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सरकारी उदासीनता का शिकार है पटना का पुलिस अस्पताल, यहां नहीं आता कोई मरीज

50 बेड के अस्पताल में पिछली बार कौन एडमिट हुआ इसका भी लेखा जोखा नहीं है. हालत यह है कि पुलिस अस्पताल में डॉक्टर से लेकर अन्य स्टाफ दिन-रात बस मरीजों के इंतजार में बैठे रहते हैं.

पटना पुलिस अस्पताल
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Published : Mar 27, 2019, 11:47 PM IST

पटना: राजधानी पटना का एक ऐसा अस्पताल जहां पर बेड करते हैं मरीजों का इंतजार. जी हां ऐसा कुछ आलम है पटना के पुलिस अस्पताल का. जहां हर माह 10 लाख रुपए से अधिक के खर्च के बाद भी स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ लेने वाला कोई नहीं है.

पटना पुलिस अस्पताल

50 बेड के अस्पताल में पिछली बार कौन एडमिट हुआ इसका भी लेखा जोखा नहीं है. हालत यह है कि पुलिस अस्पताल में डॉक्टर से लेकर अन्य स्टाफ दिन-रात बस मरीजों के इंतजार में बैठे रहते हैं. गृह विभाग ने राजधानी पटना में पुलिस अस्पताल का निर्माण पटना पुलिस हेडक्वार्टर के कैंपस में बनवाया था.

प्रतिमाह 10 लाख से अधिक का खर्च

बताया जाता है कि इस अस्पताल में 10 स्टाफ तैनात है। अगर स्टाफ व अन्य खर्च की बात करें तो यह हर माह 10 लाख से अधिक होगा. अस्पताल में तीन डॉक्टर की तैनाती और तीनों काफी सीनियर हैं. इसमें डॉ अजीत कुमार सिन्हा इंचार्ज हैं जबकि मोहम्मद शमीमुल हक और डॉ कल्पना मिश्रा भी सीनियर डॉक्टर हैं.

प्रतिदिन आते हैं यहां 25 से 30 मरीज

अस्पतालके ओपीडी रजिस्टर पर गौर करें तो प्रतिदिन 25 से 30 मरीज ही यहां आते हैं. मर्ज भी ऐसी होती है कि सर्दी और बुखार से अधिक नहीं होता है. डॉक्टरों का कहना है कि सर्दी बुखार और अन्य सामान्य बीमारियों के ही मरीज आते हैं. कोई ऐसा मरीज नहीं आता है जिसे भर्ती करने की आवश्यकता पड़े, थोड़ा भी सीरियस मरीज आया तो उसे यहां से रेफर कर दिया जाता है.

संसाधनों कि भारी कमी

बहरहाल राजधानी में पुलिसकर्मियों के लिये बना यह अस्पताल जहांकई संसाधनों कि भारी कमी है,दवा के साथ साथ स्पेशलिस्ट चिकित्सक नहीं होने के कारण यहाँ मरीज एडमिट नहीं हो पाते है,जबकी जांच कि सुविधा भी नहीं होने के कारण यह अस्पताल सिर्फ सर्दी खांसी तक ही सिमित हो चुका है.

पटना: राजधानी पटना का एक ऐसा अस्पताल जहां पर बेड करते हैं मरीजों का इंतजार. जी हां ऐसा कुछ आलम है पटना के पुलिस अस्पताल का. जहां हर माह 10 लाख रुपए से अधिक के खर्च के बाद भी स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ लेने वाला कोई नहीं है.

पटना पुलिस अस्पताल

50 बेड के अस्पताल में पिछली बार कौन एडमिट हुआ इसका भी लेखा जोखा नहीं है. हालत यह है कि पुलिस अस्पताल में डॉक्टर से लेकर अन्य स्टाफ दिन-रात बस मरीजों के इंतजार में बैठे रहते हैं. गृह विभाग ने राजधानी पटना में पुलिस अस्पताल का निर्माण पटना पुलिस हेडक्वार्टर के कैंपस में बनवाया था.

प्रतिमाह 10 लाख से अधिक का खर्च

बताया जाता है कि इस अस्पताल में 10 स्टाफ तैनात है। अगर स्टाफ व अन्य खर्च की बात करें तो यह हर माह 10 लाख से अधिक होगा. अस्पताल में तीन डॉक्टर की तैनाती और तीनों काफी सीनियर हैं. इसमें डॉ अजीत कुमार सिन्हा इंचार्ज हैं जबकि मोहम्मद शमीमुल हक और डॉ कल्पना मिश्रा भी सीनियर डॉक्टर हैं.

प्रतिदिन आते हैं यहां 25 से 30 मरीज

अस्पतालके ओपीडी रजिस्टर पर गौर करें तो प्रतिदिन 25 से 30 मरीज ही यहां आते हैं. मर्ज भी ऐसी होती है कि सर्दी और बुखार से अधिक नहीं होता है. डॉक्टरों का कहना है कि सर्दी बुखार और अन्य सामान्य बीमारियों के ही मरीज आते हैं. कोई ऐसा मरीज नहीं आता है जिसे भर्ती करने की आवश्यकता पड़े, थोड़ा भी सीरियस मरीज आया तो उसे यहां से रेफर कर दिया जाता है.

संसाधनों कि भारी कमी

बहरहाल राजधानी में पुलिसकर्मियों के लिये बना यह अस्पताल जहांकई संसाधनों कि भारी कमी है,दवा के साथ साथ स्पेशलिस्ट चिकित्सक नहीं होने के कारण यहाँ मरीज एडमिट नहीं हो पाते है,जबकी जांच कि सुविधा भी नहीं होने के कारण यह अस्पताल सिर्फ सर्दी खांसी तक ही सिमित हो चुका है.

Intro: राजधानी पटना का एक ऐसा अस्पताल जहां पर बेड करते हैं मरीजों का इंतजार राजधानी पटना में एक ऐसा अस्पताल जहां कहने को तो सब कुछ है, लेकिन मरीज ही नहीं हैं। हर माह 10 लाख रुपए से अधिक के खर्च के बाद भी स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ लेने वाला कोई नहीं है। 50 बेड के अस्पताल में पिछली बार कौन एडमिट हुआ इसका भी लेखा जोखा नहीं है। आप भी सोच रहे होंगे कि आखिर ऐसा कौन सा अस्प्ताल है जहां मरीज एडमिट ही नहीं होते, आपको बता दें यह पटना में स्थित पुलिस अस्पताल है जहां डॉक्टर से लेकर अन्य स्टाफ दिन रात बस मरीजों के इंतजार में बैठे रहते हैं,


Body:गौरतलब है कि गृह विभाग ने राजधानी पटना में पुलिस अस्पताल का निर्माण पटना पुलिस हेडक्वार्टर के कैंपस में बनवाया था। जिले भर के सभी पुलिसकर्मियों का इलाज यहां होता है, विभागीय सूत्रों कि माने तो इसका निर्माण पांच दशक पूर्व कराया गया था। पुरानी बिल्डिंग को फिर से नया किया गया है,मगर यह अस्पताल सरकारी उदासीनता का शिकार है, गृह विभाग ने हाईटेक भवन के साथ बेड और अन्य व्यवस्था की है। इनडोर और आउटडोर पुलिस विभाग के मरीजों के लिए इलाज के हर संसाधन यहां रखे गए हैं लेकिन ओपीडी पर भी मरीजों का विश्वास नहीं होता है। स्वास्थ्य विभाग की तरफ डॉक्टरों और फार्मासिस्टों की तैनाती की गई है जबकि अन्य स्टाफ का खर्च गृह विभाग के जिम्मे है. बताया जाता है कि इस अस्पताल में 10 स्टाफ तैनात है। अगर स्टाफ व अन्य खर्च की बात करें तो यह हर माह 10 लाख से अधिक होगा। अस्पताल में तीन डॉक्टर की तैनाती और तीनों काफी सीनियर हैं। इसमें डॉ अजीत कुमार सिन्हा इंचार्ज हैं जबकि मोहम्मद शमीमुल हक और डॉ कल्पना मिश्रा भी सीनियर डॉक्टर हैं। अब डॉक्टरों की सैलरी की बात करें तो इन पर ही बड़ा खर्च हर माह आता होगा। इसके बाद दो फार्मासिस्ट और दो नर्सिग अर्दली के साथ तीन अन्य स्टाफ हैं। हर माह दवा से लेकर अस्पताल के मेंटीनेंस पर भी बड़ा खर्च आता है। इसमें बिजली से लेकर साफ सफाई सहित कई खर्च शामिल हैं. अस्प्ताल के ओपीडी रजिस्टर पर गौर करें तो प्रतिदिन 25 से 30 मरीज ही यहां आते हैं। मर्ज भी ऐसी होती है कि सर्दी और बुखार से अधिक नहीं होता है। डॉक्टरों का कहना है कि सर्दी बुखार और अन्य सामान्य बीमारियों के ही मरीज आते हैं। कोई ऐसा मरीज नहीं आता है जिसे भर्ती करने की आवश्यकता पड़े, थोड़ा भी सीरियस मरीज आया तो उसे यहां से रेफर कर दिया जाता है। अस्पताल में दवाओं का इंतजार भी काफी दिनों से है। विभाग से जुड़े सूत्रों की मानें तो दवा की सप्लाई ही बंद हो जाती है। काफी दिनों से अस्प्ताल में दवा ही नहीं आई है.


Conclusion:हलांकी जब पुलिस कर्मियों के फिटनेस का जब मामला आता है तब पुलिस अस्पताल के डॉक्टरों की याद आती है। सूत्रों का कहना है कि पुलिस लाइन में जो भी पुलिसकर्मी तबियत खराब होने की बात करते हैं तो सिक रजिस्टर में उनका नाम दर्ज कर दिया जाता है। इस रजिस्टर के साथ संबंधित पुलिस के जवान को पुलिस अस्पताल भेजा जाता है जहां से डॉक्टर बीमारी की रिपोर्ट लगाते हैं.और उन्हे छुट्टी आसानी से मिल जाती है,बहरहाल राजधानी में पुलिसकर्मियों के लिये बना यह अस्पताल जहाँ कई संसाधनों कि भारी कमी है,दवा के साथ साथ स्पेशलिस्ट चिकित्सक नहीं होने के कारण यहाँ मरीज एडमिट नहीं हो पाते है,जबकी जांच कि सुविधा भी नहीं होने के कारण यह अस्पताल सिर्फ सर्दी खांसी तक ही सिमित हो चुका है बाईट-डाक्टर अजित कुमार सिंह, चिकित्सा पदाधिकारी, पुलिस अस्पताल, पटना पी टू सी-शशि तुलस्यान
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