पटना: विश्वभर में 29 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस (International Tiger Day) मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का उद्देश्य यह है कि लोगों में बाघों के संरक्षण (Conservation Of Tigers) और उनकी प्रजाति को विलुप्त होने से बचाने के लिए जागरुकता पैदा की जाए. बाघ भारत का राष्ट्रीय पशु है जिसके बावजूद देश में बाघों को वन्यजीवों की लुप्त होती प्रजाति में सूचीबद्ध किया गया है. लेकिन इसके बीच एक राहत भरी खबर यह भी है कि देश में सेव द टाइगर (Save The Tiger) जैसे राष्ट्रीय अभियानों के चलते बाघों की संख्या बढ़ी भी है.
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टाइगर की संख्या बढ़ाने को लेकर पूरे देश में जो प्रयास हुए हैं उसके नतीजे भी दिखने लगे हैं. बिहार की बात करें तो बिहार में वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (Valmiki Tiger Reserve) में पिछले 15 साल में बाघों की संख्या में अच्छी खासी वृद्धि हुई है. आधिकारिक आंकड़े अगले साल तक आएंगे, लेकिन अनुमान के मुताबिक 15 साल में बाघों की संख्या यहां बढ़कर 5 गुना हो चुकी है.
बता दें कि बिहार के वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में वर्ष 2006 में कुल 10 बाघ थे. वर्ष 2018 में जो आखिरी सर्वे हुआ उसमें बाघों की संख्या बढ़कर 32 हो गई थी. अगले सर्वे की रिपोर्ट वर्ष 2022 में आने की संभावना है. एक अनुमान के मुताबिक, वीटीआर में बाघों की संख्या बढ़कर 50 तक पहुंच चुकी है. यह बिहार के लिए बेहद उत्साहजनक आंकड़े हैं. हालांकि, इसके आधिकारिक आंकड़े अगले साल ही आएंगे.
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वन पर्यावरण विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक, बिहार में एक और वन्य प्राणी अभ्यारण्य तेजी से डेवलप हो रहा है और वह है कैमूर, जहां पिछले साल एक बाघ भी देखा गया था. क्योंकि यह अभयारण्य यूपी, एमपी और झारखंड की सीमा से भी कनेक्ट होता है. जानकारी के मुताबिक, यहां बाघ संरक्षण अभ्यारण्य बनाने को लेकर तेजी से तैयारी चल रही है.
भारत में पूरे देश में बाघों की घटती संख्या को देखते हुए कुछ साल पहले उन्हें संरक्षण देने के प्रयास किए गए. बाघ संरक्षण पर जागरुकता अभियान चलाया गया. जिसका नतीजा यह हुआ कि आज पूरे विश्व में सबसे ज्यादा बाघों की आबादी भारत में ही है. अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के अवसर पर वाल्मीकी टाइगर रिजर्व को केंद्रीय मंत्री और एनटीसीए से दो सम्मान मिले. सीए / और टीएस द्वारा अन्य 13 टाइगर रिजर्व (देश के 51 टाइगर रिजर्व में से कुल 14) के साथ चयन और एक फ्रंट लाइन स्टाफ को एनटीसीए से बाग रक्षक पुरस्कार मिला है.
बताते चलें कि हर साल 29 जुलाई को मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस का मकसद बाघों को लेकर जागरुकता पैदा करना है. 29 जुलाई 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग शहर में हुए टाइगर समिट में एक समझौता हुआ था. इसका मकसद पूरी दुनिया को ये बताना था कि बाघों की आबादी घट रही है.
विश्व वन्यजीव कोष (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) के अनुसार, वर्तमान में दुनिया में केवल 4,200 जंगली बाघ हैं. रिपोर्टों के अनुसार, 20वीं शताब्दी की शुरुआत के बाद से लगभग 95 फीसदी वैश्विक बाघों की आबादी खत्म हो गई है. उपयुक्त समझौते में शामिल देशों का मानना है कि 2022 तक बाघों की आबादी दोगुनी हो जाएगी.
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