पटना: आज वर्ल्ड एड्स डे है (Today Is World Aids Day) और इस बार ऐड्स डे का थीम इक्वलाइज यानी समानता है. सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन के अनुसार वर्ल्ड एड्स डे हर व्यक्ति और कम्युनिटी के लिए एक मौका है. जिसमें वह उस हर एक व्यक्ति को याद और उनका सम्मान कर सके जिन्होंने इस रोग के कारण अपनी जान गवाई है. एड्स के बारे में भ्रांति है कि यदि किसी को यह बीमारी हो गई तो उस व्यक्ति का अंत है लेकिन यह अधूरा सच है. अब ऐसी दवाइयां आसानी से उपलब्ध है जिसके नियमित सेवन से एड्स पीड़ित व्यक्ति लंबा जीवन जी सकता है. बिहार में भी एड्स मरीजोे की संख्या (HIV Infection In Bihar) कम नहीं है.
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वर्ल्ड एड्स डे : दुनिया भर में एड्स के करीब 36 लाख रोगी हैं जिसमें भारत में इसके रोगियों की संख्या 2401284 है और बिहार में इसकी संख्या 142793 है. साल 2021 के अंत तक ये 15 वर्ष से 49 वर्ष की आयु के लोगों के बीच है. भारत में 0.21% प्रीवेलेंस पाया गया. वहीं, बिहार में 0.16% एचआईवी प्रीवेलेंस पाया गया है. नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन की ताजा रिपोर्ट बताते हैं कि हाल के वर्षों में बिहार में एचआईवी संक्रमण का मुख्य कारण समलैंगिकता है. रिपोर्ट की माने तो देश में महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के बाद समलैंगिकता से एड्स के सर्वाधिक मामले बिहार में है. हालांकि बिहार में एड्स नियंत्रण और एचआईवी रोगियों के लिए कई सारे स्कीम भी सरकार की ओर से चलाए जा रहे हैं. लेकिन अभी भी एड्स के रोगियों की समस्या कम नहीं हो रही और उन्हें अस्पतालों में यदि अगर छोटी सर्जरी भी करानी होती है तो इसके लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ता है.
क्या है एड्स और उसके बचाव के तरीके? : पटना में एड्स रोगियों के लिए काम करने वाले प्रख्यात चिकित्सक डॉ दिवाकर तेजस्वी बताते हैं कि एचआईवी कई कारणों से होता है. एचआईवी संक्रमित व्यक्तियों से असुरक्षित यौन संबंध एचआईवी संक्रमित व्यक्ति का खून किसी स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में चढ़ाए जाने के कारण एचआईवी का संक्रमण होता है. एचआईवी संक्रमित गर्भवती महिला से उसके नवजात बच्चों में संक्रमण होने का खतरा रहता है. हाल के दिनों में एचआईवी को लेकर लोगों में काफी अवेयरनेस आया है. एचआईवी संक्रमण से व्यक्ति का वजन कम होने लगता है उसे कमजोरी होती है. लगातार बुखार बना रहता है. चमड़े में फुंसियां और भूख कम लगता है और यह सब बीमारी के लक्षण है. उन्होंने कहा कि आज के समय में एचआईवी एड्स संक्रमित व्यक्ति यदि नियमित दवाओं का सेवन करें और संयमित जीवन जीए तो वह लंबे वर्षों तक सामान्य रूप से जीवन यापन कर सकता है.
'सामान्य पॉपुलेशन की तुलना में समलैंगिकों में एचआईवी संक्रमण का खतरा काफी अधिक रहता है. 377 को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन को समलैंगिकों के लिए अलग से प्रोग्राम बनाने की आवश्यकता पड़ गई. समलैंगिकता आज भी समाज में एक टैबू है और इसके वजह से इनकी पहचान में आज भी समस्या आती है. लेकिन हाल के वर्षों में अधिक समलैंगिकों की पहचान की गई है और उनकी जांच की गई है, जो संक्रमित पाए गए हैं उन्हें दवाइयां उपलब्ध कराई गई हैं. बिहार में बिहार स्टेट ऐड्स कंट्रोल सोसायटी की ओर से काफी संख्या में एआरटी सेंटर चलाए जा रहे हैं जहां एड्स रोगियों को निशुल्क दवा उपलब्ध कराई जाती है. समय-समय पर उनका निशुल्क चेकअप होता है और संक्रमण के वायरल लोड के अनुसार उनके दवा का डोज तैयार किया जाता है. एचआईवी रोगियों की काउंसलिंग की जाती है और जो समलैंगिक है उनकी भी काउंसलिंग की जाती है. इन सेंटरों पर सरकार की ओर से जांच की व्यवस्था भी निशुल्क है. इसके अलावा एचआईवी पीड़ितों के लिए पेंशन योजना और उनके बच्चों के लिए परवरिश योजना भी बिहार में सरकार की ओर से चलाई जा रही है.' - डॉ दिवाकर तेजस्वी, प्रख्यात चिकित्सक
'साल 2002 में एक एचआईवी पीड़ित महिला की डिलीवरी कराई और बच्चा नेगेटिव रहा. यदि दंपत्ति एचआईवी संक्रमित है और बच्चे की प्लानिंग कर रहे हैं तो इसके लिए उन्हें दवाइयों का नियमित सेवन करना होगा. प्रेगनेंसी के बाद एचआईवी पीड़ित महिला के लिए जो ट्रीटमेंट है, जो दवाइयों का प्रोसीजर है, उसे चलाना होगा तो बच्चा एचआईवी नेगेटिव जन्म लेगा. आज के समय में वह पर्याप्त तकनीकी उपलब्ध है. जिसकी वजह से एचआईवी पीड़ित दंपत्ति एचआईवी मुक्त बच्चा पैदा कर सकता है.' - डॉ किरण शरण, पटना की वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ
एचआईवी पीड़ितों की आपबीती उनकी जुबानी : पटना में एचआईवी पीड़ितों के लिए काम करने वाली संस्था पटना नेटवर्क फॉर पीपल लिविंग विद एचआईवी ऐड्स की प्रेसिडेंट अनु कुमारी ने बताया कि साल 2008 से वह एचआईवी पीड़ितों के लिए काम कर रही हैं. पहले और अब की तुलना में लोगों में थोड़ी जागरूकता आई है. लेकिन अभी भी एचआईवी पीड़ितों को परिवार में और समाज में भेदभाव का सामना करना पड़ता है. उनके पति ने बिहार नेटवर्क फॉर द पीपल लिविंग विद एचआईवी एड्स एक संस्था बनाई, उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर बिहार में एड्स को लेकर जागरूकता के कार्यक्रम शुरू किए इसके लिए उन्होंने नुक्कड़ नाटक किए, रैली निकाली, कई जगह पर स्टॉल लगाए और स्टॉल लगाकर बीमारी और बचाव के बारे में जागरूकता के कार्यक्रम किए.
एचआईवी बीमारी लाइलाज बीमारी नहीं है : पटना नेटवर्क फॉर पीपल लिविंग विद एचआईवी ऐड्स की प्रेसिडेंट अनु कुमारी ने बताया कि एचआईवी पीड़ितों को जांच की व्यवस्था और दवाइयों की उपलब्धता के लिए काम किया और आज उसका असर है कि प्रदेश में सरकार एचआईवी मरीजों के लिए कई प्रकार की योजनाएं चला रही है. एचआईवी मरीजों के लिए प्रदेश में सरकार शताब्दी योजना चला रही है. जिसके तहत मरीजों को जब तक मरीज जीवित है. 1500 रुपए का पेंशन प्रतिमाह मिल रहा है. एचआईवी पीड़ित के बच्चों के लिए सरकार परवरिश योजना के तहत 0 से 18 साल के बच्चों को ₹1000 प्रति माह पेंशन दे रही है. प्रदेश में एचआईवी मरीजों के लिए निशुल्क जांच, इलाज और दवा की व्यवस्था है. अनु ने बताया कि बीते वर्ष कोरोना में उनके पति की असामयिक मृत्यु हो गई और उसके बाद से वह अब पटना नेटवर्क फॉर पीपल लिविंग विद एचआईवी ऐड्स के साथ एचआईवी पीड़ितों के लिए काम कर रही हैं. वह एचआईवी पीड़ितों से मिलती है और उन्हें दवाइयों का रेगुलर सेवन करने के लिए प्रेरित करती हैं. वह उन्हें खुद का एग्जांपल देती है कि इतने वर्षों से लगातार दवा का सेवन कर रही है जिस वजह से वह बिल्कुल सामान्य हैं. वह उन्हें बताती हैं कि वह और उनके पति पॉजिटिव थे बावजूद इसके उनका जो बच्चा हुआ वह नेगेटिव है.
नियमित दवा के सेवन से मरीज हो सकते हैं ठीक : अनु कुमारी बताती हैं कि सरकार की तरफ से एचआईवी पीड़ितों के लिए बहुत सारी व्यवस्थाएं की गई है. लेकिन आज भी अस्पताल में यदि एचआईवी पीड़ित को एक छोटा भी ऑपरेशन कराना होता है तो उसके लिए बहुत कठिनाई झेलनी पड़ती है. एचआईवी पीड़ित गर्भवती महिला का सिर्फ आसानी से सर्जरी करके डिलीवरी हो जाता है. लेकिन यदि किसी को घुटना में सर्जरी कराना है या डायलिसिस कराना है या शरीर के किसी हिस्से में घाव की सर्जरी करानी है तो अस्पताल वाले जल्दी नहीं करते और इसके लिए मरीज को काफी दौड़ना पड़ता है. कई जगह से पैरवी करानी पड़ती है. बिहार स्टेट ऐड्स कंट्रोल सोसायटी की मदद लेनी पड़ती है और तब जाकर मुश्किल से सर्जरी हो पाती है. सरकार को एचआईवी पीड़ितों के लिए अस्पताल में सर्जरी की बेहतर व्यवस्था उपलब्ध करानी चाहिए.
'इसके अलावा मैं जब एचआईवी पीड़ितों से मिलने ग्रामीण क्षेत्रों में जाती है तो कई पीड़ित ऐसे मिलते हैं जो दवाई छोड़ चुके होते हैं, इसके पीछे बताते हैं कि आर्थिक रूप से काफी कमजोर हैं और समाज से भी अधिक साथ नहीं मिलता. उन्हें मैं बताती हैं कि दवाइयों का निरंतर सेवन जरूरी है और यदि वह दवाइयां उठाती है तो सरकारी योजनाओं का उन्हें लाभ मिलेगा जो उनके लिए चलाई जा रही है. पूर्व में यह व्यवस्था थी कि एचआईवी पीड़ित यदि ART सेंटर पर दवा लेने और अपना जांच कराने के लिए जा रहा है तो उसे आने-जाने का भाड़ा मिलता था. लेकिन हाल के वर्षों में इसे बंद कर दिया गया है और इसे फिर से शुरू करने की वह सरकार से मांग करती हैं.' - अनु कुमारी, पटना नेटवर्क फॉर पीपल लिविंग विद एचआईवी ऐड्स की प्रेसिडेंट
AIDS मरीजों की कहानी उनकी जुबानी : नालंदा की सीता (बदला हुआ नाम) बताती हैं कि साल 2004 में उन्हें जांच में एड्स डिटेक्ट हुआ. उनके पति नासिक में बीयर बार में मैनेजर थे और वहां से उन्हें यह संक्रमण हुआ. उनके पति के माध्यम से यह संक्रमण उनमें हुआ. यह संक्रमण अधिक बढ़ जाने से उनके पति की साल 2004 में ही मौत हो गई और उनके पति के मौत के बाद लगभग 6 महीने वह अपने घर में पूरी तरह अकेले हो गई. कोई उनके पास तक नहीं आता था, सब कोई को डर रहता था कहीं उनके पास बैठने से उन्हें यह संक्रमण ना हो जाए, उनकी छुए बर्तन को कोई दूसरा उपयोग नहीं करता था. लेकिन जब वह अपने बच्चों को देखने की उनके बच्चे भूख से तरस रहे हैं, कुछ मांग रहे हैं तो वह पूरा नहीं हो पा रहा है ऐसे में उन्होंने ठाना कि अब इसी हाल में वह कुछ काम करेंगी. अपने बच्चों के लिए जब तक जिंदगी है. इसके बाद वह एक अस्पताल में एड्स पीड़ितों के काउंसलिंग में गई जहां उन्हें पता चला कि उनके जैसे 500 से अधिक लोग हैं और इससे उनमें एक नई ऊर्जा मिली कि वह भी दवाइयों का निरंतर सेवन कर और जीवनशैली सुधार कर ठीक से जिंदगी जी सकती हैं. उन्होंने बताया कि उनके पति के मरने से उतना दुख नहीं हुआ जितना उन्हें तब हुआ जब उन्हें पता चला कि उनके बच्चों को भी एचआईवी का संक्रमण हो गया है. अभी के समय बच्चे भी पूरी तरह स्वस्थ हैं और दवाइयों का सेवन लगातार करते हैं.
AIDS मरीज भी लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं : सीता ने बताया कि जब वह काउंसलिंग में गई तो पूछा गया कि हेल्पलाइन में कोई यदि काम करने को इच्छुक हो तो बताएं तो उन्होंने अपनी आवाज उठाई और बताया कि वह हिंदी अच्छे से पढ़-लिख लेती हैं. 12वीं तक पढ़ी हुई है और फिर उन्हें काम मिल गया. इसके बाद उन्होंने कुछ वर्षों तक कुर्जी होली फैमिली हॉस्पिटल में भी काम किया. अभी के समय वह एड्स के मरीजों के बीच जाकर उन्हें दवाइयों का निरंतर सेवन करने के लिए प्रेरित करती हैं. उन्होंने बताया कि अभी भी वह ग्रामीण क्षेत्रों में जाती है तो अपनी पहचान छिपानी पड़ती है. कई लोग समाज के डर से अपनी बीमारी को जाहिर नहीं होने देते और दवाइयों का सेवन नहीं करते हैं. ऐसे में वह जाकर उन्हें जागरूक करती हैं. गांव में बीमा एजेंट बनकर जाती हैं और पीड़ित से मिलकर वह बताती हैं कि वह लगभग 18 वर्षों से बीमारी के बावजूद स्वस्थ जीवन जी रही हैं और वह भी ऐसा जीवन जी सकती हैं. उनलोगों के लिए सरकार की तरफ से जो योजनाएं चल रही हैं उसके बारे में भी उन्हें जागरूक करती हैं.
AIDS को छुपाएं नहीं खुलकर बताएं : पटना की रहने वाली नगमा (बदला हुआ नाम) बताती है कि साल 2009 में उन्हें इस बीमारी के बारे में पता चला कि उन्हें यह बीमारी हुआ है. इसके बाद उन्होंने तुरंत सभी दवाइयों का सेवन शुरू किया और अपने परिवार का जांच कराया. बच्चे एचआईवी से सुरक्षित हैं. नगमा ने बताया कि 2011 से उन्होंने एचआईवी पीड़ितों के लिए काम करना शुरू किया और एचआईवी पीड़ितों को वह पीएमसीएच में जब एडमिट कराती थी तो उस समय मरीज के बेड के पास दीवार पर एक पोस्टर चिपका दिया जाता था. एचआईवी पेशेंट. इससे मरीज के परिजनों को भी समस्या होती थी और दूसरे मरीज और उनके परिजनों को भी समस्या होती थी. बाद में उन लोगों ने इसका विरोध शुरू किया और हर जगह जहां यह बेड के पास चिपकाया हुआ रहता था उसे फाड़ना शुरू किया और अब ऐसा हुआ कि अब ऐसा कुछ नहीं होता है.
HIV छुआछूत से नहीं फैलता : उन्होंने बताया कि आज भी पीएमसीएच में एचआईवी मरीज कि सिर्फ प्रेगनेंसी के वक्त डिलीवरी करा दी जाती है. लेकिन अन्य कोई सर्जरी नहीं होती. यदि किसी मरीज को छोटी सर्जरी भी करानी है तो काफी परेशानी उठानी पड़ती है और मुश्किल से किसी का कोई सर्जरी हो पाता है और इसका परिणाम यह होता है कि जख्म बढ़ते जाता है और यह मरीज के लिए जानलेवा हो जाता है. उन्होंने बताया कि उनके संपर्क में आज भी 25 से अधिक ऐसे एचआईवी मरीज हैं, जिन्हें सर्जरी की आवश्यकता है. लेकिन उनका सर्जरी नहीं हो पा रहा है. क्योंकि वह एचआईवी पीड़ित हैं और इस वजह से उन्हें अस्पताल एडमिट नहीं कर रहा. आगे बताया कि लगभग डेढ़ से 2 महीने दौड़ने के बाद एक एचआईवी पीड़ित मरीज का सीने में फेफड़े के पास गांठ का ऑपरेशन हुआ और इसके लिए उन्हें कई जगहों से फोन पर पैरवी करानी पड़ी. अधीक्षक के पास कई बार आवेदन लिखना पड़ा. बिहार स्टेट ऐड्स कंट्रोल सोसायटी से मदद लेनी पड़ी तब जाकर यह हुआ. उन्होंने कहा कि सरकार एड्स को लेकर जागरूकता कार्यक्रम तो मना रही है लेकिन वह सरकार से मांग करेंगी कि एड्स पीड़ितों के लिए अस्पताल में सर्जरी की सुदृढ़ व्यवस्था कराया जाए.