पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के दिल्ली से इलाज करवा कर लौटने के बाद बुधवार की देर रात और गुरुवार को बिहार में जिस तबादले की सियासत (Bihar Politics) को किया गया उसने नीतीश कुमार की सोच, बुनियादी जरूरत और बिहार के जदयू की राजनीतिक तैयारी पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं. यही वजह है कि कई विभागों में बड़े पैमाने पर हुए तबादले को रोक दिया गया.
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तबादले पर सियासत
तबादले के पीछे की जो राजनीतिक वजह है वह सीधे तो नहीं दिख रही है, लेकिन जो सीधे तौर पर तबादले में दिख रहा है उस पर विपक्ष जमकर राजनीति करेगा इसमें दो राय नहीं है. क्योंकि सत्ता पक्ष तबादले की अपनी ही सियासत में फंस गया है. इसकी मूल वजह बिहार में होने वाले पंचायत चुनाव हैं.
मदन सहनी फैक्टर
बिहार में जदयू कोटे से मंत्री बने मदन सहनी (Madan Sahni) के पास समाज कल्याण विभाग है. यह ऐसा विभाग है जिसके पास कई ऐसी योजनाएं हैं जो सीधे जनता से जुड़ती हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू जिस तरह चारों खाने चित हुई उसके पीछे सरकार का जनता के पास तक न पहुंचना रहा. सरकार अपने काम से जनता के बीच जाकर यह बताना चाहती है कि नीतीश कुमार सिर्फ काम कर रहे हैं. बिहार का पंचायत चुनाव नीतीश सरकार के लिए एक दूसरा सेमीफाइनल है जिसमें मदन सहनी के पास जो विभाग है उसमें काम करने वाले लोग पंचायत चुनाव की अहम कड़ी हैं.
आंगनवाड़ी सेविका से लेकर सहायिका तक इसी विभाग के तहत आते हैं और इनका सीधा रिश्ता गांव से है जो पंचायती राज व्यवस्था का अहम हिस्सा है. लेकिन अधिकारी, खाद्यान्न बंटवारे से लेकर आंगनबाड़ी सहायिका और सेविकाओं तक सुविधा पहुंचाने में भी कोताही करते हैं जिसकी शिकायत जनप्रतिनिधियों को मिलती है.
ऐसे में जब विभाग में उनकी बात नहीं सुनी गई तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया. इस्तीफे के बाद नीतीश के सामने बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि अधिकारियों की लालफीताशाही का जवाब तो हो सकता है लेकिन अगर जनता सवाल करती रही तो पंचायत चुनाव में फिर एक बार नीतीश को मुंह की खानी पड़ सकती है. ऐसे में इसकी रणनीति मजबूती से बनानी होगी क्योंकि मदन सहनी का इस्तीफा नीतीश के इसी सियासी विरोध की तरफ इशारा करता है.
शिक्षा विभाग का फैक्टर
बिहार में जब नीतीश कुमार 2005 में मुख्यमंत्री बने थे तब उन्होंने सार्वजनिक मंच से बिहार के सभी अध्यापकों को धन्यवाद दिया था. उन्होंने कहा था कि बिहार के बदलाव के लिए उन्होंने राजनीति को नई दिशा दी है. अब बिहार को बदलना है तो शिक्षा व्यवस्था (Education Department Bihar) को नई दिशा देनी होगी.
शिक्षा विभाग से थी लोगों को उम्मीदें
15 साल बीत जाने के बाद भी शिक्षकों की बहाली के मामले पर जिस तरीके से नीतीश सरकार कटघरे में खड़ी है उससे एक बात तो अब नीतीश कुमार को भी लगने लगा है कि अगर इस महकमे को ठीक नहीं किया गया तो राजनीति में बहुत कुछ बिगड़ जाएगा. एसटीइटी के परिणाम को देकर नीतीश कुमार ने पंचायत चुनाव कि पहले नब्ज को टटोलने का काम किया और गुरुवार को प्रखंड शिक्षा पदाधिकारियों के ढाई हजार के आसपास हुए तबादलों को भी रोक दिया. नीतीश कुमार यह जानते हैं कि अगर यह तबादले किए गए तो वैसे कई लोगों के मन में गुस्सा बैठ जाएगा जो जमीन पर उनके लिए तैयारी करते हैं.
अपनों से ही लड़ाई
शिक्षा विभाग के इस फैक्टर को विपक्ष समझ तो जरूर रहा है, लेकिन बहुत कुछ कहने की स्थिति में नहीं है. नीतीश कुमार अपनी राजनीति में अपनों से ही लड़ रहे हैं. तबादला शिक्षा विभाग के मंत्री ने किया था. रोकने का आदेश मुख्यमंत्री ने दिया है. मामला साफ है कि कहीं न कहीं नीतीश के मंत्री कोई ऐसी गलती जरूर कर रहे हैं जो नीतीश के मन से नहीं है.
पंचायत से नई सियासी पटकथा
बिहार में नीतीश कुमार जब गद्दी पर बैठे तो उन्हें ऐसा लगने लगा था कि एक ऐसा वोट बैंक भी है जो पंचायती राज व्यवस्था से ही हासिल किया जा सकता है. महिलाओं को मजबूत करने के लिए उन्होंने शराब बंदी कानून लाया, दहेज बंदी कानून बनाए, महिलाओं को पंचायतों में 50 फ़ीसदी आरक्षण दिया, नौकरियों में महिलाओं को आरक्षण दिए. मामला साफ था कि पंचायती राज व्यवस्था को इतना मजबूत कर दिया जाए कि वहां एक ऐसा वोट बैंक खड़ा हो जाए जो नीतीश के कहने पर एक लाइन बना ले.
नीतीश का फोकस
जीविका दीदियों को लेकर भी नीतीश कुमार ने जिस तरीके से काम किए हैं वह भी पंचायती राज व्यवस्था का एक बड़ा उदाहरण है. आशा हो, आंगनबाड़ी हो या फिर पंचायती राज व्यवस्था के तहत आने वाले मुखिया हो, सभी को नीतीश सरकार ने अपनी राजनीतिक मजबूती के लिए खड़ा किया. लेकिन जो उसमें सबसे अहम कड़ी थी वह शिक्षा विभाग की थी. जो बाद के दिनों में नीतीश की नीतियों से नाराज हो गई.
पंचायत चुनाव की तैयारी
हालांकि पंचायत चुनाव (Bihar Panchayat Election) में जदयू मजबूती से खड़ी हो अपने वोट बैंक को जीत में बदल दे इसकी पूरी तैयारी शुरू हो गई है. यह भी सिर्फ 2 महीने के भीतर ही होना है. ऐसे में नीतीश सरकार सजग जरूर है कि कोई ऐसी कड़ी नजर आ जाए जिससे पंचायतों में सरकार का पंचनामा लिखा जाए. बहरहाल नीतीश सरकार ने जिन तबादलों को रोका है वह निश्चित ही 2 महीने बाद होने वाली पंचायत की सरकार के चुने जाने का पैमाना बन सकता है.
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