नई दिल्ली/पटना: पीएम मोदी ने कोरोना वायरस को लेकर राष्ट्र के नाम पर संबोधन किया था. इस दौरान उन्होंने जनता कर्फ्यू की अपील की. इसको लेकर बिहार के राजद से राज्यसभा सांसद प्रोफेसर मनोज कुमार झा ने प्रतिक्रिया दी. उन्होंने सदन में कहा कि उन्हें बहुत तसल्ली हुई और संतोष मिला. कोरोना वायरस से बचाव को लेकर प्रोफेसर झा ने कहा कि उन्हें इस दिन का काफी लंबे समय से इंतजार था कि पीएम मोदी देश को संबोधित करेंगे.
मनोज कुमार झा ने कहा कि कोरोना महामारी की वजह से शहरों, उच्च-मध्यम वर्ग और आम जनता में कोहराम मचा हुआ है. जनता को बेरोजगारी झेलनी पड़ रही है. कोरोना वायरस की वजह से दिहाड़ी मजदूरों का क्या होगा, इस बात को लेकर मनोज झा ने राज्यसभा में शून्यकाल में सवाल पूछे. मनोज झा ने कहा कि लोग रोज कमाते हैं और शाम को खाते हैं. ऐसे लोग खारिज कर दिये गए हैं.
तो दिल खुश होता- मनोज झा
मनोज झा ने आगे कहा कि पीएम मोदी का संदेश अपने पब्लिक हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए संदेश होता, तो मेरा दिल और खुश होता. खैर कोई नहीं, पीएम मोदी ने अपने संदेश के आखिर में कहा कि और भी संदेश आएंगे. क्योंकि समस्या बहुत बड़ी है और डरावनी है. इसके साथ ही उन्होंने कई उदाहरण देते हुए इस मुद्दे पर कई बातें रखी.
पीएम मोदी के साथ खड़ा हूं- मनोज झा
राज्यसभा सांसद ने कहा कि इंटरनेशनल एंजेसियों की रिपोर्ट आई है कि भारत में 2.5 करोड़ नौकरियां जाने वाली हैं. मैं मोदी जी की संजीदगी और संवेदनशीलता के साथ खड़ा हूं. लेकिन अभी तक कोरोना को लेकर शहरों और उच्च मध्यम वर्ग के नजरीये से इस वायरस को देख रहे हैं. लेकिन ग्रामीणों और निम्न वर्ग के लोगों के नजरिये पर इस वायरस के परिणाम नहीं देखा.
एनआईओएस पर भी बोले झा
मनोज झा ने मांग करते हुए कहा कि गिरिराज सिंह जी मनरेगा का वेजेज 600 रुपये प्रतिदिन होना चाहिए, इसे इतना करवाने का कष्ट करें. एनआईओएस पर बोलते हुए मनोज झा ने कहा कि दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि इसी सरकार के एचआरडी मिनिस्टर ने 2014 से 2019 तक इसे शुरू किया और अगली सरकार में इसे रद्द कर दिया गया. लाखों छात्र परेशान हैं. यही मामला शिक्षक प्रेरक का पूरे देश में चल रहा है. पहले परीक्षा पास करनी पड़ती है फिर कोर्ट का चक्कर लगाना पड़ता है. ये बंद होना चाहिए.
मीडिया का रोल अहम
मनोज कुमार झा ने कहा कि मीडिया का रोल अहम होता है. अपने क्षेत्र के लोगों की समस्याओं को लेकर विधायक मीडिया से सार्वजनिक करें. हमारी सरकार की उपलब्धि से उठकर बातें करनी चाहिए. मौलिक सरोकारों को ध्यान में रखना चाहिए. ऐसा कोई नहीं करता. उन्होंने कहा कि ऐसे मसलों पर हमें एक साथ बोलना चाहिए, 'वक्त की इस धुंध में सारे सिंकदर खो गए, ये जमीन बाकी रही बस आसमां बाकी रहा'.