पटना: कारगिल विजय युद्ध (Kargil War) के 22 साल पूरे होने के बाद भी आज तक शहीद के परिवार को सरकारी लाभ नहीं मिल सका है. सरकार की तरफ से किए गए तमाम वादे अधूरे दिख रहे हैं. बता दें कि कारगिल युद्ध के दौरान 29 मई 1999 को बटालिक सेक्टर से प्वाइंट 4268 पर चार्ली कंपनी की अगुआई कर रहे गणेश प्रसाद यादव शहीद हो गए थे.
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देश की सुरक्षा चक्र में कारगिल युद्ध भुला नहीं जा सकता. जहां हमारे देश की देश रक्षा के लिए 527 जवानों ने शहादत दी. इसी दिन को लेकर पूरा देश विजय दिवस मनाते आया है. इस अवसर पर कारगिल शहीदों को याद किया जाता है. उन्हीं शहीदों में 26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को कारगिल से खदेड़ कर 'ऑपरेशन विजय' (Operation Vijay) को पूर्ण किया था.
इस युद्ध में भारत के 527 जवान वीर गति को प्राप्त हुए थे. इनमें से एक थे शहीद नायक गणेश प्रसाद यादव (Martyr Ganesh Prasad Yadav) थे जो पटना के बिहटा प्रखंड के पांडेचक के रहने वाले थे. शहीद गणेश प्रसाद को पराक्रम और बुलंद हौसले के लिए वीर च्रक से नवाजा गया था. बता दें कि कारगिल युद्ध के दौरान 29 मई 1999 को बटालिक सेक्टर के प्वाइंट 4268 पर चार्ली कंपनी की अगुआई कर रहे गणेश यादव ने हंसते-हंसते अपनी जान न्योछावर कर दी थी.
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30 जनवरी 1971 को बिहटा के पाण्डेयचक गांव निवासी रामदेव यादव और बचिया देवी के घर गणेश यादव का जन्म हुआ था. शहीद नायक गणेश प्रसाद यादव को बचपन से सेना में ही जाने का मन था. वे मैट्रिक का परीक्षा देने के बाद ही सेना में भर्ती हुए और बिहार रेजिमेंट से वह कारगिल के बटालिक सब सेक्टर में तैनात थे.
उनकी शादी 1994 में पुष्पा राय से हुई थी. शादी के बाद उनके दो बच्चे हुए. इनके नाम अभिषेक और ज्योति हैं. इन दिनों अभिषेक सैनिक स्कूल से ग्रेजुएशन कर चुका है और बेटी मेडिकल की पढ़ाई कर रही है. कारगिल दिवस जब भी आता है, उनकी शहादत की घटना को याद कर पत्नी पुष्पा देवी, पिता रामदेव यादव और माता बचिया देवी का कलेजा गर्व से चौड़ा हो जाता है.
शहीद के अंतिम दर्शन के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव भी पहुंचे थे. गांव की बदहाली को देखते हुए घोषणाओं की झड़ी लगा दी गई थी. इनमें शहीद के नाम पर गांव तक जाने के लिए पक्की सड़क, अस्पताल और स्कूल सबसे अहम था. इससे पूरे क्षेत्र के लोग भी सरकार से प्रभावित और उत्साहित हुए थे. सरकार ने अपने खर्चे से स्कूल का भवन बना दिया. लेकिन आज तक उसे प्राथमिक विद्यालय का दर्जा नहीं मिला. जिससे अब भी उसमें एक शिक्षक का इंतजार है.
सरकार की उपेक्षा के कारण ग्रामीणों ने इसे तबेले में तब्दील कर दिया है. आश्चर्य की बात यह है कि 22 साल बाद भी एक रुई और सुई भी लोगों के लिए नहीं पहुंच सकी. सड़क की हालत भी बद से बदतर बनी हुई है. शहीद के नाम पर सामुदायिक भवन की नींव भी पड़ी, लेकिन आज तक काम नहीं पूरा हो सका. जिसके चलते वह जगह चारा रखने का गोदाम बन कर रह गया है. कारगिल दिवस के मौके पर एक सरकारी कैलेंडर की तरह शहीद जवान गणेश को याद करके उसके बाद गांव को भुला दिया जाता है.
शहीद के अंतिम दर्शन के दिन कई मंत्री से लेकर सांसद तक आए थे. स्थानीय विधायक को भी कई बार इन समस्या से अवगत कराया गया. लेकिन अभी तक शहीद के परिवार को सरकारी लाभ नहीं मिल सका. आपको बता दें कि उस समय भारत सरकार की तरफ से शहीद परिवार को 15 लाख के साथ गैस एजेंसी आवंटित किया गया था. वहीं राज्य सरकार की तरफ से 10 लाख मिले थे. साथ ही साथ राज्य सरकार की तरफ से कई वादे भी किए गए थे. लेकिन अब तक पूरा न हो सका.
हालांकि उस समय के राजद पार्टी से सांसद और वर्तमान बीजेपी सांसद रामकृपाल यादव ने अपने तरफ से बिहटा के लई चौक पर शहीद नायक गणेश प्रसाद यादव का स्मारक बनवाया था, जो आज भी है. लेकिन देखभाल करने वाला कोई नहीं है. केवल कारगिल विजय दिवस के दिन या अन्य सरकारी कैलेंडर की तरह स्मारक पर नेता, मंत्री या सांसद पहुंचते हैं और माल्यार्पण कर चले जाते हैं. शहीद परिवार आज भी सरकार से मदद की गुहार लगाती है.
'तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव मेरे घर आए थे. वे कई वादे भी किए लेकिन आज भी वादे आधे-अधूरे ही हैं. राज्य सरकार उस समय शहीद को लेकर कई घोषणाएं की. लेकिन घोषणा खोखला साबित हुआ. न सरकारी नौकरी मिली और न ही कोई सरकारी सुविधा. मेरा घर भी टूटा-फूटा है. सरकार ने बोला था कि घर बना कर देंगे लेकिन सब झूठ निकला. एक माह पूर्व छोटे बेटे की भी सोन नदी में डूबने से मौत हो गई है. इस बुढ़ापे में हमलोगों का कोई सहारा नहीं रहा.' -बचिया देवी, शहीद जवान की मां