेगी. लेकिन नशामुक्ति केंद्र के ताजा रिपोर्ट से कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. रिपोर्ट की माने तो शराबबंदी के बाद अल्कोहल एडिक्टेड के मामले में गिरावट भले ही आई हो. लेकिन गांजा, इंजेक्शन, टेबलेट, वाइटनर और स्मैक जैसे नशों के मामले काफी बढ़ रहे हैं.
ये हैं कुछ आंकड़ें
वर्ष | 2016 | 2017 | 2018 |
हेरोइन/स्मैक | 45 | 90 | 176 |
अल्कोहल | 2325 | 1595 | 1130 |
गांजा/चरस/भांग | 940 | 1480 | 2276 |
इंजेक्शन | 30 | 55 | 72 |
व्हाइटनर | 98 | 160 | 234 |
'युवा वर्ग करे रहे हैं दूसरे नशा की ओर स्विच'
नशामुक्ति के क्षेत्र में कई सालों से काम रही राखी शर्मा ने बताया कि शराबबंदी लागू होने के बाद कुछ महीनों तक आंकड़ों में भारी गिरावट आई थी. लेकिन उसके बाद युवा वर्ग अपने को दूसरे नशा की ओर स्विच ओवर करते हुए इंजेक्शन, टेबलेट, वाइटनर और स्मैक की लत में पड़ गए. ये सरकार के लिए अलार्मिंग है. उन्होंने कहा कि सरकार को इसको नियंत्रण करने लिए पड़ोसी राज्य से आ रहे नशीले पदार्थ को रोकना होगा. साथ ही युवाओं को जागरूक करने के लिए अभियान चलाने की जरूरत है.
'अभिभावक बच्चों की हर गतिविधियों का रखें ध्यान'
राखी शर्मा ने कहा कि न्यू जेनरेशन के बीच स्मैक जैसे नशीले पदार्थों को पहुंचाया जा रहा है. जो बेहद खतरनाक हैं. बहरहाल बच्चे नशे की लत में ना पड़ें, इसके लिए अभिभावक को अपने बच्चों की हर गतिविधियों के साथ उसके दोस्तों के बारे में भी जानकारी रखनी चाहिए. क्योंकि बच्चा बुरी लत में पड़ जाता है और घरवालों को कुछ पता नहीं होता. जबतक उन्हें पता चलता है, बहुत देर हो चुकी होती है.