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क्या है गांधी के सपनों का भारत, क्यों जरूरी है इसका पूरा होना? पढ़ें इस खबर में

'विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा' जैसे गीतों के साथ पूरा देश आज स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. आजादी के वीरों को नमन कर रहा है. आज अपनी पीढ़ी को रूबरू करवा रहा है कि कितनी कीमती है और अद्वितीय विचारों की संवाहक है.

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Published : Aug 15, 2020, 2:35 PM IST

पटना: 'साइमन कमीशन वापस जाओ' के नारे साथ शुरू हुए भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को आज कई वर्ष बीत गए हैं. उन पलों को याद कर आज पूरा राष्ट्र 74वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. अंग्रेजों के खिलाफ भारत की इस जंग में न जानें कितनी जानों की कुर्बानियां चढ़ीं. किसी ने जोशिले अंदाज में अपना हक मांगा तो किसी ने अहिंसा को अपना हथियार बनाया.

देखें ये वीडियो

तब महात्मा गांधी ने इस आंदोलन को दिशा दी. आज जब पूरा देश आजादी के जश्न में डूबा है और वातावरण स्वतंत्रता गीतों से गुंजायमान हैं तो हर कोई बस इसमें रम जाना चाहता है. 15 अगस्त का ये दिन हमें हमारे संघर्ष और कर्तव्यों को एक बार फिर से याद दिलाता है. कोरोना काल में लोग घरों में रहकर अपने स्वतंत्रता सेनानियों को याद कर रहे हैं.

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त्याग और भोग की लय

'तेन त्यक्तेन भुंजीथा:' त्याग और भोग की लय. यह ईशावास्य उपनिषद का एक सूत्र है. यह उन विरोधाभासी सूत्रों में से है, जो अस्तित्व के रहस्य का उद्घाटन करते हैं. महात्मा गांधी कहते हैं. ईशावास्य के प्रारंभ में ही यह श्लोक है कि 'इस जगत में जो भी है, वह ईश्वर से व्याप्त है, अत: त्याग करते हुए उसका भोग करो. लेकिन जो त्याग करते हैं, वही भोग सकते हैं.

क्या है गांधी के सपनों का भारत?
महान विचारक, दार्शनिक, कुशल राजनेता एवं दूरदृष्टा महात्मा मोहनदास करमचन्द गांधी ने जिस भारत की कल्पना की थी, आजादी के 74 वर्ष बाद भी क्या हम उस भारत का निर्माण कर पाएं हैं? क्या हम गांधी को समझ पाए हैं? यह यक्ष प्रश्न हम सब के सामने है. आज हम उनके विचारों को एक बार फिर से दोहराएंगे, जिसमें हम जिक्र करेंगे कि आखिर क्या है गांधी के सपनों का भारत? कैसा है ये भारत और क्यों जरूरी है इस सपने को पूरा करना?

आर्थिक समानता अहिंसापूर्ण स्वराज की मुख्य चाबी
महात्मा गांधी का कहना है कि इस मंत्र में असाधारण ज्ञान भरा पड़ा है. मौजूदा जीवन पद्धति की जगह, जिसमें हर एक आदमी पड़ोसी की परवाह किए बिना केवल अपने ही लिए जीता है, सर्व कल्याणकारी नई जीवन पद्धति का विकास करना हो, तो उसका सबसे निश्चित मार्ग यही है. साथ ही उनका मानना था कि आर्थिक समानता अहिंसापूर्ण स्वराज की मुख्य चाबी है. आर्थिक समानता, अर्थात जगत के पास समान संपत्ति का होना यानी सबके पास इतनी संपत्ति का होना कि जिससे वे अपनी कुदरती आवश्कताएं पूरी कर सकें.

महात्मा गांधी का संदेश
महात्मा गांधी का संदेश

'भारत को खुद लिखनी है अपनी तकदीर'
महात्मा गांधी का कहना था कि 'मैं भारत को स्वतन्त्र और बलवान बना हुआ देखना चाहता हूं. भारत का भविष्य पश्चिम के उस रक्त-रंजित मार्ग पर नहीं है जिस पर चलते-चलते पश्चिम अब स्वयं थक गया है.' इससे हम स्वतः ही समझ सकते हैं कि भारत है जिसको अपनी तकदीर खुद लिखनी है. महात्मा गांधी ने अपनी किताब 'मेरे सपनों का भारत में बताया है कि कैसे अहिंसा ने इसकी स्वतंत्रता को प्रशस्त किया.

'स्वराज एक पवित्र शब्द'
महात्मा गांधी कहते हैं भारत की हर चीज मुझे आकर्षित करती है. सर्वोच्च आकांक्षाएं रखने वाले किसी व्यक्ति को अपने विकास के लिए जो कुछ चाहिए, वह सब उसे भारत में मिल सकता है. लेकिन भारत अपने मूल स्वरूप में कर्मभूमि है, भोगभूमि नहीं. स्वराज्य को लेकर वे कहते हैं कि स्वराज एक पवित्र शब्द है; वह एक वैदिक शब्द है, जिसका अर्थ आत्म शासन और आत्म संयम है. अंग्रेजी शब्द 'इंडिपेंडेंस' अक्सर सब प्रकार की मर्यादाओं से मुक्त निरंकुश आजादी का या स्वच्छंदता का अर्थ देता है; वह अर्थ स्वराज शब्द में नहीं है. मेरा स्वराज्य तो हमारी सभ्यता की आत्मा को अक्षुण्ण रखना है.

महात्मा गांधी का संदेश
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'भारत अपने आत्मबल से सबकुछ जीत सकता है'
गांधी कहते हैं भारत दुनिया के उन गिने-चुने देशों में से हैं, जिन्होंने अपनी अधिकांश पुरानी संस्थाओं को कायम रखा है. साथ ही मेरा विश्वास है कि भारत का ध्येय दूसरे देशों के ध्येय से कुछ अलग है. भारत ने आत्म शुद्धि के लिए जैसा प्रयत्न किया है, उसका दुनिया में दूसरा कोई उदाहरण नहीं है. भारत अपने आत्मबल से सबकुछ जीत सकता है उसे फौलादी हथियारों की जरूरत नहीं.

महात्मा गांधी का संदेश
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महात्मा गांधी का देशप्रेम किसी से छिपा नहीं है. इसको लेकर उनका कहना था कि मेरे लिए देशप्रेम और मानव प्रेम में कोई भेद नहीं है; दोनों एक ही हैं. मैं देशप्रेमी हूं, क्योंकि मैं मानव प्रेमी हूं. मेरा देशप्रेम वर्जन नहीं है.

महात्मा गांधी का संदेश
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महात्मा गांधी अनुशासन में काफी विश्वास रखते थे. वे कहते हैं कि सर्वोच्च कोटि की स्वतंत्रता के साथ सर्वोच्च कोटि का अनुशासन और विनय होता है.

'लोकतंत्र को सुरक्षित रखना हमारा कर्तव्य'
वहीं लोकतंत्र और इसकी संरचना को लेकर भी उन्होंने पहले ही काफी कुछ कह दिया था. उन्होंने कहा कि संस्था जितनी बड़ी होगी, उसके दुरुपयोग की संभावनाएं भी उतनी ही बड़ी होंगी. लोकतंत्र एक बड़ी संस्था है, इसलिए उसका दुरुपयोग भी हो सकता है. लेकिन उसका इलाज लोकतंत्र से बचना नहीं, बल्कि दुरुपयोग की संभावना को कम से कम करना है.

महात्मा गांधी का संदेश
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'लोकतंत्र में अनुशासन जरूरी'
वहीं, जन्मजात लोकतंत्रवादी वह होता है, जो जन्म से ही अनुशासन का पालन करने वाला हो. लोकतंत्र स्वाभाविक रूप में उसी को प्राप्त होता है, जो साधारण रूप में अपने को मानवीय तथा दैवीय सभी नियमों का स्वेच्छापूर्वक पालन करने का अभस्त बना ले. लोकशाही किसी ऐसी स्थिति का नाम नहीं है, जिसमें लोग भेड़ों की तरह व्यवहार करें. लोकशाही में व्यक्ति के मंत्र स्वातंत्र्य और कार्य स्वातंत्र्य की रक्षा अत्यंत सावधानी से की जाती है, और की जानी चाहिए.

महात्मा गांधी का संदेश
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ये है समाजवाद
समाज एक ऐसा महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसके बारे में महात्मा गांधी काफी गंभीर बातें कहते हैं. गांधी जी ने कहा कि अगर व्यक्ति का महत्व न रहे, तो समाज का भी क्या सत्व रह जाएगा? न कोई नीचा और न कोई उंचा. किसी आदमी के शरीर में सिर इसलिए ऊंचा नहीं है कि वह सबसे ऊपर है और पांव के तलुवे इसलिए नीचे नहीं हैं कि वे जमीन को छूते हैं. जिस तरह मनुष्य के शरीर के सारे अंग बराबर हैं, उसी तरह समाजरूपी शरीर के सारे अंग बराबर हैं. यही समाजवाद है.

महात्मा गांधी का संदेश
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आत्मनिर्भर भारत का महत्व
महात्मा गांधी आत्मनिर्भरता पर विश्वास रखते थे. इसलिए उन्होंने कहा कि जब उत्पादन और उपभोग दोनों किसी सीमित क्षेत्र में होते हैं, तो उत्पादन को अनिश्चित हद तक और किसी भी मूल्य पर बढ़ाने का लोभ नहीं रह जाता. उस हालत में हमारी मौजूदा अर्थ व्यवस्था से जो अनेक कठिनाइंया और समस्याएं पैदा होती हैं वे भी नहीं रह जाएंगी.

महात्मा गांधी का संदेश
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यंत्रों को लेकर भी उन्हें पहले ही आभास हो गया था. इसलिए उन्होंने कहा था कि यंत्रों का भी स्थान है. और यंत्रों ने अपना स्थान प्राप्त भी कर लिया है. लेकिन मनुष्यों के लिए जिस प्रकार की मेहनत करना अनिवार्य होना चाहिए, उसी प्रकार की मेहनत का स्थान उन्हें ग्रहण न कर लेना चाहिए.

महात्मा गांधी का संदेश
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सत्ता आराम की कुर्सी का नाम नहीं- गांधी
भारत कई वर्षों से गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था. इसे संघर्ष करने की जरूरत थी. इसलिए उन्होंने कहा कि आराम कुर्सी वाले या हिंसा वाले समाजवाद में मेरा विश्वास नहीं है. मैं तो अपने विश्वास के अनुसार आचरण करने को उचित मानता हूं और उसके लिए सब लोग मेरी बात मान लें तब तक ठहरना अनावश्यक समझता हूं.

महात्मा गांधी का संदेश
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गरीबों के लिए हमदर्दी भी जरूरी
मनुष्य के जीवन और व्यवहार को लेकर उन्होंने कहा कि जब तक एक भी सशक्त आदमी ऐसा हो जिसे काम न मिलता हो या भोजन न मिलता हो , तब तक हमें आराम करने या भरपेट भोजन करने में शर्म महसूस होनी चाहिए. साथ ही गरीबों के लिए रोटी ही अध्यात्म है.

महात्मा गांधी का संदेश
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अधिकार कर्तव्य की जंग
समाज में अधिकार और कर्तव्य का शीत युद्ध हमेशा ही चलती रहती है, जिसमें लोग फर्ज को भूलकर हक को याद रखते हैं. इसलिए गांधी जी का कहना था कि अधिकारों की उत्पत्ति का सच्चा स्त्रोत कर्तव्यों का पालन है. यदि हम सब अपने कर्तव्यों का पालन करें तो अधिकारों को ज्यादा ढूंढने में की जरूरत नहीं होगी.

महात्मा गांधी का संदेश
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साथ ही लक्ष्य की सिद्धी ठीक उतनी ही शुद्ध होती है, जितने हमारे साधन शुद्ध होते हैं. यह बात ऐसी है जिसमें किसी अपवाद की गुंजाइश नहीं है.

'तेन त्यक्तेन भुंजीथा:'
'तेन त्यक्तेन भुंजीथा:' मंत्र में असाधारण ज्ञान भरा पड़ा है. मौजूदा जीवन पद्धति की जगह, जिसमें हर एक आदमी पड़ोसी की परवाह किए बिना केवल अपने ही लिए जीता है, सर्व कल्याणकारी नई जीवन पद्धति का विकास करना हो, तो उसका सबसे निश्चित मार्ग यही है.

महात्मा गांधी का संदेश
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'अन्यायी के आगे घुटने टेकना अहिंसा नहीं'
मोहनदास करमचंद गांधी बताते हैं कि अपने सक्रिय रूप में अहिंसा का अर्थ है ज्ञानपूर्वक कष्ट सहना. उसका अर्थ अन्यायी की इच्छा के आगे दबकर घुटने टेकना नहीं है; उसका अर्थ यह है कि अत्याचारी की इच्छा के खिलाफ अपनी आत्मा की सारी शक्ती लगा दी जाए.

महात्मा गांधी का संदेश
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मैं राज्य की सत्ता की वृद्धि को बड़े- से- बड़े भय की दृष्टि को देखता हूं. क्योंकि जाहिर तौर पर तो वह शोषण को कम- से- कम करके लाभ पहुंचाती है; परंतु व्यक्तित्व को जो सब प्रकार की उन्नति की जड़ है- नष्ट करके वह मानव जाति को बड़ी- से- बड़ी हानि पहुंचाती है.

क्या है शुद्ध सत्याग्रह?
कानून को लेकर भी उन्होंने काफी अहम बातें कहीं. उन्होंने लिखा कि कानून की अवज्ञा सच्चे भाव से और आदरपूर्वक की जाए, उसमें किसी प्रकार की उद्धतता न हो और वह किसी ठोस सिद्धांत पर आधारित हो तथा उसके पीछे किसी द्वेष या तिरस्कार का लेश भी न हो- यह आखिरी कसौटी सबसे ज्यादा महत्व की है- तो ही उसे शुद्ध सत्याग्रह कहा जा सकता है.

महात्मा गांधी का संदेश
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जमीन पर किसानों का पहला हक- गांधी
भारत कृषि प्रधान देश है और यही कृषि इसे दुनिया में पहचान दिला सकती है. पूरे देश का पेट भरने वाले किसानों को लेकर महात्मा गांधी पहले ही काफी चिंतित थे. इसलिए उन्होंने कहा कि किसानों का- फिर वे भूमिहीन मजदूर हों या मेहनत करने वाले जमीन मालिक हों- स्थान पहला है. उनके परिश्रम से ही पृथ्वी फलप्रसू और समृद्ध हुई है और इसलिए सच कहा जाए तो जमीन उनकी ही है या होनी चाहिए, जमीन से दूर रहने वीले जमीदारों की नहीं.

महात्मा गांधी का संदेश
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गांधी को कितना समझते हैं युवा?
वहीं गांधी के उसूलों को आज के कितना समझते हैं यह जानने के लिए हमने कुछ युवा छात्र और छात्र नेताओं से बात की. इनका यही कहना है कि गांधी हमारी आत्मा में बसते हैं. उनके विचारों को आत्सात करना हमारे लिए बहुमूल्य है.

वहीं विशेषज्ञों की राय है कि आज के राजनेताओं को गांधी के विचारों को आत्मसात करना चाहिए और उसी राह पर चल कर देश की तरक्की का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए. गांधी जी ने हमें लोकतंत्र का महत्व बताया. हमें अपने लोकतंत्र को बचा कर रखना चाहिए. अगर हम उनके बताए हुए रास्ते पर चलें तो आज भी हम उनके सपने का भारत खड़ा कर सकते हैं.

आज स्वतत्रंता दिवस के मौके पर हम राष्ट्रपिता को याद कर रहे हैं, तो जरूरत है कि उनके बताएं रास्तों पर चलें और अहिंसा का महत्व समझें. ये आजादी सत्तात्मक ही नहीं भावनात्मक रूप से भी अमूल्य है.

पटना: 'साइमन कमीशन वापस जाओ' के नारे साथ शुरू हुए भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को आज कई वर्ष बीत गए हैं. उन पलों को याद कर आज पूरा राष्ट्र 74वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. अंग्रेजों के खिलाफ भारत की इस जंग में न जानें कितनी जानों की कुर्बानियां चढ़ीं. किसी ने जोशिले अंदाज में अपना हक मांगा तो किसी ने अहिंसा को अपना हथियार बनाया.

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तब महात्मा गांधी ने इस आंदोलन को दिशा दी. आज जब पूरा देश आजादी के जश्न में डूबा है और वातावरण स्वतंत्रता गीतों से गुंजायमान हैं तो हर कोई बस इसमें रम जाना चाहता है. 15 अगस्त का ये दिन हमें हमारे संघर्ष और कर्तव्यों को एक बार फिर से याद दिलाता है. कोरोना काल में लोग घरों में रहकर अपने स्वतंत्रता सेनानियों को याद कर रहे हैं.

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त्याग और भोग की लय

'तेन त्यक्तेन भुंजीथा:' त्याग और भोग की लय. यह ईशावास्य उपनिषद का एक सूत्र है. यह उन विरोधाभासी सूत्रों में से है, जो अस्तित्व के रहस्य का उद्घाटन करते हैं. महात्मा गांधी कहते हैं. ईशावास्य के प्रारंभ में ही यह श्लोक है कि 'इस जगत में जो भी है, वह ईश्वर से व्याप्त है, अत: त्याग करते हुए उसका भोग करो. लेकिन जो त्याग करते हैं, वही भोग सकते हैं.

क्या है गांधी के सपनों का भारत?
महान विचारक, दार्शनिक, कुशल राजनेता एवं दूरदृष्टा महात्मा मोहनदास करमचन्द गांधी ने जिस भारत की कल्पना की थी, आजादी के 74 वर्ष बाद भी क्या हम उस भारत का निर्माण कर पाएं हैं? क्या हम गांधी को समझ पाए हैं? यह यक्ष प्रश्न हम सब के सामने है. आज हम उनके विचारों को एक बार फिर से दोहराएंगे, जिसमें हम जिक्र करेंगे कि आखिर क्या है गांधी के सपनों का भारत? कैसा है ये भारत और क्यों जरूरी है इस सपने को पूरा करना?

आर्थिक समानता अहिंसापूर्ण स्वराज की मुख्य चाबी
महात्मा गांधी का कहना है कि इस मंत्र में असाधारण ज्ञान भरा पड़ा है. मौजूदा जीवन पद्धति की जगह, जिसमें हर एक आदमी पड़ोसी की परवाह किए बिना केवल अपने ही लिए जीता है, सर्व कल्याणकारी नई जीवन पद्धति का विकास करना हो, तो उसका सबसे निश्चित मार्ग यही है. साथ ही उनका मानना था कि आर्थिक समानता अहिंसापूर्ण स्वराज की मुख्य चाबी है. आर्थिक समानता, अर्थात जगत के पास समान संपत्ति का होना यानी सबके पास इतनी संपत्ति का होना कि जिससे वे अपनी कुदरती आवश्कताएं पूरी कर सकें.

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'भारत को खुद लिखनी है अपनी तकदीर'
महात्मा गांधी का कहना था कि 'मैं भारत को स्वतन्त्र और बलवान बना हुआ देखना चाहता हूं. भारत का भविष्य पश्चिम के उस रक्त-रंजित मार्ग पर नहीं है जिस पर चलते-चलते पश्चिम अब स्वयं थक गया है.' इससे हम स्वतः ही समझ सकते हैं कि भारत है जिसको अपनी तकदीर खुद लिखनी है. महात्मा गांधी ने अपनी किताब 'मेरे सपनों का भारत में बताया है कि कैसे अहिंसा ने इसकी स्वतंत्रता को प्रशस्त किया.

'स्वराज एक पवित्र शब्द'
महात्मा गांधी कहते हैं भारत की हर चीज मुझे आकर्षित करती है. सर्वोच्च आकांक्षाएं रखने वाले किसी व्यक्ति को अपने विकास के लिए जो कुछ चाहिए, वह सब उसे भारत में मिल सकता है. लेकिन भारत अपने मूल स्वरूप में कर्मभूमि है, भोगभूमि नहीं. स्वराज्य को लेकर वे कहते हैं कि स्वराज एक पवित्र शब्द है; वह एक वैदिक शब्द है, जिसका अर्थ आत्म शासन और आत्म संयम है. अंग्रेजी शब्द 'इंडिपेंडेंस' अक्सर सब प्रकार की मर्यादाओं से मुक्त निरंकुश आजादी का या स्वच्छंदता का अर्थ देता है; वह अर्थ स्वराज शब्द में नहीं है. मेरा स्वराज्य तो हमारी सभ्यता की आत्मा को अक्षुण्ण रखना है.

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'भारत अपने आत्मबल से सबकुछ जीत सकता है'
गांधी कहते हैं भारत दुनिया के उन गिने-चुने देशों में से हैं, जिन्होंने अपनी अधिकांश पुरानी संस्थाओं को कायम रखा है. साथ ही मेरा विश्वास है कि भारत का ध्येय दूसरे देशों के ध्येय से कुछ अलग है. भारत ने आत्म शुद्धि के लिए जैसा प्रयत्न किया है, उसका दुनिया में दूसरा कोई उदाहरण नहीं है. भारत अपने आत्मबल से सबकुछ जीत सकता है उसे फौलादी हथियारों की जरूरत नहीं.

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महात्मा गांधी का देशप्रेम किसी से छिपा नहीं है. इसको लेकर उनका कहना था कि मेरे लिए देशप्रेम और मानव प्रेम में कोई भेद नहीं है; दोनों एक ही हैं. मैं देशप्रेमी हूं, क्योंकि मैं मानव प्रेमी हूं. मेरा देशप्रेम वर्जन नहीं है.

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महात्मा गांधी अनुशासन में काफी विश्वास रखते थे. वे कहते हैं कि सर्वोच्च कोटि की स्वतंत्रता के साथ सर्वोच्च कोटि का अनुशासन और विनय होता है.

'लोकतंत्र को सुरक्षित रखना हमारा कर्तव्य'
वहीं लोकतंत्र और इसकी संरचना को लेकर भी उन्होंने पहले ही काफी कुछ कह दिया था. उन्होंने कहा कि संस्था जितनी बड़ी होगी, उसके दुरुपयोग की संभावनाएं भी उतनी ही बड़ी होंगी. लोकतंत्र एक बड़ी संस्था है, इसलिए उसका दुरुपयोग भी हो सकता है. लेकिन उसका इलाज लोकतंत्र से बचना नहीं, बल्कि दुरुपयोग की संभावना को कम से कम करना है.

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'लोकतंत्र में अनुशासन जरूरी'
वहीं, जन्मजात लोकतंत्रवादी वह होता है, जो जन्म से ही अनुशासन का पालन करने वाला हो. लोकतंत्र स्वाभाविक रूप में उसी को प्राप्त होता है, जो साधारण रूप में अपने को मानवीय तथा दैवीय सभी नियमों का स्वेच्छापूर्वक पालन करने का अभस्त बना ले. लोकशाही किसी ऐसी स्थिति का नाम नहीं है, जिसमें लोग भेड़ों की तरह व्यवहार करें. लोकशाही में व्यक्ति के मंत्र स्वातंत्र्य और कार्य स्वातंत्र्य की रक्षा अत्यंत सावधानी से की जाती है, और की जानी चाहिए.

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ये है समाजवाद
समाज एक ऐसा महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसके बारे में महात्मा गांधी काफी गंभीर बातें कहते हैं. गांधी जी ने कहा कि अगर व्यक्ति का महत्व न रहे, तो समाज का भी क्या सत्व रह जाएगा? न कोई नीचा और न कोई उंचा. किसी आदमी के शरीर में सिर इसलिए ऊंचा नहीं है कि वह सबसे ऊपर है और पांव के तलुवे इसलिए नीचे नहीं हैं कि वे जमीन को छूते हैं. जिस तरह मनुष्य के शरीर के सारे अंग बराबर हैं, उसी तरह समाजरूपी शरीर के सारे अंग बराबर हैं. यही समाजवाद है.

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आत्मनिर्भर भारत का महत्व
महात्मा गांधी आत्मनिर्भरता पर विश्वास रखते थे. इसलिए उन्होंने कहा कि जब उत्पादन और उपभोग दोनों किसी सीमित क्षेत्र में होते हैं, तो उत्पादन को अनिश्चित हद तक और किसी भी मूल्य पर बढ़ाने का लोभ नहीं रह जाता. उस हालत में हमारी मौजूदा अर्थ व्यवस्था से जो अनेक कठिनाइंया और समस्याएं पैदा होती हैं वे भी नहीं रह जाएंगी.

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यंत्रों को लेकर भी उन्हें पहले ही आभास हो गया था. इसलिए उन्होंने कहा था कि यंत्रों का भी स्थान है. और यंत्रों ने अपना स्थान प्राप्त भी कर लिया है. लेकिन मनुष्यों के लिए जिस प्रकार की मेहनत करना अनिवार्य होना चाहिए, उसी प्रकार की मेहनत का स्थान उन्हें ग्रहण न कर लेना चाहिए.

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सत्ता आराम की कुर्सी का नाम नहीं- गांधी
भारत कई वर्षों से गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था. इसे संघर्ष करने की जरूरत थी. इसलिए उन्होंने कहा कि आराम कुर्सी वाले या हिंसा वाले समाजवाद में मेरा विश्वास नहीं है. मैं तो अपने विश्वास के अनुसार आचरण करने को उचित मानता हूं और उसके लिए सब लोग मेरी बात मान लें तब तक ठहरना अनावश्यक समझता हूं.

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गरीबों के लिए हमदर्दी भी जरूरी
मनुष्य के जीवन और व्यवहार को लेकर उन्होंने कहा कि जब तक एक भी सशक्त आदमी ऐसा हो जिसे काम न मिलता हो या भोजन न मिलता हो , तब तक हमें आराम करने या भरपेट भोजन करने में शर्म महसूस होनी चाहिए. साथ ही गरीबों के लिए रोटी ही अध्यात्म है.

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अधिकार कर्तव्य की जंग
समाज में अधिकार और कर्तव्य का शीत युद्ध हमेशा ही चलती रहती है, जिसमें लोग फर्ज को भूलकर हक को याद रखते हैं. इसलिए गांधी जी का कहना था कि अधिकारों की उत्पत्ति का सच्चा स्त्रोत कर्तव्यों का पालन है. यदि हम सब अपने कर्तव्यों का पालन करें तो अधिकारों को ज्यादा ढूंढने में की जरूरत नहीं होगी.

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साथ ही लक्ष्य की सिद्धी ठीक उतनी ही शुद्ध होती है, जितने हमारे साधन शुद्ध होते हैं. यह बात ऐसी है जिसमें किसी अपवाद की गुंजाइश नहीं है.

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'तेन त्यक्तेन भुंजीथा:' मंत्र में असाधारण ज्ञान भरा पड़ा है. मौजूदा जीवन पद्धति की जगह, जिसमें हर एक आदमी पड़ोसी की परवाह किए बिना केवल अपने ही लिए जीता है, सर्व कल्याणकारी नई जीवन पद्धति का विकास करना हो, तो उसका सबसे निश्चित मार्ग यही है.

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'अन्यायी के आगे घुटने टेकना अहिंसा नहीं'
मोहनदास करमचंद गांधी बताते हैं कि अपने सक्रिय रूप में अहिंसा का अर्थ है ज्ञानपूर्वक कष्ट सहना. उसका अर्थ अन्यायी की इच्छा के आगे दबकर घुटने टेकना नहीं है; उसका अर्थ यह है कि अत्याचारी की इच्छा के खिलाफ अपनी आत्मा की सारी शक्ती लगा दी जाए.

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मैं राज्य की सत्ता की वृद्धि को बड़े- से- बड़े भय की दृष्टि को देखता हूं. क्योंकि जाहिर तौर पर तो वह शोषण को कम- से- कम करके लाभ पहुंचाती है; परंतु व्यक्तित्व को जो सब प्रकार की उन्नति की जड़ है- नष्ट करके वह मानव जाति को बड़ी- से- बड़ी हानि पहुंचाती है.

क्या है शुद्ध सत्याग्रह?
कानून को लेकर भी उन्होंने काफी अहम बातें कहीं. उन्होंने लिखा कि कानून की अवज्ञा सच्चे भाव से और आदरपूर्वक की जाए, उसमें किसी प्रकार की उद्धतता न हो और वह किसी ठोस सिद्धांत पर आधारित हो तथा उसके पीछे किसी द्वेष या तिरस्कार का लेश भी न हो- यह आखिरी कसौटी सबसे ज्यादा महत्व की है- तो ही उसे शुद्ध सत्याग्रह कहा जा सकता है.

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जमीन पर किसानों का पहला हक- गांधी
भारत कृषि प्रधान देश है और यही कृषि इसे दुनिया में पहचान दिला सकती है. पूरे देश का पेट भरने वाले किसानों को लेकर महात्मा गांधी पहले ही काफी चिंतित थे. इसलिए उन्होंने कहा कि किसानों का- फिर वे भूमिहीन मजदूर हों या मेहनत करने वाले जमीन मालिक हों- स्थान पहला है. उनके परिश्रम से ही पृथ्वी फलप्रसू और समृद्ध हुई है और इसलिए सच कहा जाए तो जमीन उनकी ही है या होनी चाहिए, जमीन से दूर रहने वीले जमीदारों की नहीं.

महात्मा गांधी का संदेश
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गांधी को कितना समझते हैं युवा?
वहीं गांधी के उसूलों को आज के कितना समझते हैं यह जानने के लिए हमने कुछ युवा छात्र और छात्र नेताओं से बात की. इनका यही कहना है कि गांधी हमारी आत्मा में बसते हैं. उनके विचारों को आत्सात करना हमारे लिए बहुमूल्य है.

वहीं विशेषज्ञों की राय है कि आज के राजनेताओं को गांधी के विचारों को आत्मसात करना चाहिए और उसी राह पर चल कर देश की तरक्की का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए. गांधी जी ने हमें लोकतंत्र का महत्व बताया. हमें अपने लोकतंत्र को बचा कर रखना चाहिए. अगर हम उनके बताए हुए रास्ते पर चलें तो आज भी हम उनके सपने का भारत खड़ा कर सकते हैं.

आज स्वतत्रंता दिवस के मौके पर हम राष्ट्रपिता को याद कर रहे हैं, तो जरूरत है कि उनके बताएं रास्तों पर चलें और अहिंसा का महत्व समझें. ये आजादी सत्तात्मक ही नहीं भावनात्मक रूप से भी अमूल्य है.

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