ETV Bharat / state

पटनाः लोकायुक्त कार्यालय में कोरोना और लॉकडाउन का असर, नहीं हो रही सुनवाई - Lokayukta bihar

लॉकडाउन के पहले बढ़ी संख्या में लोग यहां सुनवाई के लिए आते थे. लेकिन कोरोना की वजह से सब ठप पड़ा हुआ है. फिलहाल फोन और ईमेल का माध्यम से कामों को निपटाया जा रहा है.

पटना
पटना
author img

By

Published : Aug 14, 2020, 2:03 PM IST

Updated : Aug 18, 2020, 9:41 PM IST

पटनाः कोरोना महामारी और लॉकडाउन का बिहार लोकायुक्त कार्यालय पर भी असर पड़ा है. कार्यालय में सुनवाई पूरी तरह ठप है. फोन और मेल के जरिए हैं काम को निपटाया जा रहा है. कार्यालय में कर्मचारियों की उपस्थिति भी 50 फीसदी से कम कर दी गई है. कोरोना काल से पहले बड़ी संख्या में लोग सुनवाई के लिए पहुंचते थे. अब बाहरी व्यक्ति के कार्यालय में प्रवेश पर रोक लगा दी गई है.

बिहार में 2011 में लोकायुक्त का नया अधिनियम बना था. हालांकि 1973 से बिहार में लोकायुक्त गठित है. श्रीधर वसुदेव सुहानी इसके पहले अध्यक्ष बने थे. जो कि 28 मई 1973 से 27 मई 1978 तक अध्यक्ष पद पर रहे.

शिकायत दर्ज कराने में 200 रुपए आते हैं खर्च
बिहार में लोकायुक्त कार्यालय में एक अध्यक्ष और 2 सदस्य हैं. इन तीनों में से किसी 2 पदों पर न्यायाधीश और एक पर प्रशासनिक अधिकारी रहते हैं. तीनों के अलग-अलग कोर्ट हैं. इसके अध्यक्ष को हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और सदस्यों को हाई कोर्ट के न्यायाधीश की तरह वेतन भत्ते सुविधाएं मिलती है. बिहार लोकायुक्त में सरकारी सेवकों से संबंधित शिकायतों की सुनवाई और निष्पादन होता है. सरकारी सेवकों के खिलाफ किसी को शिकायत और सरकार के किसी निर्णय से किसी को कोई परेशानी हो तो उसकी फरियाद सुनी जाती है. शिकायत दर्ज करने में 200 रुपए खर्च होते हैं. जिसमें से 100 रुपए कोर्ट फीस और 100 रुपए शपथ पत्र के लिए जाते हैं.

देखें रिपोर्ट.

वर्तमान में पटना हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्याम किशोर शर्मा बिहार लोकायुक्त के अध्यक्ष हैं. जब बिहार के राज्यपाल रामनाथ गोविंद थे तब उन्होंने ही इन्हें शपथ दिलाई थी. लोकायुक्त के अध्यक्ष पद पर शपथ लेने के बाद 5 साल या फिर 70 साल की उम्र तक कार्य कर सकते हैं. लोकायुक्त कार्यालय में तैनात सुरक्षा गार्डों के अनुसार प्रतिदिन 100 से अधिक लोग फरियाद लेकर पहुंच रहे हैं. लेकिन लॉकडाउन लगने के बाद से किसी तरह की सुनवाई यहां नहीं हो रही है. बाहरी व्यक्ति का कार्यालय में प्रवेश पूरी तरह निषेध है.

सत्ताधारी दल की ओर से कोई भी नेता इस पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हुए. वहीं, आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि लॉकडाउन का असर हर जगह है. लोगों को हर जगह परेशानी हो रही है. इसीलिए आरजेडी चुनाव टालने की मांग करते रहे हैं. लेकिन चुनाव आयोग चुनाव कराने पर अड़ा हुआ है.

लोकायुक्त के फैसले को हाईकोर्ट ने किया था निरस्त
बिहार लोकायुक्त इस साल एक मामले में चर्चा में आया था. जब पटना हाई कोर्ट ने एक फैसले में यह तय किया कि राज्य के लोकायुक्त संस्था लोकायुक्त या लोकपाल कानून से बाहर जाकर कोई निर्णय नहीं ले सकता है. कोर्ट ने कहा कि किसी लोक सेवक के खिलाफ कोई भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत किए गए अपराध या पद के दुरुपयोग या आर्थिक लाभ की शिकायतें मिले, तो उसकी जांच करें और जांच में आरोप सही पाए तभी लोकायुक्त संस्था कानून सम्मत कार्रवाई करें, ना कि क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर.

हाई कोर्ट ने टिप्पणी किया था कि कोई भी संस्था अपने क्षेत्राधिकार के भीतर ही काम करती है. लोकायुक्त सरकार के प्रशासनिक कार्रवाई, न्यायिक पुनर्विचार नहीं कर सकती है. जिसे हाई कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने शक्ति में इस्तेमाल करती है.
हाई कोर्ट के जस्टिस सीएस सिंह ने बिपिन बिहारी सिंह की रिट याचिका को मंजूर करते हुए बिहार के लोकायुक्त न्यायिक सदस्य के 4 अप्रैल 2019 के आदेश को निरस्त कर दिया था. दरअसल लोकायुक्त के उपरोक्त आदेश के तहत बिहार के निबंधक सहयोग समिति को निर्देश दिया गया था कि याचिकाकर्ता पंडारक का अंचलाधिकारी था, उसके विरूद्ध विभागीय जांच कर सजा की कार्रवाई करें. लोकायुक्त कार्यालय इसको लेकर लंबे समय तक चर्चा में बना रहा.

पटनाः कोरोना महामारी और लॉकडाउन का बिहार लोकायुक्त कार्यालय पर भी असर पड़ा है. कार्यालय में सुनवाई पूरी तरह ठप है. फोन और मेल के जरिए हैं काम को निपटाया जा रहा है. कार्यालय में कर्मचारियों की उपस्थिति भी 50 फीसदी से कम कर दी गई है. कोरोना काल से पहले बड़ी संख्या में लोग सुनवाई के लिए पहुंचते थे. अब बाहरी व्यक्ति के कार्यालय में प्रवेश पर रोक लगा दी गई है.

बिहार में 2011 में लोकायुक्त का नया अधिनियम बना था. हालांकि 1973 से बिहार में लोकायुक्त गठित है. श्रीधर वसुदेव सुहानी इसके पहले अध्यक्ष बने थे. जो कि 28 मई 1973 से 27 मई 1978 तक अध्यक्ष पद पर रहे.

शिकायत दर्ज कराने में 200 रुपए आते हैं खर्च
बिहार में लोकायुक्त कार्यालय में एक अध्यक्ष और 2 सदस्य हैं. इन तीनों में से किसी 2 पदों पर न्यायाधीश और एक पर प्रशासनिक अधिकारी रहते हैं. तीनों के अलग-अलग कोर्ट हैं. इसके अध्यक्ष को हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और सदस्यों को हाई कोर्ट के न्यायाधीश की तरह वेतन भत्ते सुविधाएं मिलती है. बिहार लोकायुक्त में सरकारी सेवकों से संबंधित शिकायतों की सुनवाई और निष्पादन होता है. सरकारी सेवकों के खिलाफ किसी को शिकायत और सरकार के किसी निर्णय से किसी को कोई परेशानी हो तो उसकी फरियाद सुनी जाती है. शिकायत दर्ज करने में 200 रुपए खर्च होते हैं. जिसमें से 100 रुपए कोर्ट फीस और 100 रुपए शपथ पत्र के लिए जाते हैं.

देखें रिपोर्ट.

वर्तमान में पटना हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्याम किशोर शर्मा बिहार लोकायुक्त के अध्यक्ष हैं. जब बिहार के राज्यपाल रामनाथ गोविंद थे तब उन्होंने ही इन्हें शपथ दिलाई थी. लोकायुक्त के अध्यक्ष पद पर शपथ लेने के बाद 5 साल या फिर 70 साल की उम्र तक कार्य कर सकते हैं. लोकायुक्त कार्यालय में तैनात सुरक्षा गार्डों के अनुसार प्रतिदिन 100 से अधिक लोग फरियाद लेकर पहुंच रहे हैं. लेकिन लॉकडाउन लगने के बाद से किसी तरह की सुनवाई यहां नहीं हो रही है. बाहरी व्यक्ति का कार्यालय में प्रवेश पूरी तरह निषेध है.

सत्ताधारी दल की ओर से कोई भी नेता इस पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हुए. वहीं, आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि लॉकडाउन का असर हर जगह है. लोगों को हर जगह परेशानी हो रही है. इसीलिए आरजेडी चुनाव टालने की मांग करते रहे हैं. लेकिन चुनाव आयोग चुनाव कराने पर अड़ा हुआ है.

लोकायुक्त के फैसले को हाईकोर्ट ने किया था निरस्त
बिहार लोकायुक्त इस साल एक मामले में चर्चा में आया था. जब पटना हाई कोर्ट ने एक फैसले में यह तय किया कि राज्य के लोकायुक्त संस्था लोकायुक्त या लोकपाल कानून से बाहर जाकर कोई निर्णय नहीं ले सकता है. कोर्ट ने कहा कि किसी लोक सेवक के खिलाफ कोई भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत किए गए अपराध या पद के दुरुपयोग या आर्थिक लाभ की शिकायतें मिले, तो उसकी जांच करें और जांच में आरोप सही पाए तभी लोकायुक्त संस्था कानून सम्मत कार्रवाई करें, ना कि क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर.

हाई कोर्ट ने टिप्पणी किया था कि कोई भी संस्था अपने क्षेत्राधिकार के भीतर ही काम करती है. लोकायुक्त सरकार के प्रशासनिक कार्रवाई, न्यायिक पुनर्विचार नहीं कर सकती है. जिसे हाई कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने शक्ति में इस्तेमाल करती है.
हाई कोर्ट के जस्टिस सीएस सिंह ने बिपिन बिहारी सिंह की रिट याचिका को मंजूर करते हुए बिहार के लोकायुक्त न्यायिक सदस्य के 4 अप्रैल 2019 के आदेश को निरस्त कर दिया था. दरअसल लोकायुक्त के उपरोक्त आदेश के तहत बिहार के निबंधक सहयोग समिति को निर्देश दिया गया था कि याचिकाकर्ता पंडारक का अंचलाधिकारी था, उसके विरूद्ध विभागीय जांच कर सजा की कार्रवाई करें. लोकायुक्त कार्यालय इसको लेकर लंबे समय तक चर्चा में बना रहा.

Last Updated : Aug 18, 2020, 9:41 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.