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...तो BJP के खिलाफ 'विद्रोह' का साहस नहीं जुटा सके नीतीश, इसीलिए 'थर्ड फ्रंट' के मंच से बनाई दूरी - Nitish Kumar will not attend Chautala Jind rally

ओमप्रकाश चौटाला का निमंत्रण स्वीकार करने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने मन बदल लिया है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कौन सी ऐसी मजबूरी थी कि सीएम ने वहां न जाने का फैसला किया है. क्या बीजेपी के खिलाफ वे 'विद्रोह' का साहस नहीं जुटा सके, इसीलिए ऐसे किसी मंच से किनारा कर लिया, जो नरेंद्र मोदी को हराने के लिए तैयार हो रहा है. पढ़िए इनसाइड स्टोरी...

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Published : Sep 11, 2021, 7:24 PM IST

Updated : Sep 11, 2021, 7:33 PM IST

पटना: इंडियन नेशनल लोकदल के नेता ओम प्रकाश चौटाला (Om Prakash Chautala) के बुलावे पर 25 सितंबर को पूर्व उप प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल की जयंती पर हरियाणा के जींद में होने वाले कार्यक्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) शामिल नहीं होंगे. पहले हामी भरना और फिर इनकार करना. आखिर इस फैसले की क्या वजह रही, ये तो सीएम ही जानें लेकिन इसके पीछे बीजेपी (BJP) की नाराजगी बड़ी वजह समझी जा रही है.

ये भी पढ़ें: चौटाला की जींद रैली में शामिल नहीं होंगे नीतीश कुमार, ललन सिंह ने बताई वजह

दरअसल ओम प्रकाश चौटाला अपने पिता देवीलाल की जयंती के बहाने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले एक ऐसा मंच तैयार करना चाह रहे हैं, जहां गैर बीजेपी और गैर कांग्रेस दलों के नेताओं का जुटान हो. मतलब तीसरे मोर्चे की मजबूत किलाबंदी की कवायद.

इस जंयती समारोह के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ-साथ पूर्व प्रधानमंत्री और जेडीएस नेता एचडी देवेगौड़ा, समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव और शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख प्रकाश सिंह बादल समेत कई दिग्गज नेताओं को आमंत्रित किया गया है.

ये भी पढ़ें: तेजस्वी यादव बोले- बेहद ही डरपोक मुख्यमंत्री हैं नीतीश कुमार

खास बात ये है कि जिन प्रमुख दलों के नेताओं को बुलावा भेजा गया है, उनमें नीतीश कुमार की जेडीयू को छोड़कर किसी भी पार्टी का संबंध न तो एनडीए यानी बीजेपी से है और न ही यूपीए यानी कांग्रेस से हैं. मतलब साफ है कि इनमें से सिर्फ नीतीश कुमार ही अकेले वैसे नेता हैं, जो एनडीए में रहकर भी चौटाला के अघोषित थर्ड फ्रंट के मंच पर दिखाई देते.

अब ऐसे में नीतीश कुमार अगर ओमप्रकाश चौटाला के बुलावे पर देवेगोड़ा, मुलायम और बादल के साथ मंच शेयर करते तो इसका संदेश यही जाता कि वे बीजेपी विरोध में बन रहे मोर्चा के साथ हैं. यही बात बीजेपी को नागवार गुजरी.

ये भी पढ़ें: 'संघ के सामने झुक गए हैं नीतीश कुमार, सिलेबस से महापुरुषों को बाहर करना इसका प्रमाण'

बिहार में नीतीश कुमार बीजेपी की मदद से ही मुख्यमंत्री बने बैठे हैं. कम सीट आने के बावजूद वे सीएम की कुर्सी पर विराजमान हैं. ये सिर्फ इसलिए क्योंकि बीजेपी ऐसा चाहती है. इतना ही नहीं केंद्र की मोदी सरकार में भी जेडीयू शामिल है. आरसीपी सिंह इस्पात मंत्री हैं. अब ऐसे में बीजेपी को ये बात भला कैसे पसंद आ सकती है कि उसका सहयोगी उसके विरोध में बन रहे मोर्चे के मंच की शोभा बढ़ाए.

जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह ने चौटाला के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री के शामिल नहीं होने के पीछे की वजह हालांकि कोरोना की तीसरी लहर की संभावना को लेकर जारी तैयारी, वायरल फीवर और बिहार में बाढ़ के हालात को बताया, लेकिन सियासी जानकार इसके पीछे की असल वजह जेडीयू और नीतीश कुमार की मजबूरी बताते हैं.

ये भी पढ़ें: 'नीतीश कुमार PM मैटेरियल होते तो मोदी के सामने घुटने नहीं टेकते'

माना जाता है कि नीतीश कुमार के चौटाला के साथ मंच साझा करने की खबरों के बाद बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने अपनी नाखुशी जताई. जेडीयू नेतृत्व तक अपनी बात भी पहुंचा दी. अब ऐसे में नीतीश कुमार बिल्कुल भी बीजेपी को नाराज करने का खतरा मोल नहीं लेना चाहेंगे.

वैसे भी ये नीतीश कुमार 2010 वाली स्थिति में नहीं हैं, जिन्होंने मोदी विरोध में बीजेपी के नेताओं को डिनर पर बुलाकर डिनर कैंसिल कर दिया हो. या 2013 में नरेंद्र मोदी के पीएम कैंडिडेट बनने के विरोध में बीजेपी से नाता तोड़ लिया हो. अब समय और सियासी समीकरण बदल चुके हैं. आज नीतीश कुमार बीजेपी की बैसाखी से सरकार चला रहे हैं. 74 सीट लाने के बावजूद बीजेपी ने 43 सीट वाले नीतीश को गद्दी सौंप दी. अब सोचिए जरा जिस बीजेपी के 'एहसान' पर नीतीश लगातार चौथी बार सत्ता का सुख भोग रहे हैं, वह उसी बीजेपी के सबसे बड़े तारणहार नरेंद्र मोदी के खिलाफ किसी मंच पर खड़े होकर अपने लिए गड्ढा खोदेंगे?

ये भी पढ़ें: उपेंद्र कुशवाहा के सामने लगा नारा, 'देश का प्रधानमंत्री कैसा हो... नीतीश कुमार जैसा हो'

कभी मोदी के खिलाफ खुद को विपक्षी चेहरा समझने वाले नीतीश हालांकि 2017 के बाद (जब बिहार में दोबारा बीजेपी से गठबंधन हुआ) कई बार कह चुके हैं कि वह पीएम पद की रेस में नहीं है, लेकिन फिर भी हाल के दिनों में उपेंद्र कुशवाहा समेत कई नेता उन्हें बार-बार पीएम मैटेरियल बताते रहते हैं. जेडीयू राष्ट्रीय परिषद की बैठक में तो बकायदा प्रस्ताव भी पारित कर दिया गया.

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक ऐसा नहीं है कि नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री बनने की अपनी अधूरी ख्वाहिश हमेशा के लिए त्याग दिया है, लेकिन हां वो जमीनी हकीकत अच्छी तरह से समझ चुके हैं. वो जानते हैं कि अपने बूते तो जेडीयू कभी इस स्थिति में नहीं आ सकता कि वह केंद्र में सरकार बनाने का दावा कर सके, लेकिन अगर कोई ऐसा मंच बनता है जो गैर कांग्रेसी हो तो चेहरा नीतीश हो भी सकते हैं.

ये भी पढ़ें: रामविलास की बरसी पर आने का मिला न्योता, बोले लालू- मेरा आशीर्वाद चिराग के साथ

मतलब ये कि नीतीश तीसरे मोर्चे या ऐसे किसी फ्रंट का हिस्सा तो बनना चाहते हैं, जो मोदी को हराने की स्थिति में हो लेकिन वे तबतक सामने नहीं आना चाहते हैं जबतक कि यह मुकम्मल रुप न ले ले. क्योंकि 2014 से लेकर अबतक हर चुनाव में तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट तो होती है, लेकिन यह अंजाम तक नहीं पहुंच पाता है. ऐसे में नीतीश कुमार ऐसी किसी कोशिश का हिस्सा बनकर अपनी सरकार नहीं गंवाना चाहेंगे. लिहाजा उन्होंने चौटाला की इस कवायद से खुद को दूर कर लिया, ताकि बीजेपी या नरेंद्र मोदी नाराज न हो जाएं. हालांकि देवीलाल से अपनी आत्मीयता और चौटाला से नजदीकी बनाए रखने के लिए महासचिव केसी त्यागी को वहां भेजने का फैसला किया गया है.

आपको बताएं कि इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के नेता ओम प्रकाश चौटाला पहले भी तीसरे मोर्चे को लेकर अपना इरादा जाहिर कर चुके हैं. वैसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पहले भी विपक्षी नेताओं को एक मंच पर लाने की कोशिश की थी और महागठबंधन बनाया था, लेकिन यह प्रयोग बहुत आगे नहीं जा सका. यहां ये भी याद दिलाना जरूरी है कि नीतीश कुमार और केसी त्यागी ने अगस्त महीने में ओमप्रकाश चौटाला से गुरुग्राम स्थित उनके आवास पर मुलाकात की थी. नीतीश और केसी त्यागी ने कभी चौटाला के पिता और देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री दिवंगत देवीलाल के साथ काम किया था.

पटना: इंडियन नेशनल लोकदल के नेता ओम प्रकाश चौटाला (Om Prakash Chautala) के बुलावे पर 25 सितंबर को पूर्व उप प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल की जयंती पर हरियाणा के जींद में होने वाले कार्यक्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) शामिल नहीं होंगे. पहले हामी भरना और फिर इनकार करना. आखिर इस फैसले की क्या वजह रही, ये तो सीएम ही जानें लेकिन इसके पीछे बीजेपी (BJP) की नाराजगी बड़ी वजह समझी जा रही है.

ये भी पढ़ें: चौटाला की जींद रैली में शामिल नहीं होंगे नीतीश कुमार, ललन सिंह ने बताई वजह

दरअसल ओम प्रकाश चौटाला अपने पिता देवीलाल की जयंती के बहाने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले एक ऐसा मंच तैयार करना चाह रहे हैं, जहां गैर बीजेपी और गैर कांग्रेस दलों के नेताओं का जुटान हो. मतलब तीसरे मोर्चे की मजबूत किलाबंदी की कवायद.

इस जंयती समारोह के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ-साथ पूर्व प्रधानमंत्री और जेडीएस नेता एचडी देवेगौड़ा, समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव और शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख प्रकाश सिंह बादल समेत कई दिग्गज नेताओं को आमंत्रित किया गया है.

ये भी पढ़ें: तेजस्वी यादव बोले- बेहद ही डरपोक मुख्यमंत्री हैं नीतीश कुमार

खास बात ये है कि जिन प्रमुख दलों के नेताओं को बुलावा भेजा गया है, उनमें नीतीश कुमार की जेडीयू को छोड़कर किसी भी पार्टी का संबंध न तो एनडीए यानी बीजेपी से है और न ही यूपीए यानी कांग्रेस से हैं. मतलब साफ है कि इनमें से सिर्फ नीतीश कुमार ही अकेले वैसे नेता हैं, जो एनडीए में रहकर भी चौटाला के अघोषित थर्ड फ्रंट के मंच पर दिखाई देते.

अब ऐसे में नीतीश कुमार अगर ओमप्रकाश चौटाला के बुलावे पर देवेगोड़ा, मुलायम और बादल के साथ मंच शेयर करते तो इसका संदेश यही जाता कि वे बीजेपी विरोध में बन रहे मोर्चा के साथ हैं. यही बात बीजेपी को नागवार गुजरी.

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बिहार में नीतीश कुमार बीजेपी की मदद से ही मुख्यमंत्री बने बैठे हैं. कम सीट आने के बावजूद वे सीएम की कुर्सी पर विराजमान हैं. ये सिर्फ इसलिए क्योंकि बीजेपी ऐसा चाहती है. इतना ही नहीं केंद्र की मोदी सरकार में भी जेडीयू शामिल है. आरसीपी सिंह इस्पात मंत्री हैं. अब ऐसे में बीजेपी को ये बात भला कैसे पसंद आ सकती है कि उसका सहयोगी उसके विरोध में बन रहे मोर्चे के मंच की शोभा बढ़ाए.

जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह ने चौटाला के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री के शामिल नहीं होने के पीछे की वजह हालांकि कोरोना की तीसरी लहर की संभावना को लेकर जारी तैयारी, वायरल फीवर और बिहार में बाढ़ के हालात को बताया, लेकिन सियासी जानकार इसके पीछे की असल वजह जेडीयू और नीतीश कुमार की मजबूरी बताते हैं.

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माना जाता है कि नीतीश कुमार के चौटाला के साथ मंच साझा करने की खबरों के बाद बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने अपनी नाखुशी जताई. जेडीयू नेतृत्व तक अपनी बात भी पहुंचा दी. अब ऐसे में नीतीश कुमार बिल्कुल भी बीजेपी को नाराज करने का खतरा मोल नहीं लेना चाहेंगे.

वैसे भी ये नीतीश कुमार 2010 वाली स्थिति में नहीं हैं, जिन्होंने मोदी विरोध में बीजेपी के नेताओं को डिनर पर बुलाकर डिनर कैंसिल कर दिया हो. या 2013 में नरेंद्र मोदी के पीएम कैंडिडेट बनने के विरोध में बीजेपी से नाता तोड़ लिया हो. अब समय और सियासी समीकरण बदल चुके हैं. आज नीतीश कुमार बीजेपी की बैसाखी से सरकार चला रहे हैं. 74 सीट लाने के बावजूद बीजेपी ने 43 सीट वाले नीतीश को गद्दी सौंप दी. अब सोचिए जरा जिस बीजेपी के 'एहसान' पर नीतीश लगातार चौथी बार सत्ता का सुख भोग रहे हैं, वह उसी बीजेपी के सबसे बड़े तारणहार नरेंद्र मोदी के खिलाफ किसी मंच पर खड़े होकर अपने लिए गड्ढा खोदेंगे?

ये भी पढ़ें: उपेंद्र कुशवाहा के सामने लगा नारा, 'देश का प्रधानमंत्री कैसा हो... नीतीश कुमार जैसा हो'

कभी मोदी के खिलाफ खुद को विपक्षी चेहरा समझने वाले नीतीश हालांकि 2017 के बाद (जब बिहार में दोबारा बीजेपी से गठबंधन हुआ) कई बार कह चुके हैं कि वह पीएम पद की रेस में नहीं है, लेकिन फिर भी हाल के दिनों में उपेंद्र कुशवाहा समेत कई नेता उन्हें बार-बार पीएम मैटेरियल बताते रहते हैं. जेडीयू राष्ट्रीय परिषद की बैठक में तो बकायदा प्रस्ताव भी पारित कर दिया गया.

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक ऐसा नहीं है कि नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री बनने की अपनी अधूरी ख्वाहिश हमेशा के लिए त्याग दिया है, लेकिन हां वो जमीनी हकीकत अच्छी तरह से समझ चुके हैं. वो जानते हैं कि अपने बूते तो जेडीयू कभी इस स्थिति में नहीं आ सकता कि वह केंद्र में सरकार बनाने का दावा कर सके, लेकिन अगर कोई ऐसा मंच बनता है जो गैर कांग्रेसी हो तो चेहरा नीतीश हो भी सकते हैं.

ये भी पढ़ें: रामविलास की बरसी पर आने का मिला न्योता, बोले लालू- मेरा आशीर्वाद चिराग के साथ

मतलब ये कि नीतीश तीसरे मोर्चे या ऐसे किसी फ्रंट का हिस्सा तो बनना चाहते हैं, जो मोदी को हराने की स्थिति में हो लेकिन वे तबतक सामने नहीं आना चाहते हैं जबतक कि यह मुकम्मल रुप न ले ले. क्योंकि 2014 से लेकर अबतक हर चुनाव में तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट तो होती है, लेकिन यह अंजाम तक नहीं पहुंच पाता है. ऐसे में नीतीश कुमार ऐसी किसी कोशिश का हिस्सा बनकर अपनी सरकार नहीं गंवाना चाहेंगे. लिहाजा उन्होंने चौटाला की इस कवायद से खुद को दूर कर लिया, ताकि बीजेपी या नरेंद्र मोदी नाराज न हो जाएं. हालांकि देवीलाल से अपनी आत्मीयता और चौटाला से नजदीकी बनाए रखने के लिए महासचिव केसी त्यागी को वहां भेजने का फैसला किया गया है.

आपको बताएं कि इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के नेता ओम प्रकाश चौटाला पहले भी तीसरे मोर्चे को लेकर अपना इरादा जाहिर कर चुके हैं. वैसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पहले भी विपक्षी नेताओं को एक मंच पर लाने की कोशिश की थी और महागठबंधन बनाया था, लेकिन यह प्रयोग बहुत आगे नहीं जा सका. यहां ये भी याद दिलाना जरूरी है कि नीतीश कुमार और केसी त्यागी ने अगस्त महीने में ओमप्रकाश चौटाला से गुरुग्राम स्थित उनके आवास पर मुलाकात की थी. नीतीश और केसी त्यागी ने कभी चौटाला के पिता और देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री दिवंगत देवीलाल के साथ काम किया था.

Last Updated : Sep 11, 2021, 7:33 PM IST
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