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चुनाव में महिलाओं की भागीदारी पर पार्टियों की खुली पोल, सिर्फ बाहुबलियों की पत्नियों को टिकट

आगामी लोकसभा चुनाव में बिहार से 10 % से भी कम महिला सांसद हैं. मुंगेर से वीणा देवी, शिवहर से रामादेवी और सुपौल से रंजीत रंजन बिहार का नेतृत्व कर रही हैं.

अभिषेक कुमार, संवाददाता
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Published : Mar 29, 2019, 11:43 PM IST

पटना: आजादी के 7 दशक बीतने के बाद भी महिलाओं की हालत जस की तस है. सरकार भले ही महिला सशक्तिकरण को लेकर कई दावे कर ले. लेकिन जब बात राजनीति की आती है, तो महिलाओं की भागीदारी के नाम पर सभी दलों के कदम ठिठक जाते हैं.

आगामी लोकसभा चुनाव में बिहार से 10 % से भी कम महिला सांसद हैं. मुंगेर से वीणा देवी, शिवहर से रामादेवी और सुपौल से रंजीत रंजन बिहार का नेतृत्व कर रही हैं. इस बार वीणा देवी चुनाव नहीं लड़ रही है. हालांकि लोजपा ने वैशाली से महिला उम्मीदवार को उतार इसकी भरपाई की है.

महिलाओं को नहीं मिल रही राजनीति में जगह
गौरतलब है कि संसद में महिला आरक्षण को लेकर कई बार आवाज उठाई गई. समय-समय पर विपक्ष इसके समर्थन में अपनी आवाज बुलंद जरूर करते रहे हैं. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इस मामले पर राजनीतिक दलों ने चुप्पी साध ली है.

कोई भी महिला उम्मीदवार को नहीं मिली टिकट
वर्तमान में कोई भी महिला उम्मीदवार अपने दम पर टिकट लेने में कामयाब नहीं है. सवाल यह है कि आखिर सामान्य महिला कार्यकर्ता को कोई भी राजनीतिक पार्टी टिकट देने से क्यों बच रही है.

पटना: आजादी के 7 दशक बीतने के बाद भी महिलाओं की हालत जस की तस है. सरकार भले ही महिला सशक्तिकरण को लेकर कई दावे कर ले. लेकिन जब बात राजनीति की आती है, तो महिलाओं की भागीदारी के नाम पर सभी दलों के कदम ठिठक जाते हैं.

आगामी लोकसभा चुनाव में बिहार से 10 % से भी कम महिला सांसद हैं. मुंगेर से वीणा देवी, शिवहर से रामादेवी और सुपौल से रंजीत रंजन बिहार का नेतृत्व कर रही हैं. इस बार वीणा देवी चुनाव नहीं लड़ रही है. हालांकि लोजपा ने वैशाली से महिला उम्मीदवार को उतार इसकी भरपाई की है.

महिलाओं को नहीं मिल रही राजनीति में जगह
गौरतलब है कि संसद में महिला आरक्षण को लेकर कई बार आवाज उठाई गई. समय-समय पर विपक्ष इसके समर्थन में अपनी आवाज बुलंद जरूर करते रहे हैं. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इस मामले पर राजनीतिक दलों ने चुप्पी साध ली है.

कोई भी महिला उम्मीदवार को नहीं मिली टिकट
वर्तमान में कोई भी महिला उम्मीदवार अपने दम पर टिकट लेने में कामयाब नहीं है. सवाल यह है कि आखिर सामान्य महिला कार्यकर्ता को कोई भी राजनीतिक पार्टी टिकट देने से क्यों बच रही है.

Intro:आजादी के सात दशक बीतने के बाद भी महिलाओं के लिए अभी दिल्ली दूर है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भले महिला सशक्तिकरण को लेकर कई वादे और दावे करते है।
इसके अलावा भाजपा बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ का नारा जमकर लगाती है। कांग्रेस में तो कई महिलाएं नेतृत्व करती रही है। वर्तमान समय मे प्रियंका गांधी काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
सभी राजनीतिक दल समय समय पर महिला सशक्तिकरण का नारा बुलंद करते रहे हैं। बिहार सरकार ने भले ही नौकरियों में आरक्षण देने में दरियादिली दिखाए मगर राजनीतिक भागीदारी के नाम पर सभी दलों के कदम ठीठक जाते हैं। आगामी लोकसभा में महिला उमीदवारों का यह नजारा है। बिहार में 10 % से भी कम महिला सांसद हैं। मुंगेर से वीणा देवी, शिवहर से रामादेवी और सुपौल से रंजीत रंजन बिहार का नेतृत्व कर रही है। इस बार वीणा देवी चुनाव नहीं लड़ रही है। हालांकि लोजपा ने वैशाली से महिला उम्मीदवार को तार इसकी भरपाई की है।


Body:2009 के लोग सो चुनाव में बिहार से चार महिलाएं थी, जबकि 2014 में यह संख्या घटकर 3 हो गई।

बिहार से यह महिला दावेदार उतरेगी 2019 के चुनावी समर में...

रमा देवी शिवहर भाजपा

वीणा देवी वैशाली लोजपा

कविता सिंह सिवान जेडीयू

रंजीत रंजन सुपौल कांग्रेस
नीलम देवी मुंगेर कांग्रेस
मीरा कुमार सासाराम कांग्रेस

विभा देवी नवादा राजद
हिना साहब सीवान राजद
मीसा भारती पाटलीपुत्र राजद


ये रह गई बाहर..
रेणु कुशवाहा सुपौल भाजपा
पुतुल सिंह बांका भाजपा

लवली आनंद शिवहर कांग्रेस
विणा सिंह मोतिहारी कांग्रेस

रंजू गीता सीतामढ़ी जदयू
लेशी सिंह - जदयू

कांति सिंह काराकाट राजद







Conclusion:गौरतलब है कि संसद में महिला आरक्षण को लेकर कई बार आवाज उठाई गई। समय-समय पर विपक्ष इसके समर्थन में अपनी आवाज बुलंद जरूर करते रहे हैं । लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इस मामले पर कोई भी राजनीतिक दल ने चुप्पी साध ली है।

गौरतलब है कि बिहार की सियासत में महिला उम्मीदवार किसी खास राजनीतिक हस्ती या बाहुबली के उत्तराधिकारी के तौर पर उतारे जाते हैं। वर्तमान में कोई भी महिला उम्मीदवार अपने दम पर टिकट लेने में कामयाब नहीं है। इस सूची से तमाम चीजें साफ हो जाती है। सवाल यह है कि आखिर सामान्य महिला कार्यकर्ता को कोई भी राजनीतिक पार्टी टिकट देने से क्यों बचती है।
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