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2022 में लिए गए राजनीतिक फैसलों ने बढ़ाई चुनौतियां, 2023 में क्या विपक्ष को एकजुट कर पाएंगे नीतीश - etv news

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Bihar CM Nitish Kumar) के लिए नए साल चुनौतियों भरा होगा. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए 2022 में लिए गए फैसले मैं बड़ी चुनौतियां खड़ी कर दी है. नीतीश कुमार ने जहां एक बार फिर से सांगठनिक चुनाव में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह पर भरोसा जताया है तो ही प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा पर भी फिर से भरोसा दिखाया है. लेकिन क्या इससे आने वाले साले में उनकी चुनौती कम होगी. पढ़ें पूरी खबर...

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार
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Published : Dec 25, 2022, 11:12 PM IST

नए साल में सीएम नीतीश कुमार के सामने होंगी नई चुनौतियां

पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीजेपी से अलग होकर महागठबंधन के साथ जाकर सरकार बनाने के बाद 2024 में विपक्षी एकजुटता की बड़ी जिम्मेदारी (New year Will Be Full Of Challenges For CM Nitish Kumar) है. नीतीश कुमार इसकी बार-बार चर्चा भी करते रहते हैं. फिर उसके बाद 2025 में बिहार विधानसभा का चुनाव (Bihar Assembly Elections In 2025) है और अगले साल यानी 2023 में नागालैंड सहित कई राज्यों में होने वाले चुनाव में भी पार्टी ताकत लगा सकती है. क्योंकि पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी बनाने के लिए इन चुनाव में लड़ना जरूरी है. लेकिन सबसे बड़ी चुनौती बीजेपी के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने की है. साथ ही बिहार में आज पार्टी तीसरे नंबर की पार्टी बन गई है. तो उसे फिर से एक नंबर की पार्टी बनाने की भी चुनौती है.

ये भी पढ़ें- Year Ender 2022: चर्चा में रही लालू-नीतीश की दोस्ती.. सियासी तालमेल से तेजस्वी बने उत्तराधिकारी

नए साल में नीतीश कुमार के सामने कई चुनौतियां? : 2022 में नीतीश कुमार ने राजनीतिक रूप से जो बड़े फैसले लिए हैं उसके कारण आने वाले सालों में चुनौतियां बढ़ी है. 2023 में नागालैंड सहित कई राज्यों में चुनाव होने हैं. अभी जदयू को बिहार के अलावे अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा मिला हुआ है. एक राज्य में और राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा मिलना जरूरी है. उसके बाद ही पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त हो जाएगा. इसलिए 2023 नीतीश कुमार के लिए महत्वपूर्ण है. और राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह को बड़ी जिम्मेदारी दी है. क्योंकि पिछले डेढ़ दशक से भी अधिक समय से बिहार में सत्ता में रहने के बाद भी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त नहीं हुआ है. दूसरी सबसे बड़ी चुनौती विपक्षी एकजुटता को लेकर है.

BJP से अलग होने के बाद बिहार CM के सामने कई चुनौतियां : बीजेपी से अलग होने के बाद नीतीश कुमार ने बीजेपी के खिलाफ 2024 में विपक्ष को एकजुट करने की घोषणा की है. पिछले दिनों नीतीश कुमार सोनिया गांधी, राहुल गांधी, शरद पवार, ओम प्रकाश चौटाला, अरविंद केजरीवाल, केसीआर, डी राजा, सीताराम येचुरी, अखिलेश यादव सहित कई नेताओं से मुलाकात की थी और 2 से 3 महीने में विपक्षी एकजुटता की रूपरेखा तय होने की बात भी कही थी. लेकिन अब तक विपक्षी एकजुटता की कोई रूपरेखा तैयार होता नहीं दिख रहा है. ऐसे में 2024 के लिए विपक्ष को एकजुट करने की बड़ी चुनौती नीतीश कुमार के सामने होगी. अब इसमें कितनी सफलता मिलती है यह देखने वाली बात है.

विपक्षी को एकजुट करने में लगे हैं नीतीश कुमार : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) 2024 में प्रधानमंत्री पद के फिर से बीजेपी के उम्मीदवार होंगे, यह तय माना जा रहा है. नरेंद्र मोदी के सामने प्रधानमंत्री पद का विपक्ष की ओर से कौन उम्मीदवार होगा?, इस पर भी सहमति बनाना एक बड़ी चुनौती है. तीसरी चुनौती 2025 में बिहार विधानसभा का चुनाव है. 2020 विधानसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन बहुत बेहतर नहीं रहा, 43 सीट पर ही जीत मिली. ऐसे में पार्टी का बेहतर प्रदर्शन हो और अधिक से अधिक सीट विधानसभा चुनाव में मिले, यह एक बड़ी चुनौती होगी. हालांकि उसके लिए पार्टी ने संगठन के स्तर पर तैयारी जरूर की है.

नए साल में नई चुनौतियां भी करेगी पीछा : पहली बार 70 लाख सदस्य पार्टी ने बनाया है. लेकिन कुढ़नी चुनाव में मिली हार से पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं. नीतीश कुमार के लिए सरकार के स्तर पर 10 लाख नौकरी और 10 लाख रोजगार देना भी एक बड़ी चुनौती है. शराबबंदी को सफल बनाने और कानून व्यवस्था को लेकर भी चुनौतियां कम नहीं है. साथ ही राजद और महागठबंधन दलों के बीच सामंजस्य बने रहे, यह भी एक बड़ा चैलेंज है. ऐसे में आरजेडी प्रवक्ता एजाज अहमद का कहना है कि 2024 में कोई चुनौती नहीं रहेगी. बिहार में जो परिवर्तन हुआ है, वह पूरे देश में संकेत देने का काम किया है. जहां बीजेपी का ग्राफ घट रहा है.

'सीएम नीतीश कुमार की स्वीकार्यता लगातार बढ़ रही है. उसका उदाहरण बिहार में जदयू के स्वच्छता अभियान को देखा जा सकता है. इस बार 70 लाख से अधिक जदयू के सदस्य बने हैं. पहले 40 लाख से अधिक सदस्य नहीं बन पाते थे.' - परिमल राज, जदयू प्रवक्ता

'जो राजनीतिक फैसले 2022 में हुए हैं. इसका असर 2023 में दिखेगा. बड़े राजनीतिक उलटफेर होंगे.' - प्रेम रंजन पटेल, बीजेपी प्रवक्ता

महागठबंधन का ग्राफ बढ़ रहा है : बिहार में महागठबंधन का ग्राफ बढ़ रहा है. साथ ही नीतीश कुमार के लिए सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को एकजुट रखना भी है. 2022 में नीतीश कुमार के खास माने जाने वाले आरसीपी सिंह के अलग होने से पार्टी को बड़ा झटका लगा है. अब पार्टी की मजबूती के लिए एकजुटता सबसे महत्वपूर्ण है. और अभी हाल ही में तेजस्वी यादव को उत्तराधिकारी घोषित करने के बाद जिस प्रकार से उपेंद्र कुशवाहा का बयान आया और पार्टी के अंदर विलय को लेकर संशय बना हुआ था, जदयू की मुश्किलें बढ़ गई थी. उसके बाद नीतीश कुमार ने जरूर जदयू आरजेडी के विलय पर अपनी चुप्पी तोड़ी है. विलय नहीं होने की बात कही है. ऐसे में सीएम नीतीश कुमार 2024 चुनाव से पहले पार्टी को एकजुट रख पाते हैं. यह भी देखना दिलचस्प होगा.

नए साल में सीएम नीतीश कुमार के सामने होंगी नई चुनौतियां

पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीजेपी से अलग होकर महागठबंधन के साथ जाकर सरकार बनाने के बाद 2024 में विपक्षी एकजुटता की बड़ी जिम्मेदारी (New year Will Be Full Of Challenges For CM Nitish Kumar) है. नीतीश कुमार इसकी बार-बार चर्चा भी करते रहते हैं. फिर उसके बाद 2025 में बिहार विधानसभा का चुनाव (Bihar Assembly Elections In 2025) है और अगले साल यानी 2023 में नागालैंड सहित कई राज्यों में होने वाले चुनाव में भी पार्टी ताकत लगा सकती है. क्योंकि पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी बनाने के लिए इन चुनाव में लड़ना जरूरी है. लेकिन सबसे बड़ी चुनौती बीजेपी के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने की है. साथ ही बिहार में आज पार्टी तीसरे नंबर की पार्टी बन गई है. तो उसे फिर से एक नंबर की पार्टी बनाने की भी चुनौती है.

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नए साल में नीतीश कुमार के सामने कई चुनौतियां? : 2022 में नीतीश कुमार ने राजनीतिक रूप से जो बड़े फैसले लिए हैं उसके कारण आने वाले सालों में चुनौतियां बढ़ी है. 2023 में नागालैंड सहित कई राज्यों में चुनाव होने हैं. अभी जदयू को बिहार के अलावे अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा मिला हुआ है. एक राज्य में और राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा मिलना जरूरी है. उसके बाद ही पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त हो जाएगा. इसलिए 2023 नीतीश कुमार के लिए महत्वपूर्ण है. और राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह को बड़ी जिम्मेदारी दी है. क्योंकि पिछले डेढ़ दशक से भी अधिक समय से बिहार में सत्ता में रहने के बाद भी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त नहीं हुआ है. दूसरी सबसे बड़ी चुनौती विपक्षी एकजुटता को लेकर है.

BJP से अलग होने के बाद बिहार CM के सामने कई चुनौतियां : बीजेपी से अलग होने के बाद नीतीश कुमार ने बीजेपी के खिलाफ 2024 में विपक्ष को एकजुट करने की घोषणा की है. पिछले दिनों नीतीश कुमार सोनिया गांधी, राहुल गांधी, शरद पवार, ओम प्रकाश चौटाला, अरविंद केजरीवाल, केसीआर, डी राजा, सीताराम येचुरी, अखिलेश यादव सहित कई नेताओं से मुलाकात की थी और 2 से 3 महीने में विपक्षी एकजुटता की रूपरेखा तय होने की बात भी कही थी. लेकिन अब तक विपक्षी एकजुटता की कोई रूपरेखा तैयार होता नहीं दिख रहा है. ऐसे में 2024 के लिए विपक्ष को एकजुट करने की बड़ी चुनौती नीतीश कुमार के सामने होगी. अब इसमें कितनी सफलता मिलती है यह देखने वाली बात है.

विपक्षी को एकजुट करने में लगे हैं नीतीश कुमार : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) 2024 में प्रधानमंत्री पद के फिर से बीजेपी के उम्मीदवार होंगे, यह तय माना जा रहा है. नरेंद्र मोदी के सामने प्रधानमंत्री पद का विपक्ष की ओर से कौन उम्मीदवार होगा?, इस पर भी सहमति बनाना एक बड़ी चुनौती है. तीसरी चुनौती 2025 में बिहार विधानसभा का चुनाव है. 2020 विधानसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन बहुत बेहतर नहीं रहा, 43 सीट पर ही जीत मिली. ऐसे में पार्टी का बेहतर प्रदर्शन हो और अधिक से अधिक सीट विधानसभा चुनाव में मिले, यह एक बड़ी चुनौती होगी. हालांकि उसके लिए पार्टी ने संगठन के स्तर पर तैयारी जरूर की है.

नए साल में नई चुनौतियां भी करेगी पीछा : पहली बार 70 लाख सदस्य पार्टी ने बनाया है. लेकिन कुढ़नी चुनाव में मिली हार से पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं. नीतीश कुमार के लिए सरकार के स्तर पर 10 लाख नौकरी और 10 लाख रोजगार देना भी एक बड़ी चुनौती है. शराबबंदी को सफल बनाने और कानून व्यवस्था को लेकर भी चुनौतियां कम नहीं है. साथ ही राजद और महागठबंधन दलों के बीच सामंजस्य बने रहे, यह भी एक बड़ा चैलेंज है. ऐसे में आरजेडी प्रवक्ता एजाज अहमद का कहना है कि 2024 में कोई चुनौती नहीं रहेगी. बिहार में जो परिवर्तन हुआ है, वह पूरे देश में संकेत देने का काम किया है. जहां बीजेपी का ग्राफ घट रहा है.

'सीएम नीतीश कुमार की स्वीकार्यता लगातार बढ़ रही है. उसका उदाहरण बिहार में जदयू के स्वच्छता अभियान को देखा जा सकता है. इस बार 70 लाख से अधिक जदयू के सदस्य बने हैं. पहले 40 लाख से अधिक सदस्य नहीं बन पाते थे.' - परिमल राज, जदयू प्रवक्ता

'जो राजनीतिक फैसले 2022 में हुए हैं. इसका असर 2023 में दिखेगा. बड़े राजनीतिक उलटफेर होंगे.' - प्रेम रंजन पटेल, बीजेपी प्रवक्ता

महागठबंधन का ग्राफ बढ़ रहा है : बिहार में महागठबंधन का ग्राफ बढ़ रहा है. साथ ही नीतीश कुमार के लिए सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को एकजुट रखना भी है. 2022 में नीतीश कुमार के खास माने जाने वाले आरसीपी सिंह के अलग होने से पार्टी को बड़ा झटका लगा है. अब पार्टी की मजबूती के लिए एकजुटता सबसे महत्वपूर्ण है. और अभी हाल ही में तेजस्वी यादव को उत्तराधिकारी घोषित करने के बाद जिस प्रकार से उपेंद्र कुशवाहा का बयान आया और पार्टी के अंदर विलय को लेकर संशय बना हुआ था, जदयू की मुश्किलें बढ़ गई थी. उसके बाद नीतीश कुमार ने जरूर जदयू आरजेडी के विलय पर अपनी चुप्पी तोड़ी है. विलय नहीं होने की बात कही है. ऐसे में सीएम नीतीश कुमार 2024 चुनाव से पहले पार्टी को एकजुट रख पाते हैं. यह भी देखना दिलचस्प होगा.

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