पटनाः बिहार की राजधानी पटना में एक ओर जहां चकाचौंध है तो वहीं दूसरी तरफ घनघोर अंधेरा भी है. कुष्ठ रोग (Leprosy) से पीड़ित आज भी समाज के मुख्यधारा से दूर हैं. राजधानी से 8 किलोमीटर दूर रामनगर मोहल्ले (Ramnagar Colony) में कुष्ठ पीड़ित परिवार रहते हैं. वहां न तो कोई हिंदू है, न मुस्लिम, न सिख और न ईसाई. ये सब के सब कुष्ठ पीड़ित हैं.
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यहां रहने वाले सभी लोग बीमारी से ग्रसित भले ही न हो लेकिन समाज इन्हें स्वीकार नहीं करता है. रामनगर में रहने वाले लोगों तक ना तो कोई सरकारी मदद पहुंच पाती है और न ही उन्हें रोजगार मयस्सर है. रोजी-रोटी के लिए भिक्षाटन ही विकल्प है. आधार कार्ड में राम नगर का पता होना ही लोगों को समाज से मुख्य धारा से पीछे धकेलने के लिए काफी है.
यहां के लोग बताते हैं कि छुआछूत के कारण उन्हें कोई रोजगार नहीं देता है. लोग उनके संपर्क में नहीं आना चाहते हैं. इन्हें रोजगार मुहैया करवाने के लिए अब तक सरकारी की ओर से कोई पहल नहीं की गई है. स्थानीय लोगों ने बताया कि इस मोहल्ले में करीब 200 की आबादी रहती है. लेकिन ऐसा नहीं है कि सब के सब कुष्ठ से पीड़ित हैं.
मोहल्ले के 70 प्रतिशत से ज्यादा लोग स्वस्थ हैं, लेकिन इसके बाद भी समाज में उन्हें बराबर का दर्जा नहीं मिल पाता है. लोग उनसे छुआछूत करते हैं. बता दें कि पूरे बिहार में कुष्ठ पीड़ितों के 51 मोहल्ले हैं. इनमें लगभग 11,000 की आबादी रहती है. और बिडंबना ये है कि इतनी बड़ी आबादी आज भी समाज के मुख्य धारा में शामिल नहीं है.
इन्हीं में से एक हैं रमेश प्रसाद जो लगातार कुष्ठ रोगियों के हितों की बात करते आए हैं. उन्होंने बताया कि नियम के मुताबिक कुष्ठ पीड़ितों को 35 किलो अनाज हर महीने मिलना चाहिए लेकिन 5 किलो अनाज ही इन्हें मिल पाता है. कई पीड़ित बायोमैट्रिक सिस्टम लागू होने के बाद अंगूठे का निशान नहीं दे पाते जिसके चलते उनका राशन कार्ड भी रद्द हो चुका है. आलम ये है कि कई परिवारों के सामने आज रोजी-रोटी का संकट है.
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75 साल के शिवाश्रय महतो कहते हैं कि भीख मांगते हुए पूरी जिंदगी कट गई. आज भी भीख मांगने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है. कुष्ठ रोग हुआ था लेकिन अब ठीक हो चुके हैं. अर्जुन मुर मुर ने बताया कि वे झारखंड के रहने वाले हैं, लेकिन कुष्ठ पीड़ित होने के बाद से वे बिहार में ही रह रहे हैं. इनकी भी यही दास्तां है. मोहम्मद मुस्लिम खान, पूनम देवी, सुशीला देवी, रमेश प्रसाद...ऐसे सैकड़ो नाम हैं जो जिन्होंने कुष्ठ रोग पर तो जीत हासिल कर ली लेकिन समाज की कुंठित मानसिकता उन्हें जीने नहीं दे रही है.
पीड़ितों को 1 डिसमिल जमीन देने का प्रावधान है. लेकिन जमीन तो छोड़ ही दीजिए, कोटे का 35 किलो अनाज भी नहीं मिल पा रहा है. बड़ा कहते थे समाज कल्याण के मंत्री मदन साहनी. पीड़ितों के लिए हमारी सरकार प्रतिबद्ध है. हम हर पीड़ित को हर महीने एक हजार रूपये दे रहे हैं. उनके रोजगार के लिए हमें चिंता रहती है. लेकिन ऐसा नहीं है मंत्रीजी.
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हम तो कहते हैं कि जिनके लिए आप चिंतित हैं जरा उनके बीच जाइए तो सही. मिलिए तो सही. दुख-दर्द को दूर नहीं कर सकते तो सुन ही लीजिए कम से कम. रामनगर में सैकड़ों परिवार आपका इंतजार कर रहे हैं.