बक्सर: निर्भया गैंग रेप मामले में दिल्ली की पटियाला कोर्ट ने चारों दोषियों के खिलाफ डेथ वारंट जारी किया है. 22 जनवरी को सुबह सात बजे फांसी पर लटकाया जाएगा. सभी आरोपियों को जिस फांसी के फंदे पर लटकाया जाएगा. सभी अभियुक्तों को जिस फंदे पर लटकाया जाएगा उन्हें बिहार के बक्सर में तैयार किया गया है. तकरीबन, दो महीने पहले से फांसी के फंदे के लिए तैयार की गई रस्सी 11 दिसबंर को तिहाड़ भेजी जा चुकी हैं.
बक्सर सेंट्रल जेल से फांसी के लिए तैयार की गई 10 रस्सियों में से 6 रस्सियां तिहाड़ जेल भेजी जा चुकी हैं. जेल सूत्र के अनुसार एक रस्सी की कीमत 2 हजार 140 रुपए है. इसका भुगतान तिहाड़ जेल अधीक्षक ने किया था. वरीय अधिकारियों के निर्देश के बाद बक्सर सेंट्रल जेल में ये रस्सियां तैयार की गईं थीं.
बक्सर जेल की मनीला रस्सी
जब भी किसी अपराधी को मौत की सजा दी जाती है, तो बक्सर की मनीला रस्सी की चर्चा शुरू हो जाती है. पूरे देश में केवल बक्सर जेल में ही फांसी देने वाली खास रस्सी तैयार होती है. यहां की बनी रस्सी से कसाब और अफजल जैसे देश के दुश्मनों को फांसी दी गई थी.
दोषियों के लिए फांसी घर
आपको बता दें कि निर्भया के दोषियों को फांसी देने के लिए तिहाड़ जेल में एक और नए फांसी घर का निर्माण किया जा रहा है. तिहाड़ जेल नंबर तीन में एक पुराना फांसी घर था, जिसके पास में ही ये नया फांसी घर बनाया जा रहा है.
फांसी के लिए बक्सर से भेजी है रस्सी
बक्सर जेल में 1884 में पहली बार बने फंदे से भारतीय कैदी को फांसी दी गई. इसके बाद देश की तमाम जेलों में फांसी के लिए बक्सर से ही रस्सी को मंगाया जाता है. मुंबई हमले के आरोपी अजमल कसाब को फांसी देने में भी बक्सर जेल में बनी रस्सी का प्रयोग किया था.
फांसी वाली रस्सी का इतिहास
वर्ष 1844 ई. में अंग्रेज शासकों द्वारा केन्द्रीय कारा बक्सर में मौत का फंदा तैयार करने की फैक्ट्री लगाई गई थी. यहां तैयार किए गए मौत के फंदे से पहली बार सन 1884 ई. में एक भारतीय नागरिक को फांसी पर लटकाया गया था.
खास है 'मनीला' रस्सी
इससे पहले यह रस्सी फिलीपिंस के मनीला जेल में बनती थी, इसलिए इसे मनीला रस्सी भी कहा जाता है. देश में जब-जब मौत का फरमान जारी होता है, केंद्रीय कारा, बक्सर के कैदी ही मौत का फंदा तैयार करते हैं. इसे खास किस्म के धागों से तैयार किया जाता है.
ऐसे बनती हैं रस्सियां
जेल मैनुअल के अनुसार एक फांसी की रस्सी को तैयार करने में 3 से 4 दिनों का समय लगता है. यहां दो प्रशिक्षित कैदियों की देखरेख में इस काम को अंजाम दिया जाता है. बाकायदा कारागार परिसर में इनके लिए अलग से कमरे की व्यवस्था है. इन रस्सियों को एक तय मानक के अनुरूप लम्बाई, चौड़ाई व वजन निर्धारित है.