पटना: राजधानी पटना में मंगलवार को चेहल्लुम (Chehallum) के मौके पर कर्बला से 72 शहीदों की याद में मातमी जुलूस (Matami Juloos) निकाला गया. शिया समुदाय (Shia Community) के लोगों ने मातमी जुलूस के साथ दुलदुल का घोड़ा बौली इमामबाड़ा से नौजर कटरा इमामबाड़ा तक निकाला. जिसमें भारी संख्या में लोगों ने भाग लिया.
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इस मातमी जुलूस में शामिल सभी बूढे-बच्चे और नौजवान सड़कों पर सीना पीट-पीटकर गम का इजहार किया. महिलाएं नम आंखों से उनकी शहादत को श्रद्धांजलि दीं. वहीं, मातमी जुलूस में शामिल हजरत निजामुद्दीन ने बताया कि इमाम हुसैन इंसानियत और इस्लाम दोनों की रक्षा की. अगर उस जमाने वो अपनी शहादत को पेश न करते तो शायद हमलोग जिंदा नहीं रहते और रहते तो किसी के गुलामी के जंजीर मे बंधे रहते.
इस्लामी मान्यताओं के अनुसार, इस्लाम धर्म को बचाने के लिए हजरत मोहमद साहब के नवासे मो. हजरत हुसैन ने अपने 72 साथियों के साथ कर्बला की जंग को लड़ा था. जहां मोहमद हजरत हुसैन लड़ते-लड़ते शहीद हो गए. कर्बला इराक की राजधानी बगदाद से 100 किलोमीटर दूर एक कस्बा है. वहीं,10 अक्टूबर 680 ई. को 123 लोग मौजूद थे. जिसमें हजरत हुसैन के साथ 72 मर्द-औरतें और 51 बच्चे शामिल थे. वहीं, दूसरी तरफ 40 हजार सेना थी.
हजरत हुसैन की फौज के कमांडर अब्बास इब्ने अली अपने 72 साथियों के साथ यजीदी फौज की कमान उमर इब्ने सअद से जमकर मुकाबला किया. इस्लाम धर्म को झुकने या गिरने नहीं दिया. उमर लाख बार अब्बास को धर्म परिवर्तन के लिए कहते रहे. लेकिन, उन्होंने युद्ध के लिये ललकारा और इस्लाम धर्म को बदनाम नहीं होने दिया. अब्बास लड़ते-लड़ते हजारों सेना के साथ वीरगति प्राप्त को प्राप्त हुए. उनकी मौत के बाद बच्चे, महिलाओं की बहुत बेरहमी से हत्या कर दी गई.
इस्लाम धर्म को बचाने के लिए हजरत हुसैन अपने 72 साथियों के साथ शहीद हुए थे. जिसमें महिला और बच्चे भी शहीद हुए थे. इसलिए शिया समुदाय के लोग अपने कलेजा को ठोकते हुए. मातमी जुलूस हजरत हुसैन के याद में निकलते है. जहां लोग उनकी याद में उनके प्रति श्रद्धांजलि देते हैं और शोक मनाते हैं.
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